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Updated: 10 मई, 2018 06:55 PM
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आपको याद होगा कुछ दिन पहले ही सामाजिक न्याय की खोज करने वाले नेता को कैसे अहंकार में डूबी मोदी सरकार ने दिल्ली के एम्स अस्पताल से नाजुक हालत में होने के बावजूद चलता कर दिया. ऐसा आरोप खुद लालू यादव ने मीडिया के सामने चीख-चीख कर लगाया था. दरोगा से लेकर एसपी तक कोई भी उस दिन उनके गुस्से से बच नहीं पाया. एक पल को लोगों को ये लगने लगा था कि वाकई ये तो राजनीतिक बदला लिया जा रहा है. एम्स के डॉक्टरों की काबिलियत पर सवाल उठाया जा रहा था. इसी राजनीतिक नौटंकी की आड़ में लालू के समर्थक अपने परंपरागत गुंडागर्दी के हुनर को दिल्ली से लेकर पटना तक प्रदर्शित कर रहे थे.

lalu prasad yadavएम्स में लालू से मिलने आए थे राहुल गांधी

चैनलों की सुर्खियां, लोगों की सहानुभूति और विपक्ष का अपार प्रेम लेकर लालू आखिर रांची लौट ही गए. समर्थकों और उनके सुपुत्रों को अपने नेता की तबियत और इलाज की चिंता खाए जा रही थी. लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप अपनी शादी पर पापा को मिस करने का ढोल पीट ही रहे थे कि एक बार फिर से भारतीय न्याय व्यवस्था ने उनकी आस्था का ख्याल करते हुए उनकी इस मनोकामना को हकीकत में बदल दिया. इस बार लालू को हरी बत्ती दिखाई रांची के डॉक्टरों ने और अपने बेटे की शादी की शोभा बढ़ाने के लिए उन्हें तीन दिनके लिए पैरोल दे दिया गया. किडनी फेल होने का दावा करने वाले लालू अब पटना में अपने आवास पर मेहमाननवाज़ी करते नजर आएंगे.

दरअसल भारतीय राजनीति में सब कुछ जायज़ है. नेता अपने समर्थकों का अंधा सपोर्ट तब तक पाते रहते हैं जब तक वो भावनाओं के दरिया में डूबकी लगाते रहते हैं. आखिर लालू यादव जन-नेता जो ठहरे पैरोल तो मिलना ही था. सत्ता चाहे किसी की भी हो नेताओं के बीच में राष्ट्रीय स्तर पर आपसी समझदारी के ऊपर एक रिसर्च होना चाहिए. अभूतपूर्व परिणाम सामने आएंगे. अपने राजनीतिक दुश्मन को कब ठिकाना लगाना है और कहाँ छूट देना है इसका सटीक माप तौल भारतीय राजनीति की वास्तविक धरोहर है.

lalu prasad yadavबेल पर बाहर लालू, लेकिन मीडिया से नहीं मिलेंगे

लालू यादव पीली धोती और पगड़ी पहन के जब समधी-मिलन करेंगे तो मीडिया का कैमरा भी बेताबी के साथ इस पल का दीदार करने को आतुर होगा. जाने-अनजाने कुछ समय के लिए ही सही लेकिन भारतीय राजनीति के केंद्र में एक बार फिर से सामाजिक न्याय का मसीहा होगा. जबरदस्त फैन फॉलोविंग होने के कारण नेताओं का जमावड़ा भी होगा. बेटे की शादी के साथ-साथ दो चार नए राजनीतिक समीकरण भी साध लेंगे.

लालू यादव की राजनीति को अगर ध्यान से देखा जाये तो नरेंद्र मोदी के स्टाइल की झलक नज़र आती है. मीडिया मैनेजमेंट और उसके बखूबी इस्तेमाल का हुनर तो लालू ने ही इस देश के राजनेताओं को सिखाया है. 2019 चुनाव में बीजेपी की हार के साथ-साथ संघ की बर्बादी की कसम खाकर और खिलाकर एक बार फिर अपने ठिकाने पर लौटना तो पड़ेगा ही लालू जी को.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न इंडिया टुडे)

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