कांग्रेस में बड़ा पद तो अध्यक्ष ही हुआ, खाली भी है - देखें PK कैसी डील करते हैं
कांग्रेस (Congress) से ऐसी खबरें आ रही हैं कि प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) लगभग ज्वाइन कर चुके हैं. कांग्रेस में उनकी हैसियत क्या होगी - और ये भी समझ नहीं आ रहा कि जो कांग्रेसी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की नहीं सुनते वे PK की सुनेंगे भी?
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प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और कांग्रेस का रिश्ता पक्का होने की खबर पंजाब से आयी है. प्रशांत किशोर ने पंजाब के मुख्यमंत्री के सलाहकार का पद छोड़ दिया है - ये कहते हुए कि वो ब्रेक लेना चाहते हैं. और अब ये भी माना जा रहा है कि पंजाब को लेकर कांग्रेस (Congress) नेतृत्व के फैसले के पीछे प्रशांत किशोर की ही सलाहियत रही - लिहाजा, मान कर चला जा सकता है कि प्रशांत किशोर करीब करीब कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं.
इंडियन एक्सप्रेस में अपने कॉलम में सीनियर पत्रकार कूमी कपूर लिखती हैं - 'कांग्रेस नेतृत्व को राज्यों में जनाधार वाले नेताओं के खिलाफ कड़े कदम उठाने की बजाये कदम ही पीछे खींच लेने के लिए जाना जाता है, लेकिन पंजाब में इसका उलटा हुआ - पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को साफ तौर पर बोल दिया गया कि वो नये पीसीसी चीफ नवजोत सिंह सिद्धू को स्वीकार कर लें. कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसा होने देना कभी नहीं चाहते थे.
कहते हैं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों ही प्रशांत किशोर की अच्छी अच्छी बातों को बड़े ध्यान से सुनते हैं और उनकी सलाह को भी काफी गंभीरता से लेते हैं. ऐसे कम ही लोग कांग्रेस में हैं, हां में हां मिलाने वालों के अलावा, जिनकी बातें शिद्दत से सुनी जाती हैं.
जेडीयू में अपनी छोटी सी भूमिका से पहले प्रशांत किशोर बीजेपी में ही कोई बड़ी भूमिका चाहते थे, लेकिन रास्ते में बड़ा अड़ंगा आ जाने के कारण मामला रुक गया. बिहार चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह ने कहा था कि अगर प्रशांत किशोर उनकी पार्टी में आते हैं तो स्वागत है - और हाल में ऐसा कुछ कुछ तृणमूल कांग्रेस को लेकर भी लगा था, लेकिन लगता है कांग्रेस नेतृत्व ने आगे बढ़ कर ऐसा होने नहीं दिया.
विपक्षी दलों की मीटिंग और शरद पवार से मुलाकातों में प्रशांत किशोर को काफी एक्टिव देख कर ही लगता है प्रशांत किशोर और राहुल गांधी की मीटिंग फाइनल हुई थी - और एक ही मुलाकात के बाद बात यहां तक पहुंच आयी.
प्रशांत किशोर की तरफ से तो बड़ी भूमिका में काम करने का खुला ऑफर होता है, लेकिन कांग्रेस के मन में क्या चल रहा है. वैसे कांग्रेस में बड़ा पद तो कांग्रेस अध्यक्ष का ही होता है, संयोग से वो खाली भी है - और कांग्रेस नेताओं को कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर किसी ऐसे शख्स का इंतजार है जो काम करता हुआ नजर भी आये.
औपचारिक घोषणा होने तक प्रशांत किशोर भी मान कर चल सकते हैं अध्यक्ष पद को लेकर भी संभावनाएं बनी हुई हैं - क्योंकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) चाहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी वो संभाले जो गांधी परिवार से न हो - और ये बड़ी वजह है अब तक राहुल गांधी के फैसले न ले पाने को लेकर.
लगभग ज्वाइन कर चुके हैं प्रशांत किशोर!
कांग्रेस नेताओं को तो बेसब्री से अपने नये और पूर्णकालिक अध्यक्ष का इंतजार है. इंतजाम न पाये तब तक कार्यकारी अध्यक्ष भी चलेगा. वैसे सोनिया गांधी को ही स्थायी अध्यक्ष और उनकी मदद के लिए चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने पर विचार चल रहा है, ऐसी खबर आ चुकी है. कुछ हद तक शीला दीक्षित के जमाने में दिल्ली में ये प्रयोग किया गया था और अब पंजाब में तो ऐसा ही हुआ है.
कांग्रेस अध्यक्ष के बाद महत्वपूर्ण पद तो उपाध्यक्ष का ही होता है. राहुल गांधी रहे हैं - पिछले कई साल से ये दोनों ही पद गांधी परिवार के पास ही रहते आये हैं.
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बाद नंबर आता है, महासचिवों का - और इस पद पर ज्यादातर लोग गांधी परिवार से बाहर के ही हैं. अब इसे संयोग कहें या प्रयोग प्रियंका गांधी वाड्रा भी कांग्रेस में महासचिव ही हैं. महासचिवों में भी सबसे पावरफुल पद संगठन महासचिव का होता है. फिलहाल केसी वेणुगोपाल हैं जो अशोक गहलोत के बाद बने हैं. गहलोत से पहले लंबे समय तक जनार्दन द्विवेदी इस पद पर हुआ करते थे. कई मामलों में प्रभारी भी महासचिव ही बनाये जाते हैं.
