कन्हैया-तेजस्वी टकराव का मतलब है कांग्रेस और आरजेडी का आमने सामने होना
उपचुनावों (Bihar Assembly Bypolls) के लिए कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को कांग्रेस का स्टार प्रचारक बनाये जाने के बाद से बिहार में राजनीतिक समीकरण बदलने लगे हैं - तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) से संभावित मुकाबले को लेकर लालू यादव की चिंताएं बढ़ने लगी है.
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बिहार में हुए दो चुनावों में कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) साथ आ सकते थे. मंच शेयर कर सकते थे. एक दूसरे के लिए लिए प्रचार भी कर सकते थे, क्योंकि दोनों ही एक ही चुनावी गठबंधन - महागठबंधन का हिस्सा रहे हैं.
देखा जाये तो कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव अब भी महागठबंधन का ही हिस्सा हैं, लेकिन बिहार की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के चलते दोनों के एक दूसरे आमने सामने होने की प्रबल संभावना बन गयी है. कन्हैया कुमार के सीपीआई छोड़ कर कांग्रेस में चले जाने के बाद भी महागठबंधन में दोनों दलों के होने की वजह से दोनों युवा नेता अभी महागठबंधन में ही माने जाएंगे - जब तक कि सार्वजनिक तौर पर अलग होने की कोई औपचारिक घोषणा नहीं होती.
बिहार की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव (Bihar Assembly Bypolls) होने जा रहे हैं - तारापुर और कुशेश्वर स्थान. खास बात ये है कि दोनों ही सीटों पर महागठबंधन पार्टनर लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस दोनों ने ही अपने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर डाली है - और लगे हाथ कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी कर दी है.
कन्हैया कुमार तो देश के बाकी हिस्सों में भी कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में होते ही, बिहार में तो ये स्वाभाविक ही है. कन्हैया कुमार बिहार के ही रहने वाले हैं और 2019 के आम चुनाव में बेगूसराय लोक सभा सीट से चुनाव भी लड़ चुके हैं.
चूंकि दोनों सीटों पुर दोनों ही दलों ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, लिहाजा चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार के आमने-सामने होने की पूरी संभावना बनती है - और ये लालू यादव के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है.
अब तक तो यही देखने को मिला है कि लालू यादव ने हर कदम पर कन्हैया कुमार को तेजस्वी यादव के मुकाबले खड़ा होने देने से रोकने की कोशिश की है, लेकिन अब दांव उलटा पड़ गया है. तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार के बीच संभावित मुकाबला टालने का एक ही उपाय बचा है और वो ये कि आरजेडी एक सीट कांग्रेस के लिए छोड़ने को तैयार हो जाये - और सबसे जरूरी ये है कि कांग्रेस भी बढ़े हुए कदम पीछे खींचने को तैयार हो.
जैसे उपचुनाव नहीं कोई 'स्टार-वॉर' होने वाला हो!
बिहार की जिन दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, उनमें से कोई भी पश्चिम बंगाल के भवानीपुर की तरह महत्वपूर्ण नहीं है - जो मुख्यमंत्री के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हो. उम्मीदवार तो एनडीए की तरफ से भी उतारे गये हैं लेकिन लगता नहीं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी उतनी ही फिक्र होगी जितनी आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव को है - और यही वजह है कि लालू यादव के चुनाव क्षेत्रों में जाने की खबर भी आ रही है.
अव्वल तो लालू यादव को आरजेडी के स्थापना दिवस समारोह में शामिल होने भी जाना था, लेकिन सेहत ठीक न होने के कारण संभव नहीं हो पाया. कुछ दिन पहले तेज प्रताप यादव भी लालू यादव को पटना ले जाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन जब उनकी बात काट दी गयी तो इल्जाम लगा दिया कि उनके पिता को दिल्ली में बंधक बना लिया गया है. लालू यादव फिलहाल दिल्ली में अपनी बेटी और राज्य सभा सांसद मीसा भारती के आवास पर रह रहे हैं.
कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव का आमने सामने का टकराव रोकने के लिए लालू यादव को कदम पीछे खींचने ही होंगे.
