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Updated: 11 जून, 2020 03:58 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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चंद मॉर्फ़ तस्वीरें. कुछ भावना भड़काने वाले वीडियो और ज्वलनशील कंटेंट. भारत (India), पाकिस्तान (Pakistan), अमेरिका (America) देश कोई भी हो माहौल खराब करना या ये कहें कि आज के समय में घर बैठे सोशल मीडिया (Social Media) के जरिये दंगा (Riots) भड़काना दुनिया का सबसे आसान काम है. सोशल मीडिया कैसे तिल का ताड़ बना सकता है इसे हम सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक (Facebook) के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) के उस वेबिनार से समझ सकते हैं जिसका आयोजन उन्होंने अभी कुछ दिन पहले किया था. इस वेबिनार में मार्क जुकरबर्ग ने तमाम बातें की और इसमें दिल्ली दंगों और कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) के भड़काऊ भाषण का जिक्र भी किया गया. कर्मचारियों के साथ हुए संबोधन में जुकरबर्ग ने भाजपा नेता कपिल मिश्रा का नाम तो नहीं लिया लेकिन माना है कि भाषण हिंसा भड़काने वाला था. अपने कर्मचारियों से जुकरबर्ग ने कहा कि 'हिंसा को उकसाने वाले भाषणों के खिलाफ हमारी पालिसी है. दुनिया भर में ऐसे नेताओं के भाषणों के उदाहरण हैं जिनको हमने हटाया है. भारत में भी ऐसे केस हुए. वहां किसी ने कहा था कि अगर पुलिस प्रदर्शनकारियों को नहीं हटाती है तो मेरे समर्थक जानते हैं कि सड़क को कैसे खाली करवाना है. बता दें कि जुकरबर्ग ने ये तमाम बातें कंपनी की इंटरनल मीटिंग में कही जिसमें 2500 कर्मचारी थे. जुकरबर्ग ने कहा कि यह समर्थकों को भड़काने जैसा था इसलिए हमने इसे हटाया भी है.

Zuckerberg-Kapil Mishraदिल्ली दंगों के मद्देनजर फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग ने एक नई बहस को आयाम दे दिए हैं

फेसबुक के कर्मचारियों के साथ हुए अपने संबोधन में मार्क ने कपिल मिश्रा का नाम लिए बगैर उन्हें आड़े हाथों लिया है. ये बात भारत में राइट विंग से जुड़े नेताओं को आहत कर गई है और उन्होंने मार्क के दावों का फैक्ट चेक किया है और वो कपिल मिश्रा के बचाव में खुलकर सामने आए हैं. राइट विंग से जुड़े नेताओं और बुद्धिजीवियों ने मार्क जुकरबर्ग को एक ओपन लेटर लिखा है और अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किये हैं कि कपिल मिश्रा बेदाग़ या ये कहें कि निर्दोष साबित हो सकें.

मार्क को लिखी अपनी चिट्ठी में राइट विंग के बुद्धिजीवियों ने क्या कहा है?

बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों के समूह (जीआईए) ने जुकरबर्ग को एक खुला पत्र लिखते हुए कहा है कि उन्हें बयानबाजी के बजाय "तथ्यों और आंकड़ों के दृढ़ विश्वास के साथ" अपने बयान देने चाहिए. GIA की संयोजक और वकील मोनिका अरोड़ा ने कहा है कि वो जुकरबर्ग के बयान से खासे आहत हैं.

अरोड़ा जो कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने जुड़ी हैं, ने कहा है कि, हमने उनके रिमार्क सुने और महसूस किया कि हमें उनतक सही बातें पहुंचानी चाहिए. हमने उन्हें एक ओपन लेटर लिखा है जिसे हम उन्हें ईमेल करने वाले हैं. साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि GIA की फैक्ट फाइंडिंग टीम दंगा प्रभावित क्षेत्रों में गयी और अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में उन सभी पहलुओं की जांच की है जिनका जिक्र मार्क ने अपने कर्मचारियों के साथ किया है.

चिट्ठी में इस बात का जिक्र किया गया है कि, यह जानकर खुशी हो रही है कि फ़ेसबुक जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के लोग नेटवर्किंग के लिए करते हैं, के सीईओ ने भी हेट स्पीच के मद्देनजर दिल्ली दंगों पर अपनी चिंता जाहिर की है और वो इसे लेकर सतर्क हैं.

