डर के आगे तो जीत होती है - पर येदियुरप्पा के ओवर कॉन्फिडेंस के पीछे क्या है?
जिस बीजेपी में नतीजे आने के बाद तक मुख्यमंत्री के नाम पर तस्वीर साफ नहीं होती, येदियुरप्पा भला किस बूते शपथग्रहण की तारीख बता रहे हैं?
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वोटिंग और वोटों की गिनती से बहुत पहले ही बीएस येदियुरप्पा ने अपने शपथग्रहण की तारीख बता दी थी. येदियुरप्पा कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सीएम कैंडिडेट हैं.
येदियुरप्पा ने शपथ लेने के लिए पहले दो तारीखें बतायी थीं - 17 और 18 मई. हो सकता है कोई कंफ्यूजन रहा हो. पर अब ऐसा नहीं है. अब वो 17 को ही शपथ लेने की बात कर रहे हैं. क्या वो ये सब किसी ज्योतिषीय गणना के हिसाब से कह रहे हैं? या फिर ऐसे बयान के पीछे कोई चुनावी मनोविज्ञान है?
येदियुरप्पा की बातें सुन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनकी दिमागी हालत को लेकर कड़ी टिप्पणी की है. वैसे अंधविश्वासों पर यकीन करने के मामले में दोनों में से कौन आगे या पीछे है कहना मुश्किल है?
कहां से आई 17 मई की तारीख?
गनीमत है कि शपथग्रहण की तारीख को लेकर सिद्धारमैया की टिप्पणी सिर्फ येदियुरप्पा तक ही सीमित है. मुमकिन है वो ज्यादा गुस्से में होते तो दायरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग भी हो सकता था.
येदियुरप्पा ने मतदान से पहले घर पर पूजा की और शिकारीपुर विधानसभा क्षेत्र में अपना वोट डालने के बाद कहा, 'आज बहुत महत्वपूर्ण दिन है. हमें राज्य में 150 से ज्यादा सीटें मिलेंगी और मैं 17 मई को सरकार बनाने जा रहा हूं. लोग घर से बहार निकलें और बड़ी संख्या में मतदान करें.' 150 सीटें जीतने का ये दावा येदियुरप्पा का है, हालांकि, अमित शाह ने कर्नाटक में संख्या 130 से ज्यादा बतायी है. 20 सीटें बड़बोलेपन में जुड़ गयी हैं या फिर किसी और आकलन के हिसाब से ये तो वो ही जानें.
येदियुरप्पा के दावे पर कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना रहा, "हमें लोगों पर पूरा विश्वास है. बीजेपी 60-70 से ज्यादा सीटें नहीं जीतेगी इसलिए 150 सीटें भूल ही जाइए. वो केवल सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं."
सीटों के मामले में सिद्धारमैया येदियुरप्पा के मुकाबले अपनी ओर से यथार्थ के करीब दिखाने की कोशिश किये. सिद्धारमैया ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि कांग्रेस को 120 से ज्यादा सीटें मिलेंगी - और लोग कांग्रेस को फिर से सत्ता सौंपेंगे. 2013 में कांग्रेस को 122 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
सीटों के मामले में जादुई आंकड़े का दावा तो जेडीएस नेता कुमारस्वामी ने भी किया है, "हमें विश्वास है कि जेडीएस अपने आप मैजिक नंबर पार करेगा."
अब समझने वाली बात ये है कि क्या जेडीएस का मैजिक नंबर भी 113 ही है या कुछ और? बहुमत का जादुई नंबर तो 113 है, किंग मेकर के लिए मैजिक नंबर क्या होगा ये तो नतीजे ही बताएंगे.
लोगों के वोट डालने को लेकर येदियुरप्पा के ताजा बयान में थोड़ी विनम्रता दिखी और वो घरों से निकल कर बड़ी संख्या में वोट डालने की अपील कर रहे थे. इससे पहले तो येदियुरप्पा ने अपने आदमियों को कुछ ऐसे अंदाज में हिदायत दी थी जैसे कोई माफिया अपने गुर्गों के लिए फरमान जारी कर रहा हो.
कर्नाटक के बेलगावी में एक चुनावी रैली को येदियुरप्पा कुछ इस अंदाज में संबोधित कर रहे थे, ''अब आराम से मत बैठो. अगर आपको लगता है कि कोई वोटिंग नहीं कर रहा है, तो उसके घर जाओ और उसको हाथ-पैर बांधकर बीजेपी के प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालने के लिए लेकर आओ.''