प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने जेडीयू में उपाध्यक्ष बनाया था. कहते तो हैं कि प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद बीजेपी में ही राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ी भूभिका चाहते थे, लेकिन वो अमित शाह को मंजूर न था. हो सकता है अमित शाह ने प्रशांत किशोर जेडीयू में भेजने का प्लान पहले से ही कर रखा हो - तभी से जब नीतीश कुमार भी एनडीए से बाहर थे, लेकिन बताया सही वक्त पर हो.
प्रशांत किशोर के सामने भी चुनौतियां राहुल गांधी वाली ही होंगी - कांग्रेसियों को समझायें तो कैसे?
प्रशांत किशोर के लिए कांग्रेस में क्या भूमिका तैयार की जा रही है, ये फैसला भी फाइनल के करीब ही बताया जा रहा है - और इसे सूत्रों के हवाले से आई खबर से जोड़ समझने की कोशिश भी की जा सकती है. सुना है कि प्रशांत किशोर ने भी कांग्रेस के पुनरुद्धार के लिए सोनिया गांधी के एक मनमाफिक सलाह भी दे डाली है. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को ज्यादातर मामलों में कमेटी का गठन करते देखा गया है. शायद ये अहमद पटेल की शुरू की हुई परंपरा रही हो.
कांग्रेस में विशेष सलाहकार समिति या ग्रुप बनाने की सलाह प्रशांत किशोर की तरफ से दी गयी है. ये समिति ही अब कांग्रेस नेताओं का कोर ग्रुप होगा. कुछ हद तक नेशनल एडवायजरी काउंसिल जैसी - जो कांग्रेस की अगुवाई में बनी केंद्र की यूपीए सरकार को सलाह देने के लिए बनायी गयी थी.
प्रस्तावित कमेटी या ग्रुप जो भी नाम दिया जाये, वो सोनिया गांधी को रिपोर्ट करेगी. ये कमेटी चुनावी मुहिम में रणनीति तैयार करने से लेकर गठबंधन के मामले और बाकी जरूरी राजनीतिक मुद्दों को लेकर भी फैसले के लिए जिम्मेदार होगी - और उसके फैसलों पर अंतिम मुहर के लिए सर्वोच्च बॉडी कांग्रेस कार्यकारिणी के पास भेजा जाएगा. ये कमेटी एडवाइजरी काउंसिल जैसी भारी भरकम नहीं होगी क्योंकि प्रशांत किशोर ने आधा दर्जन नेताओं को लेकर ही इसे बनाने को कहा है.
ये जब जानने के बाद जो समझ बन रही है, उससे तो यही लगता है कि ऐसी कमेटी की जिम्मेदारी भी प्रशांत किशोर के अलावा किसी और को क्यों दी जाएगी - और कांग्रेस संगठन की राजनीतिक लाइन को समझें तो ऐसे काम के लिए महासचिव का ही पद माकूल माना जाता है - तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस में कौन सी भूमिका सौंपी जाने वाली है.
जो राहुल गांधी की नहीं सुनते, पीके की सुनेंगे
राहुल गांधी को प्रशांत किशोर के पसंद आने के भी तीन कारण हैं - पहला, प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के लिए मोदी-शाह को शिकस्त दी, दूसरा, प्रशांत किशोर ने अरविंद केजरीवाल के लिए मोदी-शाह को शिकस्त दी - और अभी अभी ममता बनर्जी के लिए फिर से मोदी-शाह को शिकस्त दी है.
मोदी-शाह विरोध के तीव्र स्वर राहुल गांधी को सबसे ज्यादा पसंद हैं - बताते हैं बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस ज्वाइन करने वाले नाना पटोल की इसी खासियत के चलते राहुल गांधी ने पहली मुलाकात में ही 'वर मांगो' वाले अंदाज में उनसे पूछ लिया था - कौन सी पोस्ट लेना पसंद करेंगे? गनीमत बस यही रही कि नाना पटोले ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद ही नहीं मांग लिया, वरना राहुल गांधी को 'एवमस्तु' बोल देने के बाद प्रशांत किशोर से शेयर करने के लिए बचता भी क्या?
प्रशांत किशोर को लेकर गांधी परिवार से उनकी मुलाकात के बाद पहली खबर तो यही आयी थी कि राहुल गांधी करीबी सीनियर नेताओं से मीटिंग कर फीडबैक ले चुके हैं - और ज्यादार का मानना है कि आइडिया बुरा भी नहीं है. प्रशांत किशोर को लेकर राहुल गांधी ने 22 जुलाई को एक मीटिंग बुलाई थी - और मीटिंग में शामिल एक नेता ने कहा है, ‘ये वो वक्त है जब नये आइडिया, रणनीति लाई जानी चाहिये. अगर प्रशांत किशोर को पार्टी में लाया जाता है, तो कोई नुकसान नहीं होगा... कांग्रेस के पास काफी टैलेंट है - अगर बेहतर करने के लिए कोई बदलाव होता है तो हमें सीखना चाहिये.’
