New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 16 सितम्बर, 2021 06:42 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) अगर कांग्रेस ज्वाइन करते हैं तो कांग्रेस को प्रशांत किशोर जैसा ही फायदा होगा. मुश्किल ये है कि कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर दोनों के ही कांग्रेस ज्वाइन करने का मामला अब भी 50-50 ही समझ में आ रहा है - और ये 50-50 ऐसी कंडीशन होती है जो हां और ना के बीच हमेशा झूलती रहती है.

कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी के साथ बतायी जा रही मीटिंग की बात को सिरे से खारिज कर दिया था, खबर उसी मुलाकात को लेकर अब भी आ रही है. खबर भी ये ऐसी है जो कन्हैया कुमार के खंडन भर से खत्म होने की जगह प्रशांत किशोर के माध्यम बनने और राहुल गांधी से जुड़ जाने के कारण धीरे धीरे पक्की होती जा रही है.

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के साथ हुई मीटिंग को लेकर कन्हैया कुमार ने कोई खंडन नहीं किया - बल्कि, ये बताया भी कि आम चुनाव में हार के बाद से दोनों में संपर्क बना हुआ है - और बातचीत भी होती रहती है. तभी कन्हैया कुमार ने जोर देकर समझाने की कोशिश की थी कि वो ऑलरेडी एक राष्ट्रीय पार्टी के सदस्य हैं.

सुनने में आ रहा है कि कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने में मुख्य भूमिका प्रशांत किशोर की है. ये मामला इसलिए भी दिलचस्प हो जाता है कि खुद प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर कांग्रेस नेतृत्व के फैसले की स्थिति ऐसी नहीं हो पायी है कि वो सार्वजनिक तौर पर साझा कर सके. ऐसा इसलिए क्योंकि राहुल गांधी के फीडबैक मांगने पर कुछ नेताओं ने तो प्रतिक्रिया दी थी - 'आइडिया बुरा नहीं है,' लेकिन बाद में कई नेता अपने स्तर पर मोर्चेबंदी और नाकेबंदी में जुट गये और प्रचारित किया जाने लगा कि प्रशांत किशोर के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है.

हो सकता है, ये सब सोच कर ही प्रशांत किशोर जादू की छड़ी के एक नमूने के तौर पर कन्हैया कुमार को पेश करने की कोशिश कर रहे हों. कांग्रेस के पास क्षेत्रीय स्तर पर कई राज्यों में ऐसे नेता जरूर हैं जो अपने इलाके में भीड़ खींचने में सक्षम हैं, लेकिन वे भी उंगलियों पर ही गिने जा सकते हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के पास कोई चौथा नाम तो है नहीं, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा - और आलम ये है कि सेहत दुरूस्त न होने की वजह से सोनिया गांधी चुनाव प्रचार से करीब करीब दूरी बना चुकी हैं. सोनिया गांधी की आखिरी रैली 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में तय थी, लेकिन ऐन वक्त कार्यक्रम में बदलाव किया गया और राहुल गांधी को अटेंड करना पड़ा था.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के चुनाव कैंपेन पहले तो अनिश्चित ही लगते थे, लेकिन बिहार और उसके बाद हाल के पांच विधानसभा चुनावों में जरूर वो पार्टी के लिए उपलब्ध रहे. हार जीत की बात और है, उसके कारण भी अलग अलग होते हैं.

रही बात प्रियंका गांधी की तो वो कांग्रेस के ब्रहास्त्र के तौर पर देखी जाती रही हैं, लेकिन अभी तक वो भी कोई करिश्मा नहीं दिखा पायी हैं. अभी वो जरूर यूपी पर फोकस हैं, लेकिन असम में उनकी काफी सक्रियता के बावजूद कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकीं. बीच बीच में प्रियंका गांधी संकटमोचक की भूमिका में देखी जाती हैं, लेकिन 'जहं-जहं पांव पड़े संतन के तहं-तंह बंटाधार' ही साबित हो रहा है. राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ तक नजारे एक जैसे ही नजर आते हैं.

कन्हैया कुमार अच्छा भाषण देते हैं - जहां तक मोदी, संघ और बीजेपी विरोध का मुद्दा है तो ये भी हो सकता है कि राहुल गांधी को कभी कभी सोचना पड़ सकता है कि वो कन्हैया कुमार से कहीं पिछड़ तो नहीं जा रहे हैं?