जब सिद्धारमैया के सामने येदियुरप्पा के दावे की बात उठी तो उनका रिएक्शन था - 'उनका दिमागी संतुलन बिगड़ गया है.'
अब सवाल ये है कि येदियुरप्पा को ये तारीख किसने बतायी?
ये तारीख कहां से आयी?
आखिर येदियुरप्पा को कौन सी ताबीज हाथ लग गयी है? वैसे पिछले साल अक्टूबर में येदियुरप्पा के घर पर दर्जन भर नागा साधु पहुंचे जरूर थे. मालूम हुआ कि वे 15-20 मिनट तक येदियुरप्पा को आशीर्वाद भी दिये - और बताया कि अगले मुख्यमंत्री वो जरूर बनेंगे. खबरों में आया था कि हिमालय से निकले वे साधु भारत यात्रा पर निकले थे - और बेंगलुरू पहुंचने पर येदियुरप्पा के घर धावा बोल दिया. स्थानीय मान्यता है कि नागा साधु के पैर छूने से राजनीतिक ताकत मिलती है - और येदियुरप्पा ने आशीर्वाद लेने के लिए उन्हें घर पर बुलाया था. हालांकि, बीजेपी नेता के दफ्तर की ओर से बताया गया कि वे अचानक पहुंचे और जब बताया गया कि येदियुरप्पा मीटिंग में हैं और मिल नहीं सकते. इस बात पर साधुओं ने कहा कि उनके यूं ही लौट जाने से क्या अनहोनी हो सकती है ये वे भी नहीं जानते. साधुओं के ऐसा कहने पर ही येदियुरप्पा से उनकी मुलाकात करायी गयी.
जहां तक शुभाशुभ फलों का सवाल है तो अंधविश्वास यहां तक है कि शनिवार और मंगलवार को भी नये काम नहीं करने चाहिये. स्थिति ये है कि वोटिंग शनिवार को हो रही है और नतीजे मंगलवार को आने वाले हैं - ऐसे में हर शख्स कुछ परेशान सा है.
अंधविश्वास के मामले में किस्से तो येदियुरप्पा के भी हैं और सिद्धारमैया के भी. ये सिद्धारमैया ही हैं जिन्होंने कौवा के बैठ जाने पर अपनी कार बदल ली थी - और ये येदियुरप्पा ही हैं जो कहा करते रहे कि 'काला जादू' करके उन्हें मारने की कोशिशें हो रही हैं.
मोदी के मंदिर में पूजा पर सवाल
कहने को तो येदियुरप्पा ने भी वोट डालने के बाद दावा किया - "जनता सिद्धारमैया सरकार से ऊब चुकी है. मैं कर्नाटक के लोगों को भरोसा दिलाता हूं कि मैं राज्य में सुशासन देने जा रहा हूं."
जब वोटिंग से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार खत्म हो चुका हो तो वोट डाले के बाद ऐसी बातों को क्या समझा जाना चाहिये. ये तो चुनाव आयोग जाने कि येदियुरप्पा की बातें आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आती हैं या नहीं.
वैसे प्रधानमंत्री मोदी के नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर में पूजा-पाठ पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जतायी है. कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत का सवाल है - 'प्रधानमंत्री ने मंदिर जाने के लिए आज का दिन ही क्यों चुना?'
आस्था पर सवाल?
कांग्रेस महासचिव ने कहा, "कर्नाटक में इस समय आचार संहिता लागू है. प्रधानमंत्री मोदी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए नेपाल के मंदिरों में पूजा कर रहे हैं। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा ट्रेंड नहीं है."
2014 में वोट डालने के बाद मोदी ने बीजेपी के चुनाव निशान के साथ सेल्फी ली थी, जिस पर खासा बवाल हुआ था.
मोदी के मंदिर जाने पर कांग्रेस ने उठाया सवाल?
अव्वल तो नतीजे आने के और बीजेपी के जीत जाने की हालत में भी मुख्यमंत्री के नाम पर तस्वीर साफ नहीं होती, येदियुरप्पा भला किस बूते शपथग्रहण की तारीख बता रहे हैं? पिछले साल यूपी चुनाव के नतीजे आने के हफ्ते भर बाद तक मुख्यमंत्री का नाम फाइनल नहीं हो पाया था. गुजरात की बात अलग रही. असम को छोड़ दीजिए, हिमाचल प्रदेश में तो बीजेपी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार ही चुनाव हार गया. कर्नाटक में क्या होने वाला है कौन जानता है?
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