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Updated: 01 जनवरी, 2019 06:42 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सभी महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिल चुकी है, लेकिन बावजूद इसके अभी तक कोई भी रजस्वला महिला मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाई है. क्‍योंकि भगवान अयप्पा के भक्त इस फैसले के खिलाफ खड़े हैं. अब केरल की सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को आधार बनाकर राज्‍य में महिलाओं का ही एक आंदोलन खड़ा कर रही है. जबकि ऐसा ही एक फैसला सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में तीन तलाक को लेकर दिया था, जिसे कानूनी जामा पहनाने की कवायद में वामपंथी पार्टी विरोध का स्वर बुलंद कर रही हैं.

केरल सरकार की योजना है कि राज्‍य में महिलाओं की 620 किलोमीटर लंबी श्रृंखला बनाई जाए. महिलाओं की ये दीवार उत्तरी केरल के कासरगोड से लेकर दक्षिणी छोर तिरुवनंतपुरम तक बनेगी. उत्तरी छोर पर स्वास्थ्य मंत्री केके श्यालजा होंगी और दक्षिणी छोर पर माकपा नेता वृंदा करात. कुल मिलाकर केरल की वामपंथी सरकार सबरीमाला मामले में महिलाओं के पक्ष में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कराने पर अड़ी है. लेकिन वामपंथी पार्टी का दोहरा चरित्र संसद में उजागर हो रहा है, जहां वे मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में पेश तीन तलाक बिल का विरोध कर रही है.

सबरीमाला, तीन तलाक, वामपंथ, केरलकेरल की लाखों महिलाओं ने फैसला किया है कि वह महिलाओं के हक के लिए 620 किलोमीटर की महिला दीवार बनाएंगी.

सबरीमाला पर वामपंथी राजनीति

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा है कि सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ सांप्रदायिक ताकतों ने जो प्रदर्शन किए, उन्हीं की वजह से अब सरकार और अन्य प्रगतिशील संगठनों को राज्य में महिलाओं की दीवार बनाने के लिए प्रेरित किया है. विजयन ने ये भी कहा कि सभी महिलाएं जातियों और धर्म से हटकर एक महिला दीवार बनाएंगी. हालांकि, सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के लिए महिलाओं के हक में खड़ी केरल सरकार केंद्र में महिलाओं का हक नहीं देख रही है. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला ने इसे 'विरोधाभास की दीवार' कहा है. यूडीएफ के विधायक एमके मुनीर ने इसे हिंदू संगठनों को लुभाने वाली 'सांप्रदायिक दीवार' करार दिया है.

तीन तलाक का वामपंथी विरोध

जो वामपंथ सबरीमाला को लेकर महिलाओं का हक दिलाने के लिए 620 किलोमीटर लंबी दीवार बनाने जा रहा है, वही वामपंथ मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले हक के बीच दीवार बनकर खड़ा है. तीन तलाक को लेकर केंद्र सरकार ने लोकसभा में बिल पारित कर दिया है, लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं होने की वजह से बिल अटका हुआ है. साल 2018 के आखिरी दिन राज्यसभा में विपक्ष ने इस बिल के खिलाफ वोट किया.

आपको बता दें कि राज्यसभा में कुल 244 सदस्य हैं, जिनमें से 98 एनडीए के हैं. बिल को पारित करने के लिए बहुमत यानी 123 वोट चाहिए, जबकि बिल के विरोध में करीब 136 सांसद हैं. टीएमसी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने तो विपक्ष के विरोध के लिए मोदी सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि सरकार राजनीतिक आम राय बनाए बगैर ही बिल को राज्यसभा में पारित कराना चाहती है. अहम बात ये भी है कि जो एआईएडीएमके अक्सर सरकार के साथ दिखती है, वह भी तीन तलाक बिल को लेकर सरकार के खिलाफ खड़ी है.

कांग्रेस को बिल में सजा के प्रावधान पर कड़ा ऐतराज है और उनकी मांग है कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए. राज्यसभा में बिल पेश होने से पहले ही कांग्रेस समेत 12 राजनीतिक दलों ने इसे सभापति वेंकैया नायडू को चिट्ठी लिखी थी और बिल के सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की थी. इन पार्टियों में कांग्रेस, एनसीपी, टीडीपी, TMC, सीपीआई, सीपीएम, आम आदमी पार्टी और एआईएडीएमके जैसे दल शामिल हैं.

आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि एक जगह तो महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए 620 किलोमीटर लंबी महिलाओं की दीवार बनाई जा रही है और दूसरी जगह महिलाओं और उनके हक के बीच दीवार खड़ी कर दी गई है. साफ है कि यहां मामला महिलाओं को हक दिलाने का नहीं, बल्कि राजनीति चमकाने का है. तभी तो, जिस फैसले में अपना फायदा दिख रहा है, उसे लागू करने के लिए हर जतन हो रहे हैं, जबकि जिसमें फायदा नहीं दिख रहा, उसे लागू नहीं होने दिया जा रहा है.

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