मोदी (NDA) सत्ता में न लौटे तो क्या होगा? झलक दिखने लगी
विपक्षी खेमे में सब कुछ अच्छा अच्छा होता है. बात जैसे ही प्रधानमंत्री पद की आती है, झगड़ा शुरू हो जाता है और कोई भी मोर्चा खड़ा होने से पहले बिखर जाता है. मगर, ताजा मामला अलग है - डिप्टी PM की कुर्सी की डिमांड शुरू हो गयी है.
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एक तरफ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों से मजबूत सरकार के नाम पर वोट देने की अपील कर रहे हैं, दूसरी तरफ मायावती और नवीन पटनायक जैसे नेताओं के प्रति स्नेहभाव दिखा रहे हैं. बीजेपी नेताओं के भी बयान ऐसे आ रहे हैं जिनसे लगता है कि पार्टी को बहुमत हासिल करना थोड़ा मुश्किल लगने लगा है.
सत्ता पक्ष की ओर से ऐसा संकेत विपक्षी खेमे में जोश भर रहा है और उसी हिसाब से सक्रियता भी. विपक्षी दलों के नेता भी एनडीए को बहुमत न मिल पाने की स्थिति में सरकार बनाने की रणनीति पर अभी से काम करने लगे हैं. चुनाव नतीजों से पहले विपक्ष की एक मीटिंग की तैयारी भी है - लेकिन तारीख अभी पक्की नहीं मानी जा रही है.
कोलकाता में हुई यूनाइटेड इंडिया रैली में सभी सीनियर नेताओं की एक दूसरे को सलाहियत रही कि वे इस चक्कर में तो बिलकुल न पड़ें कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा. ऐसा लग रहा था प्रधानमंत्री पद के दावेदार धैर्य बनाये हुए हैं - लेकिन तभी तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर यानी के. चंद्रशेखर राव ने आव न देखा ताव और डिप्टी PM के पद पर सबसे पहले दावेदारी पेश कर दी है.
केसीआर की शर्त - पहले डिप्टी PM बनाओ
2018 में हुआ तेलंगाना विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से ही केसीआर का उत्साह खासा बढ़ा हुआ है. विधानसभा चुनाव खत्म होते ही वो आम चुनाव और राष्ट्रीय राजनीति में हिस्सेदारी को लेकर एक्टिव हो गये थे. दिसंबर, 2018 में विपक्ष के कई नेताओं से केसीआर ने ताबड़तोड़ मुलाकात की - और तबसे लगातार सभी के संपर्क में बने रहे.
मौके की नजाकत को देखते हुए केसीआर ने पैंतरा भी बदला है. पहले केसीआर गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस गठबंधन खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अब इस बात से पीछे हटे हुए लगते हैं. केसीआर का कहना है कि 23 मई को चुनाव नतीजे आने के बाद अगर किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता तो वो गैर-बीजेपी गठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार हैं. यानी अब केसीआर को कांग्रेस से परहेज नहीं रहा - और ये भी मान कर चलना चाहिये कि वो बीजेपी गठबंधन के साथ भी नहीं जाने वाले. केसीआर का कहना है कि वो गठबंधन का हिस्सा ही नहीं बनना चाहते बल्कि उसमें वो सक्रिय भूमिका भी निभाना चाह रहे हैं - लेकिन उनकी शर्त पहले माननी होगी.
TRS नेता केसीआर की शर्त है कि विपक्षी खेमे के नेताओं को सबसे पहले उन्हें डिप्टी प्राइम मिनिस्टर के रूप में देश के सामने पेश करना होगा. मतलब, प्रधानमंत्री का फैसला बाद में होता रहेगा उससे पहले डिप्टी पीएम फाइनल हो जाना चाहिये.
मीटिंग की तारीख तय क्यों नहीं हो पा रही है?
हाल ही में खबर आई थी कि 21 मई को विपक्ष के 21 दलों के नेताओं की मीटिंग रखी गयी है. फिर मालूम हुआ कि ये मीटिंग 20 मई को भी हो सकती है क्योंकि आखिरी दौर की वोटिंग 19 मई को खत्म हो जाएगी. अब पता चला है कि जरूरी नहीं कि मीटिंग चुनाव खत्म होने के बाद और नतीजे आने से पहले ही हो. ये भी मुमकिन है कि विपक्षी दलों की ये मीटिंग 23 मई के बाद भी हो सकती है. फिर तो ये भी मान कर चलना चाहिये कि अगर नतीजे पूरी तरह जल्दी नहीं आये तो मामला आगे भी बढ़ सकता है.
