Kamalnath के इमोशनल कार्ड बता रहे हैं कि सरकार बचाने के लिए सियासी दांव बचे नहीं
कमलनाथ (Kamal Nath) अपनी सरकार बचाने के लिए राजनीतिक दांव-पेंच (Floor Test) तो आजमा ही रहे हैं, इमोशनल कार्ड भी खेल रहे हैं. आखिर कमलनाथ को क्यों लगता है कि सिंधिया समर्थक (Scindia Supporter MLA) विधायकों को भावनात्मक तौर पर ही रोका जा सकता है?
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कमलनाथ (Kamal Nath) अपनी सरकार बचाने के लिए हर वो नुस्खा अपना रहे हैं जो सामने नजर आ रहा है, लेकिन विधायकों (Scindia Supporter MLA) को रोकने के लिए उनका इमोशनल कार्ड काफी अलग है. एक कांग्रेस विधायक के पिता को बेंगलुरू भेजने का आइडिया भी उसी रणनीति का हिस्सा है.
राज्यपाल से मिलने के बाद फ्लोर टेस्ट के लिए खुद को राजी बता चुके कमलनाथ ने 15 मार्च को विधायक दल की बैठक बुलाई हुई है - और यही वजह है कि जयपुर भेजे गये कांग्रेस विधायक भोपाल लौटने की तैयारी कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश में विधानसभा का सत्र 16 मार्च से शुरू हो रहा है - और बीजेपी नेताओं राज्यपाल लालजी टंडन से मिलकर विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले ही फ्लोर टेस्ट (Floor Test) कराने की मांग की है.
कमलनाथ का इमोशनल कार्ड
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद कांग्रेस में उनके समर्थक 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. उनमें से 19 विधायक फिलहाल बेंगलुरू के रिजॉर्ट में हैं जबकि तीन मध्य प्रदेश में ही रह रहे बताये जाते हैं.
विधायकों से बातचीत के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने मंत्री जीतू पटवारी और लाखन सिंह को बेंगलुरू भी भेजा था. बेंगलुरू में विधायकों से रिजॉर्ट में मिलने की कोशिश के दौरान कांग्रेस नेताओं की पुलिस कहासुनी के बाद हाथापाई भी हो गयी - और उन्हें हिरासत में ले लिया गया. कुछ देर बाद उन्हें छोड़ दिया गया.
मध्य प्रदेश कांग्रेस की ओर से इस सिलसिले में ट्वीटर पर एक वीडियो पोस्ट की गयी है और बीजेपी में सत्ता को लेकर बेचैनी का आरोप लगाते हुए हमला बोला गया है.
बीजेपी की सत्ता भूख अब हवस में बदली :
बीजेपी द्वारा मप्र कांग्रेस के विधायकों का अपहरण कर उन्हें बैंगलोर के एक रिसॉर्ट में कैद रखा गया है।
जब विधायक के पिता मिलने पहुँचे तो उनसे बदतमीज़ी और साथ गये मंत्री से मारपीट कर उन्हें गिरफ़्तार किया।
मोदी जी,देश को शर्मसार मत करिये। pic.twitter.com/1MO2y5UJYj
— MP Congress (@INCMP) March 12, 2020
जीतू पटवारी के साथ कांग्रेस के जो लोग कमलनाथ के कहने पर बेंगलुरू गये थे उनमें एक विधायक के पिता भी शामिल रहे. कांग्रेस ने एक विधायक मनोज चौधरी के पिता नारायण चौधरी को बेंगलुरू में अपने बेटे से न मिलने - और धमकी दिये जाने की पुलिस से शिकायत भी की है.
कांग्रेस ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि जब विधायक भोपाल लौटेंगे तो मान जाएंगे - और पार्टी छोड़ कर नहीं जाएंगे. कांग्रेस की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर ऐसी कोई बात बोलने से भी परहेज किया जा रहा है जिसका समर्थक विधायकों पर उलटा असर होने का डर है. कांग्रेस नेताओं की तरफ से लगातार दावे किये जा रहे हैं कि बेंगलुरू ले जाये गये विधायक दबाव में हैं और लौटने के बाद उनमें से कई इस्तीफा नहीं देंगे. कांग्रेस नेता रामनिवास रावत ने कहा, 'हमने सिंधियाजी को नहीं छोड़ा है, सिंधियाजी हमें छोड़कर गए हैं. भाजपा ने भोपाल में उनके स्वागत में उन्हें विभीषण की उपाधि दे दी. अब ये सही संदर्भ में है या गलत, लेकिन हमारे देश में कोई माता-पिता अपने बच्चों का नाम विभीषण नहीं रखते.'
दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है, 'रावण की लंका अगर पूरी तरह जलानी है तो विभीषण की तो जरूरत होती है मेरे भाई और अब सिंधिया जी हमारे साथ हैं...'. अब शिवराज सिंह के बयान को कांग्रेस नेता अपने अपने तरीके से लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं - और सिंधिया समर्थकों को ये समझाने की कोशिश हो रही है कि जब बीजेपी उनके नेता के साथ ऐसा व्यवहार कर रही है तो समर्थक विधायकों के साथ कैसे पेश आएगी?
खबर है कि 13 मार्च को मध्य प्रदेश के 19 कांग्रेस विधायक भोपाल लौटने के लिए तैयार हो गये थे. उनके लिए दो चार्टर्ड प्लेन भी तैयार थे, लेकिन बेंगलुरू एयरपोर्ट से उन्हें फिर से रिजॉर्ट भेज दिया गया. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, एयरपोर्ट पर विधायकों की बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात जरूर हुई थी.
क्या बीजेपी को भी लगता है कि भोपाल पहुंचने के बाद कांग्रेस विधायकों का मन बदल सकता है? आखिर कांग्रेस के बागी विधायक जो इस्तीफा दे चुके हैं उन्हें भोपाल लाया ही क्यों जा रहा था और जब लाने की पूरी तैयारी थी तो ऐन वक्त पर ऐसी क्या वजह रही कि कैंसल कर दिया गया?
कांग्रेस ने एक विधायक के पिता को भेजने के साथ ही और भी ऐसे कई रणनीति बना रखी है. ताकि विधायक जब लौटें तो उन्हें किसी न किसी तरीके से कांग्रेस न छोड़ने के लिए मनाया जा सके.
ऐसी ही तैयारियों में से एक है विधायकों को उनके परिवार और इलाके के लोगों के सामने पेश किया जाना. ऐसा करके कांग्रेस पार्टी विधायकों को भावनात्मक दबाव बनाने की कोशिश करेगी. विधायकों के परिवारवालों और इलाके के लोगों को ये समझाने की कोशिश है कि अगर ये विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में चले गये तो क्या मुश्किलें आ सकती हैं? ऐसा होने पर विधायकों को फिर से चुनाव मैदान में उतरना पड़ सकता है - और फिर जरूरी भी तो नहीं कि वे दोबारा भी जीत जायें?
सरकार बचाने की सियासी कोशिशें
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीजेपी नेताओं के साथ राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात कर फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की है. राजभवन से बाहर आकर शिवराज सिंह चौहान ने कहा - 'हमने राज्यपाल को बताया कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है. उनके पास सरकार चलाने का संवैधानिक अधिकार नहीं है, इसलिए 16 मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण और बजट सत्र का कोई मतलब नहीं है. हमने राज्यपाल से अनुच्छेद 175 के तहत सरकार को विश्वासमत प्राप्त करने का निर्देश देने की मांग की है.'
कमलनाथ की मुलाकात के बाद राज्यपाल लालजी टंडन से शिवराज सिंह चौहान भी मिले और सबसे पहले फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की
शिवराज सिंह चौहान से पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ भी राज्यपाल से मुलाकात कर चुके हैं और ये भी कहा है कि फ्लोर टेस्ट से उनको को दिक्कत नहीं है. राज्यपाल और कमलनाथ की मुलाकात करीब एक घंटे तक चली थी. कमलनाथ ने राज्यपाल को एक चिट्ठी भी सौंपी है जिसमें बीजेपी पर विधायकों के खरीद फरोख्त के आरोप लगाये गये हैं. कमलनाथ ने राज्यपाल से मांग की है कि वो गृह मंत्री अमित शाह से बेंगलुरू में बंधक बना कर रखे गये विधायकों को मुक्त कराने के लिए कहें.
राज्यपाल से मुलाकात के बाद कमलनाथ ने कहा - 'मैं फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हूं, लेकिन आप 22 विधायकों को कैद कर लें और कहें कि अब फ्लोर टेस्ट कराएं - क्या ये सही है? लगे हाथ परदे के पीछे अलग अलग रणनीतियों पर भी काम चल रहा है. सबसे पहले तो कोशिश है कि जैसे भी संभव हो विधायकों के इस्तीफे और फ्लोर टेस्ट को टालने की कोशिश हो - और मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की भी तैयारी चल रही है.
कमलनाथ के पक्ष में सबसे बड़ी बात अभी यही है कि मामला स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में हैं - और जब तक ये छिटक कर राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में नहीं चला जाता खतरे वाली कोई बात नहीं है.
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