कश्मीर: लोगों की आजादी बड़ी है या जिंदगी?
कश्मीर मामले में जो बताएं सुप्रीम कोर्ट ने कहीं हैं वो इसलिए भी स्वागत योग्य हैं क्योंकि कोर्ट भी ये जानता है कि लोगों की आजादी के मुकाबले उनकी जान कहीं ज्यादा कीमती हैं और इस मुश्किल वक़्त में प्राथमिकता लोगों कि जान ही होनी चाहिए.
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जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए हटाए जाने के बाद मचा सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा. विपक्ष, सरकार पर लगातार यही आरोप लगा रहा है कि उसने सत्ता का दुरूपयोग करते हेउ आम कश्मीरी आवाम को एक अनचाही मुसीबत में डाल दिया है. मामले को कश्मीरियों के हक से जोड़ा गया और इसके लिए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई. सुप्रीम कोर्ट में आज जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंध के खिलाफ सुनाई हुई. मामला बेहद गंभीर है इसलिए कोर्ट ने भी इस बात को माना है कि हालात रातों रात सामान्य नहीं हो सकते. साथ ही कोर्ट ने ये भी सवाल किया है कि यदि कश्मीर में कुछ हो गया तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? वहीं इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि कश्मीर के आम नागरिकों को कम असुविधा हो, इसके लिए पूरी कोशिश की जा रही है. ध्यान रहे कि अब इस मामले को लेकर सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी.
जम्मू कश्मीर पर आई याचिका की सुनवाई के दौरान जो बातें सुप्रीम कोर्ट ने कही हैं निश्चित तौर पर उससे फायदा घाटी का ही है
क्या क्या हुआ कोर्ट में
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति 'बहुत ही संवेदनशील' है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वहां किसी की जान नहीं जाए. केंद्र ने कोर्ट को बताया कि जम्मू कश्मीर की स्थिति की रोजाना हालात समीक्षा की जा रही है. अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना है कि जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था बनी रहे. कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में संचार समेत कई पाबंदियों को हटाने संबंधी याचिका पर तत्काल दिशानिर्देश देने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि सरकार को राज्य में हालात सामान्य करने के लिए समुचित समय दिया जाना चाहिए.
सुनवाई में अपना पक्ष मजबूत दर्शाने के लिए केंद्र सरकार ने उस वक़्त का हवाला दिया जब आतंकी बुरहान वानी की मौत हुई थी. सरकार ने कहा कि 2016 में जिस वक़्त बुरहान वानी की मौत हुई कश्मीरी आवाम सड़कों पर आ गया और उसने इस मुठभेड़ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी की जिसके बाद कर्फ्यू लगाया गया और हालात सामान्य होने में ठीक ठाक वक़्त लगा.
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस बात को प्रमुखता से बल दिया कि हमें यह सुनिश्चित करना है कि जम्मू कश्मीर में कानून व्यवस्था बनी रहे. ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका तहसीन पूनावाला ने दयार की थी और इसमें इस बात का जिक्र था कि कश्मीर से कर्फ्यू हटाया जाए साथ ही फोन लाइंस, इंटरनेट, न्यूज़ चैनल समेत तमाम अलग अलग तरह की पाबंदियों को हटाया जाए.
गौरतलब है कि कश्मीर में शांति के मद्देनजर भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है साथ ही तमाम तरह की संचार व्यवस्थाओं को ठप कर दिया गया है. इसके आलवा सुरक्षा में कोई चूक न हो इसके लिए महबूबा मुफ़्ती ओमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं और अलगाववादियों को भी नजरबंद कर दिया गया है.
दाखिल हुई थी याचिका
कश्मीर में जैसे मौजूदा हालात हैं, यदि उस पूरी स्थिति का अवलोकन करें तो मिल रहा है कि तहसीन पूनावाला समेत एक बड़ा वर्ग है जो इस बात को लेकर प्रदर्शन कर रहा है कि सरकार इंटरनेट जैसी चीजें बंद करके आम कश्मीरियों के अधिकारों का हनन कर रही हैं जबकि होना इसका उल्टा चाहिए था. वो लोग जो 'संचार माध्यमों' के हक के लिए प्रदर्शन कर रहेहैं क्या उनके दिमाग में ये सवाल आया कि उनका क्या जो बीमार हैं? क्या उन्हें दवाई मिल रही है? वो बच्चे जो घरों में बैठे हैं उनकी पढ़ाई लिखी का क्या? क्या इन खराब हालातों के बीच आम कश्मीरी नागरिकों को दूध, ब्रेड डबलरोटी जैसी मूल भूत चीजें मिल पा रही हैं?
कहा जा सकता है कि ये वो तमाम सवाल हैं जिसे उन सभी लोगों को सोचना चाहिए जो आज घाटी की आवाम के हको के लिए प्रदर्शन के नाम पर तमाम तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. चूंकि सुप्रीम कोर्ट में हुई इस सुनवाई का आधार तहसीन पूनावाला की याचिका थी इसलिए हम उनसे भी इसी सवाल के जवाब की उम्मीद करते हैं कि लोगों की आजादी बड़ी है या फिर जिंदगी? ये सवाल इसलिए भी है क्योंकि अगर लोग जिंदा ही नहीं रहेंगे तो अगर उन्हें अधिकार या ये कहें कि आजादी मिल भी जाए तो वो उसे लेकर क्या करेंगे?
आलोचक ये भी कह रहे हैं कि इससे कश्मीर में नरसंहार के मामले सामने आएँगे जबकि आंकड़े कुछ और ही बता रहे हैं
फैलाया जा रहा है झूठा प्रोपोगेंडा
कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए के खत्म किये जाने के बाद जबरदस्त घमासान मचा है. न सिर्फ भारत में, बल्कि पाकिस्तान तक में ये बातें हो रही हैं कि कश्मीर की ताजा स्थिति किसी भी क्षण घाटी में नरसंहार का कारण बन सकती है. ऐसे में हमारे द्वारा आंकड़ों पर बात कर लेना बेहद जरूरी है.कश्मीर से जुड़ी इस अफवाह के खंडन के लिए हमें कश्मीर की जनगणना को समझना होगा.
2018 में जम्मू कश्मीर की जनसंख्या 1.5 करोड़ थी इसी तरह बात अगर 2001 में जम्मू कश्मीर की कुल आबादी पर हो तो तब यहां की कुल आबादी 1.01 करोड़ थी जो 2011 आते आते 1.25 करोड़ हुई और इसमें 23.64% की दर से वृद्धि देखी गई. अब सवाल ये खड़ा होता है कि वो कश्मीर जिसकी आबादी लगातार बढ़ रही है उसके अन्दर आंकड़े खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं कि चाहे पाकिस्तान हो या फिर कश्मीर को लेकर सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले आलोचक हों दोनों के ही द्वारा ये बड़ा झूठ इस देश की जनता के अलावा खुद कश्मीर के आम लोगों से बोला जा रहा है.
बहरहाल अब जब इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट का दखल हो ही चुका है तो ये कहना बिल्कुल उचित रहेगा कि उसने जो भी बातें सुनवाई में कहीं हैं उसपर हमारे विपक्ष को जरूर गौर करना चाहिए और ये समझना चाहिए कि आजादी से बढ़कर लोगों की जान है और जो सरकार कर रही है उसका उद्देश्य केवल और केवल लोगों की जान बचाना और घाटी में शांति कायम करना है.
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