लेकिन ये तो असल मुद्दा है ही नहीं. असली मसला तो ये है कि कन्हैया कुमार अपनेआप ही बीजेपी के निशाने पर रहते, जिसके खिलाफ जंग में राहुल गांधी उनको कांग्रेस में लाने की सोच रहे होंगे. कन्हैया कुमार भले ही अपने खिलाफ राजनीतिक साजिश के दावे करते आये हों, लेकिन जब तक कोर्ट से बाइज्जत बरी नहीं हो जाते, अपने तो अपने कांग्रेस के लिए भी मुश्किलों के जाल ही बिछाते रहेंगे - और जाहिर है राहुल गांधी ये सब सोचे समझे तो होंगे ही.

फायदा ही फायदा, लेकिन एकतरफा!

2020 के बिहार चुनाव से काफी पहले कन्हैया कुमार भी तेजस्वी यादव की तरह राज्य भर की यात्रा पर निकले थे. विवाद तो तेजस्वी यादव की यात्राओं को लेकर भी हुए थे लेकिन कन्हैया कुमार की 'जन गण मन यात्रा' के दौरान तो लोगों ने जगह जगह कड़ा विरोध जताया. विरोध भी इतना कि बचाव के लिए पुलिस को पहुंचना पड़ा और कई बार कार्यक्रम रद्द भी हुए.

जिन दिनों तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार दौरे पर रहे, प्रशांत किशोर ने अपना कार्यक्रम शुरू किया था - 'बात बिहार की'. ये तभी की बात जब प्रशांत किशोर दिल्ली बीजेपी को शिकस्त देते हुए अरविंद केजरीवाल की सरकार बनवा चुके थे - और CAA के विरोध में लगातार बयानबाजी के बाद नीतीश कुमार ने जेडीयू से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया था.

kanhaiya kumar, rahul gandhi, prashant kishorप्रशांत किशोर से राहुल गांधी को होने वाले फायदे को कन्हैया कुमार न्यूट्रलाइज न कर दें!

कन्हैया कुमार को तभी एक सवाल के जवाब में प्रशांत किशोर ने 'बिहार का बेटा' भी बता दिया और कयास शुरू हो गये कि नीतीश कुमार से बदला लेने के लिए प्रशांत किशोर ही कन्हैया कुमार को घुमाना चालू किया है.

अचानक कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी और विपक्ष की राजनीति तो बस सोशल मीडिया तक सिमट कर रह गयी. तेजस्वी यादव का कैंपेन देख कर तो लगता भी रहा कि कहीं न कहीं प्रशांत किशोर के मशविरे की छाप जरूर है, लेकिन कन्हैया कुमार तो जैसे सीन से गायब ही हो गये. एक इंटरव्यू में पूछे जाने पर कन्हैया कुमार का कहना था कि विपक्ष के लिए लॉकडाउन में परंपरागत राजनीति में करने को बचा ही क्या है - बस, लोगों से बात कर रहा हूं. किसी को कोई फॉर्म भरना है तो वो करा रहा हू्ं. इससे ज्यादा स्कोप ही कहां है. सवाल तो ऐसे ही कन्हैया कुमार के बेगुसराय से लोक सभा चुनाव हार जाने के बाद भी पूछ जा रहे थे.

मौजूदा दौर में कन्हैया कुमार की पार्टी सीपीआई और पार्टी में उनकी स्थिति के हिसाब से देखें तो कांग्रेस से जुड़ जाना हर तरह से उनके लिए फायदे का सौदा है. वाम दलों की बात करें तो बिहार चुनाव में भी सीपीआई नहीं, बल्कि दीपांकर भट्टाचार्या वाली सीपीआई-एमएल की स्थिति काफी बेहतर रही है. अगर पश्चिम बंगाल के लेफ्ट नेताओं ने दीपांकर भट्टाचार्या के ममता बनर्जी के साथ देने की सलाह मानी होती तो फजीहत से बच सकते थे. लेफ्ट अगर केरल की मिसाल पेश करना चाहे तो भी कोई सुनने वाला नहीं है - क्योंकि केरल में लेफ्ट गठबंधन नहीं बल्कि पिनराई विजयन को लोगों ने वोट देकर दोबारा सत्ता में बने रहने का मौका दिया है.

समझने वाली बात ये है कि कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल हो जाने में फायदा ही फायदा है. बीजेपी के निशाने पर तो वो अब भी हैं तब भी रहेंगे. देशद्रोह के केस को लेकर उनकी मुश्किलें कानूनी पेंच में फंसे होने तक खत्म नहीं होने वाली हैं. बीजेपी के निशाने पर तो रहेंगे ही, बाकी राजनीतिक दलों का व्यवहार भी कन्हैया कुमार के प्रति अभी तो नहीं ही बदलने जा रहा है. अगर ऐसा होता तो भला काफी समय तक टालने के बाद भी दिल्ली का अरविंद केजरीवाल सरकार ने कन्हैया कुमार के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश आगे भी लटकाये नहीं रखती? बेशक आप सरकार ने फाइल को होल्ड रखा लेकिन जब बीजेपी के तीरों से बचना मुश्किल होने लगा तो हथियार डालना ही पड़ा. अब कांग्रेस को ऐसे हमलों के लिए तैयार हो जाना चाहिये अगर कन्हैया कुमार राजी हैं.

