कर्नाटक में कांग्रेस की दलित पॉलिटिक्स में बुरी तरह उलझ चुकी है बीजेपी
कांग्रेस कर्नाटक चुनाव में बीजेपी से यूपी और गुजरात का चुन चुन कर बदल ले रही है. हालत ये हो गयी है कि बीजेपी दलित, लिंगायत और कन्नड़ अस्मिता पर बिझाये गये कांग्रेस के जाल में उलझती जा रही है - और रास्ता नहीं सूझ रहा.
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धर्म और जाति की राजनीति धीरे धीरे कर्नाटक चुनाव को भी अपने आगोश में लेने लगी है. आलम ये है कि आहिस्ते से अस्मिता का सवाल भी लोगों के दिलो दिमाग पर छाने लगा है. लगता है कांग्रेस यूपी के साथ साथ गुजरात चुनाव का बदला भी बीजेपी की ही चालों से ले रही है - और बचाव में हांफती हुई बीजेपी लगातार भूल सुधार के उपाय ढूंढती नजर आ रही है.
बीजेपी से न तो अंबेडकर के नाम में राम नाम का तड़का लगाने से दलित खुश हो रहे हैं, न ही लिंगायत समुदाय उससे धार्मिकता का पाठ पढ़ने को तैयार है - और उसका राष्ट्रवाद तो कन्नड़ अस्मिता से लोहा लेने में बगले झांकने लगा है.
दलित पॉलिटिक्स उलझाया
कर्नाटक में देखा जाय तो दलित पॉलिटिक्स का मुद्दा मेनस्ट्रीम में तब आया जब राहुल गांधी ने SC/ST एक्ट को कमजोर किये जाने का आरोप लगाते हुए विरोध का झंडा बुलंद कर दिया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसे मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने को लेकर राहुल गांधी और उनके साथियों ने केंद्र की मोदी सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि सरकार ने दलितों के इस मुद्दे पर ठीक से पक्ष नहीं रखा इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुना दिया.
कभी मंदिर, कभी मठ!
कांग्रेस का कहना है कि कानून में हुए बदलाव के बाद से दलित असुरक्षित महसूस करने लगे हैं. राहुल गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ इस सिलसिले में राष्ट्रपति से मुलाकात कर अपनी बात रखी. साथ ही, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटिशन फाइल करने की मांग की.
असर ये हुआ कि पहले एनडीए और फिर बीजेपी के अंदर भी दलितों के मुद्दे पर आवाजें उठने लगीं. राम विलास पासवान ने नाराजगी जताते हुए पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग रख दी. फिर पासवान के साथ ही थावरचंद गहलोत अर्जुनराम मेघवाल, अजय टम्टा सहित कई भाजपा नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर अपनी पीड़ा शेयर की.
बहराइच से बीजेपी सांसद साध्वी सावित्री बाई फूले तो बगावत पर ही उतर आईं. 2 अप्रैल को दलितों के भारत बंद की कॉल से एक दिन पहले सांसद फूले ने भी लखनऊ में धरना देने की घोषणा कर दी.
फूले का गुस्सा उनकी बातों से ही झलकता है, "कहा जाता है कि हम संविधान बदलने चले हैं. कई बार कहा जाता है कि आरक्षण समाप्त कर दिया जाना चाहिए. कभी कहा जाता कि आरक्षण की नीति में हम फेरबदल कर देंगे." साध्वी फूले ने तो बीजेपी को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया, "अगर आरक्षण और संविधान ही सुरक्षित नहीं है तो फिर बहुजनों के अधिकार कैसे सुरक्षित रहेंगे?”
मैंने अपना काम कर दिया, अब तू कर...
जब बीजेपी को लगा कि ऐन चुनाव के बीच मामला सारी हदें लांघने लगा तो पुराने पिटारे से कुछ अमृत वचन खोजे. असल में यूपी के राज्यपाल राम नाइक ने अंबेडकर के नाम में राम नाम का तड़का लगाने का सुझाव दे रखा था. महाराष्ट्र के ही रहने वाले नाइक ने इसकी शुरुआत भी वहीं कराई. फिर आव न देखा ताव योगी सरकार ने अंबेडकर के नाम के साथ 'रामजी' जोड़ डाला - भीमराव रामजी अंबेडकर. अजीब हाल है, राज्य सभा चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर हार जाते हैं और बाबा साहब के नाम में राम का नाम जोड़ कर कर्नाटक चुनाव और आगे 2019 की वैतरणी पार करने की कोशिश हो रही है.
दिलचस्प बात ये है कि राम नाइक के नाम को लेकर ही सवाल पूछे जाने लगे हैं. मायावती ने तो महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का जिक्र करते हुए ही विरोध जताया था. पूछा जा रहा है कि महामहिम राम नाइक के नाम में उनके पिता का नाम क्यों नहीं है. राम नाइक के पिता का नाम दामोदर नाइक है. फिर तो इस हिसाब से उन्हें अपना नाम लिखना चाहिये - राम दामोदर नाइक.
येदियुरप्पा को भ्रष्ट बोल देने और ट्रांसलेटर की गलती से उबरने में जुटी बीजेपी के लिए अमित शाह की सभा में ही विवाद हो गया. दलित नेताओं के सम्मेलन में जब किसी ने सवाल पूछा तो उसका माइक ही छीन लिया गया.
#WATCH Disturbance at BJP President Amit Shah's interaction with Dalit leaders at Rajendra Kalamandira in Mysuru after slogans were raised against Union Minister Ananth Kumar Hegde over his remarks on the constitution. #Karnataka pic.twitter.com/33BQsMz8z1
— ANI (@ANI) March 30, 2018
धार्मिक भावनाओं में ही लपेटा
कांग्रेस अब तक बीजेपी पर सांप्रदायिकता फैलाने और धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप लगाती रही है. कर्नाटक में सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश कर लीड ले ली है. अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में जो चुनाव आचार संहिता के चलते कुछ भी नहीं कर पा रही है. कर्नाटक विधानसभा में 225 सीटें हैं और लिंगायत समुदाय का सौ से ज्यादा सीटों पर सीधा असर माना जाता है.
गुजरात चुनाव में जहां कांग्रेस और बीजेपी नेताओं में मंदिर मंदिर जाकर माथा टेकने की होड़ लगी हुई थी, अब कर्नाटक में यही हाल मठों के साथ हो रहा है. मठों में हालत ये कि कभी राहुल गांधी लाव लश्कर के साथ धावा बोल रहे हैं और अमित शाह भी आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं.
नतीजा ये हुआ है कि जिस तरह दलितों के मुद्दे पर यूपी चुनाव के वक्त संघ प्रमुख मोहन भागवत को मोर्चा संभालना पड़ा था, कर्नाटक के लिए एक बार फिर से मैदान में कूदना पड़ा है.
कन्नड़ अस्मिता का दांव
दलित और लिंगायत से भी दिलचस्प हो गया है कन्नड़ अस्मिता का मामला. गुजरात अस्मिता के नाम पर कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में छकाने वाली बीजेपी को अपना ही दांव उल्टा और भारी पड़ रहा है. बीजेपी राष्ट्रवाद के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है तो कांग्रेस ने चार कदम आगे बढ़ कर उसे कन्नड़ अस्मिता के नाम पर फंसा दिया है. कर्नाटक के लिए अलग झंडे के साथ ही सिद्धारमैया सरकार की दंगों के दौरान कन्नड़ समर्थकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे वापस लेने की रणनीति भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाती जा रही है.
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