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आपके लिए तो एक आदमी मरा है साहब, लेकिन मेरे घर की तो रोटियां चली गईं..
देशहित में प्राणोत्सर्ग करने वाला वह वीर सपूत जिसे मरणोपरांत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शांतिकाल के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित करते हुए अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे, वो ओर कोई नहीं वायुसेना के शहीद गरुड़ कमांडो ज्योति प्रकाश निराला ही थे.
कवि कुमार मनोज की कुछ पंक्तियाँ :- सुख भरपूर गया, मांग का सिंदूर गया, नंगे नौनिहालों की लंगोटियां चली गयी. बाप की दवाई गयी, भाई की पढ़ाई गयी, छोटी छोटी बेटियों की चोटियाँ चली गयी॥ ऐसा विस्फोट हुआ जिस्म का पता ही नहीं, पूरे ही जिस्म की बोटिया चली गयी. आपके लिए तो एक आदमी मरा है साहब, किंतु मेरे घर की तो रोटियां चली गयी॥ देश में 69वें गणतंत्र दिवस पर जहां एक ओर हरेक भारतीय के मन उल्लास उमड़ रहा था तो वहीं दूसरी ओर एक माँ, एक पत्नी और एक बेटी की आंखें अपने बेटा, पति और पिता की शहादत में सलाम करती हुए नम थी. देशहित में प्राणोत्सर्ग करने वाला वह वीर सपूत जिसे मरणोपरांत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शांतिकाल के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित करते हुए अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे, वो ओर कोई नहीं वायुसेना के शहीद गरुड़ कमांडो ज्योति प्रकाश निराला ही थे. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों से यह सम्मान आंखें में गर्व का भाव लिए कमांडो निराला की पत्नी सुषमानंद और मां मालती देवी ने ग्रहण किया. भारतीय वायुसेना के इतिहास में ये पहला मौका है जब किसी गरुड़ कमांडो को अशोक चक्र से नवाजा गया है.
गौरतलब है जेपी निराला नवंबर 2017 में कश्मीर में बांदीपोरा जिले के हाजिन इलाके के चंदरगीर गांव में आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे. सुरक्षा बलों को यहां आतंकियों के होने की खुफ़िया जानकारी मिली थी, जिसके बाद उन्होंने इलाके में घेराबंदी कर दी. इस दौरान छिपे हुए आतंकियों ने सुरक्षा बलों पर गोलीबारी की, जिसके बाद मुठभेड़ शुरू हो गई. इस दौरान जेपी निराला आतंकियों पर कहर बनकर टूट पड़े और दो आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया. इस मुठभेड़ में लश्कर के छह आतंकी मारे गए थे. आपको बता दे कि कमांडो निराला अपने माता-पिता के एकलौते बेटे थे. परिवार में माता-पिता के अलावा उनकी पत्नी और 4 साल की बेटी हैं. वह साल 2005 में वायुसेना में शामिल हुए थे और जुलाई 2017 में उन्हें कश्मीर जाने का मौका मिला. वहीं शहीद निराला के पिता तेजनारायण ने कहा कि उनका एकलौता बेटा था, लेकिन आज उन्हें गर्व है कि वह देश के लिए शहीद हो गया और सरकार ने उसके बलिदान को समझा और उन्हें सम्मानित किया.
निसंदेह कमांडो जेपी निराला की शहादत चरत्मोकर्ष देशभक्ति की मिसाल है. ऐसे जज्बे को हर देशवासी दिल से सलाम करता हैं. लेकिन इस बीच सवाल यह है कि आखिर ऐसी आतंकी मुठभेड़ में कब तक हमारे देश के सैनिक शहीद होते रहेंगे ? कब तक सैनिकों के परिवार बेसहारा और उनके पुत्र यतीम होते रहेंगे ? और क्या कारण है कि भारत आजादी के सात दशक बाद भी आतंक के खौफ के साये में जी रहा है ? भले वो आंतरिक सुरक्षा हो या बाह्य सुरक्षा दोनों ही भारत के सामने बड़ी समस्याएं बनी हुई हैं. एक ओर हम आतंकी वारदातों को रोकने में असफल हो रहे हैं, अपने देश के सैनिकों को गंवा रहे हैं, तो दूसरी ओर देश के नौजवानों की आतंकी संगठनों में शामिल होने की खबरें हमारे लिए बेहद चिंताजनक हैं. क्या हालात इतने बिगड़ चुके हैं और इंसानियत का इतना शीलहीन हो चुका कि एक पढ़े लिखे युवा को आतंक की शरण में जाने के लिए विवश होना पड़े ? क्या हमारे देश के होनहार इतने कमजोर हैं कि कोई भी उनका ब्रेन वाश कर सकता है ? ऐसे कई सवाल हैं जो देश में करोड़ों लोगों के दिल में कील की तरह चुभ रहे हैं. भले ही हम हर साल अपनी देशभक्ति जगजाहिर करने के लिए तोपों और मिसाइलों का सार्वजनिक प्रदर्शन करके अपनी पीठ कामियाबी की शाबाशी से थपथपाते हो लेकिन ये सैन्य क्षमता नाकाम है कि हम आतंक को इतनी शक्ति होने के बावजूद भी रोक नहीं पा रहे हैं. यह स्पष्ट है कि अमेरिका पाकिस्तान को इस्तेमाल करके आतंकी गतिविधियों के द्वारा भारत की सुरक्षा में निरंतर सेंध कर रहा है.
इसलिए हमें आज चीन से नहीं बल्कि अमेरिका से खतरा है. क्योंकि अमेरिका के सामने भारत विश्व प्रतिस्पर्धा में प्रतिद्वंदी देश है. और वो किसी भी हालात में नहीं चाहेगा कि उसका प्रतिद्वंदी उससे आगे निकल जाएं. इसलिए आतंकी संगठनों को आर्थिक मदद पहुंचाकर भारत की शांति को भंग करने के लिए वह संभव प्रयास कर रहा है. यदि इन सब के बाद भी हम ये सोचते है कि आतंक का अंत मुमकिन है तो यह हमारी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है. जब दुनिया का सबसे बड़ा देश ही आतंक के सर्पो को दूध पिलाकर दूसरों देशों के लिए उसके फन में विष तैयार कर रहा है तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ कैसे सफल हो सकता है ? ऐसे में भारत को अपना नरम रुख़ को छोड़कर आतंकियों के साथ आतंकियों जैसा ही सलूक करना होगा. संधि और समझौता की बुनियाद पर शांति कायम करने का सालों से यत्न सिर्फ़ कागजों में दिख रहा हैं. हमें जमीनी धरातल पर असर दिखे ऐसी कार्रवाही करने की आज महती आवश्यकता है.
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