Rahul Gandhi चीन और कोरोना पॉलिटिक्स का बुनियादी फर्क ही ना समझ पाए
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) विपक्ष के हक तो याद रखते हैं, लेकिन कर्तव्य सारे भूल जाते हैं - चीन (China-India Border stand off) को लेकर तो ऐसा ही लगता है.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का सियासी फोकस Unlock 1.0 के साथ ही थोड़ा शिफ्ट हो गया है - अब वो कोरोना वायरस, लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था की बातें छोड़ कर चीन (China-India Border stand off) के साथ सीमा विवाद पर ध्यान देने लगे हैं. तेवर और तरीका वही है बस हमेशा की तरह एक बार फिर टॉपिक बदल गया है.
विपक्षी पार्टी (Politics of Opposition) कांग्रेस का नेता होने के कारण राहुल गांधी को सवाल पूछना चाहिये, लेकिन ये भी समझना चाहिये कि कोरोना वायरस की महामारी भी देश के सामने गंभीर संकट है और चीन के साथ सीमा विवाद भी बेहद गंभीर मामला है. फिर भी दोनों ही मामलों में एक बुनियादी फर्क भी है, वो भी उनको समझना चाहिये. कोरोना वायरस संकट में अर्थव्यवस्था या लॉकडाउन पर सवाल पूछना घरेलू राजनीति में चलेगा. दूसरे देश भी यही समझेंगे कि ये सब किसी भी देश के अंदरूनी राजनीति का हिस्सा है और पूरी दुनिया में ऐसा होता आया है - लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को लेकर जो बातें होती हैं, उन पर पूरी दुनिया गौर करती है. ध्यान रहे!
गंभीर मामलों में तीखे सवाल बेशक पूछे जाने चाहिये, लेकिन क्या चीन के साथ सीमा विवाद जैसा मामला हास-परिहास का विषय भी हो सकता है?
ये तो कांग्रेस नेतृत्व को तय करना होगा कि विपक्षी खेमे की राजनीति में उसे कोरोना महामारी को लेकर सरकार के खिलाफ हमला बोलना है या मोदी सरकार की विदेश और रक्षा नीति पर - लेकिन ये ऐसे सवाल हैं जो शायराना अंदाज में तो कतई नहीं ही पूछे जाने चाहिये.
ये कांग्रेस के लिए भी बहुत घातक है
बिहार में वर्चुअल चुनावी रैली के बाद अमित शाह का जनसंवाद कार्यक्रम ओडिशा होते हुए पश्चिम बंगाल का भी सफर तय कर चुका है. हो सकता है, ओडिशा में नवीन पटनायक और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को अमित शाह की डिजिटल रैली महामारी के बीच वैसी ही लगी हो, जैसे कोई अम्फान तूफान. दिल्ली में बैठे राहुल गांधी को भी कुछ कुछ वैसा ही महसूस हो रहा है, ऐसा लगता है.
बिहार जनसंवाद में अमित शाह ने तेजस्वी यादव के साथ साथ राहुल गांधी को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी. अमित शाह के भाषण को ही आधार बनाकर राहुल गांधी ट्विटर पर चीन सीमा विवाद को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछा था - लेकिन सवाल पूछने का जो तरीका अपनाया गया वो काफी अजीब लगा.
राहुल गांधी ऐसे मुद्दे क्यों उछालते हैं जो उनको ही सवालों में ला देते हैं?
राहुल गांधी के ट्वीट की चर्चा तो खूब हुई, लेकिन ज्यादातर लोगों को उसमें अच्छी भावना की जगह ओछी भावना ही नजर आयी - कांग्रेस के भीतर मजबूरी की हालत में भले ही ताली और थाली बजायी गयी हो. यहां तक कि रिटायर हो चुके सैन्य अफसरों को भी राहुल गांथी की टिप्पणी बचकानी लगी है.
सब को मालूम है ‘सीमा’ की हक़ीक़त लेकिन,दिल के ख़ुश रखने को, ‘शाह-यद’ ये ख़्याल अच्छा है।https://t.co/cxo9mgQx5K
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 8, 2020
राहुल गांधी के इस ट्वीट में सीमा शब्द की जगह बिहार लिखा होता तो चल जाता, लोग वैसे ही मजे लेकर रिएक्ट करते जैसे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी और शिवसेना की तकरार में संजय राउत के ट्वीट को रीट्वीट किया करते थे - लेकिन एक निहायत ही गंभीर मुद्दे पर ऐसी टिप्पणियां सिर्फ जायका ही नहीं माहौल भी खराब करती हैं.