कन्हैया के बचाव में क्या कहेंगे राहुल गांधी?

राहुल गांधी और कन्हैया कुमार की मुलाकात का मामला सीपीआई महासचिव डी. राजा के सामने भी उठा और उनका बस इतना ही कहना रहा कि ऐसी अटकलें सुनी जरूर हैं. डी. राजा का आधिकारिक बयान है, 'मैं इतना ही कह सकता हूं कि पिछले महीने हमारी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी... कन्हैया कुमार उसमें मौजूद थे - और वहां कन्हैया ने अपने विचार भी रखे थे.'

चाहे जिस रूप में सही लेकिन कन्हैया कुमार को तो देश भर के लोग जानते ही हैं, इसलिए राष्ट्रीय राजनीति में भी उनके लिए संभावनाओं की कोई सीमा नहीं है, लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि कन्हैया कुमार को कांग्रेस बिहार में पार्टी को खड़ा करने में फायदेमंद समझ रही है. ये कयास इसलिए भी मजबूत लगता है क्योंकि प्रशांत किशोर की भी दिलचस्पी बिहार की राजनीति में ही ज्यादा लगती है. हो सकता है एक बार जेडीयू के जरिये मुख्यधारा की राजनीति में फेल होने के बाद प्रशांत किशोर खुद को साबित करने का मौका खोज रहे हों. ये भी हो सकता है कि प्रशांत किशोर के मन में जेडीयू से निकाले जाने को लेकर तकलीफ हो और नीतीश को सत्ता से बेदखल कर बदला लेने के बारे में सोच रहे हों. प्रशांत किशोर कई बार कह भी चुके हैं कि अगर कभी राजनीतिक तौर पर कुछ करने का मौका मिला तो उसका केंद्र बिहार और वहां के लोगों के लिए ही होगा. प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर के रहने वाले हैं और कन्हैया कुमार बेगूसराय के.

राजनीति में दोनों की भूमिका की बात करें तो कन्हैया कुमार अब तक जहां राजनीति के परदे के पीछे के दांव पेंचों से अनजान रहे हैं, प्रशांत किशोर उसके सबसे बड़ा माहिर बन चुके हैं. प्रशांत किशोर फील्ड की राजनीति में जीरो हैं, लेकिन कन्हैया कुमार उनके मुकाबले देखें तो मंच के हीरो हैं. जब बिहार में तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार के साथ आने की चर्चा चल रही थी तो जिक्र इस बात की भी होने लगी थी कि मंच पर अगर दोनों साथ खड़े हों तो कद किसका ऊंचा लगेगा. जब दोनों की शिक्षा दीक्षा की तुलना होने लगी तो आरजेडी ने आगे आकर बचाव किया था.

सारी बातें एक तरफ और एक बड़ा सवाल एक तरफ है. क्या कन्हैया कुमार को कांग्रेस में लेने को लेकर भी राहुल गांधी को प्रशांत किशोर की तरह फीडबैक की जरूरत महसूस हुई होगी? और क्या कांग्रेस नेताओं ने कन्हैया कुमार के नाम पर भी प्रशांत किशोर जैसा ही रिएक्शन दिया होगा या अलग?

कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने में अड़चनें भी हैं और वे भी कई तरह ही हैं. कांग्रेस की तरफ से कन्हैया कुमार को लेकर कुछ नेताओं को प्रशांत किशोर जैसा ही असुरक्षा की भावना हो सकती है. कन्हैया कुमार की तरफ से कांग्रेस को लेकर अगर कोई अड़चन हो सकती है तो वो विचारधारा को लेकर ही हो सकती है - लेकिन वैसे भी कांग्रेस ज्वाइन करने में बहुत दिक्कत नहीं आएगी. हां, ये मामला बीजेपी के साथ होता तो कन्हैया कुमार को कुछ ट्वीट डिलीट जरूर करने पड़ सकते थे.

अगर कांग्रेस की जगह कन्हैया कुमार बीजेपी ज्वाइन करते तो ज्यादा फायदे में रहते - और अगर वो बिहार में सेटल होने को तैयार हों तो बीजेपी को तो वैसे भी एक ऐसे नेता की जरूरत है ही जो नीतीश कुमार के साथ साथ तेजस्वी यादव की राजनीति को नेस्तनाबूत कर दे. भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय मिल कर कर काफी हद तक ये काम कर ही चुके हैं.

