जस्टिस चेलमेश्वर के घर डी राजा के जाने को क्या समझें?
जस्टिस चेलामेश्वर से अपनी भेंट को लेकर डी. राजा जो भी सफाई दें, न तो उनकी दलील हजम होती है और न ही मुलाकात का तुक.
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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में कार्ती चिदंबरम के वकील ने खुशी का इजहार किया तो सुनवाई कर रहे जज ने उन्हें टोक दिया. फिर जज ने समझाया कि वहां वो उन्हें खुश करने के लिए नहीं बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारी के तहत बैठे हुए हैं. चारा घोटाला केस में लालू की एक गुजारिश पर भी स्पेशल कोर्ट के जज ने उन्हें हिदायत भरी सलाहियत दी.
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों का मीडिया के जरिये जनता की अदालत में आना सिर्फ ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि आने वाले 'अच्छे' या 'बुरे' दिनों का संकेत है. जाहिर है जजों के इस कदम से बीमारी की सर्जरी हो जाती है तो आने वाले दिन अच्छे ही होंगे - और अगर यूं ही गुजरते वक्त के साथ बातें यादों का हिस्सा बन गयीं तो आने वाले दिन बुरे ही समझे जाएंगे.
जजों ने मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी में कुछ मुद्दे उठाये हैं और आशंका जतायी है कि उन्हें नजरअंदाज किया गया तो लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा. लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई के बारे में सुन कर बहुत अच्छा लगता है. लेकिन लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में सियासी घुसपैठ की आशंका नजर आती है तो मन में सवाल उठने लगते हैं. जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद सीपीआई नेता डी. राजा का जस्टिस चेलमेश्वर से मिलने जाना सवालों को और हवा देता है. फिर तो इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि अपनी सफाई में डी. राजा ने क्या कहा?
जजों की चिट्ठी
बड़े पदों पर काम कर चुकी शख्सियतों की आत्मकथाओं में अक्सर सनसनीखेज खुलासे होते हैं. एक तबका सवाल उन पर भी उठाता है कि पद पर रहते हुए उन्होंने वे बातें क्यों नहीं उठायी? रिटायर होने के बाद विवादित बातों का खुलासा, दरअसल, किताबों के बिकने की गारंटी भी होती है - और वही एक बड़ी वजह भी होती है कि पब्लिशर ऐसी किताबें छापने के लिए तैयार हो जाते हैं.
जनता की अदालत में...
जजों के मुताबिक बीमारी का इलाज न हुआ तो लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है. जजों ने ज्युडिशियरी में जिस बीमारी का संकेत दिया है उसकी गंभीरता कथित रोग की स्थिति पर निर्भर करती है. मेडिकल की दुनिया में बीमारी के इलाज से बेहतर रोकथाम को तरजीह दी जाती है. जजों का ये बागी गुट भी अपनी बात को जनता की अदालत में रखा है ताकि बरसों बाद उन्हें प्रायश्चित करने का मौका न ढूंढना पड़े और उनकी अंतरात्मा की आवाज पर सवाल उठे.
1. ताकि शर्मिंदगी न होः चारों जजों ने मुख्य न्यायाधीश को संबोधित चिट्ठी में लिखा है - "हम लोग ब्योरा नहीं दे रहे हैं, क्योंकि ऐसा करने से सुप्रीम कोर्ट को और शर्मिंदगी उठानी होगी, लेकिन ये ख्याल रखा जाए कि नियमों से हटने के कारण पहले ही कुछ हद तक उसकी छवि को नुकसान पहुंच चुका है."
2. काम थोपे नहीं जा सकतेः जजों का कहना है, "स्थापित सिद्धांतों में एक ये भी है कि रोस्टर पर फैसला करने का विशेषाधिकार चीफ जस्टिस के पास है, ताकि ये व्यवस्था बनी रहे कि इस अदालत का कौन सदस्य और कौन सी पीठ किस मामले को देखेगी." चिट्ठी में चीफ जस्टिस के अधिकारों पर नहीं, बल्कि नियमों के अनुपालन में उसके पीछे मंशा पर ऐतराज जताया गया है. लिखा है, "परंपरा इसलिए बनाई गई है ताकि अदालत का कामकाज अनुशासित और प्रभावी तरीके से हो. ये परंपरा चीफ जस्टिस को अपने साथियों के ऊपर अपनी बात थोपने के लिए नहीं कहती."
3. कोई मनपसंद पीठ कैसेः आगे लिखा है, "ऐसे कई मामले हैं जिनमें देश और संस्थान पर असर डालने वाले मुकदमे इस अदालत के चीफ़ जस्टिस ने 'अपनी पसंद की' पीठ को सौंपे, जिनके पीछे कोई तर्क नजर नहीं आता. हर हाल में इनकी रक्षा की जानी चाहिए.
