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Updated: 21 फरवरी, 2019 04:13 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बातचीत कितनी गंभीर थी, ये अब जाकर मालूम हुआ है. पहले ये बातें सूत्रों के हवाले से खबरों में आ रही थीं, लेकिन अब तो अरविंद केजरीवाल के बयान से ही बहुत सारी बातें साफ हो चुकी हैं. जो बातें साफ नहीं हैं वो सवालों के घेरे में हैं. गठबंधन को लेकर अरविंद केजरीवाल स्टैंड 'कभी हां तो कभी ना' वाला ही रहा है. दिल्ली की रैली में अरविंद केजरीवाल ने खुद स्वीकार किया है कि कांग्रेस से गठबंधन को लेकर वो कितने उतावले थे लेकिन राहुल गांधी ने जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखायी.

दिल्ली में आप की जनसभा में अरविंद केजरीवाल ने जो कुछ भी कहा उसे कैसे समझा जाना चाहिये? क्या केजरीवाल को अब खुद पर भरोसा नहीं रहा? क्या केजरीवाल बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से डरने लगे हैं?

केजरीवाल को आप पर भरोसा क्यों नहीं?

दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन को लेकर अरविंद केजरीवाल की आतुरता कुछ वैसी ही लग रही है जैसी 2017 में अखिलेश यादव के हाव भाव देख कर लगते थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी के आप के साथ गठबंधन से परहेज के पीछे वही पुराने खट्टे अनुभव हैं?

दिसंबर, 2018 में आप ने पांच राज्यों में लोक सभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की थी - दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गोवा और चंडीगढ़. आप की ओर से बताया गया कि पांचों राज्यों की सभी 33 सीटों पर पार्टी अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेगी. इनमें दिल्ली में लोक सभा की 7 सीटें, हरियाणा में 10 सीटें, पंजाब में 13 सीटें, गोवा में 2 सीटें और चंडीगढ़ की एक सीट शामिल है.

दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में एक पब्लिक मीटिंग में अरविंद केजरीवाल ने जो कुछ कहा वो काफी अजीब लगा. केजरीवाल बोले, 'गठबंधन के लिए हम कांग्रेस से बात कर-कर के थक गये, लेकिन कांग्रेस ने हमारे साथ गठबंधन नहीं किया. कांग्रेस दिल्ली और उत्तर प्रदेश में भाजपा को जिताना चाहती है.'

सवाल ये है कि ऐसे थकाऊ प्रयास की अरविंद केजरीवाल को क्यों जरूरत पड़ने लगी? अगर दिल्ली में भी बीजेपी को अरविंद केजरीवाल अकेले चैलेंज नहीं कर सकते तो किस बूते मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का दावा करते फिरते हैं?

जिस दिल्ली में विधानसभा की 70 में से 67 सीटें आप ने जीते थे, वहां उसे जीरो सीटों वाली कांग्रेस की मदद भला क्यों चाहिये? केजरीवाल के कहने पर आप के टिकट पर अमेठी जाकर राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कुमार विश्वास के ट्वीट में भी यही सवाल है.

दिल्ली में जहां केजरीवाल की सभा थी वहां से उन्हीं की पार्टी की अलका लांबा विधायक हैं. केजरीवाल के कार्यक्रम में अलका लांबा को नहीं बुलाया गया था. कुछ दिन पहले राजीव गांधी को दिये गये भारत रत्न वापस के लिए दिल्ली विधानसभा में प्रस्ताव पारित किये जाने को लेकर अलका लांबा और अरविंद केजरीवाल में खासा विवाद हुआ था.

अपनी थकाऊ कोशिशों का जिक्र करने के साथ ही केजरीवाल ने सभा में मौजूद लोगों से पूछा - 'आप से पूछना चाहता हूं कि गठबंधन होना चाहिए कि नहीं?'

सभा में मौजूद लोगों का जवाब था - 'होना चाहिए.'

opposition leadersहम हमेशा साथ साथ नहीं हैं...

दिल्ली में आप ने पहली सरकार कांग्रेस की मदद से ही बनायी थी. बाद में दिल्ली कांग्रेस आप के साथ किसी भी तरह के समझौते के खिलाफ हो गयी. अजय माकन के बाद दिल्ली की कमान शीला दीक्षित के हाथों में आ चुकी है, लेकिन कांग्रेस स्टैंड बदला नहीं है.

