Karnataka Rebel MLA पर फैसले के बाद तो दल-बदल कानून बेमानी लगने लगा
कर्नाटक के बागी विधायकों (Karnataka Rebel MLA) का मामला दल बदल कानून (Anti-Defection Law) की बेचारगी दिखाने लगा है. चुने हुए प्रतिनिधियों के इस्तीफे दिलवाकर सरकार गिराने का नया खेल शुरू हो गया है - फिर इस कानून का मतलब क्या रहा?
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कर्नाटक के बागी विधायकों (Karnataka Rebel MLA) के चुनाव लड़ने का रास्ता सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने साफ कर दिया है. कांग्रेस और जेडीएस के बागी विधायकों के विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने तक चुनाव लगाने संबंधी स्पीकर के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. कर्नाटक की 15 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं - ये सीटें बागी विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने से खाली हो गयी थीं. वैसे 17 में से 15 ही सीटों पर उपचुनाव कराये जा रहे हैं, क्योंकि कर्नाटक हाई कोर्ट में दो सीटों मस्की और राजराजेश्वरी से जुड़ी याचिकायों पर आदेश का इंतजार है.
कर्नाटक में कुछ विधायकों से इस्तीफे दिलवाकर जिस तरीके से जेडीएस-कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया गया उससे विपक्षी दलों की सरकारों पर खतरे मंडराते देखे जाने लगे थे - वो खतरा अब और भी खतरनाक लगने लगा है.
अयोग्य विधायक चुनाव लड़ेंगे
कर्नाटक के बागी विधायकों ने तत्कालीन स्पीकर केआर रमेश कुमार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. विधायकों की मांग थी कि उनकी अयोग्यता को अमान्य करार दिया जाये.
सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता को लेकर स्पीकर के फैसले को तो बरकरार रखा है, लेकिन विधानसभा के कार्यकाल खत्म होने तक उनके चुनाव लड़ने की पाबंदी को खारिज कर दिया है. अब ये विधायक आसानी से कर्नाटक में दिसंबर में होने जा रहे उपचुनाव लड़ सकेंगे.
अब सभी 17 बागी विधायक बीजेपी की सदस्यता लेने जा रहे हैं. उसके बाद समझा जाता है कि बीजेपी इन विधायकों को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में उतारेगी. इनमें 14 कांग्रेस में थे और तीन जेडीएस में.
विधायकों की बगावत और फिर इसी साल जुलाई में कुमारस्वामी सरकार का गिर जाना तो बीजेपी के पक्ष में ही जाता रहा है, लेकिन अब चुनौतियां बढ़ने वाली हैं. विधायकों की अयोग्यता के कारण ही बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सवा साल बाद काबिज हो पाये. चुनाव होने के बाद विधानसभा में 15 सीटें जुड़ जाएंगी और तब बहुमत का फैसला बढ़ी हुई सीटों के हिसाब से होगा. 17 विधायकों को अयोग्य करार दिये जाने के बाद 224 सदस्यों वाली विधानसभा की संख्या 207 हो गई और बहुमत का नंबर 104 पर आ पहुंचा. बीजेपी के पास 106 विधायकों का समर्थन था, जिसमें उसके 105 थे और एक निर्दलीय एमएलए ने सपोर्ट कर दिया.
दल बदल कानून पर बहस जरूरी है...
15 सीटों पर उपचुनाव होने के बाद विधानसभा की सीटों की संख्या 222 हो जाएगी और बहुमत के लिए 112 की संख्या जरूरी होगी. फिर तो बीजेपी को कम से कम छह और विधायकों के सपोर्ट की जरूरत होगी - ऐसे में उपचुनाव में येदियुरप्पा के लिए कम से कम छह सीटें जीतना जरूरी हो गया है.
बमुश्किल बहुमत जुटाने वाली सरकारें तो हमेशा खतरे में रहेंगी
जुलाई में कर्नाटक संकट के दौरान गैर बीजेपी दलों के मुख्यमंत्रियों में अगर कोई सबसे ज्यादा परेशान था तो वो कमलनाथ ही थे - मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री. शुरू से ही मध्य प्रदेश कांग्रेस में विरोधियों से जूझ रहे कमलनाथ को खतरे की घंटी जैसी आवाज इसलिए भी सुनाई दे रही थी क्योंकि वहां सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों की संख्या में मामूली अंतर है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास 115 एमएलए हैं जबकि बीजेपी के पास 107 - महज आठ विधायकों का फासला. फासला खत्म तो सरकार गयी समझो. कमलनाथ सरकार को बीएसपी के दो, समाजवादी पार्टी के एक और चार निर्दलीय विधायकों का सपोर्ट हासिल है.
