कर्नाटक का नाटक भाजपा के अच्छे दिनों का संकेत है
इस गठबंधन की नाकामी जहां भाजपा के लिए कर्नाटक के सत्ता के दरवाजे खोल सकती है तो साथ ही इस गठबंधन की असफलता को भाजपा 2019 के आम चुनावों में भुना सकती है.
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कर्नाटक का नाटक खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. नाटक की शुरुआत सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी को सरकार गठन के आमंत्रण को लेकर विवाद के साथ देखने को मिली, जब बीजेपी चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बावजूद बहुमत के आंकड़े से सात सीटों के दूरी पर ही रही, जिसका नतीजा यह रहा कि सरकार बनाने के बाद भी यदुरप्पा विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सके, जिसके बाद कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठजोड़ की सरकार बनी.
कांग्रेस ने जेडीएस को अपने पाले में रखने के लिए 37 सीट वाले जेडीएस को मुख्यमंत्री का पद देकर खुद गठबंधन में बड़े दल होने के बावजूद उपमुख्यमंत्री के पद से ही संतोष किया. जेडीएस के एच डी कुमारस्वामी ने जब मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की तो उनका शपथ ग्रहण समारोह विपक्षी एकता के बड़े मंच के रूप में दिखा, जहां तमाम भाजपा विरोधी पार्टियां एक साथ एक मंच पर दिखीं, और इसे 2019 के आम चुनाव का संभावित ट्रेलर भी माना गया.
अभी तक कर्नाटक में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को छोड़ कर किसी भी मंत्री ने शपथ ग्रहण नहीं की है
हालांकि अब कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस सरकार के गठन को एक हफ्ते से भी ज्यादा का समय हो गया है, बावजूद इसके अभी तक कर्नाटक में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को छोड़ कर किसी भी मंत्री ने शपथ ग्रहण नहीं की है. इसके पीछे जो कारण बताया जा रहा है उसके अनुसार दोनों ही पार्टियों के बीच मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर बात नहीं बन रही है. खबरों के अनुसार कर्नाटक मंत्रिमंडल में कांग्रेस के 22 जबकि जेडीएस के कोटे से 14 मंत्री रखें जाने का फार्मूला तय हुआ है, मगर मुख्यमंत्री पद खोने के बाद कांग्रेस अब सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय अपने पास रखना चाहती है तो वहीं जेडीएस इसके लिए तैयार नहीं हैं. इसी मुद्दे को लेकर दोनों दलों के नेताओं के बीच खींचतान का दौर जारी है.
हालांकि कांग्रेस जेडीएस के इस खींचतान से भारतीय जनता पार्टी जरूर खुश होगी, जो पहले ही इस गठबंधन के कुछ ही महीने चल पाने की घोषणा कर चुकी है. भारतीय जनता पार्टी इसलिए भी खुश हो सकती है कि गठबंधन में खींचतान यह दिखाने के लिए काफी है कि कैसे दोनों दलों ने केवल भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए हड़बड़ी में इस गठबंधन को अंजाम दिया है. साथ ही इस गठबंधन के शुरुआती संबंध इस बात के संकेत देते हैं कि शायद ही यह गठबंधन लंबे समय तक आपसी तालमेल के साथ चल सके. और अगर ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए अच्छे दिनों के संकेत के रूप में भी देखा जा सकता है.
इस गठबंधन के लंबे समय तक आपसी तालमेल की संभावनाएं कम हैं
इस गठबंधन की नाकामी जहां भाजपा के लिए कर्नाटक के सत्ता के दरवाजे खोल सकती है तो साथ ही इस गठबंधन की असफलता को भाजपा 2019 के आम चुनावों में भुना सकती है. अगर 2019 के आम चुनावों में सभी भाजपा विरोधी एक साथ लड़ने का फैसला करती है, जिसकी प्रबल संभावना भी है, तो भाजपा उन दलों के गठबंधन को मौकापरस्त बता कर कर्नाटक के विफल प्रयोग का उदाहरण दे सकती है. वैसे भी जिस तरह विपक्षी पार्टियां अपने आइडियोलॉजी से समझौता करके केवल भाजपा को हराने के लिए लामबंद हो रही है, उससे उनके लंबे समय तक साथ को लेकर संशय के बादल हमेशा ही रहते हैं. ऐसे में कर्नाटक में आगे होने वाली गतिविधि विपक्षी एकता के टेस्ट भी माना जा सकता है.
हालांकि कर्नाटक में जारी गठबंधन को लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे कर्नाटक में मंत्रिमंडल का बंटवारा किस फॉर्मूले के तहत होता है और कांग्रेस जेडीएस गठबंधन को बचाने के लिए क्या कुछ करते हैं.
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