स्टेडियम में डॉग-वॉक कराने वाला IAS कपल अरुणाचल और लद्दाख ही ट्रांसफर क्यों किया गया?
दिल्ली के स्टेडियम में आईएएस दंपति का अपने कुत्ते के साथ टहलने (IAS Couple Dog Walk) को लेकर लोग आंख मूंदे हुए थे, लेकिन ट्रांसफर होते ही नया बवाल शुरू हो गया है - महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) और उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
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दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में आईएएस दंपति के डॉग-वॉक (IAS Couple Dog Walk) का मामला राजनीतिक रंग ले चुका है. प्रैक्टिस के लिए खिलाड़ी और उनके कोच जाने कब से परेशान थे, लेकिन जब तक मीडिया में रिपोर्ट नहीं आयी थी, किसी का भी ध्यान नहीं गया - और अब ट्रांसफर होते ही राजनीति शुरू हो गयी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे स्टेडियम से खिलाड़ियों और कोच को वहां तैनात सिक्योरिटी गार्ड सिटी बजा कर समय से पहले ही भगा देते हैं, ताकि आईएएस दंपति को अपने पालतू कुत्ते के साथ टहलने में कोई दिक्कत न हो. अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट आने के बाद मामले की जांच हुई और फिर दोनों अफसरों के ट्रांसफर का आदेश जारी कर दिया गया.
खबर आने के बाद तो जैसे हर कोई हद से ज्यादा ही एक्टिव हो गया. दिल्ली सरकार ने फटाफट स्टेडियम के बंद होने का टाइम बढ़ा दिया - और केंद्र सरकार ने आईएएस अफसर संजीव खिरवार को लद्दाख और उनकी आईएएस पत्नी रिंकू दुग्गा को तत्काल प्रभाव से अरुणाचल प्रदेश ट्रांसफर कर दिया.
लेकिन फिर दोनों अफसरों के ट्रांसफर को लेकर राजनीति भी शुरू हो गयी. खासकर नयी पोस्टिंग वाली जगह को लेकर - क्योंकि ये ट्रांसफर सजा के तौर पर किया गया है. सवाल ये उठाया जा रहा है कि सजा वाली पोस्टिंग के लिए अरुणाचल और लद्दाख को ही क्यों चुना गया?
तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) की राय में केंद्र सरकार का ये कदम अपमानजनक है - क्योंकि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख ऐसी जगहें कतई नहीं हैं जहां सजा के तौर पर अफसरों की तैनाती हो.
अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख दोनों ही भारत-चीन विवाद के चलते लंबे अरसे से खबरों में रहे हैं - जहां तैनात सैनिकों के बहादुरी के किस्से सुनाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं थकते. ऐसे में दो अफसरों की बतौर सजा पोस्टिंग पर सवाल उठाया जाना भी महज राजनीतिक नहीं लगता.
नौकरशाही में सजा के मायने
ट्रांसफर भी सजा का ही एक तरीका होता है. हरियाणा काडर के आईएएस अफसर अशोक खेमका के तीन दशक की सेवा में 50 बार से ज्यादा ट्रांसफर किये जाने की मिसाल दी जाती है. सरकारी भाषा में जिसे रुटीन ट्रांसफर बताया जाता है, अशोक खेमका अपनी ईमानदारी की सजा के तौर पर देखते हैं.
अफसरों के तबादले पर ये बयानबाजी महज राजनीतिक नहीं है
संजीव खिरवार और रिंकू दुग्गा का मामला अशोक खेमका से काफी अलग है. दोनों ही अपने पद और प्रभाव का सरेआम दुरुपयोग कर रहे थे. अपनी सुविधा के लिए ये अफसर पति-पत्नी न जाने कितने खिलाड़ियों के कॅरियर से खिलवाड़ कर चुके होंगे. खेलों में अच्छे प्रदर्शन के लिए लगातार प्रैक्टिस की जरूरत होती है - त्यागराज स्टेडियम में तो दो अफसरों की तफरीह के लिए खिलाड़ियों का भविष्य ही ताक पर रख दिया गया था.
