करुणानिधि समाधि विवाद: चुनावी हार से बड़ी शर्मिंदगी है AIADMK के लिए
कलाइनार मुथुमल करुणानिधि के मामले में इसके लिए अदालत की मदद लेनी पड़ी. तमिलनाडु की गलाकाट दुश्मनी वाली पॉलिटिक्स का ये भी एक नमूना ही रहा. वरना मौत के बाद मर्यादित अंत्येष्टि का हक हर नागरिक को संविधान ने दे रखा है.
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ऐसी उम्मीद जतायी जाने लगी थी कि तमिलनाडु की राजनीति में व्याप्त नफरत का चक्र पूरा हो चुका है. सियासी दुश्मनी किस हद तक जा सकती है, बीते बरसों में तमिलनाडु की राजनीति ने इसका हर सैंपल दिखाया है. करुणानिधि और एमजी रामचंद्रन के बीच शुरू हुए मतभेद के बाद ही इस दुश्मनी की नींव पड़ी थी - और जयललिता ने इसे ताउम्र निभाया. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पलानीसामी के एक ही कदम से ये गलतफहमी फौरन ही दूर हो गयी.
नफरत तू न गई तमिल राजनीति से
पहले जयललिता और अब करुणानिधि के निधन के बाद डीएमके और एआईएडीएमके की बागडोर नयी पीढ़ी के हाथों में है - और ऐसा लग रहा था कि नफरत का वो दौर खत्म चुका है. बुरी खबर यही है कि फिलहाल ऐसे कोई संकेत नहीं मिल पाये हैं, बल्कि आशंका उल्टी दिशा में ही दिखायी दे रही है.
करुणानिधि के परिवार की इच्छा थी कि उनकी समाधि भी उनके गुरु और डीएमके संस्थापक सीएन अन्नादुरै की बगल में मरीना बीच पर बने, लेकिन तमिलनाडु की ई पलानीसामी सरकार ने इसमें अड़ंगा डाल दिया. एआईएडीएमके सरकार का तर्क ये रहा कि मरीना बीच पर किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री की समाधि नहीं है. दरअसल, मरीना बीच पर सीएन अन्नादुरै, एमजी रामचंद्रन और जे. जयललिता की समाधि बनी है. तीनों ही नेताओं का निधन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुआ था.
करुणानिधि को मरीना बीच पर दफनाये जाने के पक्ष में रजनीकांत भी थे
तमिनाडु सरकार ने करुणानिधि के अंतिम संस्कार के लिए गांधी मंडपम के पास की जगह सुझायी. सलाह और तर्क ये रहा कि वहीं पर पूर्व मुख्यमंत्रियों के कामराज और राजाजी की समाधि भी है. राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में दाखिल तीन जनहित याचिकाओं का हवाला भी दिया. इनमें मरीना बीच पर समाधि बनाने को कोस्टल रेग्युलेशन जोन रूल्स के विरुद्ध बताया गया है. सरकार ने समझाना चाहा कि अब मरीना बीच पर समाधि की अनुमति देने से कानूनी समस्या खड़ी हो सकती है.
सरकारी फरमान के खिलाफ करुणानिधि के निधन के कुछ देर बाद ही मद्रास हाईकोर्ट में अर्जी दायर की गयी. सुनवाई कुछ देर चलने के बाद कोर्ट ने इसे सुबह तक के लिए टाल दिया. सुनवाई फिर से शुरू हुई और कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं.
सुनवाई के दौरान तमिनाडु सरकार के वकील का कहना था कि डीएमके इस केस को पॉलिटिकल एजेंडा बना रही है. सरकार के वकील का एक सवाल ये भी था - 'डीके चीफ पेरियार द्रविड़ आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे, क्या उन्हें मरीना बीच में दफनाया गया था?' तमिलनाडु में आत्मसम्मान आंदोलने के अगुवा पेरियार ने जो पार्टी बनाई थी उसका नाम डीके यानी द्रविडार कड़गम था.
तमिलनाडु सरकार की सारी दलीलें अदालत में बेदम साबित हुईं. आखिरकार हाई कोर्ट ने डीएमके के पक्ष में फैसला दिया और सरकार को ये हुक्म भी कि समाधि के लिए जो नक्शा पेश किया गया है उस पर पूरी तरह अमल हो.
सवाल ये है कि पलानीसामी सरकार ने ऐसा कदम क्यों उठाया जिसमें जीत की जरा भी गुंजाइश नहीं थी? क्या ये भी ऐसा ही जैसे नेताओं को कुछ होने पर कार्यकर्ता ये जानते हुए भी जान देने से कुछ नहीं होने वाला फिर भी खुदकुशी की कोशिश करते हैं जिनमेें कई अंजाम तक पहुंच जाते हैं?
क्या एआईडीएमके सरकार अपने नेता के पास किसी दुश्मन नेता की समाधि भी नहीं देखना चाहती थी? कहीं ऐसा तो नहीं ई. पलानीसामी ने इसी बहाने अपनी राजनीति साध ली? इस आशंका के बाद भी कि सरकार का फरमान कोर्ट से खारिज हो सकता है, ई. पलानीसामी ने एआईएडीएमके कार्यकर्ताओं को मैसेज पहुंचा दिया है. वैसे भी ई पलानीसामी को कार्यकर्ताओं के सपोर्ट की बहुत ही ज्यादा जरूरत है.