अब तो प्रशांत किशोर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के प्रमुख सलाहकार का पद भी छोड़ चुके हैं. प्रशांत किशोर का कहना है कि वो थोड़ा ब्रेक लेना चाहते हैं. ऐसा प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल चुनावों के नतीजे आने के बाद भी कहा था.
ये तो ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस नेतृत्व ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से उनका सलाहकार भी छीन लिया है - और अगर प्रशांत किशोर कांग्रेस ज्वाइन कर लेते हैं तो तो आधिकारिक तौर पर वो पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को ही सलाह देंगे. देखना है ममता बनर्जी के साथ 2026 तक के कॉन्ट्रैक्ट का क्या होता है?
प्रशांत किशोर ने पंजाब के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है - मैं सार्वजनिक जीवन में सक्रिय राजनीति से अस्थायी तौर पर ब्रेक चाहता हूं. इसलिए मैं आपके प्रधान सलाहकार पद की जिम्मेदारी नहीं उठा सकता. भविष्य में मुझे क्या करना है ये अभी तय करना बाकी है. इसलिए, मैं आपसे गुजारिश करता हूं कि मुझे इस पद से मुक्त कर दिया जाये - मुझे इस पद के लिए सेलेक्ट करने के लिए आपका धन्यवाद.
अध्यक्ष बनाये जायें या नहीं, ये तो तय है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस के G-23 नेताओं की अपेक्षाओं पर भी खरे उतरेंगे, लेकिन मुश्किल ये है कि क्या बदले में कांग्रेस नेता भी प्रशांत किशोर की अपेक्षाओं पर खरे उतर सकेंगे?
सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सुनने को कभी तैयार न हुए, भला प्रशांत किशोर की क्या मजाल जो उनकी बात बगैर किसी हुज्जत के मान लेंगे - और उसके बाद भी मान लें ये भी तो जरूरी नहीं.
राहुल गांधी को अध्यक्ष पद क्यों छोड़ना पड़ा था? CWC की जिस मीटिंग में राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की थी, उसी में दो कांग्रेस नेताओं के नाम भी लिये थे - अशोक गहलोत और कमलनाथ. राहुल गांधी ने बताया था कि कैसे दोनों ही अपने बेटों को टिकट देने के लिए लगातार दबाव बनाये रहे. ये तो राहुल गांधी ने बताया, कई बातें तो ऐसी भी होंगी जो सरेआम बताना संभव नहीं रहा होगा. कुछ ऐसे भी नाम होंगे जिनका नाम वो भरी मीटिंग में नहीं ले पाये होंगे.
राहुल गांधी को कांग्रेस के भीतर भी 'पप्पू' समझने वाले सीनियर नेताओं से पेश आना ही प्रशांत किशोर के लिए बड़ा चैलेंज होगा - और उनकी तरफ से पैदा की जाने वाली समस्याओं से निजात पाना भी काफी मुश्किल होगा.
अगर ऐसी स्थिति पैदा हु्ई तो प्रशांत किशोर कैसे निबटेंगे? क्या ऐसे लोगों को कांग्रेस से तत्काल प्रभाव से बाहर कर देंगे? अगर ऐसा करना पड़ा तो भला कितनों को बाहर करेंगे - फिर तो पार्टी ही टूट जाएगी.
और प्रशांत किशोर के लिए कांग्रेस से किसी को बाहर करने का फैसला भी आसान नहीं होगा - क्या मालूम कांग्रेस से बाहर कर दिये जाने पर कौन सा नेता पार्टी के लिए या गांधी परिवार के लिए कितना खतरनाक साबित हो क्योंकि वो बहुत सारे राज से भी तो लैस होगा.
प्रशांत किशोर का ट्रैक रिकॉर्ड भी कहता है कि वो सिर्फ काम के लोगों पर फोकस करते हैं - और ऐसा होते ही उनका विरोध शुरू हो जाता है. जेडीयू से भी प्रशांत किशोर के निकाले जाने बड़ी वजह उनको नापंसद करने वाले आरसीपी सिंह और ललन सिंह जैसे नेताओं का विरोध ही तो रहा. अरविंद केजरीवाल और जगनमोहन रेड्डी की नयी पार्टी होने के चलते प्रशांत किशोर को ज्यादा दिक्कत नहीं आयी, लेकिन तृणमूल कांग्रेस में तो प्रशांत किशोर को लेकर बवाल ही चलता रहा. ममता बनर्जी से तो किसी को शिकायत नहीं होती, लेकिन प्रशांत किशोर को कोई भी पसंद नहीं करता है.
देखा जाये तो कांग्रेस और प्रशांत किशोर दोनों ही को एक दूसरे की सख्त जरूरत है और ये भी है कि दोनों ही बहुत बारगेन करने की स्थिति में नहीं है - मजबूरियों में बने रिश्ते बहुत फलदायी भले न हों, लेकिन टिकाऊ तो होते ही हैं.
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