Yamuna Pollution: कुमार विश्वास के तंज को सिर्फ केजरीवाल से जोड़ना बेमानी है
पूरा विश्व इस समय कोरोना वायरस महामारी और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की चुनौतियों से जूझ रहा है. छठ महापर्व के मौके पर यमुना में प्रदूषण (Pollution) की तस्वीरें लगभग हर मोबाइल स्क्रीन पर पहुंची होंगी. हजारों लोगों ने टीवी चैनलों पर भी यमुना के प्रदूषण को देखकर चिंता जताई ही होगी.
-
Total Shares
पूरा विश्व इस समय कोरोना वायरस महामारी और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहा है. ग्लासगो में आयोजित COP26 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दुनियाभर के देश इकट्ठा होकर ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए आखिरी चुनौती बता रहे हैं. इन सबके बीच इस बात पर पूरा भरोसा किया जा सकता है कि छठ महापर्व के मौके पर यमुना में प्रदूषण की तस्वीरें लगभग हर मोबाइल स्क्रीन पर पहुंची होंगी. हजारों लोगों ने टीवी चैनलों पर भी यमुना के प्रदूषण को देखकर चिंता जताई ही होगी. खैर, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ का महापर्व समाप्त हो गया है. लेकिन, यमुना में प्रदूषण की स्थिति जस की तस बनी हुई है. यमुना में प्रदूषण की तस्वीरों को लेकर आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और मशहूर कवि कुमार विश्वास (Kumar Vishwas) ने एक ट्वीट के जरिये दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर तंज कसा था.
कुमार विश्वास का अरविंद केजरीवाल पर तंज केवल उनसे ही नहीं जुड़ा है.
कुमार विश्वास ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की चुटकी लेते हुए लिखा कि भगीरथ जी स्वर्ग से गंगा, बादलों के जिस मार्ग से उतार कर लाए थे. 'लघुकाय-लंपट' जी, यमुना जी को उसी रास्ते दिल्ली ले आएं हैं, और वो भी 'मुफ़्त'. (और हां, इस बार वायु-प्रदूषण की जिम्मेदारी हरियाणा के किसानों पर रहेगी, पंजाब वालों पर नहीं, क्यूंकि वहां कुछ महीनों में चुनाव हैं. कुमार विश्वास ने इसके बाद कई ट्वीट्स कर अरविंद केजरीवाल के यमुना की सफाई को लेकर किए गए हवा-हवाई वादों की भी पोल खोली. वैसे, अरविंद केजरीवाल से पराली जलाने को लेकर बयान की उम्मीद रखना गलत है. वो भी तब, जब पंजाब में पराली जलाने की भरपूर खबरें सामने आ चुकी हैं. कुमार विश्वास के इस पूरे मामले में प्रदूषण को लेकर किए गए तंज को सिर्फ केजरीवाल से जोड़ना बेमानी है.
भगीरथ जी स्वर्ग से गंगा, बादलों के जिस मार्ग से उतार कर लाए थे “लघुकाय-लंपट” जी,यमुना जी को उसी रास्ते दिल्ली ले आएँ हैं, और वो भी “मुफ़्त”???(और हाँ,इस बार वायु-प्रदूषण की ज़िम्मेदारी हरियाणा के किसानों पर रहेगी, पंजाब वालों पर नहीं,क्यूँकि वहाँ कुछ महीनों में चुनाव हैं??) pic.twitter.com/vvx7d1dgpi
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) November 9, 2021
ट्विटर वाले और पद्म श्री पाने वाले पर्यावरण संरक्षकों में अंतर है
ये तंज उन तमाम लोगों के लिए है, जो किसी एक त्योहार पर एक्टिव होकर अपने एसी कमरों में बैठकर ट्विटर पर प्रदूषण की खबरों को ट्रेंड कराने लगते हैं. ये तंज उन तमाम लोगों के लिए है, जिन्होंने देश के इन पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं की जगह दिया मिर्जा, प्रियंका चोपड़ा सरीखों को अपना रोल मॉडल बना रखा है. ऐसा कहने की वजह ये है कि हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कर्नाटक की आदिवासी महिला तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) को पद्म श्री अवार्ड दिया है. तुलसी गौड़ा पिछले छह दशक से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करते हुए अब तक 30,000 से अधिक पौधे लगा चुकी हैं. वह बिना चप्पल (नंगे पैर) पद्मश्री सम्मान लेने पहुंची थीं. तुलसी गौड़ा को पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों का ऐसा ज्ञान है कि उन्हें 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' कहा जाता है. 2019 में भी कर्नाटक की सालूमरदा थिमक्का (Saalumarada Thimmakka) को पद्म श्री पुरस्कार दिया गया था. 107 साल की सालूमरदा थिमक्का को 'वृक्ष माता' कहा जाता है. उन्होंने 400 बरगद के पेड़ों के साथ करीब 8000 पौधों को रोपा और उनकी देखरेख करती हैं. थिमक्का के बच्चे नहीं थे, जिसकी वजह से उन्होंने पौधों को रोपना शुरू किया था.
तुलसी गौड़ा पिछले छह दशक से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करते हुए अब तक 30,000 से अधिक पौधे लगा चुकी हैं.
बीते साल अचानक लोगों के बीच फैले कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने लोगों को पर्यावरण और पेड़-पौधों के प्रति जागरुक किया है. लेकिन, अभी लोगों में पेड़-पौधों को लेकर उतनी जागरुकता नहीं आई है. कोई भी शख्स इन पद्म श्री विजेताओं से प्रेरणा ले सकता है. लेकिन, भारत में सबसे बड़ी समस्या ये है कि यहां लोगों को जो भी चाहिए, इंस्टेंट मोड में चाहिए. उनकी नजरों में कुछ पेड़ रोपने वालो को पुरस्कृत कैसे किया जा सकता है. जबकि, वह अपनी उंगलियों को कष्ट देकर ट्विटर पर अपने अमूल्य विचारों को प्रकट करते हुए सच्चे पर्यावरण प्रेमी बन रहे हैं. किसान आंदोलन के दौरान क्लाइमेट कार्यकर्ता दिशा रवि की टूलकिट वाला मामला भी लोग भूल ही गए होंगे. दरअसल, ऐसे तमाम एक्टिविस्ट जमीन पर काम करने की बजाय ट्विटर पर काम करने को महत्व देते हैं. क्योंकि, वो इन्हें नेम-फेम के साथ ही चंदा भी उपलब्ध करवाता है.
खैर, लोगों की आंखें खोलने के लिए ये भी बताना जरूरी है कि तमिलनाडु की 15 साल की स्कूल छात्रा विनीशा उमाशंकर (Vinisha Umashankar) ने ग्लासगो में आयोजित COP26 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में राजनेताओं को सीधे खरी बात करते हुए कहा कि बात करना बंद कीजिए और काम करना शुरू कीजिए. विनीशा उमाशंकर ने कहा कि मेरी पीढ़ी के कई लोग ऐसे नेताओं से नाराज और निराश हैं, जिन्होंने खोखले वादे किए हैं और उन्हें पूरा करने में विफल रहे हैं. हमारे पास नाराज होने का हर कारण है, लेकिन मेरे पास गुस्से के लिए समय नहीं है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो विनीशा उमाशंकर ने भी जलवायु परिवर्तन को लेकर ट्विटर पर गुस्सा जताए जाने से जमीन पर काम करने को अच्छा कहा है. कुल मिलाकर पर्यावरण को बचाना है, तो तुलसी गौड़ा और सालूमरदा थिमक्का जैसा काम कीजिए. ट्विटर पर ज्ञान मत दीजिए.
आपकी राय