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Updated: 16 मई, 2018 10:43 AM
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कर्नाटक में काला जादू खूब चलता है. एक वक्त तो येदियुरप्पा खुलेआम कहा करते थे कि उन्हें मरवाने के लिए काला जादू किया जा सकता है. कई बार तो वो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा का नाम तक लेकर ऐसी बातें करते रहे.

कर्नाटक चुनाव के वोटों कि गिनती शुरू हुई तो रुझानों में बीजेपी बढ़त ले रही थी तो मोदी मैजिक की बात चलने लगी. दोपहर बाद जब बीजेपी के नंबर घटने लगे फिर सरकार बनाने के नये समीकरण बनने लगे.

महीने भर से लगातार मोदी पर बरसते रहे राहुल गांधी अचानक सीन से गायब दिखे. कुछ देर बाद मालूम हुआ कि मौके की नजाकत को देखते हुए सोनिया गांधी ने खुद मोर्चा संभाल लिया है.

जब तक बीजेपी अकेली दावेदार बनी रही तब तक तो सब यूं ही चलता रहा, जैसे ही कांग्रेस के सपोर्ट से नये दावेदार एचडी कुमारस्वामी मैदान में आ गये - पूरा मामला राजभवन शिफ्ट हो गया.

अपनी ही चाल में फंसी बीजेपी

कांग्रेस मुक्त भारत के निर्माण में अब तक जो चाल बीजेपी चलती रही, फिलहाल वो उसी में फंस गयी है. जिस तरकीब से बीजेपी ने कांग्रेस को गोवा, मणिपुर और मेघालय में किनारे कर सत्ता हासिल कर ली - वही कर्नाटक में उस पर भारी पड़ने लगी है.

गोवा और मणिपुर में धक्के खाने के बाद कांग्रेस ने मेघालय में अपनी ओर से कोशिश की थी. जैसे ही कांग्रेस को स्थिति की भनक लगी सीनियर नेताओं की टीम शिलॉन्ग रवाना कर दी गयी - लेकिन तब तक बीजेपी ने सारा खेल बिगाड़ दिया था. जब कोई राह नहीं सूझी तो कांग्रेस नेता उल्टे पांव लौट आये. कर्नाटक में भी तकरीबन वही स्थिति पैदा हो गयी थी.

kumaraswamy, yeddyurappaअब तो काला जादू का ही आसरा...

जब से ओपिनियन पोल के जरिये कर्नाटक में खंडित जनादेश की संभावनाएं जतायी जाने लगीं, तभी से जेडीएस की किंगमेकर माना जाने लगा. हालांकि, जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी जब भी ये बात उठती अपनी ओर से कहा करते कि वो किंगमेकर नहीं, किंग बनने की तैयारी कर रहे हैं. नंबर के खेल में तो जेडीएस कोई करिश्मा नहीं दिखा पाया लेकिन इतनी हैसियत तो बना ही ली कि दोनों हाथों में लड्डू मिल गये. बीजेपी के बारे में तो पहले से ही कहा जा रहा था कि उसका जेडीएस के साथ गुपचुप गठबंधन है, कांग्रेस नेता भी संपर्क बनाये हुए थे. हालात को भांपते हुए सिद्धारमैया ने बयान भी दे दिया कि वो कुर्सी छोड़ने को तैयार हैं - शर्त सिर्फ ये है कि कोई दलित ही मुख्यमंत्री बने. माना ये गया कि सिद्धारमैया ने ये चाल कुमारस्वामी को रोकने के लिए कही है, लेकिन ये असल में तो सियासी गुगली थी. नतीजे के हिसाब से इसे डिफाइन किया जाना था. हुआ भी वैसा ही.

कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही है, लेकिन बीजेपी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि ये नियम गोवा, मणिपुर और मेघालय में क्यों नहीं उसकी सरकारें बनाने में आड़े आया?

कांग्रेस ने जेडीएस को सीधे मुख्यमंत्री पद ऑफर कर दिया है. मंत्रिमंडल को लेकर भी कांग्रेस कुर्बानी देने को तैयार है - क्योंकि हर हाल में उसे बीजेपी को रोकना है.

किसका 'काला जादू' चलेगा?

नाम भले ही इसका काला जादू हो, लेकिन ये पल पल अपना रंग बदल रहा है. चुनावों से पहले इसके अलग रंग होंगे लेकिन वोटिंग के ऐन पहले ये कहीं हरा तो कहीं कहीं गुलाबी रंग में भी देखा गया. वोटों के अलग अलग बाजार में इसका रंग गिरगिट से भी तेज बदलता रहा.

अब ये पर्दे के पीछे कमाल दिखा रहा होगा. फिलहाल तो यही लगता है कि ये काला जादू कुछ और नहीं बल्कि हर वो हथकंडा है जिसके जरिये मिशन को अंजाम दिया जा सके, मकसद उसका जो भी हो.

देखा जाय तो कर्नाटक का खेल थोड़ा उलझ चुका है और थोड़ा और उलझता नजर आ रहा है. अभी तो सत्ता की चाबी पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के हाथ में ही मानी जा रही है. वैसे जेडीएस की पार्टनर मायावती की बीएसपी ने भी अपना खाता खोल लिया है. यूपी में मायावती की हालत कितनी भी खराब क्यों न हो कर्नाटक विधानसभा बीएसपी की झोली में एक सीट आ चुकी है.

बीजेपी संसदीय दल की बैठक के बाद कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा, 'हम कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बने हैं. हम पूर्ण-बहुमत से कुछ ही पीछे हैं... मैं कांग्रेस को बताना चाहता हूं कि आपकी इस चुनाव में घोर पराजय हुई... कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट अपनी पारंपरिक सीट से बुरी तरह हारे. कांग्रेस की आधी कैबिनेट बुरी तरह हारी है. कांग्रेस इसे विजय कैसे मानती है ये वही समझे.'

अमित शाह जो भी दावा करे या जो कुछ भी समझायें, बात पते की ये है कि गुजरात के बाद कर्नाटक के नतीजे भी यही संकेत दे रहे हैं कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसढ़ की राह काफी कठिन है.

ऐसे में जबकि बीजेपी के सीएम कैंडिडेट बीएस येदियुरप्पा और कांग्रेस के सपोर्ट से जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने भी सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है - गेंद राज्यपाल वजुभाई वाला के पाले में है. देखना है राज्यपाल का विवेक और अधिकार क्या फैसला लेता है? वैसे देश के राजनीतिक

इतिहास में ऐसा कम ही मौका आया है जब राजभवन केंद्र की सत्ता पर काबिज दल के 'मन की बात' करने का आरोप न लगा हो.

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