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Updated: 05 मार्च, 2022 01:19 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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हिजाब कॉन्ट्रोवर्सी के बाद कर्नाटक दो धड़ों में बंट गया है. वो खेमा जो हिजाब का पक्षधर है या फिर वो लोग जो अपने को 'सेक्युलर' कहते हैं. संविधान का हवाला दे रहे हैं और उनके साथ हैं जो हिजाब के समर्थन में सड़कों पर हैं. वहीं दूसरा वर्ग वो है जो खुल कर हिजाब का समर्थन करने वाले लोगों के विरोध में सामने आया है. ऐसे लोग भगवा गमछों और शॉल के जरिये ये बताने का प्रयास कर रहे हैं कि यदि इस्लाम का अभिन्न अंग हैं तो फिर ये भगवा ही है जो हिंदुओं में हिंदुत्व की अलख जलाए रखेगा. चूंकि कर्नाटक में हिजाब ने दो धर्मों के बीच पर्दा कर दिया है इसके असर दिखाई पड़ने लग गए हैं। लड़ाई हिंदू बनाम मुस्लिम है और गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं और ऐसा बहुत कुछ किया जा रहा है जो न केवल एक देश के रूप में भारत की अखंडता और एकता को प्रभावित कर रहा है. बल्कि सीधे सीधे एक एजेंडे के तहत बदले की राजनीति है.कर्नाटक पुलिस ने कलबुर्गी जिले के अलंद में बीते एक मार्च को हुए सांप्रदायिक तनाव के बाद 167 लोगों को गिरफ्तार किया है.

Karnataka, Hijab, Dispute, Dargah, Shivalinga, Hindu, Muslim, Police, Congress, BJPकर्नाटक में तनाव का ताजा केंद्र कलबुर्गी है जहां विवाद एक शिवलिंग और दरगाह को लेकर है

2022 के मार्च में कर्नाटक के कलबुर्गी में सांप्रदायिक तनाव क्यों हुआ? क्यों नौबत पुलिस बुलाने, धारा 144 लगाने और मुकदमों की आई वजह हैरत में डालने वाली है. बताया जा रहा है कि वर्तमान में हुए सांप्रदायिक तनाव के तार 2021 की एक घटना से जुड़े हैं.

क्या हुआ 2021 में जिसके चलते बारूद के ढेर पर बैठा है 2022 में कलबुर्गी

कलबुर्गी के अलंद में लाडले मशक नाम की एक दरगाह है. उसी परिसर में राघव चैतन्य शिवलिंग भी है. बात नवंबर 2021 की है आरोप लगा था कि मुसलमानों ने शिवलिंग को अपवित्र किया है. कलबुर्गी के हिंदूवादी संगठन कथित अपवित्रता के चलते शिवलिंग को 'शुद्ध' करने के लिए 1 मार्च 2022 को विशेष पूजा अर्चना करना चाहते थे. उसी दिन मुस्लिम संप्रदाय ने भी परिसर में मौजूद दरगाह पर शबाब-ए-बारात कार्यक्रम करने की तैयारी की थी.

महाशिवरात्रि का मौका था इसलिए बात आगे न बढ़े और किसी तरह का कोई बवाल न हो इसलिए पुलिस और जिला प्रशासन ने इलाके में 27 फरवरी से 3 मार्च तक धारा 144 लगाकर लोगों के एकसाथ जमा होने पर पाबंदी लगा दी थी.

बावजूद इसके श्री राम सेना ने 1 मार्च को लाडले मशक दरगाह पर राघव चैतन्य शिवलिंग को शुद्ध करने का ऐलान किया था. मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग भी पहुंचे और विवाद कुछ इस हद तक बढ़ा कि नौबत पथराव की आ गई और स्थिति तनावपूर्ण हो गयी.

मामले पर जो तर्क पुलिस ने दिया है यदि उसपर यकीन किया जाए तो मिलता यही है कि बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री भगवंत खुबा ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ दरगाह परिसर में शिवलिंग की 'शुद्धि' करने के लिए एक बड़ी रैली का आयोजन किया था. खुबा पर आरोप है कि उन्होंने प्रतिबंध के बावजूद अपने समर्थकों के साथ धार्मिक स्थल के भीतर दाखिल होने की कोशिश की थी.

पुलिस ने ये भी बताया कि उसकी तरफ से सिर्फ 10 लोगों को दरगाह परिसर में शिवलिंग की पूजा करने की अनुमति दी थी. लेकिन नेता कहां ही मानने वाले थे. चूंकि समर्थक भी मौजूद थे इसलिए कहा यही गया कि 10 नहीं बल्कि सभी को शिवलिंग में प्रवेश की अनुमति दी जाए.

हिंदूवादी संगठनों और भाजपा के नेताओं के इस रवैये ने इलाके के मुसलमानों को आहत किया और वो लोग भी दरगाह के पास इकट्ठे हो गए. उन्होंने पुलिस बैरिकेड्स तोड़ने की कोशिश की . मुसलमान इस बात को लेकर आहत थे उन्हें दरगाह परिसर में प्रवेश क्यों नहीं करने दिया गया? चूंकि पुलिस ने 10 लोगों को शिवलिंग की पूजा करने की अनुमति दी थी मुस्लिम समुदाय ने पुलिस के इस फैसले का विरोध किया.

क्योंकि बवाल की वजह धर्म था इसलिए दोनों ही पक्षों में तीखी बहसबाजी हुई और नौबत पथराव की आई जहां दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे पर पत्थर चलाए. बताया जा रहा है कि इस पथराव में डीसी, एसपी और एसीपी के वाहन क्षतिग्रस्त हो गए हैं.

मामले का पॉलिटिकल रंग लेना स्वाभाविक था. कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक बी आर पाटिल ने मामले के मद्देनजर भाजपा को आड़े हाथों लिया है और भाजपा को तनाव का जिम्मेदार बताते हुए कर्नाटक पुलिस को स्थिति नियंत्रित करने में नाकाम बताया है.

अंत में अपनी बातों को विराम देते हुए हम ये जरूर बताना चाहेंगे कि हिंदू संगठनों का मानना है कि ये पूरा परिसर एक शिवमंदिर था वहीं इलाके के मुसलमानों का मत है कि ये स्थान एक दरगाह ही हैं जिसे सदियों पहले निर्मित किया गया था.

ख़ैर क्या सच है. क्या झूठ? इसका पता तो तब चलेगा जब मामले की सही और निष्पक्ष जांच होगी. लेकिन हिजाब विवाद के इस दौर में कर्नाटक के जैसे हालात हैं. राज्य बारूद के ढेर पर है और उसे तहस नहस करने के लिए बस एक चिंगारी की दरकार है. नेताओं और प्रोपोगेंडा के जरिये प्रयास तो हो रहे हैं लेकिन कोई कामयाब नहीं हो पा रहा है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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