संजीव खिरवार और रिंकू दुग्गा दोनों ही AGMUT काडर के 1994 बैच के आईएएस अफसर हैं. संजीव खिरवार दिल्ली सरकार में पर्यावरण विभाग के सचिव थे, जबकि रिंकू दुग्गा दिल्ली के भूमि और भवन विभाग में सेक्रेट्री हुआ करती थीं.
बेशक दोनों ही आईएएस बड़ी मेहनत से बने होंगे, लेकिन अपने प्रभाव का बेजा इस्तेमाल करने से पहले उनको जरूर सोचना चाहिये था. दोनों न सही, कम से कम एक को तो सोचना ही चाहिये था. कहां वे खिलाड़ियों नहीं मिल पाने वाली सुविधायें मुहैया कर मददगार बन सकते थे - और कहां वे खिलाड़ियों की राह का रोड़ा बन गये थे.
ऐसे ढेरों वर्किंक दपंति हैं जो अलग अलग शहरों में काम करते हैं. ऐसे भी हैं जो एक ही शहर में हैं, लेकिन कोई दिन में ड्यूटी कर रहा है तो कोई नाइट शिफ्ट - और अगर बच्चा छोटा है तो बारी बारी देखभाल करते हैं.
हाल ही में यूपी के हरदोई में तैनात सिविल जज निकिता सेंगर की खबर आयी थी. निकिता सेंगर के पति आंध्र प्रदेश काडर के आईपीएस हैं. यूपी न्यायिक सेवा की निकिता के लिए पति के साथ रहना मुश्किल हो रहा था. एक रास्ता ये जरूर था कि दोनों ही अपने अपने विभागों के जरिये केंद्र सरकार से गुजारिश करते कि उनकी पोस्टिंग एक ही शहर में या आसपास कर दी जाये, दूसरा रास्ता बेहद मुश्किल था जिसे निकिता सेंगर ने चुना.
निकिता सेंगर ने न सिर्फ तेलुगु भाषा सीखी बल्कि बल्कि आंध्र प्रदेश न्यायिक सेवा का इम्तिहान देकर क्वालीफाई किया - और चौथी पोजीशन भी हासिल की. निकिता सेंगर और खिरवार-दुग्गा का केस आपस में कितना विरोधाभासी है, आसानी से समझा जा सकता है.
निकिता सेंगर ने जहां असुविधा से उबरने के लिए कड़ी मेहनत और ईमानदारी का रास्ता अख्तियार किया, वहीं खिरवार-दुग्गा कपल ने खिलाड़ियों की मेहनत पर अपनी थोड़ी सी सुविधा के लिए पानी फेर देने जैसा अपराध किया है.
अव्वल तो संजीव खिरवार और रिंकू दुग्गा अपनी लाइफ में पहले ही सेटल हो चुके थे, लेकिन स्टेडियम में बगैर किसी बाधा के कुत्ते के साथ अकेले टहलने का मोह नहीं त्याग सके. अब जो सजा मिली है, वो किसी हिसाब से कम भी नहीं है - ट्रांसफर के बाद दोनों अब एक दूसरे से करीब 3500 किलोमीटर दूर रहना पड़ेगा.
बात मुद्दे की हो रही है या विशुद्ध राजनीति?
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने केंद्र सरकार से संजीव खिरवार और रिंकू दुग्गा के खिलाफ कड़ा एक्शन लेने की मांग की थी. मनीष तिवारी ने केंद्रीय मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह को ट्विटर पर टैग करते हुए मांग की थी कि इन अफसरों पर एक्शन लेकर मिसाल कायम करें.
If this is what goes on in Delhi imagine what it must be like in the Districts where the DC & SSP believe they are lords and masters of all they survey.@DrJitendraSingh MOS Personnel must make an example out of this officer if this story is correct ??https://t.co/WPcz7Iq7fi
— Manish Tewari (@ManishTewari) May 26, 2022
मनीष तिवारी चाहें तो केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को थैंक यू बोल सकते हैं, बशर्ते वो ट्रांसफर को लेकर महुआ मोइत्रा और उमर अब्दुल्ला के नजरिये से इत्तेफाक न रखते हों - दरअसल, दोनों ही नेताओं की नजर में अफसरों की सजा के तौर पर पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख की खराब छवि पेश करते हैं.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू से केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करने को कहा है. महुआ मोइत्रा ने पेमा खांडू के साथ केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजु को ट्विटर पर टैग करते हुए दोनों इसका विरोध करने की सलाह दी है. किरण रिजिजु अरुणाचल प्रदेश से ही सांसद हैं.
