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Updated: 24 नवम्बर, 2022 09:13 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अभी एक साथ दो नावों पर सवार होना पड़ रहा है. एमसीडी चुनाव (MCD Elections) की तैयारी तो वो पहले से भी कर ही रहे होंगे, लेकिन सोचा नहीं होगा कि ये चुनौती भी तभी आ खड़ी होगी जब वो गुजरात विधानसभा चुनावों में व्यस्त रहे होंगे.

गुजरात विधानसभा चुनाव अगर अरविंद केजरीवाल की चढ़ती राजनीति की मल्टी स्टोरी बिल्डिंग का हिस्सा है तो एमसीडी चुनाव नींव का एक भाग - लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि इमारत की अलग अलग दीवारें जल्दी जल्दी बनाने के चक्कर में वो नींव को ही दुरूस्त करने से चूक जा रहे हैं.

निश्चित तौर पर बाकियों के साथ साथ अरविंद केजरीवाल खुद भी एक सवाल से जूझ ही रहे होंगे कि दिल्ली (Delhi Government) विधानसभा से बाहर की चुनावी राजनीति में वो हर बार फेल क्यों हो जाते हैं. एमसीडी चुनाव में कुछ खास तो नहीं ही कर पाते, आम चुनाव में तो कांग्रेस भी पछाड़ देती है - और कई सीटों पर तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो जाती है.

शुरुआत तो दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में ही हो चुकी थी, नतीजे आने के बाद जब अरविंद केजरीवाल ने हनुमान जी थैंक यू बोला तो और आगे बढ़ने की हिम्मत हुई - और दिवाली आते आते टीवी पर विज्ञापन देकर जय श्रीराम के नारे लगाने लगे. यूपी विधानसभा चुनाव का वक्त आने पर अयोध्या तक पहुंच गये थे.

अब जय श्रीराम बोलने का असर ये हुआ है कि अरविंद केजरीवाल और उनके साथी दिल्ली में डबल इंजन की सरकार लाने की बात करने लगे हैं - मतलब, एमसीडी में AAP को बहुमत में लाने से है.

मगर, मुश्किलों ने चारों तरफ से ऐसे घेर रखा है कि हर कदम पर जूझना पड़ रहा है - सत्येंद्र जैन की जेल की ऐश जो फजीहत करा रही है, वो तो अलग ही है.

AAP की डबल इंजन सरकार?

एमसीडी चुनावों को ही ध्यान में रख कर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कूड़े के ढेर को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, लेकिन तिहाड़ जेल से एक एक करके सामने आये सीसीटीवी फुटेज ने ऐसी फजीहत शुरू करायी कि जवाब देते नहीं बन रहा है - फिर भी राजनीति में नये पैंतरे खोज लेना अरविंद केजरीवाल के लिए कोई कठिन काम तो है नहीं.

arvind kejriwalअरविंद केजरीवाल ने एमसीडी में कुछ भी पा लिया, गुजरात जैसी ही उपलब्धि समझी जाएगी.

दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के जेल में मसाज कराते वीडियो क्लिप आने के बाद मनीष सिसोदिया ने अपने तरीके से बचाव जरूर किया था. मेडिकल ग्राउंड पर फुट मसाज को फीजियोथेरेपी के तौर पर समझाने की कोशिश की. आप नेता गोपाल राय तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जेल के दिनों की याद दिलाने लगे - लेकिन सत्येंद्र जैन ने कोई मामूली रायता तो फैलाया नहीं है. अब तो खाने पीने से लेकर तमाम इंतजामों के फुटेज यही बता रहे हैं कि जेल की सजा सबके लिए नहीं होती.

आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच आमने सामने की तकरार तो तभी से चल रही है जब से सीबीआई ने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के घर पर छापेमारी की है - और मुसीबत वाले मौके को ट्विस्ट देते हुए आप नेताओं ने 2024 में मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल शुरू करा दिया.

अब अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों बीजेपी के डबल इंजन की सरकार का नारा भी हथियाने का प्रयास किया है. जैसे 2014 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही दिन बाद मोदी ने अरविंद केजरीवाल के चुनाव निशान को स्वच्छता अभियान से जोड़ कर पूरे देश में झाड़ू लगवा दिया था. अब कौन किसके सामान को झटक कर क्या और कितना हासिल कर सकता है, बात अलग है.

