आतंकी यासीन मालिक की सज़ा: देर आया और कम आया
यासीन मलिक आतंक का साथ देने वाला ही नहीं बल्कि JKLF जैसे समूह को बनाने वाला खुद एक आतंकवादी था, जिसने कश्मीर में चुन चुन कर कश्मीरी पंडितों का सफाया किया. उस पर भी अरुंधति रॉय, फारूक अब्दुल्ला महबूबा मुफ़्ती और ओमर अब्दुल्ला समेत कइयों के ख्याल में इन्हे एक मौका मिलना था!
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कहते हैं जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड मगर ये बात पटियाला कोर्ट में सुनाई गई सज़ा के मामले में गलत साबित होती है. बीते दिन दोपहर साढ़े तीन बजे से मीडिया और देश की नज़रें कोर्ट के फैसले पर थी. इंतज़ार खत्म हुआ शाम करीब छह बजे - जब कोर्ट ने यासीन मालिक को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई. साथ ही दस लाख का जुर्माना भी भरने को कहा. ये फैसला देर आया, दुरुस्त आया तो था किन्तु कमतर आया ऐसा ज़रूर लगा. इस फैसले के साथ ही कश्मीर में इंटरनेट सेवा पर रोक लगा दी गई और ख़बरों की मानें तो यासीन मालिक के समर्थक उनके घर के आगे प्रदर्शन करने को इकट्ठे हो गए. कश्मीर में इसके आगे की कहानी कैसी लिखी जाएगी? ये वहीं के लोगों को तय करना है. क्योंकि दवा कड़वी सही, घूंट में भरी जा चुकी है तो निगली भी जाएगी.
आतंकी यासीन मलिक को भले ही सजा हो गयी हो लेकिन ये ऐसा फैसला नहीं है जिस पर खुश हुआ जाए
अधूरी सज़ा
आजीवन कारावास की सज़ा यकीनन यासीन मालिक जैसे अपराधी के लिए कम है. अगर यासीन मालिक को पहचानने में दिक्कत हो तो फिल्म कश्मीर फाइल्स के उस दृश्य को याद कर लें जहां कॉलेज प्रोफेसर राधिका मेनन के साथ आतंकी फारुख मलिक बिट्टा की तस्वीर दिवार पर लगी है. हां वो किरदार एक अकेले यासीन मलिक पर आधारित नहीं था लेकिन तस्वीर में यासीन मलिक ही था और साथ में खैर...
भारत देश हमेशा से गद्दारों को झेलता आया है. यह बहुचर्चित तस्वीर आपको इंटरनेट पर कहीं भी नज़र आ जाएगी.1966 में श्रीनगर में पैदा हुआ यासीन मालिक 1980 से ही आतंक की घटनाओ में लिप्त था. 1987 में पाकिस्तान जा कर ट्रेनिंग लेने वाले इस शख्स ने वापस आ कर JKLF को दोबारा मज़बूत किया. यासीन मलिक आतंक का साथ देने वाला ही नहीं बल्कि JKLF जैसे समूह को बनाने वाला खुद एक आतंकवादी था. ये वही आतंकी समूह है जिसने कश्मीर में चुन चुन कर कश्मीरी पंडितों का सफाया किया.
चाहे वायु सेना अफसर रवि खन्ना के साथ चार अन्य अफसरों की हत्या हो या कश्मीर में जस्टिस गंजु साथ ही भाजपा नेता टीका लाल टपलू की हत्या - यासीन मलिक ने खुले आम कहा की वो दुश्मन राज्य के लोग थे और मारने योग्य ही थे. सैकड़ों कश्मीरी पंडितों की हत्या बलात्कार करने और करवाने वाला भी यही शख्स था. मैसुमा के छोटे से इलाके के कच्चे घर में पलने बढ़ने और रहने वाले इस आतंकी ने अपने ही देश में आतंक फैला कर अपने ही देशवासियों का खून भा कर धन सम्पदा जमा की.
JKLF जहां एक तरफ भारत में आतंकवाद पसारता हुआ सेना के साथ गुरिल्ला युद्ध में लिप्त था. वहीं जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान के साथ नहीं बल्कि एक अलग आज़ाद राज्य के रूप में देखता था. शायद यही वजह थी की 1994 में पाकिस्तान से पैसे की मदद बंद हुई और आतंकी यासीन मालिक ने अचानक ही गांधी जी के पदचिन्हों पर चलने की ठानी. जी हां JKLF ने सीज़ फायर की घोषणा की और स्वयं ही कश्मीर मसले को हल करने वाले कर्ता धर्ता के रूप में सामने आगया.
डर के आगे सारी सरकारें
आश्चर्य की बात ये है उस समय की किसी भी सरकार ने इसे इसके किये की सज़ा देने की हिम्मत नहीं की. यासीन मालिक को वीज़ा के हर नियम को ताक पर रख कर पाकिस्तान का वीज़ा दिया गया जहां जा कर न सिर्फ वो हाफिज सईद जैसे आतंकी से मिला बल्कि ब्याह रचा कर हिंदुस्तान के खिलाफ मोर्चा लगा कर वापस भी आ गया. बड़े बड़े नेताओं के साथ इसकी तस्वीरें पूरे इंटरनेट पर हैं.
इसके आतंक और दहशत का अंदाज़ा इसी से लगाइये की बीबीसी को दिए इंटरव्यू इंटरनेट से गायब ही कर कर दिए गया. JKLF की सीज़फायर के बाद यासीन मलिक ने खुद को आतंक में साफतौर पर नहीं दिखाया बल्कि अलग अलग रास्तों से आतंकी हमलों के लिए फंडिंग इकट्ठी की. आतंक दहशतगर्दी करने के बाद सत्ता का लालच में इसने चोला बदला.
मौत की सज़ा मौत क्यों नहीं?
यासीन मलिक सालों तक एक वीआईपी आतंकी का दर्जा पा कर सत्ता के गलियारों में बेधड़क घूमता रहा. भारत के लेफ्टिस्ट कम्युनिस्ट और लिबरल यहां वाकई भांग खाये हुए मालूम होते हैं. जिन्हे एक आतंकी में कश्मीरी युवा नज़र आता था. अरुंधति रॉय, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला समेत कइयों के ख्याल में इन्हे एक मौका मिलना था!
जिस कश्मीर को जहन्नुम बनाने में यासीन मलिक जैसे आतंकवादियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी आज उस कश्मीर में अधिकतर युवा उसके इरादों से वाकिफ भी हैं और उसकी खिलाफत भी करते हैं ऐसे में मात्र कारावास की सज़ा उन सैकड़ों मासूमो की शहादत से किया मज़ाक मालूम होती है जिन्हे आतंक की बलि चढ़ाया गया. जिस आतंकी ने बर्बरता से की हुई हत्याओं को कबूला हो उसे आजीवन कारावास से कहीं ज़्यादा कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए. सईद शाह गिलानी की तर्ज़ पर स्वाभाविक मृत्यु नहीं इस बार सालों साल देश में आतंक फ़ैलाने वाले को फांसी की सज़ा से कम कुछ न हो.
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