महुआ मोइत्रा कहती हैं, अफसरों के ट्रांसफर से साफ है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय नॉर्थ-ईस्ट के लिए सिर्फ जबानी प्रेम दिखाता है, जबकि ये राज्य उसकी नजर में कचरा फेंकने के मैदान जैसा ही है. महुआ मोइत्रा के मुताबिक, एक निरंकुश नौकरशाह का अरुणाचल प्रदेश में तबादला राज्य के लिए शर्म की बात है.
Why shame Arunachal by transferring errant Delhi bureaucrat there?Why pay lip service to North East & then treat area like a dump for your rubbish, MHA? Please protest @PemaKhanduBJP @KirenRijiju
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) May 26, 2022
लद्दाख को लेकर उमर अब्दुल्ला भी वही सवाल उठा रहे हैं जो महुआ मोइत्रा कह रही हैं. बल्कि उमर अब्दुल्ला लद्दाख के लोगों की भावनाओं को प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं. उमर अब्दुल्ला का कहना है कि अधिकारियों को सजा देने के लिए लद्दाख भेजा जाना वहां के लोगों के लिए निराशाजनक है - क्योंकि कइयों के लिए ये एक खूबसूरत जगह है.
ट्विटर पर उमर अब्दुल्ला पूछते हैं, 'लोग लद्दाख को सजा वाली पोस्टिंग क्यों कह रहे हैं?
Why are people calling Ladakh a “punishment posting”? For one it’s a beautiful place with very hospitable people & some stunning places to visit and secondly it’s demoralising for the people there to be given the impression that officers only get sent as a punishment.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) May 26, 2022
IAS दंपति के पास प्रायश्चित का मौका!
कोरोना संकटकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा में अवसर की बात कही थी. अगर खिरवार-दुग्गा दंपति के लिए अलग अलग पोस्टिंग आपदा है तो उनके पास बहुत बड़ा अवसर भी है - और अवसर का फायदा उठाकर आईएएस दंपति अपनी हालिया कारगुजारियों का प्रायश्चित भी कर सकते हैं.
ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाते हैं और मशहूर बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद चौरसिया का भी ऐसा ही एक उदाहरण है. शुरुआती दौर में हरिप्रसाद चौरसिया आकाशवाणी से जुड़े थे. ओडिशा में तब लोग ओडिसी डांस तो खूब देखते थे, लेकिन बांसुरी पर शास्त्रीय संगीत सुनने वाले कम ही होते थे. जैसे जैसे हरिप्रसाद चौरसिया लोकप्रियता हासिल करने लगे, उनसे जलने वाले भी लामबंद हो गये - और तभी उनका ट्रांसफर मुंबई कर दिया गया.
हरिप्रसाद चौरसिया अक्सर अपने इंटरव्यू में बताते हैं, मुंबई को उस वक्त कालापानी की सजा के तौर पर ही देखा जाता था क्योंकि जो तनख्वाह मिलती थी उसमें मुंबई में गुजारा मुश्किल होता. हरिप्रसाद चौरसिया ने अपने ऊपर आयी आपदा को बहुत बड़े अवसर में बदल लिया. फिल्मों में काम करने के साथ सिखाने के लिए अन्नपूर्णा शंकर जैसी गुरु भी हरिप्रसाद चौरसिया को वहीं मिलीं - और उसके बाद जो जो हुआ पूरी दुनिया जानती है.
संजीव खिरवार और रिंकू दुग्गा के सामने न तो हरिप्रसाद चौरसिया जैसा चैलेंज है, न उनको वैसा कुछ हासिल करने की जरूरत लगती है. अगर संजीव खिरवार और रिंकू दुग्गा दोनों अपने स्तर पर अपने इलाकों से, ज्यादा न सही एक-एक टैलेंट को भी अपने प्रभाव के इस्तेमाल से आगे बढ़ने का मौका मुहैया कराते हैं तो ये उनके लिए सबसे बड़ा प्रायश्चित हो सकता है.
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