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Updated: 16 मई, 2018 10:57 AM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
  @ashok.upadhyay.12
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कर्नाटक इलेक्शन जिस तेज़ी से अपना रंग बदला उसे न मोदी की आंधी रोक पाई और न ही कांग्रेस का नया गठबंधंन रोक पाया. इस समय कर्नाटक राजनीति का केंद्र अब बेंगलुरु का राजभवन बन गया है जहां भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और जेडीएस का नया गठबंधंन दोनों ही अपनी-अपनी फरियाद लिए खड़े हैं.

कर्नाटक में कौन राज करेगा इसका फैसला अब राज्यपाल पर होगा कि वो किस पार्टी को कर्नाटक की सत्ता सौंपते हैं. और विधानसभा में अपना बहुमत साबित करती है. ये राज्यपाल द्वारा निर्धारित समय में ही होगा.

राज्यपाल वजुभाई वाला के फैसले का इंतज़ार किया जा रहा है और ये फैसला तीन अलग तरह से हो सकता है.

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1. पहला तरीका..

राज्यपाल वैंकटरमन फॉर्मुला अपनाएं और एकलौती सबसे बड़ी पार्टी को बुला लें.

यानी बीएस येदियुरप्पा को बुलाएं और उनसे कहें कि सरकार बना लीजिए. और संसद में अपना बहुमत साबित कीजिए.

भाजपा विपक्ष (नए गठबंधन) में फूट डाल दे या फिर सत्ताधारी पुरानी पार्टी के कुछ विधायकों को अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मना ले. दोनों ही केस में भाजपा का बहुमत साबित हो जाएगा.

पूर्व राष्ट्रपति आर वैंकटरमन ने 1989 और 1991 के इलेक्शन के समय यही किया था. उन्होंने सबसे ज्यादा सीटें पाने वाली पार्टी को बुलाया था.

2. दूसरा तरीका...

राज्यपाल वैंकटरमन फॉर्मूला अपनाएं. बीएस येदियुरप्पा को ही बुलाएं और बहुमत साबित करने का मौका दें.

येदियुरप्पा बहुमत साबित करने में नाकाम रहें और सरकार गिर जाए.

3. तीसरा तरीका..

राज्यपाल के.आर. नारायणन फॉर्मूला अपनाएं और चुनाव के बाद बने सबसे बड़े गठबंधंन को बुलाएं.

यानी एचडी कुमारस्वामी को बुलाया जाए और सरकार बनाने और बहुमत साबित करने का मौका दिया जाए. इस समय कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधंन बहुमत की ओर है. ऐसे में सरकार बन जाएगी.

1998 में हुए 12वें लोकसभा इलेक्शन में हंग असेम्बली के समय राष्ट्रपति के.आर.नारायणन ने यही तरीका अपनाया था.

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अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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