अमित शाह के भाषण पर राहुल गांधी की टिप्पणी के खिलाफ राजनाथ सिंह मोर्चा संभाले - देश के रक्षा मंत्री होने के नाते भी ऐसा हुआ होगा.
मिर्ज़ा ग़ालिब का ही शेर थोड़ा अलग अन्दाज़ में है। ‘
‘हाथ’ में दर्द हो तो दवा कीजै,‘हाथ’ ही जब दर्द हो तो क्या कीजै.. https://t.co/k1fhnI6K4N
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) June 8, 2020
वैसे राहुल गांधी की इस टिप्पणी के लिए राजनाथ सिंह से बेहतर संबित पात्रा हो सकते थे. होना तो ये चाहिये था कि जैसे जीरो गिनने वाले कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ के सवाल पर संबित पात्रा जवाब दे रहे थे, राहुल गांधी की इस टिप्पणी पर भी उतने से ही काम चल जाता.
दरअसल, राहुल गांधी की टिप्पणी को ठीक उसी अंदाज में जवाब देकर राजनाथ सिंह ने गलती कर दी, जाहिर है कांग्रेस नेता के सलाहकार कभी कभी तो जगे रहते ही होंगे, लिहाजा राहुल गांधी नये तरीके से शॉट जड़ा - और उसका थोड़ा असर भी दिखा.
Once RM is done commenting on the hand symbol, can he answer:
Have the Chinese occupied Indian territory in Ladakh?
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 9, 2020
राहुल गांधी के नये शॉट को रोकने की राजनाथ सिंह के कैबिनेट साथी किरण रिजिजू ने भरपूर कोशिश की, लेकिन अंदाज वही घिसा पिटा रहा. सेना के नाम पर दुहाई देकर एक दो बार चल जाता है, बार बार कोई फायदा नहीं होता.
इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान और व्यवहार तब सामने आते हैं जब कोई खुद की सेना पर भरोसा करना बंद कर देता है और राजनीतिक हित राष्ट्रीय हित से आगे निकल जाता है। Hope someone realises blunder of 1962 which pushed NEFA (Arunachal Pradesh) into other's needless & unjustified claim. https://t.co/MpzwZ2VhpE
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) June 9, 2020
जब सारे दांव बेकार होने लगे तो बीजेपी ने तुरूप का पत्ता जो बचा कर रखा था, उछाल दिया. लद्दाख से बीजेपी सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल मैदान में उतरे. पूरे डीटेल के साथ. तारीख पर तारीख की मिसाल देते हुए सिलसिलेवार लिस्ट पेश कर दी. लद्दाख सांसद ने राहुल गांधी को समझाया है कि चीन ने जो भी हरकत की है, वो एनडीए नहीं बल्कि कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाले यूपीए के शासन काल में.
I hope @RahulGandhi and @INCIndia will agree with my reply based on facts and hopefully they won't try to mislead again.@BJP4India @BJP4JnK @sambitswaraj @JPNadda @blsanthosh @rajnathsingh @PTI_News pic.twitter.com/pAJx1ge2H1
— Jamyang Tsering Namgyal (@MPLadakh) June 9, 2020
लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ भारतीय फौज की झड़प की खबरों के बीच सोनम वांगचुक ने वीडियो मैसेज जारी कर सबक सिखाने का तरीका सुझाया था. सोनम वांगचुक वही हैं जिनसे प्रेरित किरदार की भूमिका में आमिर खान थ्री इडियट्स में नजर आये हैं.
बीजेपी सांसद नामग्याल ने अपने ट्वीट में दो तस्वीरें भी शेयर की हैं - एक में उनका जवाब है - और दूसरी में देमचोक घाटी की एक तस्वीर. अपने ट्वीट के जरिये बीजेपी सांसद ने दावा किया है कि कांग्रेस के शासनकाल में चीन की हरकत क्या रही -
1. 1962 में अक्साई चिन पर चीन ने कब्जा कर लिया. ये इलाका 37,244 किलोमीटर है. ये तब की बात है जब जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री रहे.
2. 2008 तक चुमूर इलाके के तिया पैंगनक और चाबजी घाटी में वैसी ही हरकत हुई और प्रभावित इलाका 250 मीटर है. ये तब का वाकया है जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे.
3. 2008 में चीनी फौज ने देमजोक में जोरावर किले को ध्वस्त किया और 2012 में ऑब्जर्विंग पॉइंट बना लिया. सीमेंट से बने 13 घरों के साथ चीनी ने न्यू देमजोक कॉलोनी बसा दी. 2014 तक दुंगटी और देमचोक के बीच दूम चेले को भी गंवा दिया. ये भी मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल का ही वाकया है.
