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Updated: 17 मार्च, 2018 01:59 PM
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उम्मीदों के आईने में कोई आखिरी किरण भी तो होती होगी. 70 के दशक में जेपी के संपूर्ण क्रांति के बाद अन्ना हजारे को आगे कर अरविंद केजरीवाल ही भारतीय राजनीति में उम्मीदों के नायक बन कर उभरे - और धीरे धीरे खुद ही उनके कारनामों ने उन उम्मीदों के टुकड़े-टुकड़े भी करने शुरू कर दिये. सकारात्मकता का सिद्धांत तो यही कहता है कि जाते जाते भी एक बार उम्मीद पर यकीन करना चाहिये. अगर इस हिसाब से सोचें तो क्या केजरीवाल के माफीनामे में भी उम्मीद की एक और किरण देख सकते हैं?

केजरीवाल ने पहली बार माफी दिल्ली के लोगों से ही मांगी थी - और केजरीवाल को माफी में दिल्ली की 70 में से 67 सीटें भी मिलीं. केजरीवाल के ताजा माफीनामे के फैसले के पीछे जो वजह बतायी गयी है - अगर वाकई वही सच है तो उम्मीद करनी चाहिये कि केजरीवाल अब दिल्ली के अच्छे दिन लाने वाले हैं.

बहकावे में बहके बोल

31 जनवरी 2014 को हरियाणा की एक रैली में अरविंद केजरीवाल ने अवतार सिंह भड़ाना के बारे में कहा था कि वो देश के सबसे भ्रष्ट व्यक्तियों में से एक हैं. भड़ाना ने नोटिस देकर केजरीवाल से माफी मांगने को कहा, लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया. फिर भड़ाना ने कोर्ट में मानहानि का मुकदमा कर दिया.

arvind kejriwalअब बस करो यार!

केजरीवाल को जब लगा कि अब कोई रास्ता नहीं बचा तो अगस्त, 2017 में उन्होंने भड़ाना से लिखित तौर पर माफी मांग ली. केजरीवाल के माफीनामे से एक दिलचस्प बात सामने आयी वो थी - केजरीवाल का ये स्वीकार करना कि उन्होंने साथियों के बहकावे में आकर वो बातें कह दी थीं, उनका ऐसा कोई मकसद नहीं था.

सुन कर बड़ा अजीब लगता है कि खुद को हद से ज्यादा काबिल और इंटेलिजेंट समझने वाला नेता कान का इतना कच्चा कैसे हो सकता है? फिर तो सवाल उठता है कि साथियों के बहकावे में आकर ही तो नहीं केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा, मुकेश अंबानी, नितिन गडकरी, अरुण जेटली, शीला दीक्षित जैसे नेताओं के बारे में भी ऐसी वैसी बातें कह दीं!

हकीकत तो ये है कि तीन साल की सियासी तफरीह के बाद केजरीवाल एंड कंपनी को लगने लगा है कि अब तक जो कुछ हुआ वो आगे नहीं चलने वाला. अब तो चुनाव में लोगों को हिसाब भी देना होगा. बताना होगा कि इतने दिन क्या करते रहे. केजरीवाल भी तो उसी मोड़ पर खड़े नजर आये जहां कभी शीला दीक्षित के होने पर उन्हें कठघरे में घसीट लिया करते थे. जब कुछ कर ही नहीं सकते तो मुख्यमंत्री होने का मतलब क्या है. जब खुद पर आयी तो बगले झांकने लगे.

तो क्या बहकावे में आकर ही केजरीवाल ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को निकाल दिया था. याद कीजिए जिस दिन निकाले जाने की घोषणा हुर्ई केजरीवाल दिल्ली से बाहर थे. ऐसा लगा जैसे वो नहीं चाहते हुए भी ऐसा करने को मजबूर हैं.

ये केजरीवाल ही हैं जिन्होंने संसद में बैठे लोगों को हत्यारा, बलात्कारी और डकैत तक कहा था. संसद में इस पर खूब बहस भी हुई लेकिन फिर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया, कोई कार्रवाई नहीं हुई. ये केजरीवाल ही हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कायर और मनोरोगी तक कह डाले. फिर भी कुछ नहीं हुआ. फिर तो शायद लगने लगा हो, बोलते रहो कहीं कुछ होने वाला तो है नहीं.

लेकिन नेताओं ने जब मानहानि के मुकदमे किये तो धीरे धीरे घिरने लगे. पहले तो केजरीवाल बोले कि मुकदमों से नहीं डरेंगे. तब उनके पास प्रशांत भूषण जैसे वकील थे. बाद में जैसे तैसे जेठमलानी तक को केस के तैयार किये लेकिन एक ही यू टर्न में जेठमलानी ने झटका दे दिया. जब केजरीवाल एंड कंपनी केस को लंबा करने की तिकड़म लगायी तो कोर्ट से कड़ी फटकार भी मिली.

