केजरीवाल के धरने के पीछे क्या है - नया विपक्षी मोर्चा या पीएम की दावेदारी?
कहना मुश्किल है कि अरविंद केजरीवाल ने धरने को इतने बड़े स्तर पर प्लान किया होगा. फिलहाल सच तो यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने विपक्षी खेमे से सबसे बड़े चैलेंजर बन कर उभरे हैं. दिल्ली की समस्याएं तो महज दिखावा हैं सियासी रणनीति तो और ही है.
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अरविंद केजरीवाल ने कोई मास्टर स्ट्रोक तो नहीं खेला था, लेकिन लोग आते गये और कारवां बनता गया. अब तो दिल्ली में केजरीवाल के सपोर्ट में ऐसा कारवां बन चुका है कि बीजेपी फंसा हुआ महसूस कर रही होगी - और कांग्रेस खड़े होने की जगह तलाश रही है.
फिर भी सवाल तो वहीं से शुरू होता है - दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के धरने के पीछे क्या है?
तीन सवाल
1. क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के धरने के पीछे वही है जो सीधे सीधे सबको दिखाया जा रहा है?
मसलन, दिल्ली आईएएस अधिकारी हड़ताल पर हैं. अधिकारियों के हड़ताल के पीछे दिल्ली के उपराज्यपाल हैं - और उनके ऊपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. ये अधिकारी न तो मीटिंग में आते हैं, न मंत्रियों के फोन उठाते हैं. खास बात ये है कि आईएएस अधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है कि वे हड़ताल पर नहीं हैं.
2. क्या धरने के पीछे वही जो खुद केजरीवाल और उनके साथी सबको समझा रहे हैं?
चार मुख्यमंत्रियों की मोर्चेबंदी
दिल्ली की मौजूदा सारी समस्याओं के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है. मोदी सरकार के कारण ही एलजी अनिल बैजल डोर टू डोर राशन सप्लाई की फाइल दबा कर बैठे हुए हैं.
3. क्या धरने के पीछे वो कारण है जो देश के चार और मुख्यमंत्री भी समझ रहे हैं?
देश के चार राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली में केजरीवाल के समर्थन में डेरा डाले हुए हैं. पहले इनका कहना रहा कि अधिकारियों ने धरने पर बैठे केजरीवाल से उन्हें मिलने नहीं दिया. फिर वे केजरीवाल के घर पहुंचे और मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने उनसे मुलाकात और बातें की.
बीजेपी बेहाल, कांग्रेस परेशान
केजरीवाल के धरने का विरोध कर कांग्रेस ने सबसे बड़ी चूक कर दी. अब लगातार उसे अपने को सही साबित करने के लिए तरह तरह के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं. कभी अजय माकन तो कभी शीला दीक्षित से बयान दिलवाये जा रहे हैं. मीडिया में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी लगातार कांग्रेस का बचाव कर रही हैं.
कांग्रेस को ये नहीं समझ आ रहा कि केजरीवाल के उस सवाल का कैसे काउंटर किया जाय जिसमें उन्होंने राहुल गांधी को कठघरे में खड़ा कर दिया है. केजरीवाल राहुल गांधी से पूछ रहे हैं कि वो बतायें कि दिल्ली में बीजेपी के साथ हैं या खिलाफ हैं? और क्या दिल्ली वाला कांग्रेस का स्टैंड ही पूरे देश पर लागू होता है?
कांग्रेस की एक और मुश्किल है. कर्नाटक में उसके साथ सत्ता में साझीदार मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी केजरीवाल के समर्थन में दिल्ली पहुंच चुके हैं. ध्यान देने वाली बात है कि तीन दिन पहले ही राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में कुमारस्वामी नहीं आये थे.
फुल सपोर्ट...
बीजेपी ने भी नहीं सोचा होगा कि केजरीवाल का आंदोलन अब भी इतना टिकाऊ और बिकाऊ होगा. मालूम नहीं बीजेपी के लोग कैसे भूल गये कि आंदोलन के मामले में केजरीवाल को पछाड़ना हर किसी के वश की बात नहीं है. हर जगह मंदिर आंदोलन नहीं चलता - और न ही हर जगह लोगों को जिन्ना और गन्ना की लड़ाई में उलझाया जा सकता है. नतीजे तो अब सबको मालूम हो ही चुके हैं.
लगता है एलजी को लगा होगा, केजरीवाल एंड कंपनी कुछ देर बैठेगी और फिर चुपचाप निकल लेगी, लेकिन यहीं पर वो चूक गयी. केजरीवाल एक बार धरना देने सोफे पर बैठे तो उठने का नाम ही नहीं ले रहे.
