जस्टिस गोगोई की सियासी पारी के पहले शिकार कपिल सिब्बल!
जस्टिस रंजन गोगोई (Justice Ranjan Gogoi) ने राज्य सभा (Rajya Sabha MP) के लिए अपने मनोनयन को गैर राजनीति बताया था, लेकिन कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) को लेकर उनका बयान आने के बाद किसी को ऐसी गलतफहमी नहीं रहनी चाहिये - पूर्व चीफ जस्टिस ने राजनीति में अपनी नयी पारी शुरू कर दी है.
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जस्टिस रंजन गोगोई (Justice Ranjan Gogoi) को राज्य सभा सदस्य (Rajya Sabha MP) के तौर पर मनोनीत किये जाने के साथ ही विवाद शुरू हो गया था. लिहाजा सवाल पूछे जाने लगे और वो ये कह कर टाल गये कि पहले वो शपथ ले लें, फिर इत्मीनान से पूरी बात कहेंगे. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हाल ही में जस्टिस रंजन गोगोई को राज्य सभा के लिए नामित किया है.
शपथ लेने के बाद इंडिया टुडे को दिये अपने पहले इंटरव्यू में जस्टिस गोगोई ने राज्य सभा के लिए नामित किये को गैर राजनीतिक बनाया - और ये भी साफ करने की कोशिश की कि वो राजनेता नहीं हैं, ऐसे में राजनीति करने का सवाल ही नहीं उठता - लेकिन जस्टिस गोगोई ज्यादा देर तक खुद को राजनीति से दूर नहीं रख पाये और एक टीवी इंटरव्यू में ऐसी एक बात कह दी कि हड़कंप मच गया.
जस्टिस रंजन गोगोई का दावा है कि कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के मामले में उनसे मदद मांगी थी. तब चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग चलाने की विपक्षी दलों की तरफ से कोशिश हुई थी लेकिन सभापति ने प्रस्ताव ही खारिज कर दिया था.
ट्रेलर बता रहा है कि पिक्चर हिट होगी
पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई जब शपथ लेने के लिए राज्य सभा पहुंचे तो विपक्षी सदस्यों ने 'शेम-शेम' का नारा लगा कर स्वागत किया. बहरहाल, ऐसी चीजों से बेपरवाह जस्टिस गोगोई ने शपथ ली और वादे के मुताबिक जब बोलने की बारी आयी तो बोले भी. अपने पहले इंटरव्यू में ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि राजनीतिक वजहों से वो राज्य सभा पहुंचे हैं.
बाद की बातचीत में भी जस्टिस गोगोई ये कहते हुए बचाव कर रहे हैं कि ये सरकार की तरफ से मिला कोई उपहार नहीं है बल्कि राष्ट्रपति की अनुशंसा पर देश की सेवा करने का एक मौका भर है. कहते हैं, आर्टिकल 80 के तहत राष्ट्रपति को लगा होगा कि मुझे सम्मानित किया जाना चाहिये तो कर दिया - और, कहते हैं, जब सम्मान मिल रहा हो तो आप उसे लेने से इंकार नहीं कर सकते.
कपिल सिब्बल को कठघरे में खड़ा कर रंजन गोगोई अपनी राजनीति पारी का पहला शॉट मारा है - आगे देखिये...
अब एक अन्य इंटरव्यू में रंजन गोगोई ने कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल को लेकर बड़ा इल्जाम लगाया है. जस्टिस गोगोई का दावा है कि दो साल पहले तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव में मदद मांगने के लिए कपिल सिब्बल उनके घर पर पहुंच गये थे - लेकिन वो पहले से ही नो एंट्री का बोर्ड लगा रखे थे. ये पूछे जाने पर कि जब वो घर में गये ही नहीं तो कैसे पता चला कि कपिल सिब्बल महाभियोग को लेकर मदद मांगने गये थे, जस्टिस गोगोई का जवाब था कि एक दिन पहले ही शाम को ये बाद फोन पर बतायी गयी थी.
Sensational disclosure | @KapilSibal came to me for Dipak Mishra's impeachment. I did not let him enter my house: Ranjan Gogoi, Ex- CJI & Rajya Sabha MP tells Navika Kumar on #FranklySpeakingWithGogoi. pic.twitter.com/925WzBjWXE
— TIMES NOW (@TimesNow) March 21, 2020
जस्टिस गोगोई के इस बयान को अगर ट्रेलर समझें तो पिक्चर पक्का हिट होने जा रही है - और अब तो ये समझना भी ज्यादा मुश्किल नहीं है कि राज्य सभा सदस्यता महज पड़ाव है, मंजिल तो और भी आगे है.
जस्टिस रंजन गोगोई के चीफ जस्टिस बनने से कुछ ही दिन पहले एक कार्यक्रम में उनके पिता की हाजिरजवाबी का एक किस्सा खासा चर्चित रहा. जस्टिस गोगोई के पिता असम में कांग्रेस के बड़े नेता थे और 1982 में राज्य के मुख्यमंत्री भी बने - तब गोगोई वकालत कर रहे थे.
एक बार सीनियर गोगोई के कैबिनेट साथी अब्दुल मजीब मजूमदार ने पूछ लिया - क्या आपका बेटा भी राजनीति में आएगा और असम का चीफ मिनिस्टर बनेगा? तत्कालीन मुख्यमंत्री गोगोई तपाक से बोले - मेरा बेटा राजनीति नहीं ज्वाइन करेगा इसलिए चीफ मिनिस्टर नहीं बनेगा, लेकिन वो इतना काबिल है कि एक दिन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जरूर बनेगा.
