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Updated: 31 दिसम्बर, 2017 04:10 PM
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रजनीकांत की राजनीति में एंट्री ऐसे वक्त हुई है जब टीटीवी दिनाकरन ने तीन महीने के भीतर तमिलनाडु सरकार गिरा देने का दावा किया है. जयललिता की सीट आरके नगर से निर्दलीय चुनाव जीतने वाले दिनाकरन सरकार न भी गिरा पायें तो भी, रजनीकांत के राजनीतिक रूप से सक्रिय होने की हालत में तमिलनाडु के सियासी समीकरण में फौरी तौर पर कोई असर हो सकता है क्या? केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को भी रजनीकांत के इस कदम से कोई फायदा या नुकसान संभव है क्या? फिलहाल समझने के लिए ये बातें काफी महत्वपूर्ण हैं.

रजनीकांत के सियासी डायलॉग

रजनीकांत द्वारा राजनीति में एंट्री के ऐलान में भी वही अंदाज दिखा जो उनके फिल्मी डायलॉग में देखने को मिलता है. प्रशंसकों से खचाखच भरे चेन्नई के राघवेंद्र कल्याण मंडपम में रजनीकांत बोले, "मैं नेता बनूंगा और मेरी सेना आगामी विधानसभा चुनाव में लड़ेगी. मेरे सभी फैन क्लब अब एक छतरी के नीचे आ जाएंगे और मैं सिस्टम को साफ करने के लिए उनका इस्तेमाल करूंगा."

rajinikanth"...आ रहा हूं मैं!"

इसके अलावा रजनीकांत के भाषण में मुख्य रूप से ये 5 खास बातें गौर करने लायक रहीं - जिसमें गीता का ज्ञान, अध्यात्म और भविष्य के प्रति उनका नजरिया साफ झलक रहा है.

1. इंसान को कर्म करना चाहिए और फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए.

2. मेरी पार्टी के तीन मंत्र होंगे - सच्चाई, मेहनत और विकास.

3. मेरी पार्टी का स्लोगन और लाइन होगी - 'अच्छा करो, अच्छा बोलो तो केवल अच्छा ही होगा'.

4. मेरी पार्टी आने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

5. जहां कहीं भी सत्ता का दुरुपयोग होगा, 'मैं उसके खिलाफ खड़ा मिलूंगा.'

इन सब बातों के अलावा एक ऐसी बात भी कही जिसमें वो कोई मैसेज देते दिखे. रजनीकांत ने कहा, 'मैं सेकुलर और आध्यात्मिक राजनीति करना चाहता हूं.'

रजनीकांत का सेक्युलर राजनीति से क्या मतलब हो सकता है? क्या इस बात के जरिये रजनीकांत बीजेपी को भी कोई संकेत देना चाहते हैं? वैसे तो बीजेपी की विचारधारा से इत्तेफाक रखने वाले नेता उसे भी सेक्युलर पार्टी ही बताते हैं. नीतीश कुमार इस मुद्दे पर उदाहरण हो सकते हैं. क्या रजनीकांत भी बीजेपी के प्रति नीतीश कुमार जैसा ही विचार रखते हैं? या फिर रजनीकांत मन ही मन बीजेपी के बाकी विरोधियों की तरह ही उसे सांप्रदायिक मानते हैं? रजनीकांत ने ये बयान देकर कई सवाल खड़े कर दिये हैं.

राजनीति में कितने कामयाब होंगे रजनीकांत

मीडिया में खबरें थीं कि रजनीकांत के घर के लोग उनके राजनीति में उतरने को लेकर अमिताभ बच्चन का उदाहरण दे रहे थे. खुद अमिताभ ने भी एक बार रजनीकांत को राजनीति से दूर रहने की सलाह दी थी, लेकिन अब उन्होंने उनकी कामयाबी के लिए शुभकामनाएं दी हैं.

दक्षिण, खासतौर पर तमिलनाडु के लोग, रजनीकांत को दीवानगी की हद तक चाहते हैं - और यही वजह है कि उन्हें 'थलाइवा' कहते हैं. थलाइवा शब्द 'थलाइवर' से बना है, जिसका मतलब होता है - 'लीडर या बॉस.'

एक सहज सवाल है कि क्या प्रशंसकों की ताली और जोश किसी स्टार के राजनीतिक कामयाबी का आधार बन सकते हैं? कुछ लोगों का जवाब ना में हो सकता है. अगर इस प्रसंग में अमिताभ बच्चन के इलाहाबाद से चुनाव लड़ने को याद किया जाय तो कुछ हद तक सवाल आसान हो सकता है. अमिताभ ने हेमवतीनंदन बहुगुणा जैसे बड़े नेता को हरा दिया था. राजनीति में वो नहीं चल पाये उसकी उनकी निजी और अलग अलग वजह हो सकती है.

रजनीकांत के सामने एक तरफ अमिताभ का उदाहरण रहा तो दूसरी तरफ, एमजी रामचंद्रन और जयललिता की मिसाल भी हो सकती है.