दिल्ली बीजेपी के नेताओं ने सचिवालय पर जाकर एक बैनर टांग तो दिया, लेकिन कोई असर नहीं पड़ा. मीडिया में बुरे हाल में मोहल्ला क्लिनिक की तस्वीरें भी आईं, लेकिन केजरीवाल ने लोगों को समझा दिया कि उसे देखने सितंबर में कोफी अन्नान पूरे लाव लश्कर के साथ आ रहे हैं. ये कम बात है क्या?
दिल्ली पुलिस चीख चीख कर बताती रही कि आम आदमी पार्टी ने प्रधानमंत्री आवास मार्च के लिए परमिशन नहीं ली है. जो बात बगैर परमिशन मार्च निकालने में है वो प्रॉपर तरीके से चलने में कहां? फिर कैसे तकरार होगी? फिर कैसे गुत्थमगुत्थी होगी? फिर कैसे पुलिस के साथ दो-दो हाथ करते कार्यकर्ताओं की तस्वीरें वायरल होंगी?
दिल्ली मेट्रो के चार स्टेशन बंद कर दिये गये. आप नेताओं ने सोशल मीडिया पर समझाया कि लिस्ट में मंडी हाउस का नाम नहीं है - फिर क्या था 'एलजी' और 'मोदी' के टारगेट करते प्लेकार्ड लिये लोग दौड़ पड़े.
ये हाल तो सड़क पर रहा. दिल्ली पहुंच चार चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मुलाकात के लिए प्रधानमंत्री से अलग से टाइम मांगा - और मिल कर अपील की कि दिल्ली का मामला जल्द से जल्द सुलझाया जाये.
मुख्यमंत्रियों की मोर्चेबंदी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केजरीवाल के समर्थन में मैदान में मजबूती से डटी नजर आ रही हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और केरल के सीएम पी. विजयन के साथ साथ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू भी डटे हुए हैं.
देश के चार चार मुख्यमंत्रियों का सपोर्ट केजरीवाल के आंदोलन को और धार दे रहा है. सिर्फ इतना ही होता तो सोचना क्या, आंदोलन दिल्ली को बचाने के लिए चल रहा है और तीसरा मोर्चा अलग शेप ले रहा है.
कुमारस्वामी के राहुल गांधी के इफ्तार में न आने और केजरीवाल के धरने के सपोर्ट से भी साफ है कि समीकरण बदल रहे हैं. कुमारस्वामी कर्नाटक में कांग्रेस के साथ सरकार जरूर चला रहे हैं लेकिन जरूरी नहीं कि 2019 के कांग्रेस प्लान का वो हिस्सा भी बनें.
नायडू और विजयन का खुला सपोर्ट भी कांग्रेस को क्लियर मैसेज है - ममता की बात न मानना कांग्रेस की बड़ी भूल है. ममता ने कांग्रेस को पहले तो केजरीवाल को भी साथ लेने को कहा था, बाद में कांग्रेस को मोर्चे का न्योता भी दिया था. ममता के न्योते को कांग्रेस नेताओं ने ये कहते हुए ठुकरा दिया कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार और उम्मीदवार तो राहुल गांधी ही होंगे.
ममता बनर्जी जल्द ही डीएमके नेता एमके स्टालिन और यूपी में अखिलेश यादव और मायावती से मुलाकात करने वाली हैं. उधर, कांग्रेस ने चारा फेंका है कि नीतीश कुमार एनडीए छोड़कर चाहें तो महागठबंधन में लौट सकते हैं. अब तो नीतीश के सामने भी विकल्प में दो-दो गठबंधन दिखायी दे रहे होंगे. जाहिर है जहां ज्यादा संभावना होगी नीतीश उसी को फाइनल करेंगे.
केजरीवाल को धरने का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ है कि पूरा मीडिया अटेंशन ले रहे हैं. ममता बनर्जी भी कुछ दिन पहले दिल्ली आई थीं तो सुर्खियों में छायी रहीं, लेकिन केजरीवाल जैसी कवरेज उन्हें तो नहीं ही मिली. फिलहाल जिस हिसाब से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मोर्चा शक्ल ले रहा है नेतृत्व के रेस में केजरीवाल तो ममता को भी पीछे छोड़ते नजर आ रहे हैं - और केजरीवाल के धरने के पीछे तत्व की बात बस इतनी ही है.
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