कर्नाटक पर तस्वीर साफ होने के बाद अगर कमलनाथ फिर से डरने लगे हैं तो उनका डर वाजिब है. मध्य प्रदेश का तो हाल ये है कि कर्नाटक के आधे विधायक भी बगावत पर उतर आयें तो खेल खत्म समझ लेना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले पर टिप्पणी भी की है जो काफी महत्वपूर्ण है.
1. स्पीकर के अधिकार से छेड़छाड़ नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसला फैक्ट के आधार पर है और स्पीकर के पास विधायक को अयोग्य करार देने की शक्ति हासिल है उसे नहीं छेड़ा गया है.
2. स्पीकर को सारे अधिकार नहीं: विधानसभा स्पीकर सिर्फ विधायकों के अयोग्य करार कर सकता है, लेकिन ये नहीं तय कर सकता है कि विधायक कबतक चुनाव नहीं लड़ेंगे.
3. सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आये: अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जतायी कि अयोग्य करार दिये गये विधायक सीधे सुप्रीम कोर्ट ही क्यों पहुंच गये. सुप्रीम कोर्ट की राय में विधायकों को पहले हाई कोर्ट जाना चाहिये था.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सरकार और विपक्ष दोनों से नैतिकता की उम्मीद होती है और अयोग्य ठहराये गये विधायक उपचुनाव में जीत हासिल करते हैं तो सरकार में वो कोई भी पद ले सकते हैं.
बागी विधायकों ने स्पीकर को अपना इस्तीफा सौंपा था. स्पीकर ने तब पूरा वक्त भी लिया था - और सुप्रीम कोर्ट ने तब भी स्पीकर को इसके लिए पूरी छूट दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के एक फैसले को सही ठहराया है. सिर्फ विधानसभा के पूरे कार्यकाल 2023 तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी का आदेश रद्द किया है. बेशक स्पीकर सत्ताधारी पार्टी से आये थे और बीजेपी ने उन पर पक्षपात के आरोप भी लगाये थे. मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने फिर कहा है - सारा देश इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. पूर्व अध्यक्ष रमेश कुमार ने सिद्धरमैया के साथ मिलकर साजिश रची, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस बारे में स्पष्ट फैसला दिया.
अब ये समझना भी जरूरी है कि स्पीकर ने विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करने की जगह उन्हें अयोग्य ही ठहराने का फैसला क्यों किया?
राजनीतिक को थोड़ी देर के लिए अलग कर देखें तो स्पीकर ने पाया था कि विधायकों का इस्तीफा उनका खुद का फैसला नहीं है. विधायकों ने अपना इस्तीफा बाहरी दबाव के प्रभाव में सौंपा था. अब वे विधायक नये सिरे से चुनाव लड़ेंगे और चुनाव जीत गये तो मंत्री भी बनेंगे.
साफ है विधायकों ने पाला बदलने के लिए इस्तीफे का रास्ता अपनाया. दल बदल कानून बनाये जाने के पीछे मकसद यही था कि राजनीतिक दल प्रलोभन देकर विरोधी पार्टियों के विधायकों को अपने पक्ष में मनमर्जी न करें - बल्कि अगर ऐसा कुछ होता है तो उसके कुछ नियम हों. जैसे किसी भी राजनीतिक दल के दो तिहाई सदस्य पार्टी छोड़ने की जानकारी और सबूत दें तो स्पीकर उन्हें अलग गुट के तौर पर मान्यता दे देंगे.
हाल फिलहाल ऐसी प्रैक्टिस बहुतायत में देखने को मिली है. सिक्किम में अचानक दो तिहाई विधायकों ने पाला बदलने का फैसला किया और वहां एक ही झटके में बगैर कोई चुनाव लड़े बीजेपी पास 10 एमएलए हो गये. राज्य सभा में टीडीपी सदस्यों की बात हो या गोवा के कांग्रेस विधायकों का मामला - सारे के सारे तो इसी खेल का हिस्सा हैं.
ऐसे में जरूरी हो गया है कि एक बार एंटी-डिफेक्शन लॉ की भी समीक्षा हो - और ये समझने की कोशिश की जाये कि मौजूदा स्वरूप में कानून विशेष की प्रासंगिकता कितनी बची है. अब जरूरी हो गया है कि कानून में संशोधन कर उसमें ऐसी नियम जोड़े जायें ताकि आसानी से इस्तीफे दिलवाकर किसी भी कमजोर सरकार को ठिकाने लगाने की कोशिशों पर लगाम लग सके.
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