कन्हैया के अंदर राजनीतिक प्रतिभा कूट कूट कर भरी है. अच्छा भाषण देते हैं, लेकिन जिस मंच से वो भाषण देते वो मार्केट के हिसाब से आउटडेटेड ही है - सीपीआई. कन्हैया कुमार को मंच चाहिये. कांग्रेस के मंच को कन्हैया कुमार चाहिये - लेकिन कांग्रेस दफ्तर के रास्ते में कन्हैया कुमार भी प्रशांत किशोर के आगे पीछे ही खड़े हैं.

राहुल गांधी को कन्हैया कुमार के पसंद आने की सबसे बड़ी वजह तो यही है कि दोनों अपने सियासी दुश्मन शेयर करते हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ.

महात्मा गांधी की हत्या को लेकर संघ का नाम लेने के मामले में राहुल गांधी मानहानि का मुकदमा लड़ रहे हैं - और कन्हैया कुमार को अक्सर बहसों में बीजेपी नेताओं को गोडसे के नाम पर ही घेरते हुए देखने को मिलता रहा है.

कांग्रेस में कन्हैया कुमार का विरोध करने वालों की दलील है कि वो जनाधार वाले नेता नहीं हैं. बिलकुल सही कह रहे हैं. सवाल ये है कि वो जिस पार्टी की राजनीति कर रहे हैं उसी का जनाधार कहां बचा है. नयी पीढ़ी में तो काफी लोग ऐसे होंगे जो सीपीआई को भी कन्हैया कुमार की पार्टी के नाम से ही जानते होंगे. डी. राजा का नाम आने पर तो गूगल का ही सहारा होगा.

कांग्रेस में कन्हैया कुमार के विरोधियो की तरफ से कहा जाने लगा है कि वो सिर्फ मीडिया अटेंशन लेते हैं. ये भी बिलकुल सही बात है, लेकिन क्या राहुल गांधी के बारे में वे कोई अलग राय रखते हैं?

घूमते फिरते मामला कन्हैया कुमार की जाति पर आ जाती है. कन्हैया कुमार भूमिहार हैं और बेगूसराय संसदीय सीट पर वो स्वजातीय बीजेपी नेता गिरिराज सिंह से करीब चार लाख वोटों से हार गये थे.

लेकिन कन्हैया कुमार की राजनीति में अब तक जाति की बात आयी कहां है - वो तो जिस पार्टी से जुड़े हैं वो वर्ग की राजनीति करती है. लिहाजा बेगूसराय में भी कन्हैया कुमार को जो ढाई लाख से ज्यादा वोट मिले थे वे पार्टी के काडर और कन्हैया कुमार के निजी रिश्तों की बदौलत मिले थे. बेगूसराय में 19 फीसदी भूमिहार हैं, लेकिन उसका फायदा गिरिराज सिंह को ही मिला क्योंकि बिहार के वो बड़े भूमिहार नेता हैं - और वो भी मोदी लहर में चुनाव लड़ रहे थे. ये जरूर रहा कि उनका चुनाव क्षेत्र नवादा से बदल दिया गया गया था क्योंकि वो सीट नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के हिस्से में चली गयी थी.

हां, ये निश्चित तौर पर होगा कि कांग्रेस ज्वाइन कर लेने के बाद कन्हैया कुमार को वर्ग छोड़ कर जाति की राजनीति करनी पड़ेगी और वो कांग्रेस के युवा भूमिहार नेता कहलाएंगे - लेकिन ये सब तो तब की बात है जब वास्तव में 'नौ मन तेल होगा और...'

राहुल गांधी के लिए मुश्किल ये होगी कि अब तक तो वो टुकड़े-टुकड़े गैंग के समर्थक के रूप में संघ और बीजेपी के निशाने पर हुआ करते थे. कन्हैया कुमार को कांग्रेस में साथ लेने के बाद तो राहुल गांधी टुकड़े-टुकड़े गैंग के नेता बताये जाने लगेंगे - मान कर चलना चाहिये कि राहुल गांधी जो भी कर रहे हैं सोच समझ कर ही कर रहे होंगे.

इन्हें भी पढ़ें :

Delhi Riots की फजीहत से बचने के लिए केजरीवाल ने बनाया कन्हैया को हथियार!

प्रशांत किशोर किसी पार्टी में जाएं, एंट्री से पहले विरोध होना तय क्यों रहता है

कांग्रेस में बड़ा पद तो अध्यक्ष ही हुआ, खाली भी है - देखें PK कैसी डील करते हैं

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय