नाम से सुपरस्टार हटाकर रजनी ने कौन सा कद्दू में तीर मार लिया
भले ही दक्षिण में रजनीकांत एक बड़ा नाम हों, मगर बात जब सियासत की आती है तो ये कहना गलत नहीं है कि तमिलनाडु की सियासत में स्थापित होने में रजनीकांत को अभी लंबा वक़्त लगेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास समर्थकों और विचारधारा का आभाव है.
-
Total Shares
भारत की राजनीति जटिल है मगर जैसे-जैसे ये ऊपर से नीचे खिसकती है इसकी जटिलता बढ़ती जाती है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जो मुद्दे जम्मू कश्मीर के हैं उनका उत्तर प्रदेश से कुछ लेना देना नहीं है. मध्यप्रदेश को उत्तराखंड से कोई मतलब नहीं है. गोवा की बातें अलग हैं, पश्चिम बंगाल की बातें अलग है. दिल्ली की राजनीति की तुलना कभी तेलंगाना से नहीं की जा सकती. त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, असम, मणिपुर गुजरात और राजस्थान से अलग हैं. पश्चिम बंगाल की तुलना कभी आंध्र प्रदेश से नहीं की जा सकती.
अब जब सारे प्रदेश एक दूसरे से भिन्न हैं तो तमिलनाडु और वहां की राजनीति में भी भिन्नता होना लाजमी है. पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मौत के बाद से ही तमिलनाडु की सियासत में सियासी घमासान देखा जा रहा है और ये तमिलनाडु की सियासत में मची ऊहा पोह की स्थिति ही है जिसके परिणाम स्वरूप कमल हसन और रजनीकांत जैसे सुपर स्टार हमारे सामने हैं.
तमिलांदु की सियासत में रजनीकांत का आना एक बड़े इवेंट की तरह देखा जा रहा है
खबर है कि ट्विटर पर रजनीकांत ने अपना यूजर नेम बदला है. पहले रजनी का यूजर नेम सुपरस्टार रजनीकांत था अब ये केवल रजनीकांत है. बताया जा रहा है कि लोगों के बीच अपना जनाधार स्थापित करने के लिए दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत ने इस पहल को अंजाम दिया है. साथ ही रजनी की इस पहल ने तमिलनाडु की राजनीति की जटिलता को समझने वाले सियासी पंडितों को हैरत में डालने का काम किया है.
रजनी के समर्थकों का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि, रजनी अपने नाम से सुपर स्टार हटाकर ज्यादा गहराई से तमिलनाडु के लोगों के दिलों में जगह बना पाएंगे. शायद समर्थकों द्वारा ये सब इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि राजनीति में कदम रखने से पहले ही रजनीकांत इस बात को स्पष्ट कर चुके थे कि वो राजनीति में नाम या पैसा कमाने के कारण नहीं आ रहे हैं बल्कि उनका राजनीति में आने का उद्देश जनसेवा और लोक कल्याण है.
अब समर्थक और रजनी चाहे जो कहें, मगर तमिलनाडु का इतिहास बताता है कि रजनीकांत के लिए तमिलनाडु में राजनीति करना कांटों भरी राहों में चलने जैसा है. ध्यान रहे कि यहां का सियासी गणित बेहद पेचीदा है. तो हो ये भी सकता है कि सिनेमा के पर्दे पर सफल रहे रजनीकांत राजनीति में फेल हो जाएं और वापस लौट जाएं.
कह सकते हैं कि जनाधार जुटाने से पहले रजनीकांत को कार्यकर्ता जुटाने होंगे
यहां हम रजनीकांत के राजनीति में आने की आलोचना नहीं कर रहे. हम ऐसा सिर्फ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि भारत की सियासत में केवल लोकप्रियता के बल पर चुनाव नहीं जीता जाता. यहां कार्यकर्ता और संगठन राजनीति का मूल होते हैं. रजनीकांत का लोगों के बीच लोकप्रिय होना एक अलग बात है, मगर हकीकत यही है कि उनके पास कार्यकर्ताओं का आभाव है. भारत की राजनीति में कार्यकर्ता का कितना योगदान है और ये कितने महत्वपूर्ण हैं, यदि इस बात को समझना हो तो हम बीते दिनों त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के चुनावों का अवलोकन कर सकते हैं.
कार्यकर्ता और संगठन की कमी कैसे रजनीकांत को प्रभावित करेगी.
सक्रिय राजनीति में आने से पहले, और शायद करुणानिधि, एमजी रामचन्द्रन और जयललिता को देखकर, रजनीकांत को ये महसूस हुआ हो कि, वो सिनेमा के बल पर सियासत को भी अपने कदम चूमने पर मजबूर कर देंगे. लेकिन शायद रजनीकांत उस बेस को देखना भूल गए जिसके बल पर इन सभी लोगों ने तमिलनाडु पर राज किया. गौरतलब है कि तमिलनाडु में सिनेमा से सियासत में कदम रखने वाले करुणानिधि पहले व्यक्ति थे जिनके पास संगठन था जिसमें कार्यकर्ताओं की भरमार थी. ऐसा ही कुछ एमजी रामचन्द्रन के साथ था और इसी को जयललिता भी आगे ले गयीं. करूणानिधि के बाद एमजी रामचन्द्रन और जयललिता के पास कार्यकर्ताओं का समर्थन था और इसी समर्थन के सपोर्ट सिस्टम के दम पर इन दोनों ही लोगों ने तमिलनाडु की सियासत में वो समीकरण स्थापित किये जिनको तोड़ना आज भी किसी भी दल के लिए एक टेढ़ी खीर है.
रजनीकांत को जान लेना चाहिए कि तमिलनाडु में उनका सियासत में आना कांटों भरी राहों में चलने जैसा है
राजनीति में यूजरनेम से सियासत नहीं होती
रजनीकांत को याद रखना चाहिए कि ट्विटर और इंस्टाग्राम पर सिर्फ यूजर नेम बदलने और ट्वीट या फोटो पोस्ट करने से वोट नहीं मिलते. ये चीज लाइक, कमेंट तो जुटा सकती है मगर वोट नहीं दिला सकती. यदि उन्हें तमिलनाडु में लम्बे समय तक सियासत करनी है तो उन्हें पहले ऐसे लोगों को आकर्षित करना होगा जो उनके कार्यकर्ता बनें. ऐसा इसलिए भी क्योंकि भविष्य में यही वो लोग होंगे जो चुनावों में, बूथ लेवल पर वोट डलवाएंगे और इन्हें और इनकी पार्टी को विजय बनवाएंगे.
तो क्या अगले अमिताभ या शत्रुघन सिन्हा बनने की राह पर हैं रजनीकांत
दक्षिण में रजनीकांत एक स्थापित नाम हैं. लोग उन्हें प्रेम करते हैं मगर ये उनकी गलत फ़हमी है कि जैसे लोग उन्हें पर्दे पर पसंद करते हैं वैसे ही उन्हें राजनीति में भी पसंद करेंगे. इस बात को बेहतर ढंग से समझने के लिए हम अमिताभ, हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, शत्रुघन सिन्हा का उदाहरण देना चाहेंगे, ये सभी लोग पर्दे पर तो पसंद किये गए मगर जब बात राजनीति के अंतर्गत हुई तो लोगों ने इन्हें सिरे से खारिज कर दिया. कह सकते हैं कि फिल्हाल जो रजनीकांत की हालत है उसको देखकर इस बात का अंदाजा लगाना आसान है कि रजनीकांत की भी स्थिति भविष्य में अमिताभ, राजेश खन्ना या शत्रुघन सिन्हा जैसी ही होगी.
बहरहाल, अभी रजनीकांत के सियासी सफर के बारे में बात करना जल्दबाजी होगी. अंत में हम अपनी बात खत्म करते हुए बस इतना ही कहेंगे कि यदि रजनीकांत वाकई तमिलनाडु की सियासत के लिए गंभीर हैं तो पहले औ अपनी पार्टी और अपने लिए कार्यकर्ता जुटाएं, उन्हें संगठित करें, उनमें जोश भरे और जब ऐसा हो जाए तो वो अपने राजनीतिक रण की शुरुआत के लिए हुंकार भरें. यदि रजनीकांत ये बात समझ लेते हैं तो ठीक वरना इतिहास उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखेगा जिसने आगाज़ तो बहुत उम्दा किया मगर जिसका अंजाम कुछ खास न हो सका.
ये भी पढ़ें -
क्या भविष्य में साथ आएंगे रजनीकांत और कमल ?
रजनीकांत राजनीति में चल तो जाएंगे लेकिन सियासत के सुपरस्टार बनने में कई पेंच हैं
'राजनीति ने रजनीकांत को ज्वाइन किया है', बस बात खत्म !
आपकी राय