जस्टिस गोगोई ने पिता के सपने को पूरा कर दिया और अब आगे बढ़ने की बारी है. दरअसल, जस्टिस गोगोई के पिता के कांग्रेसी होने के चलते ही शक जताया जा रहा था कि सीनियर होने के बावजूद उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है - लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने ऊपर ये तोहमत नहीं लगने दी.
जैसे ही जस्टिस गोगोई को राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया, उनके फैसले गिनाये जाने लगे. ऐसे फैसले जो सत्ताधारी बीजेपी के चुनावी एजेंडे में शामिल रहा है और सबसे बड़ी अदालत से पार्टी के मनमाफिक फैसला आया. ऐसे फैसलों में कम से कम दो हैं - अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और असम में एनआरसी लागू किये जाने का फैसला.
राज्य सभा सांसद गोगोई अपनी सफाई में चाहे जो भी कहें, लेकिन ये तो सबको पता है कि कपिल सिब्बल सत्ता पक्ष के निशाने पर शुरू से रहे हैं - और जब भी अयोध्या के राम मंदिर का मुद्दा चर्चा में होता है, रोड़े अटकाने को लेकर कांग्रेस नेता के तौर पर बीजेपी नेता कपिल सिब्बल का ही नाम लेते हैं. दरअसल, कपिल सिब्बल ने बतौर वकील एक बार सुप्रीम कोर्ट में 2019 के आम चुनाव तक अयोध्या केस टाल देने की सलाह दे डाली थी - और वो हमेशा के लिए मुसीबत बन गया.
रंजन गोगोई ने बड़े ही सलीके से कपिल सिब्बल को कठघरे में घसीट लिया है - आगे की राह बीजेपी को अपनी रणनीतियों के हिसाब से तय करनी है. बस देखते जाइए.
देश की राजनीति में बवाल कराने वाला रंजन गोगोई का ये पहला बयान नहीं है. ये कह कर कि पांच-छह लोगों का एक गैंग है जिन्होंने दमघोंटू तरीके से न्यायपालिका को जकड़ रखा है. गोगोई के मुताबिक अगर इस लॉबी के मनमाफिक फैसले नहीं आते तो ये जज को हर संभव तरीके से बदनाम करने की कोशिश करते हैं.
अब अगर गोगोई की बातों को समझने की कोशिश करें तो लगता है कि वही लॉबी जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहती थी. तब पता चला था कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ सीनियर वकील राजनीतिक दलों की मदद से महाभियोग लाने की जोर शोर से तैयारी कर रहे थे. शुरू में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने भी काफी दिलचस्पी दिखायी थी लेकिन बाद में सभी विपक्षी दलों का साथ न मिलने पर ठंडे पड़ गये - और आखिरकार राज्य सभा के सभापति ने प्रस्ताव ही अस्वीकार कर दिया था.
न्यायपालिका में राजनीतिक दखलंदाजी को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. यहां तक कि जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद सीपीआई नेता डी. राजा के जस्टिस जे चेलमेश्वर के घर जाने को लेकर भी काफी विवाद हुआ था.
अब सोचने और समझने वाली बात ये है कि सांसद गोगोई ने ट्रेलर तो दिखा दिया - आने वाले दिनों में क्या क्या अपेक्षा हो सकती है.
ऐसा लगता है गोगोई का मनोनयन टाला भी जा सकता था लेकिन चुनावी राजनीति जो न कराये. विवाद तो बाद में भी होता ही. दरअसल, असम और पश्चिम बंगाल में होने वाले विधान सभा चुनाव में अब सिर्फ साल भर का वक्त बचा है. गोगोई असम से ही आते हैं. गोगोई की एक खासियत ये भी रही है कि वो असम में एनआरसी लागू करने के समर्थक रहे हैं और ये हालिया सत्ता पक्ष के एजेंडे को पूरी तरह सूट भी करता है.
असम में एनआरसी को लेकर काफी असंतोष है और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर विरोध जोर भी तो पहले असम में ही पकड़ा. याद कीजिये झारखंड में चुनावी रैली के वक्त भी प्रधानमंत्री मोदी को असम के लोगों से शांति बनाये रखने की अपील करनी पड़ रही थी. हालत ये हो गयी थी कि बीजेपी नेताओं को असम के लोगों को बार बार आश्वस्त करना पड़ रहा था और उनके मन के डर को खत्म करने का भरोसा दिलाया जाता रहा है.
राज्य सभा में गोगोई की विद्वता का फायदा उठाने के बाद कोई बीजेपी को असम के मामले में कानूनी और सियासी सलाहियत लेने से कोई रोक तो सकता नहीं. जिस तरीके से असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनवाल और उनके कैबिनेट साथी हिमंता बिस्वा सरमा की नजर असम के साथ साथ पश्चिम बंगाल पर भी रहती है, मान कर चलना होगा आने वाले दिनों में सांसद रंजन गोगोई बीजेपी के लिए काफी मददगार साबित हो सकते हैं.
वैसे भी अरुण जेटली के बाद से बीजेपी में कानून के एक विद्वान की सख्त जरूरत महसूस की जाती रही है - रंजन गोगोई उस खाली स्थान को भले न भर पायें लेकिन सूनेपन को तो मिटा ही सकते हैं - और कपिल सिब्बल पर हमला बोल कर गोगोई ने ओपनिंग शॉट खेल ही दिया है.
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