प्लीज माफ कर दो!

हाल ही की बात है मुख्यमंत्री की मौजूदगी में दिल्ली के मुख्य सचिव का मामला कोर्ट पहुंचा है. मुख्य सचिव का इल्जाम है कि मुख्यमंत्री की मौजूदगी में आम आदमी पार्टी के विधायकों ने उन्हें पीटा. मेडिकल रिपोर्ट में तो इसकी पुष्टि हुई ही, इस मामले में मुख्यमंत्री के सलाहकार रहे वीके जैन की गवाही सब पर भारी पड़ी.

केजरीवाल अपने राजनीतिक जीवन के ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां मुसीबतों का अंबार है. केंद्र की मोदी सरकार से उनका रिश्ता ऐसे लगने लगता है जैसे भारत-पाक संबंधों में उतार चढ़ाव देखे जाते हैं. एक तरफ अरुण जेटली के साथ केजरीवाल मुकदमा लड़ रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हीं के साथ हंसते हुए चाय की चुस्कियों के फोटो भी सामने आते हैं.

ऐसे में जबकि विपक्ष सत्ता पक्ष के खिलाफ एकजुट होने की कोशिशें कर रहा है, केजरीवाल को कोई पूछ ही नहीं रहा. उनसे सहानुभूति रखनेवाली अकेली ममता बनर्जी नजर आती हैं, लेकिन कोई और उन्हें किसी भी संभावित मोर्चे में शामिल नहीं करना चाहता.

arvind kejriwalहमसे भूल हो गई, हमका माफी...

आप विधायकों को संसदीय सचिव बनाये जाने का मामला भी कोर्ट में है, जेटली मानहानि का दावा डबल कर चुके हैं. पब्लिक सपोर्ट का आलम ये है कि एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर के बावजूद दिल्ली के लोगों ने एमसीडी चुनावों में सारा वोट बीजेपी को दे डाला. लगातार हार के बाद कोई चुनावी उम्मीद भी बची नहीं दिखायी दे रही. संजय सिंह के अलावा जिन दो लोगों को केजरीवाल ने राज्य सभा भेजा उस पर भी उनकी खूब किरकिरी हुई.

देखा जाय तो केजरीवाल तमाम मामलों में चारों ओर से पूरी तरह घिर चुके हैं. यहां तक कि केजरीवाल के माफी मांगने से पंजाब के आप नेता बेहद खफा हैं. उनकी भी मजबूरी है, जिस इंसान के खिलाफ उन्होंने लोगों के बीच लड़ाई लड़ी उससे एक झटके में केजरीवाल का माफी मांग लेना भला उन्हें कैसे हजम हो.

बहरहाल, ये तो साफ है कि केजरीवाल मजीठिया के बाद एक एक करके जेटली, गडकरी, शीला सभी माफी मांग लेंगे. वैसे भूल सुधार और माफी मांगना कोई अवगुण नहीं है, बशर्ते उसके आगे वास्तव में कोई अच्छा मकसद हो.

दिल्ली वालों के अच्छे दिन

अब इसमें अच्छे दिन के संकेत कैसे मिल गये. ये एक सहज सवाल है तो इसका जवाब भी है.

केजरीवाल के माफीनामे से पंजाब के नेता इसलिए नाराज हैं कि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया. लेकिन इसी बीच सूत्रों के हवाले से खबर आई कि एक मीटिंग में महसूस किया गया कि मुकदमों में काफी वक्त बर्बाद हो रहा है - अगर ये वक्त काम में लगाया जाये तो ज्यादा अच्छा रहेगा.

अगर वास्तव में केजरीवाल एंड कंपनी ऐसा सोचने लगी है तो क्यों न उम्मीद बढ़े. अब इससे अच्छी बात क्या हो सकती है भला. फिर रोज रोज मोदी सरकार को कोसने, अफसरों के साथ मारपीट जैसी घटनाएं और दिल्ली के उप राज्यपाल के साथ बात बात पर दो दो हाथ से मुक्ति मिलेगी.

आखिर बिजली और पानी बिल में राहत, मोहल्ला क्लिनिक, दिल्ली के सरकारी स्कूल - ये सब भी तो काम ही हैं और ये मुकदमा लड़ते हुए किये गये हैं. सोचिये जब केजरीवाल सरकार काम पर फोकस करेगी तो क्या नहीं हो सकता.

जाहिर है केजरीवाल जैसा नेता खुद को अराजक होने में गर्व महसूस करने की बजाय उन कामों पर ध्यान दे जो उसके हाथ में है फिर दिल्ली के अच्छे दिन आने से रोक कौन सकता है?

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