ऐसा लगता है कि नफरत के जिस चक्र को पूरा समझा जा रहा था, ई पलानीसामी ने उसे खींच कर फैला दिया है. मालूम नहीं पलानीसामी को ये पता भी है या नहीं कि फीजिक्स के सिद्धांतों के अनुसार, 'प्रत्यास्थता की एक सीमा होती और उसे पार कर जाने के बाद किसी भी पदार्थ का ये गुण खत्म हो जाता है.' प्रत्यास्थता को ही सरल शब्दों में फैलाना कहा जाता है. मतलब ये कि जो कदम पलानीसामी ने उठाया है उसका रिएक्शन भी तय है, लेकिन अब जरूरी नहीं की आगे भी तमिलनाडु के लोगों की इस चक्र में दिलचस्पी बनी रहेगी. जब जनता की दिलचस्पी किसी बात में खत्म हो जाती है तो उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है.
स्टालिन ही नहीं, राहुल गांधी और रजनीकांत भी मरीना बीच के ही पक्ष में थे
करुणानिधि के दोनों बेटे एमके स्टालिन और एमके अलागिरी के साथ ही बेटी कनिमोझी तो मरीना बीच पर पिता की समाधि चाहते ही थे, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सुपरस्टार रजनीकांत ने भी इसे सपोर्ट किया था. राहुल गांधी और रजनीकांत ने बाकायदा ट्वीट कर जाहिर किया था कि करुणानिधि की समाधि भी मरीना बीच पर ही बने.
Like Jayalalitha ji, Kalaignar was an expression of the voice of the Tamil people. That voice deserves to be given space on Marina Beach. I am sure the current leaders of Tamil Nadu will be magnanimous in this time of grief. #Marina4Kalaignar
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 7, 2018
மதிப்பிற்குரிய அமரர் கலைஞர் அவர்களுக்கு, அண்ணா சமாதி அருகே அடக்கம் செய்ய, தமிழக அரசு எல்லா முயற்சிகளையும் எடுக்க வேண்டும் என்று தாழ்மையுடன் கேட்டுக்கொள்கிறேன். அது தான், நாம் அந்த மாமனிதருக்கு கொடுக்கும் தகுந்த மரியாதை
— Rajinikanth (@rajinikanth) August 7, 2018
करुणानिधि को दफनाया क्यों जा रहा है?
करुणानिधि से पहले यही सवाल जयललिता के निधन के बाद भी उठा था - और तब जो जवाब आया था वही नये मामले में भी लागू होता है. सच तो ये भी है कि करुणानिधि की ईश्वर में कभी आस्था नहीं थी. करुणानिधि का नास्तिक होना जगजाहिर रहा, लेकिन उन्हें दफनाये जाने के पीछे ये कोई भी वजह नहीं है.
हिंदू रस्मो-रिवाज और परंपरा के अनुसार मौत के बाद शरीर का दाह संस्कार किया जाता है, बल्कि ये कहें कि शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है. द्रविड़ विचारधारा को ऐसी बातों में यकीन नहीं और इसीलिए इस विचारधारा को मानने वाले नेताओं की अंत्येष्टि हिंदू धार्मिक रीति से नहीं होती आई है. वैसे भी द्रविड़ आंदोलन की नींव ही ब्राह्मणवाद के विरोध में पड़ी थी.
डीएमके संस्थापक अन्नादूरै को भी दफनाया गया था. उसी तरह द्रविड़ आंदोलन के वाहक होने के नाते एमजी रामचंद्रन और जयललिता को भी दफनाया गया. करुणानिधि के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है.
तमिलनाडु में कब खत्म होगी सियासी दुश्मनी?
3 फरवरी, 1969 को सीएन अन्नादुरै का निधन हुआ. अपने बेहद लोकप्रिय नेता के अंतिम दर्शन के लिए डीएमके के लाखों कार्यकर्ता मौजूद थे. 45 साल के करुणानिधि ने अपने गुरु अन्नादुरै का शव अकेले ही उठाया और अंतिम संस्कार के लिए चल दिये. करुणानिधि के इस कदम ने कार्यकर्ताओं के बीच उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ा दी कि कई सीनियर नेताओं को पछाड़ कर वो डीएमके के चीफ बन गये.
49 साल बाद करुणानिधि को मरीना बीच पर उनके गुरु अन्नादुरै की समाधि की बगल में दफनाये जाने के खिलाफ सरकारी फरमान आ गया. आधी रात को मामला मद्रास हाई कोर्ट पहुंचा और आर्टिकल 21 के तहत मर्यादित अंत्येष्टि के मिले अधिकारों की दुहाई देनी पड़ी. विशेष तौर पर बुलाई गयी अदालत में दो चरणों में घंटों चली सुनवाई और बहस के बाद अदालत के आदेश से आखिरकार वो जगह करुणानिधि को मिल पायी.
बुरा ये हुआ कि तमिलनाडु की राजनीति के नाम पूरी जिंदगी कर देने वाले एक बेहद लोकप्रिय नेता की मौत के बाद जमीन के एक टुकड़े के लिए आधी रात को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा - अच्छी बात बस ये है कि अदालत से उसे इंसाफ भी मिल गया.
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