आपका वो संबोधन जिसमें आपने अपने 25000 कर्मचारियों से हेट स्पीच के सन्दर्भ में बात की उसमें भारत का जिक्र था. आपका वो संवाद यहां कोट हो रहा है जिसके अनुसार... और भारत में ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां किसी ने कहा कि अगर पुलिस ने इस बात का ध्यान नहीं रखा, तो हमारे समर्थक वहां पहुंचेंगे और सड़कों को साफ करेंगे. इसके लिए हम यही कहेंगे कि आपने साफ़ तौर पर दिल्ली दंगों का जिक्र किया जो कि फरवरी 2020 में हुए.

अपनी सफाई में GIA ने कहा है कि अब हम आपको ग्राउंड से कुछ फैक्ट दे रहे हैं. दिल्ली को दिसंबर 2019 से ही सांप्रदायिकता और हिंसा के अधीन किया जा रहा था, जो कि आपके द्वारा उल्लिखित 'प्रोत्साहन' के बहुत पहले था.

पत्र के अनुसार जो डाटा GIA ने ग्राउंड से बटोरा है उसके अनुसार प्रोटेस्ट साइट पर भारत सरकार की पालिसीके विरोध में धरना चल रहा था. लोग नए नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे. जोकि दिसंबर 2019 के मध्य में आया था और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बिलकुल भी करीब नहीं था. ध्यान रहे कि इस प्रदर्शन के दौरान जगह जगह हिंसा हुई जिसमें प्रदर्शनकारियों ने सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.

पत्र में उन तमाम घटनाओं का जिक्र किया गया है जो इस दौरान हुईं. बता दें कि GIA ने इन तमाम घटनाओं को अपनी रिपोर्ट में भी डाला है और इसे दिल्ली दंगे 2020 ग्राउंड जीरो से एक रिपोर्ट का नाम दिया है.

अपने पत्र में GIA ने मामले पर पूरी सफाई दी है और 66 फुट चौड़ी जफराबाद - वज़ीरपुर रोड का जिक्र किया है और कहा है कि 23 फरवरी की घटना से पहले ही यहां नियम कानून को ताख पर रख दिया गया था. ध्यान रहे कि जुकरबर्ग ने अपने 25,000 कर्मचारियों से अपने संबोधन में यही कहा था कि 23 फरवरी के बाद से ही हालात बेकाबू हुए और दंगे की नौबत आई.  

पत्र में GIA ने बताया है कि कैसे यहां लोगों ने एक चलती फिरती रोड को ब्लॉक किया और हालात बेकाबू हुए. रिपोर्ट में GIA ने कहा है कि वो लोग जो नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में धरना दे रहे थे वो ईंट पत्थरों और हथियारों से लैस थे और उन्होंने ही हिंसा की शुरुआत की और 23 फरवरी की दोपहर तक हालात बेकाबू हुए.

चिट्ठी में दी गयी है जुकरबर्ग को नसीहत

चिट्ठी में इस बात का साफ़ जिक्र हुआ है कि जुकरबर्ग जब भी कोई गंभीर बात कहें तो उन्हें भावना में नहीं बहना चाहिए. बल्कि उनकी बताओं में तथ्य हों. पत्र में कहा गया है कि मार्क जुकरबर्ग एक जिम्मेदार व्यक्ति है. इसलिए हम आशा करते हैं कि वो जो भी बातें कहें वो तथ्यात्मक औइर बिना किसी पूर्वाग्रह के हों. पत्र में कहा गया है कि हमने मार्क को तथ्य दिए हैं जिनका उन्हें किसी भी बात को कहने से पहले गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए.

पत्र जुकरबर्ग तक पहुंचता है? वो क्या अपनी राय बदलते हैं? क्या दिल्ली दंगों के सन्दर्भ में कोई नया स्टेटमेंट मार्क की तरफ से आता है? सवाल कई है जिनके जवाब वक़्त देगा लेकिन वर्तमान में जिस तरह GIA ने अपने पैंतरे से कपिल मिश्रा को बचाकर पूरी बाजी पलट दी है. इस पूरे मामले पर जुकरबर्ग की तरफ से क्या जवाब आता है वो देखना इसलिए दिलचस्प रहेगा क्योंकि दिल्ली दंगों और उसमें कपिल मिश्रा की भूमिका के सन्दर्भ में फेसबुक के फाउंडर की तरफ से गंभीर आरोप लगाया गया है. 

आरोप गंभीर हैं मगर जिस तरह GIA ने मिश्रा का समर्थन किया है उसने एक नए संवाद को जन्म दे दिया है और अब ये भी देखना होगा कि इसमें भारी कौन पड़ता है GIA और कपिल मिश्रा या फिर फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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