रेप को लेकर रमेश कुमार का कहकहा सिर्फ कहावत नहीं, मर्दवादी समाज की सोच है!
कांग्रेस विधायक के आर रमेश कुमार ने विनोदपूर्वक एक कहावत कही है जिसके अनुसार जब बलात्कार को रोक न सको तो लेटकर उसका आनन्द लो. यह कहावत है, ये हमारी कहावतों का स्तर है यह बेहद घटिया बात है लेकिन यह इकलौती घटिया बात नहीं है. उससे घटिया है ऐसी कहावत का विधान सभा में प्रयोग होना. उससे भी निकृष्टता यह कि कानून बनाने वालों द्वारा इसका प्रयोग में लाया जाना.
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Karnataka assembly leaders, SHAME ON YOU! This is exactly how I wish to start my point & this is how I'll do it. लोकतंत्र के भारत भाग्य विधाता को जानना चाहिए कि उन हुक्मरानों से, जिन्हें वे सदन के गलियारों तक भेजते हैं, कोई उम्मीद नहीं रखी जानी चाहिए. कर्नाटक विधान सभा में विमर्श के दौरान कांग्रेस विधायक के आर रमेश कुमार ने विनोदपूर्वक (क्योंकि यही नेताजी का ह्यूमर लेवल है) कहा, - 'There's a saying - When rape is inevitable, lie down and enjoy it.' अर्थात् एक कहावत है कि जब बलात्कार को रोक न सको तो लेटकर उसका आनन्द लो. यह कहावत है, ये हमारी कहावतों का स्तर है यह बेहद घटिया बात है लेकिन यह इकलौती घटिया बात नहीं है. उससे घटिया है ऐसी कहावत का विधान सभा में प्रयोग होना. उससे भी निकृष्टता यह कि कानून बनाने वालों द्वारा इसका प्रयोग में लाया जाना.
केआर रमेश कुमार ने जो बयान रेप को लेकर दिया है वो उनकी घटिया सोच को दर्शाता है
हमारे समाज में विनोद का यह स्तर है, जो महिलाओं के दाएं-बाएं हुए बिना पूरा ही नहीं होता और इसपर सवाल नहीं होने चाहिए. किसी की ओर आंखें नहीं तरेरनी चाहिए क्योंकि मज़ाक है न! सीरियस न लीजिए. इस देश को तो ऐसा मज़ाक करते रहने की आदत पड़ी है, आपको अबतक नहीं पड़ी यह आपकी समस्या है. Grow up!
इस पूरे घटनाक्रम की अतुलनीय बात यह है कि जब सदन में इस तरह का हास्य रस उद्वेलित हो रहा था तो समूचे सदन से किसी एक व्यक्ति ने भी इसपर आपत्ति नहीं ज़ाहिर की. उल्टा स्वयं अध्यक्ष महोदय ठहाके लगाकर हंसते नज़र आये और दूसरे नेतागण भी आनन्द ले रहे थे. सदन में सबकी हंसी गूंज रही थी.
बात जब सर-ए-आम हुई और विरोध हुआ तो रमेश कुमार ने मुआफ़ी मांग ली लेकिन अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने अपना वही स्तर कायम रखते हुए, उनका बचाव करते हुए कहा कि रमेश ने मुआफ़ी मांग ली है और इस मामले को और नहीं खींचना चाहिए. जिस देश में ऐसे कहावत व मुहावरे गढ़े जाते हों और उसपर ठहाके लगते हों वहां तेलंगाना की पशु चिकित्सक का रेप वीडियो किसी पोर्न साइट पर 8 मिलियन बार ढूंढा जाना आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
बलात्कार जैसे विभत्स कृत्य को वासना और विनोद का पात्र बना कर ऐसे हल्के भाव में परोसा जा रहा है जैसे कुछ हुआ ही न हो तो एक सदी और खप जाएगी इस समाज को अनुमति और कंसेंट की परिभाषा समझाने में. अध्यक्ष महोदय तब ठहाके लगाकर हंसे और एक बार भी रमेश कुमार को नहीं रोका. अब वे बता रहे हैं कि मामले को और नहीं खींचा जाना चाहिए. तो तय भी वही करेंगे कि किस मामले को कितना खींचना है. इस चौपट राजा की अंधेर नगरी में कानून बनाये जाते हैं.
इनसे और उन तमाम मौजूद नेताओं से कितनी उम्मीद की जा सकती है महिला सुरक्षा जैसे विषयों को समझने की? अब जब कागेरी कह चुके हैं कि मामले को नहीं खींचा जाना चाहिए, मुझे लगता है कि कर्नाटक के लोगों को और देश के लोगों को इस मामले को खींचकर सभी विषयों के केंद्र में लाना चाहिए और दाग़े जाने चाहिए सवाल कि सदन की गरिमा का यह अपमान कैसे? अपनी सड़ी हुई मानसिकता को लोक-साहित्य कहकर परोसने पर
सवाल के बजाय अट्टाहस कैसा? क्या वह सदन कभी महिलाओं की समस्याओं को समझने का बौद्धिक स्तर रख सकेगा? अपनी गरिमा को लगी ठेस पर भरभराकर गिर जानी चाहिए थीं विधान सभा की दीवारें कि फिर किसी सभा में समूची स्त्री जाति का अपमान हो रहा था. मूक रहे सभी लोग, अधिकतर हँस रहे थे, यह लाइलाज देश में मृत लोगों की सभा थी.
भरे सदन में जयललिता की साड़ी खींची गयी, मायावती पर दर्जनों बार निम्न दर्जे की टिप्पणियां की गयीं, घटिया चुटकुले बने. स्मृति ईरानी उम्र से बहुत पहले 'आंटी' कहलायीं, कहा गया कि कोई गलियारा है जो उनके घर से मोदी के घर तक जाता है. सोनिया गांधी को बार डांसर कहा गया. आसान है क्या इस देश में महिलाओं का सत्ता के शीर्ष पर होना? चारित्रिक हनन में अव्वल अपने महान देश ने कब कसर छोड़ी है किसी महिला की सफलता को उसकी योनि से परिभाषित करने में!
गिनती की महिलाएं राजनीति में दिलचस्पी लेती हैं और उनका मनोबल गिराने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया जाता है. प्रियंका गांधी इस बार उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ महिला उम्मीदवार खड़े कर रही हैं और इस मुहिम को नाम दिया है - लड़की हूं, लड़ सकती हूं. तो लड़िए मै'म, लड़कियां लड़ें, गिरें, हारें, उठें और फिर लड़ें और रंग डालें समूचा अम्बर अपने रंग में. लेकिन रमेश कुमार जैसे नेता को यदि आपका दल विधान सभा में रखता है तो लड़कियों की लड़ाई निश्चित ही बेहद मुश्किल है. आप इन्हें रास्ता दिखायें तो बेहतर, नहीं दिखायेंगी तो लड़कियाँ लड़ ही लेंगी, उन्हें लड़ना आने लगा है.
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