क्या रजनीकांत एमजीआर और जयललिता की तरह ही सफल हो सकते हैं?

इस सवाल का पहला जवाब तो हां में हो सकता है. चूंकि तमिलनाडु की मौजूदा राजनीति में एमजीआर और जयललिता जैसी शख्सियत की कमी है, इसलिए रजनीकांत उस जगह की भरपार्ई कर सकते हैं. दूसरा जवाब नकारात्मक है - एमजीआर और जयललिता दोनों ही जब अपने बूते मैदान में कूदे उनके पीछे सिर्फ फैंस का सपोर्ट नहीं था, बल्कि ऐसे नेता भी साथ थे जो पहले से राजनीति में सक्रिय थे. जब एमजीआर ने अपनी राजनीति शुरू की तब उन्हें डीएमके के कई नेताओं का सपोर्ट मिला. इसी तरह जयललिता भी जब पैर जमाने की कोशिश कर रही थीं तो उनके पीछे भी एआईएडीएमके के राजनीतिक सपोर्टर खड़े रहे. इस हिसाब से देखें तो रजनीकांत की राह उतनी आसान नहीं दिखती.

तमिलनाडु की मौजूदा राजनीतिक स्थिति

जयललिता की सीट आरके नगर उपचुनाव के नतीजे तमिलनाडु की राजनीति की ताजा तस्वीर पेश करती है. एकबारगी देखें तो लगता है जयललिता का वोट बैंक बरकरार है और डीएमके लोगों को अपनी तरफ खींचने में नाकाम रही है. डीएमके को अपने नेताओं के 2जी घोटाले से बरी होने का कोई फायदा नहीं मिला. जिस दिन 2जी का फैसला आया उसी दिन आरके नगर में चुनाव हो रहे थे. नतीजे को ऐसे भी समझा जा सकता है कि पूरा तमिलनाडु न सही, तो कम से कम आरके नगर के लोग सत्ता पर कब्जा जमाये पलानीसामी-पनीरसेल्वम ग्रुप को नहीं बल्कि टीटीवी दिनाकरन धड़े को जयललिता का असली वारिस मानते हैं. तस्वीर का दूसरा पक्ष ये भी है कि चूंकि एआईएडीएमके उम्मीदवार पनीरसेल्वम के करीबी थे, इसलिए पलानीसामी और उनके समर्थकों ने कैंडिडेट के पक्ष में पूरे मन से प्रचार नहीं किया क्योंकि जीतने पर पन्नीरसेल्वम और ताकतवर हो जाते, टीटीवी दिनाकरन को इस स्थिति का फायदा मिला और वो निर्दल होकर भी चुनाव जीत गये.

हालांकि, बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी की राय रजनीकांत के बारे में अलग है, जो पहले की ही तरह है. स्वामी ने फिर कहा है, 'रजनीकांत ने केवल राजनीति में आने की घोषणा की है. कोई और विवरण या दस्तावेज नहीं दिए हैं. वो पढ़े-लिखे नहीं हैं. ये केवल मीडिया हाइप है. तमिलनाडु के लोग समझदार हैं.'

रजनीकांत के चमत्कार अब तक सिर्फ सिल्वर स्क्रीन पर या उनकी गाथा सोशल मीडिया पर देखने को मिलती रही हैं - ये बातें मुख्यधारा की राजनीति में देखने को मिलेंगी कि नहीं - देखना बाकी है. अच्छी बात ये है कि रजनीकांत हकीकत से पूरी तरह वाकिफ भी हैं, कहते भी हैं, ''इस संकट की घड़ी में मैं राजनीति में नहीं आऊंगा तो मेरे लिए शर्म की बात होगी - और ये सिनेमा नहीं सच है.''

जैसी हिम्मत रजनीकांत ने दिखायी है वैसा करना कम लोगों के ही बते की बात है. राजनीति में आने के लिए जितना समय उन्होंने लिया है उससे काफी कम समय उन्होंने उसे छोड़ देने के लिए तय किया है. रजनीकांत का कहना है, 'अगर मैं लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका तो तीन साल में ही राजनीति से संन्यास ले लूंगा.'

सबसे बड़ी बात जो रजनीकांत ने कही - 'मैं यहां नाम, शोहरत या पैसे के लिए नहीं आ रहा हूं.' बिलकुल सही बात है, उनके पास ये सब पहले से मौजूद है. वैसे इस तरह का दुस्साहस भी रजनीकांत जैसी शख्सियत के ही वश की बात भी है जो सिनेमाई ग्लैमर और गढ़ी हुई छवि की परवाह न करते हुए डंके की चोट पर बगैर विग लगाये खुलेआम घूमते हैं. वरना, ऐसे भी फिल्मस्टार हैं जो दाढ़ी के कलर कम्बिनेशन में भी साल दर साल 'स्टेटस-को' बनाये रखने में जुटे रहते हैं. ये खुद को खुदा मानने वाले सभी नेताओं के लिए सीख भी है और चेतावनी भी.

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