देश के लिए कैसे अहम रहा मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का 13 महीनों का कार्यकाल?
अब जबकि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा रियाटर हो रहे हैं, तो हमारे लिए उन वजहों पर गौर करना जरूरी हो जाता है जो तमाम विवादों के बावजूद उनके कार्यकाल को महत्वपूर्ण बनाती हैं.
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मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का 1 अक्टूबर को सीजेआई के रूप में अंतिम दिन होगा. हालांकि, उनकी वास्तविक सेवानिवृत्ति की तारीख 2 अक्टूबर है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के बाद, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई भारत के 46 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में 3 अक्टूबर को शपथ लेंगे. 28 अगस्त, 2017 से न्यायमूर्ति मिश्रा देश के 45वें मुख्य न्यायाधीश हैं. वे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और पटना और दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रहे हैं. वह 1990 से 1991 तक भारत के 21 वें मुख्य न्यायाधीश रहे, न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा के भतीजे हैं.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का कार्यकाल भारत के न्यायिक इतिहास में विशेष स्थान रखता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हीं के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट ने कानून की सभी शाखाओं और मानवाधिकारों के क्षेत्र में कई अहम फैसले दिए हैं. ज्ञात हो कि चाहे सबरीमाला का फैसला हो. या फिर आधार और समलैंगिकता और व्यभिचार मामलों में सामाजिक सुधार की दृष्टि से दिया गया फैसला ये सब मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल में ही संभव हुआ. इन फैसलों के बाद भारत को एक प्रगतिशील देश की श्रेणी में माना जाने लगा है.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल के कुछ बड़े और अहम फैसले:
1- सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले को बड़ी बेंच को सौंपने से इंकार किया.
2- समलैंगिक यौन संबंध वैध.
3- व्यभिचार कानून अवैध है.
4- सबरीमाला मंदिर में पूजा करने के लिए सभी उम्र की महिलाओं को अनुमति दी गई.
5- आधार की वैधता को बरकरार रखा.
6- सिनेमाघरों में राष्ट्रीय गान के लिए खड़े होने को अनिवार्य बना दिया.
7- 93' मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेनन को मौत की सजा सुनाई.
8- निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में 4 अभियुक्तों को मौत की सजा को बरकरार रखा.
9- बीसीसीआई के कार्य में सुधार लाए.
10- किसी व्यक्ति को अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार बरकरार रखा.
11- खाप पंचायत शादी में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं.
लेकिन कई "ऐतिहासिक" निर्णयों के बावजूद, मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का 13 महीने और 5 दिनों का कार्यकाल विवादों से भी घिरा रहा. भारतीय न्यायिक इतिहास में दीपक मिश्रा शायद शीर्ष अदालत के एकमात्र ऐसे प्रमुख माने जायेंगे जिन्होंने अपने चार वरिष्ठ सहयोगियों द्वारा विद्रोह देखा. 12 जनवरी, 2018 को न्यायमूर्ति चेलेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन भीमराव लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा पर आरोप लगाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट में, बेंच को मामलों को आवंटित करने में पारदर्शिता की कमी थी. साथ ही उन लोगों ने चेतावनी भी दी थी कि देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए न्यायपालिका प्रणाली को संरक्षित करने की अत्यंत आवश्यकता है.
दीपक मिश्रा को हमेशा ही, पहले ऐसे सीजेआई के रूप में याद किया जाएगा जिन्हें मुख्य न्यायाधीश के पद से हटाने की कोशिश की गई थी. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को इसलिए भी याद किया जाएगा कि उनका नाम अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल के एक आत्महत्या नोट में पाया गया था. '
मेडिकल घोटाले में भी मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर आरोप लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने मेडिकल कॉलेज घोटाले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. उन्होंने मांग की थी कि सीजेआई घोटाले में शामिल थे या नहीं, उसे पता लगाने के लिए जांच शुरू की जाए. इसके अलावा विपक्षी दलों ने ये भी आरोप लगाए थे कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का मोदी सरकार के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया रहा है.
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