बीजेपी तो हर विधानसभा चुनाव में डबल इंजन की सरकार की बात करती है और लोगों को उसके तमाम फायदे समझाये जाते हैं. बीजेपी ने तो दिल्ली चुनाव के ठीक बाद बिहार में भी डबल इंजन की सरकार बनवायी थी, लेकिन नीतीश कुमार तो इंजन ही ले उड़े और ट्रैक बदलने के बाद लालू यादव के डिब्बे जोड़ दिये.

एमसीडी चुनाव के दूसरे चरण के चुनाव में आम आदमी पार्टी नये स्लोगन के साथ आयी है और कैंपेन थीम बीजेपी की पूरी तरह कॉपी लग रही है. पहले चरण में AAP ने ‘MCD में भी केजरीवाल’ के थीम पर सभी उम्मीदवारों की पदयात्रा, जनसंवाद और डोर टू डोर कैंपेन चलाया था.

आप नेताओं ने दिल्ली के लोगों को कैंपेन के दौरान ये समझाने की कोशिश की कि अगर पार्टी को एमसीडी में बहुमत मिली तो सारे काम बिलकुल वैसे ही होंगे जैसे दिल्ली सरकार में हो रहे हैं. अरविंद केजरीवाल की टीम जगह जगह पहुंच कर बता रही थी कि जिस तरह दिल्ली के लोगों के लिए बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल, यात्रा, तीर्थ यात्रा और तमाम इंतजाम और सुविधायें मुहैया करायी जा रही हैं, एमसीडी में भी पार्टी के सत्ता में आ जाने के बाद ऐसी सुविधाओं को और विस्तार मिलेगा.

और अब चुनाव कैंपेन के दूसरे फेज में नया स्लोगन लाया गया है - ‘केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद’.

नयी थीम के एक हजार नुक्कड़ सभा, डांस फॉर डेमोक्रेसी, नुक्कड़ नाटक, गिटार शो, मैजिक शो और बज-एक्टिविटीज के जरिये चुनाव प्रचार 23 नवंबर से शुरू हो चुका है - और ये सिलसिला अब चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 2 दिसंबर तक चलता रहेगा. दिल्ली में एमसीडी के लिए वोटिंग 4 दिसंबर को होनी है - नतीजे हिमाचल प्रदेश, गुजरात और उपचुनावों के साथ ही आएंगे.

आम आदमी पार्टी का नया पूरी तरह बीजेपी के डबल इंजन सरकार कैंपेन की कॉपी है और खुद मनीष सिसोदिया इसे कंफर्म भी कर रहे हैं. मनीष सिसोदिया कहते हैं, ये अभियान स्पष्ट तौर पर बीजेपी के डबल इंजन सरकार के चुनावी नारे का जवाब है.

बीजेपी नेता अपनी डबल इंजन सरकार के कैंपेन में दावा करते हैं कि अगर केंद्र और राज्य दोनों ही जगह उनकी पार्टी की सरकार होगी तो विकास के काम भी दुगुनी गति से होंगे. ये समझाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह बार बार इल्जाम लगाते हैं कि जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां केंद्र सरकार की योजनाओं को लटका दिया जाता है. आयुष्मान भारत योजना को लेकर तो ये देखा भी गया था. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शुरू शुरू में काफी अड़ंगे लगाने की कोशिश की थी.

दिल्ली नगर निगम चुनावों को लेकर मनीष सिसोदिया कहते हैं, 'दिल्ली सरकार की जो जिम्मेदारी थी... स्कूल, सड़क, अस्पताल केजरीवाल जी ने बहुत दिये, लेकिन बीजेपी को जब नगर निगम चलाने का मौका दिया तो बीजेपी ने कुछ नहीं किया. 15 साल में जनता बीजेपी का एक काम नहीं गिनवा पा रही... बीजेपी भी नहीं गिनवा पा रही.'

बीजेपी को कठघरे में खड़ा करते हुए मनीष सिसोदिया इल्जाम लगाते हैं, 'ये कोई अपने काम पर वोट नहीं मांग रहे... केवल केजरीवाल जी को जानकारी गाली देकर वोट मांगते हैं. सुबह से शाम तक अरविंद केजरीवाल जी को गाली देते हैं.'

अपनी बात समझाने के बाद मनीष सिसोदिया दावा करते हैं, 'हर वार्ड में केजरीवाल का पार्षद होगा तो जनता के वे सभी काम जिन्हें लेकर 15 साल से बीजेपी वादा करके धोखा देती रही... सभी काम अगले पांच साल में पूरे किये जाएंगे.