राहुल गांधी के सवालों का जवाब बीजेपी ने ठीक उसी अंदाज में दिया है जैसे दिल्ली में हुए दंगों को लेकर अमित शाह से सोनिया गांधी के सवाल पूछने पर रहा. जब बीजेपी ने कांग्रेस को 1984 में हुए दिल्ली के सिघ दंगों की याद दिला दी तो धीरे धीरे कांग्रेस नेतृत्व को मुद्दा छोड़ कर खामोश होने को मजबूर होना पड़ा.
2016 में पाकिस्तान के खिलाफ पहली सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक पर राहुल गांधी का स्टैंड बैकफायर कर गया. 2019 के आम चुनाव में पाकिस्तान को लेकर राहुल गांधी की हर बात को बीजेपी ने ऐसे पेश किया कि लोग राजनीतिक दलों को देशभक्त और देशद्रोही की नजर से बांट कर देखने लगे.
कोरोना संकट पर राहुल गांधी शुरू से ही एक्टिव रहे हैं. 12 फरवरी का उनका ट्वीट भी कोरोना के प्रसंग में याद आ ही जाता है. प्रधानमंत्री को पत्र लिखने के साथ साथ राहुल गांधी के वीडियो चैट की शुरुआत भी रघुराम राजन और फिर अभिजीत बनर्जी के साथ ठीक ही रही, लेकिन उसके बाद वो एक ही ढर्रे पर आगे बढ़ने लगा है. राहुल गांधी ने लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित गरीब, किसान और मजदूरों की मदद के लिए आवाज उठायी और छत्तीसगढ़ में तो NYAY योजना लागू भी हो गयी - ये सब तो विपक्ष की राजनीति के हिसाब से ठीक ही चल रहा था, ऐसे में राहुल गांधी को चीन पर शिफ्ट होने की क्या जरूरत पड़ गयी.
कहीं ऐसा तो नहीं राहुल गांधी ने मान लिया है कि कोरोना संकट को लेकर अब मोदी सरकार पर हमले का कोई मतलब नहीं है - क्या राहुल गांधी को भी लगने लगा है कि कोरोना संकट अब खत्म हो चुका है?
जैसे आर्थिक मुद्दों पर मोदी सरकार से सवाल पूछने के लिए राहुल गांधी ने अपनी टीम में पी चिदंबरम को रखा है, वैसे ही विदेश नीति से जुड़े मसले वो शशि थरूर के हवाले कर देते - चीन को लेकर शशि थरूर कम से कम राहुल गांधी ने जो ट्वीट किया है, उससे बेहतर ही करते. आखिर राहुल गांधी, रणदीप सुरजेवाला बनने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?
क्या राहुल गांधी को नहीं लगता कि जिस तरीके से वो ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति कर रहे हैं वो उनके साथ साथ कांग्रेस के लिए भी घातक साबित हो रहे हैं.
सरहदें घरेलू राजनीति के दायरे के बाहर होती हैं
लेफ्टिनेंट जनरल नितिन कोहली, लेफ्टिनेंट जनरल आरएन सिंह और मेजर जनरल एम. श्रीवास्तव सहित 9 पूर्व सैन्य अफसरों ने एक बयान जारी किया है - राहुल गांधी के ट्वीट को बयान में गलत सोच से प्रभावित और राष्ट्रीय हितों के खिलाफ बताया गया है. ये पूर्व सैन्य अफसर राहुल गांधी के बयान को बचकाना मान रहे हैं.
पूर्व सैन्य अफसरों के बयान में राहुल गांधी के ट्वीट की निंदा की गयी है - और सेना पर सवाल उठाने की कोशिश बतायी गयी है.
बयान के जरिये फौजियों के समूह ने राहुल गांधी से सवाल किया है - 'क्या राहुल गांधी नहीं जानते हैं कि नेहरू ने तिब्बत को प्लेट में सजाकर चीन को सौंप दिया था - और चीन ने अक्साई चिन में सड़कें बना लीं. बाद में कब्जा भी कर लिया जब नेहरू प्रधानमंत्री थे?'
राहुल गांधी चीन के साथ तनाव को भी राजनीतिक तौर पर वैसे ही लेने की कोशिश की है, जैसे चुनावों में 'चौकीदार चोर...' वाले नारे लगवाते रहे. राफेल की तरह ही राहुल गांधी ने आरोग्य सेतु ऐप को भी उछाला लेकिन फिर चुप हो गये. अब कोरोना होते हुए चीन सीमा विवाद पर शिफ्ट हो गये हैं. ये राजनीति न देश के लिए ठीक है न कांग्रेस के लिए न खुद राहुल गांधी की राजनीतिक सेहत के लिए!
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