बीजेपी नेता सुशील मोदी को तो लालू यादव के जमानत पर छूटने के बाद राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने को लेकर ही सख्त ऐतराज रहा है. तब क्या होगा अगर वास्तव में लालू यादव चुनाव प्रचार के लिए उपचुनाव वाले क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं. लालू यादव को मेडिकल ग्राउंड पर ही जमानत मिली हुई है - और इलाज चल भी रहा है. वैसे जब से लालू यादव दिल्ली पहुंचे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हैं और जातीय जनगणना के लिए मुहिम भी चला रहे हैं.
अगर लालू यादव चुनाव प्रचार के लिए निकलते हैं तो देखना होगा कि चुनाव आयोग का क्या रुख होता है? अगर किसी ने भी आपत्ति जतायी और कोई कानूनी पेंच फंसा तो लालू यादव के लिए नये सिरे से मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं और लेने के देने भी पड़ सकते हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लालू यादव 25 और 27 अक्टूबर को कुशेश्वर स्थान और तारापुर चुनाव प्रचार के लिए पहुंच सकते हैं. आरजेडी विधायक भाई नरेंद्र के हवाले से कुछ रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि लालू यादव 20 अक्टूबर को पटना जाने वाले हैं.
लालू यादव की चिंता तभी से बढ़ी हुई बतायी जा रही है जब से कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है. सूची में वैसे तो मीरा कुमार, तारिक अनवर, भक्त चरण दास, निखिल कुमार, शकील अहमद, शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद सहित 20 नेता शुमार हैं, लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए कन्हैया कुमार बन गये हैं.
कांग्रेस से टकराव की नींव तो आरजेडी की तरफ से ही रखी गयी है. कांग्रेस का आरोप है कि आरजेडी ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया और बगैर सलाह मशविरा किये अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. आरजेडी ने कुशेश्वर स्थान से गणेश भारती और तारापुर से अरुण कुमार साह को उम्मीदवार बनाया है. अपनी तरफ से त्वरित प्रतिक्रिया में कांग्रेस ने भी कुशेश्वर स्थान से अतिरेक कुमार और तारापुर से राजेश मिश्रा को प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर दी है. साथ ही, एनडीए की तरफ से तारापुर से राजीव कुमार सिंह और कुशेश्वर स्थान से जेडीयू के अमन भूषण हजारी को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया है.
कांग्रेस ने तो सूची जारी कर जानकारी दी है कि कन्हैया कुमार भी उपचुनावों के लिए पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे - तेजस्वी यादव तो आरजेडी के स्टार प्रचारक स्वाभाविक रूप से वैसे ही हैं जैसे कांग्रेस के लिए राहुल गांधी.
अब तक तो तेजस्वी के मुकाबले कन्हैया कुमार को खड़े न होने देने की ही कोशिशें चलती रही हैं. 2019 के आम चुनाव में कन्हैया के चलते ही सीपीआई को एक भी सीट नहीं दी गयी थी. तब जाकर सीपीआई ने बेगूसराय सीट पर कन्हैया कुमार को अपने दम पर चुनाव मैदान में उतारा. लालू यादव और तेजस्वी यादव का तब भी मन नहीं भरा और आरजेडी की तरफ से तनवीर अहमद को भी चुनाव लड़ाया गया. बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह तो पहले से ही भारी पड़ रहे थे, महागठबंधन के दो दलों की लड़ाई से उनकी राह और भी आसान हो गयी.
जब 2020 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए तो सीपीआई को महागठबंधन में सीटें जरूर दी गयीं, लेकिन ऐसा लगा जैसे शर्त रखी गयी हो कि कन्हैया कुमार चुनाव प्रचार से दूर रहेंगे - क्योंकि हुआ तो ऐसा ही. विधानसभा चुनावों से पहले कन्हैया कुमार ने बिहार का दौरा भी किया था, ये अलग बात है कि जगह जगह विरोध भी झेलने पड़े थे, लेकिन चुनाव प्रचार से दूर रखे जाने का क्या मतलब रहा. हो सकता है सीपीआई से कन्हैया कुमार की नाराजगी की एक वजह ये भी हो - और कांग्रेस ज्वाइन करने के लिए फैसला लेने में मददगार भी.