ममता बनर्जी की कोलकाता रैली के बाद दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भी वैसी ही रैली की थी. राहुल गांधी रैली में तो नहीं गये लेकिन उसी दौरान एनसीपी नेता शरद पवार के घर हुई एक मीटिंग में जरूर पहुंचे. मीटिंग में अरविंद केजरीवाल भी मौजूद थे और उनकी राहुल गांधी से मुलाकात भी हुई. राहुल गांधी ने गठबंधन तो दूर, एक दूसरे के खिलाफ चुनाव तक लड़ने की भी बात कही. जब सलाह मशविरा का दौर आगे बढ़ा तो राहुल गांधी ने कहा, 'ठीक है. मैं बात करके बताता हूं.'

कोलकाता में हुई यूनाइटेड इंडिया रैली में अरविंद केजरीवाल ने कहा था - 'कुछ भी करो 2019 में मोदी शाह की जोड़ी सत्ता में दोबारा नहीं आनी चाहिये'. शायद यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा - "मोदी - शाह के अलावा जो भी PM बनेगा उसको समर्थन देंगे". चांदनी चौक की सभा में अरविंद केजरीवाल और दो कदम आगे नजर आये - 'अगर मुझे ये भरोसा हो जाए कि दिल्ली में बीजेपी को कांग्रेस हरा देगी तो मैं सातों सीटें छोड़ दूंगा.'

बंद कमरों की बातों को चुनावी मुद्दे के रूप में तब्दील करने की कोशिश के बाद केजरीवाल ने आखिर में ये भी कहा, 'कांग्रेस साथ आए ना आए. उन्होंने मना कर दिया है. हम अकेले लड़ेंगे और BJP को हराएंगे.'

सवाल ये है कि अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से हाथ मिलाने को लेकर इतने परेशान क्यों थे? क्या अरविंद केजरीवाल का खुद पर से भरोसा उठ गया है? विधानसभा के बाद हुए दो उपचुनावों में से एक एक बीजेपी और आप के खाते में आये. राजौरी गार्डन में जीत के साथ ही आप के विधायकों की संख्या घट कर 66 हो गयी. एमसीडी चुनावों में भी बीजेपी ने आप को भारी शिकस्त दी थी. क्या बीजेपी अब आप को भी डराने लगी है?

क्या अरविंद केजरीवाल को 2019 के आम चुनाव में अपनी सरकार को लेकर सत्ता विरोधी लहर की आशंका नजर आने लगी है?

आप ने बदला पैंतरा - सिर्फ पूर्ण राज्य या लोकपाल भी?

चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही राजनीतिक दलों की रणनीतियों में बहुत सारे बदलाव देखने को मिलते हैं. लोकपाल की बातें तो केजरीवाल या आप नेताओं के मुंह से शायद ही सुनने को मिलती हैं, लेकिन दिल्ली के पूर्ण राज्य का मामला एक बार फिर मेनस्ट्रीम में आते हुए लगता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश के स्थापना दिवस पर एक ट्वीट के जरिये लोगों को बधाई दी है. अरविंद केजरीवाल ने उसी ट्वीट को अपनी टिप्पणी के साथ रिट्वीट किया है - 'सर, दिल्ली भी पूर्ण राज्य के दर्जे का इंतजार कर रही है. आपने दिल्ली के लोगों से वादा किया था कि आप दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देंगे. कृपा करके ऐसा करें सर. दिल्ली के लोग 70 सालों से नाइंसाफी झेल रहे हैं.' साथ ही, केजरीवाल ने इस मामले में बीजेपी को उसके वादे की भी याद दिलायी है.

दिल्ली में केजरीवाल सरकार और उप राज्यपाल के अधिकारों को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला केजरीवाल सरकार के लिए बेहद निराशाजनक रहा क्योंकि उसमें दिल्ली सरकार की सीमाएं तय कर दी गयी हैं. अरविंद केजरीवाल ने फैसले पर सख्त टिप्पणी भी की थी जिसे बीजेपी ने कोर्ट की अवमानना करार दिया था.

दिल्ली सरकार के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही आम आदमी पार्टी ने पूर्ण राज्य के दर्जे की मुहिम तेज कर दी है. हो सकता है जल्द ही अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आप के नेता फिर से चुनावी रैलियों में लोकपाल-लोकपाल का रैप गाते देखने को मिलें.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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