केजरीवाल बार बार क्यों चूक जाते हैं?

फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर अरविंद केजरीवाल के बयान को लेकर भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास पर विरोध प्रदर्शन किया था. विरोध प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ता काफी उग्र हो गये थे और तोड़ फोड़ भी कर डाली थी.

दिल्ली पुलिस ने घटना को लेकर तब आठ लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें एक युवक का नाम प्रदीप तिवारी था. प्रदीप तिवारी को रमेश नगर वार्ड से बीजेपी ने एमसीडी का उम्मीदवार बनाया है - और आम आदमी पार्टी को बीजेपी को भला बुरा कहने का मौका मिल गया है.

प्रदीप तिवारी की उम्मीदवारी पर आम आदमी पार्टी का कहना है, 'अब ये साफ हो गया है कि बीजेपी गुंडा पैदा करती है - और गुंडागर्दी करने वालों का सम्मान करती है.'

अब बीजेपी उम्मीदवार बन चुके प्रदीप तिवारी को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वो अपने स्टैंड पर कायम हैं. कहते हैं, 'मेरा मुख्य एजेंडा समाज और हिंदू समाज के लिए काम करना है.'

दिल्ली में देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल सरकार बनाने की हैट्रिक लगा चुके हैं. पहली बार 2013 में, फिर 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद. पहली सरकार तो अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हरा कर कांग्रेस के सपोर्ट से ही बनायी थी, लेकिन 2015 और 2020 के चुनाव में बंपर जीत हासिल की थी - 2015 में 70 में से 67 विधानसभा सीटें और 2020 में 62 सीटें.

अरविंद केजरीवाल ने 2014 और 2019 के आम चुनाव में काफी कोशिश की, लेकिन दिल्ली की सातों सीटें दोनों बार बीजेपी के खाते में आसानी से ट्रांसफर हो गये. 2014 में तो खैर वो खुद भी वाराणसी लोक सभा सीट से मैदान में थे, लेकिन कामयाबी भी मिली तो पंजाब से. तब पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री भगवंत मान सहित आप के चार सांसद लोक सभा पहुंचे थे.

2019 के आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन तब तक शीला दीक्षित को दिल्ली कांग्रेस का कामकाज सौंप दिया गया था - और वो आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के लिए तैयार ही नहीं हुईं.

अव्वल तो शीला दीक्षित ताउम्र नहीं भूल पायी होंगी कि कैसे एक नये नवेले नेता ने उनके इलाके में जाकर चुनावी शिकस्त दे डाली, लेकिन अरविंद केजरीवाल के साथ गठबंधन के लिए मना करने के पीछे उनकी अलग दलील थी. शीला दीक्षित का कहना था कि गठबंधन के बाद कांग्रेस को अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

चुनाव नतीजे आये तो मालूम हुआ कि कांग्रेस ने दिल्ली की सात में से किसी भी सीट पर अरविंद केजरीवाल के उम्मीदवारों को तीसरे स्थान से ऊपर नहीं उठने दिया था - और कई जगह तो वे जमानत तक नहीं बचा पाये थे. लंबे राजनीतिक अनुभव के आधार पर लिया गया शीला दीक्षित फैसला सही साबित हुआ.

2017 के एमसीडी चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल ने कोई कम मेहनत नहीं की थी. वो भी कांग्रेस और बीजेपी को मायावती की ही तरह लोगों को फर्क समझा रहे थे - जैसे कह रहे हों, एक नागनाथ है तो दूसरा सांप नाथ.

हद तो तब हो गयी जब अरविंद केजरीवाल दिल्ली के लोगों से कहने लगे, 'बीजेपी को वोट देने से अगर उनके बच्चों को डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां होती हैं, तो उसके जिम्मेदार भी वे खुद ही होंगे.'

निश्चित तौर पर अरविंद केजरीवाल के लिए भी ये रहस्य समझ पाना मुश्किल ही हो रहा होगा. विधानसभा में तो दिल्ली के लोग अरविंद केजरीवाल को जैसे एकछत्र राज सौंप देते हैं, लेकिन लोक सभा चुनावों में उनकी दाल तक गलने नहीं देते. बीजेपी के बाद कांग्रेस को वोट दे डालते हैं और वो भी आम आदमी पार्टी को पछाड़ देती है - और हद तो तब हो जाती है जब एमसीडी चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल को मन मसोस कर रह जाना पड़ता है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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