सबसे पहले डिप्टी PM बनाओ, प्रधानमंत्री कौन बनेगा देखा जाएगा!
6 मई को केसीआर ने केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन से मुलाकात की. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी से भी केसीआर मिले - और डीएमके नेता एमके स्टालिन से भी जल्द मुलाकात की कोशिश में हैं.
केसीआर की इन मुलाकातों के बीच उनके राजनीतिक विरोधी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू दिल्ली पहुंचे और राहुल गांधी से आगे की रणनीति पर विचार विमर्श किया और फिर कोलकाता रवाना हो गये. दरअसल, ममता बनर्जी से मिलने से पहले जानबूझ कर नायडू ने राहुल गांधी से मुलाकात की, ताकि मीटिंग में जरूरी मसलों पर निर्णायक बातचीत हो सके. बताते हैं कोलकाता में नायडू और ममता बनर्जी की 15 मिनट तक बंद कमरे में मीटिंग हुई.
कौन बनेगा किंगमेकर
चुनाव नतीजे आने से पहले सारी कवायद कयास और अटकलों पर चल रही है. विपक्ष के वरिष्ठ नेता तो राष्ट्रपति से मिल कर ये गुजारिश भी करना चाहते हैं कि एनडीए को बहुमत न मिलने की स्थिति वो सबसे बड़े दल के तौर पर उसे सरकार बनाने के लिए न बुलाएं, बल्कि विपक्ष को ये मौका दें. विपक्ष वैकल्पिक सरकार को लेकर 21 दलों के नेताओं के हस्ताक्षर वाला एक पत्र भी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपने की तैयारी कर रहा है.
पूरी कवायद से अगर किसी ने दूरी बना रखी है तो वो हैं ओडिशा के मुख्यमंत्री बीजेडी नेता नवीन पटनायक. नवीन पटनायक कभी भी विपक्ष के किसी कार्यक्रम में दिखायी नहीं देते. कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथग्रहण के मौके पर जब विपक्ष के ज्यादातर नेता बेंगलुरू पहुंचे थे, पटनायक कहीं नजर नहीं आये.
नवीन पटनायक को भी चुनाव नतीजों के बाद एक किंगमेकर के रोल में देखा जाने लगा है. नवीन पटनायक की ही कतार में केसीआर और जगनमोहन रेड्डी को भी माना जा रहा है. जगनमोहन भी अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. इस बीच सुनने में आ रहा है कि बीजेपी ने केसीआर को साधने की जिम्मेदारी पार्टी महासचिव मुरलीधर राव को सौंपी है. इसी तरह एनडीए की ओर से जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को जगनमोहन रेड्डी को समर्थन के लिए राजी करने का काम मिला है. बीजेपी महासचिव राम माधव उत्तर-पूर्व के सहयोगी दलों के नेताओं के लगातार संपर्क में बताये जाते हैं.
केसीआर के इस फॉर्मूले को कांग्रेस की ओर से अभी कोई भाव नहीं मिला है. कांग्रेस अब भी अपने स्टैंड पर कायम है कि इस मामले में जो कुछ भी तय होगा उस पर फैसला नतीजे आने के बाद ही किया जाएगा. खबर है कि बावजूद इसके कांग्रेस नेता केसीआर से संपर्क बनाये हुए हैं - क्योंकि अभी उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि केसीआर संभावित गैर-बीजेपी गठबंधन के नाम पर टिके रहेंगे. केसीआर के गैर-कांग्रेस गठबंधन की कोशिशों के चलते ही ऐसा हो रहा है.
माना जा रहा है कि केसीआर खुद को राष्ट्रीय राजनीति में फिट करना चाह रहे हैं. ऐसा करने के बाद वो बड़े आराम से तेलंगाना सीएम की कुर्सी अपने बेटे को सौंप सकते हैं. केसीआर के बेटे केटीआर के नाम से मशहूर हैं - पूरा नाम केटी रामा राव है.
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