4. मेमोरैंडम ऑफ प्रॉसीजरः चिट्ठी में जस्टिस कर्णन केस का उल्लेख भी है, "4 जुलाई, 2017 को इस अदालत के सात जजों की पीठ ने माननीय जस्टिस सीएस कर्णन [ (2017) SSC 1] को लेकर फैसला किया था. उस फैसले में (आर पी लूथरा के मामले में) हम दोनों ने व्यवस्था दी थी कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर दोबारा विचार करने की ज़रूरत है और साथ ही महाभियोग से अलहदा उपायों के लिए सिस्टम भी बनाया जाना चाहिए. मेमोरैंडम ऑफ प्रॉसीजर को लेकर सातों जजों की ओर से कोई व्यवस्था नहीं दी गई थी. मेमोरैंडम ऑफ प्रॉसीजर को लेकर किसी भी मुद्दे पर चीफ जस्टिस की कॉन्फ्रेंस और पूर्ण अदालत में विचार किया जाना चाहिए. ये मामला बहुत महत्वपूर्ण है और अगर न्यायपालिका को इस पर विचार करना है, तो सिर्फ संवैधानिक पीठ को ये जिम्मेदारी मिलनी चाहिये."
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने ज्युडिशियरी में विरोध का बिगुल बजाने के लिए जजों की जम कर तारीफ की है.
Truly unprecedented! Kudos to 4 seniormost judges of SC who addressed a Press Conf today to apprise the people about the extraordinary abuse of 'master of roster' powers by CJI in selectively assigning politically sensitive cases to hand picked junior judges for desired outcome
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) January 12, 2018
कहीं ये सियासी घुसपैठ तो नहीं?
जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद खबर आई कि मुख्य न्यायाधीश भी प्रेस कांफ्रेंस कर सकते हैं. हालांकि, बाद में मालूम हुआ कि कोर्ट में वो पहले से सीपीआई नेता डी. राजा को जस्टिस चेलमेश्वर के घर जाते देखा गया. मीडिया में जब इस बात की खबर आई तो न्यायपालिका में बगावत के पीछे राजनीति को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया.
Correction: spotted going inside https://t.co/cERsBcRjdq
— Sonal MehrotraKapoor (@Sonal_MK) January 12, 2018
कांग्रेस की ओर से भी ट्विटर पर लोकतंत्र को लेकर खतरे की आशंका जतायी गयी. इसके साथ ही कांग्रेस में भीतर मामले को लेकर रणनीतियों पर विचार विमर्श होने लगा.
For the first time in history, 4 sitting SC judges publicly questioned the functioning of the Supreme Court. Is the Modi Govt interfering with India's judiciary? #DemocracyInDanger pic.twitter.com/T79EeYyMPU
— Congress (@INCIndia) January 12, 2018
Some senior cong leaders advice rahul that cong should move ahead with impeachment : decision after meetings within cong
— pallavi ghosh (@_pallavighosh) January 12, 2018
सीपीएम की ओर से कहा गया कि विस्तृत जांच की मांग कर दी ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने की कोशिश का पता चल सके. बाद में डी. राजा सफाई देने के लिए सामने आये. डी. राजा ने बताया कि चूंकि वो जस्टिस चेलमेश्वर को लंबे समय से जानते हैं इसलिए उन्होंने मुलाकात की. वो जानना चाहते थे कि आखिर चारों जजों को इतने गंभीर कदम क्यों उठाने पड़े. डी. राजा ने साफ तौर पर माना कि जस्टिस चेलमेश्वर से उनकी इसी मुद्दे पर बात हुई.
डी. राजा की सफाई अपनी जगह है लेकिन वो सवालों से नहीं बच सकते. आखिर न्यायपालिका के अंदर के इस अति संवेदनशील मामले में डी. राजा जस्टिस चेलमेश्वर से मिलने अकेल क्यों गये? पुराना संबंध अपनी जगह है लेकिन इतनी बड़ी बात होने के बाद डी. राजा व्यक्तिगत तौर पर आखिर क्या जानना चाहते थे - और उनका असली मकसद क्या था? सवाल तो ये भी उठता है कि क्या डी. राजा मुलाकात कर लोकतंत्र के हित में कौन सा योगदान देने का प्रयास कर रहे थे.
D Raja of CPI turns up at Justice Chelameswar home? If the judges' uprising is, as they claim, apolitical, then the Lordships should avoid hosting politicians. #SupremeCourt
— Sreenivasan Jain (@SreenivasanJain) January 12, 2018
Lo and behold, Justice Chelameswar, who led the 4 dissenting judges, is met at home with a congratulatory handshake from D Raja of the Left. Playbook whirring nicely https://t.co/WectRQUN1f
— Minhaz Merchant (@MinhazMerchant) January 12, 2018
बाकी सियासी रिएक्शन में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टिप्पणी सीधी और सपाट है. पूरे प्रकरण पर ममता ने दुख तो जताया है, लगे हाथ ये आरोप भी लगाया है कि लोकतंत्र के लिए न्यायपालिका में केंद्र सरकार की दखलअंदाजी खतरनाक है.
जजों की प्रेस कांफ्रेंस पर सरकार और अटॉर्नी जनरल के विरोधाभासी बयान आये हैं. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि सरकार इस मामले में कोई दखल नहीं देगी, वहीं अटॉर्नी जनरल मालूम नहीं किस आधार पर दावा कर रहे हैं कि 24 घंटे में पूरा मामला सुलझ जाएगा.
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