अब अगर लालू यादव चाहते हैं कि उपचुनाव में कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव का आमना सामना होने से रोका जाये तो विकल्पों पर विचार करना होगा. एक विकल्प तो ये है कि लालू यादव कम से कम एक सीट पर आरजेडी की उम्मीदवारी वापस ले लें और कांग्रेस नेतृत्व को भी इसके लिए राजी कर लें कि वो भी एक ही सीट पर चुनाव लड़े.
एक विकल्प ये भी है कि तेजस्वी यादव को चुनाव प्रचार के लिए कुशेश्वर स्थान और तारापुर जाने ही न दें. उपचुनाव ही तो है, आरजेडी में बहुत से नेता हैं मोर्चा संभाल लेंगे. विकल्प तो ये भी हो सकता है कि उपचुनाव जिताने की जिम्मेदारी तेज प्रताप को दे दें, तेजस्वी को जाने की जरूरत ही नहीं होगी और तेज प्रताप को भी लगेगा कि पार्टी में उनको भी महत्व मिलने लगा है - हाथ के हाथ नाराजगी भी दूर हो जाएगी.
कांग्रेस की मंशा क्या है?
खबर है कि बिहार की दोनों सीटों कुशेश्वर स्थान और तारापुर पर कांग्रेस के उम्मीदवार खड़े करने को मंजूरी सोनिया गांधी ने दी है. कांग्रेस ने दोनों ही सीटों के लिए समन्वयक और सह समन्वयक भी बना दिये हैं, जिनकी जिम्मेदारी होगी आरजेडी और जेडीयू के खिलाफ रणनीति तैयार कर जीत सुनिश्चित करने की.
ये समझना तो मुश्किल नहीं ही है कि कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को भी लालू यादव की इच्छा के विरुद्ध ही अपने साथ लिया है. बेशक राहुल गांधी, कन्हैया कुमार को मोदी विरोध की प्रमुख आवाज के रूप में पूरे देश में करने की तैयारी कर रहे होंगे, लेकिन बिहार में कांग्रेस को मजबूत करना तो प्राथमिकता ही होनी चाहिये.
कन्हैया कुमार अगर बिहार में कुछ भी कर देते हैं तो राहुल गांधी फुल पैसा वसूल मान सकते हैं. बिहार विधानसभा चुनावों में हार का ठीकरा आरजेडी नेताओं ने राहुल गांधी के सिर पर ही फोड़ा था. आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी तो राहुल गांधी के दौरे को तफरीह के तौर पर पेश कर रहे थे.
जबकि कांग्रेस का मानना है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के साथ आरजेडी ने जो व्यवहार किया वो ठीक नहीं था. बिहार कांग्रेस नेता कौकब कादरी ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया है कि कांग्रेस को 30-40 सीटें ऐसी दी गयी थीं जहां हार पहले से तय थी. कांग्रेस की नजर में लेफ्ट पार्टियों को दी जाने वाली सीटों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन वे सीटें दी गयीं जो वे चाहते थे और जहां उनका जनाधार है. नतीजे भी बता रहे हैं कि कांग्रेस का शक हवा हवाई नहीं है. कांग्रेस को इस बात का मलाल तो है कि उसके पास पहले से ही 27 विधायक थे तो 70 सीटें दी गयीं और वाम दलों के जीरो बैलेंस के बावजूद 20 सीटों की सौगात दे डाली गयी.
बिहार कांग्रेस के नेताओं के तेवर तो यही बता रहे हैं कि कांग्रेस ने महागठबंधन के भरोसे बैठे रहने की बजाय संगठन पर फोकस करना शुरू कर दिया है. कन्हैया कुमार को कांग्रेस में लेने के साथ ही उपचुनावों के लिए उम्मीदवार घोषणा और स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर कांग्रेस ने लालू यादव और तेजस्वी यादव को साफ साफ संदेश देने की कोशिश की है.
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