पूर्वांचल पार्ट 2 में वोटिंग प्रतिशत और मुस्लिम वोटों की प्रमुख भूमिका
देखा जाये तो सातवें चरण की दहलीज पर खड़े मतदान में ऐसा लगता है जैसे धर्म ने जाति को पीछे छोड़ दिया है - और मुद्दे तो काफी हद तक हाशिये पर जा पहुंचे हैं.
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बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो दौरान मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भी स्वागत के लिए खड़े थे. बीजेपी ये तो दावा नहीं कर रही कि उसे मुस्लिम वोट भी मिल रहे हैं, लेकिन ये जरूर कह रही है कि वो समाजवादी गठबंधन को तो पक्का नहीं मिल रहा.
अपनी जीत की दावेदारी के पीछे बीजेपी तर्क है कि चुनाव का आखिरी दौर आते आते ज्यादातर मुस्लिम वोट बीएसपी की ओर खिसक चुका है.
वैसे देखा जाये तो सातवें चरण की दहलीज पर खड़े मतदान में ऐसा लगता है जैसे धर्म ने जाति को पीछे छोड़ दिया है - और मुद्दे तो काफी हद तक हाशिये पर जा पहुंचे हैं.
भीड़ के अलग अलग रंग
बनारस में 4 मार्च को सुबह, दोपहर और शाम की भीड़ के तीन अलग अलग रंग दिखे. सुबह की भीड़ में भगवा छाया हुआ था तो दोपहर में उसका रंग नीला नजर आया - और शाम होते होते ये हरे-लाल में तब्दील हो चुका था.
बीजेपी का दावा है कि मोदी के रोड शो में भीड़ 'न भूतो न भविष्यति' रही. समाजवादी और कांग्रेस गठबंधन का दावा तो उससे भी बढ़ कर है और उसकी वजह भीड़ का विस्तार भी है.
'न भूतो न...'
इसमें राजनीति की बात ये है कि हर पार्टी विरोधी दल पर किराये की भीड़ जुटाने का इल्जाम लगा रहा है - और इस पर यकीन इसलिए भी किया जा सकता है कि हम्माम में सब के सब रेनकोट पहने हुए हैं.
वैसे भीड़ तो दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना के आंदोलन में भी हुआ करती थी - और 2012 और 2014 की मायावती की रैलियों में भी. मायावती की ताजा रैलियों जिनमें बनारस भी शामिल है - भीड़ देख कर तो यही कहा जा सकता है कि चिंता की कोई बात नहीं.
सबकी भीड़ एक जैसी नहीं होती
चिंता की बात बस इतनी होती है कि भीड़ में कोई शख्स कुछ नहीं कहता. अगर कैमरे पर कुछ कहता भी है तो 'मन की बात' नहीं कहता.
भीड़ वोट नहीं होती
क्या मोदी की अगवानी के लिए आये मुस्लिम समुदाय के लोग बीजेपी के दावे को मजबूत करते हैं? क्या अखिलेश यादव के विश्वनाथ मंदिर में बैठने के तरीके में कोई मैसेज छिपा हुआ था?
बनारस में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दोनों ही ने काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा की. किसी की श्रद्धा पर तो नहीं हां दोनों के तरीकों पर सवाल जरूर उठा. मोदी ने वो परंपरा तोड़ी जिसमें काशी विश्वनाथ से पहले शहर कोतवाल काल भैरव की पूजा की मान्यता है, तो मंदिर में अखिलेश के बैठने के तरीके पर सवाल उठाये गये.
हार के डर से ही सही, अखिलेश और राहुल मंदिर तो गए, कुछ नया सीखा.. #मोदीमय_काशी pic.twitter.com/a6rQMgKuaO
— Amit Malviya (@malviyamit) March 4, 2017
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में अखिलेश यादव के पूजा पर बैठने के तरीके पर लोगों को हैरानी हुई. इसमें अखिलेश कुछ इस तरह बैठे हैं जैसे नमाज पढ़ने के लिए बैठा जाता है. हालांकि, बताते हैं कि, पुजारी के टोकने पर उन्होंने तरीका बदल लिया. क्या अखिलेश यादव के इस तरह बैठने के पीछे कोई कारण भी रहा या फिर बस जैसे आरामदेह लगा बैठ गये. क्या मंदिर में बैठ कर अखिलेश मुस्लिम समुदाय को कोई संदेश देना चाह रहे थे - और क्या जानबूझ कर इस वीडियो को इस कदर प्रचारित किया गया कि वायरल हो जाये. ऐसे कई सवाल हैं जो स्वाभाविक तौर पर किसी के भी मन में उठ सकते हैं.
जब मोदी रोश शो करते काशी विश्वनाथ मंदिर जा रहे थे तो उनका कारवां मदनपुरा होकर गुजरा. मदनपुरा मुस्लिम बहुल इलाका है. मोदी के स्वागत में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भी वहां खड़े थे.
नजारा बड़ा ही अनोखा था. बरसों बाद कोई प्रधानमंत्री इस तरह खुली गाड़ी में इलाके से गुजर रहा था. तभी बुनकर समुदाय के सरदार मुख्तार महतो ने सुरक्षा घेरे के पीछे से ही अपना तोहफा मोदी की ओर उछाल दिया - और कभी एक मौलवी की टोपी पहनने से मना कर चुके मोदी ने शॉल को न सिर्फ लपक लिया बल्कि सिर पर लगाया और हाथ हिलाकर शुकराने का इजहार भी किया.
शाहिद जमाल भी उन्हीं में से एक रहे. जब टाइम्स ऑफ इंडिया ने उनकी राय जाननी चाही तो जवाब मिला, "इसका मतलब ये नहीं लगाया जाना चाहिए कि हम उन्हें वोट देंगे. हम कभी भी उन्हें वोट नहीं देंगे."
लेकिन खुद बीजेपी को वोट न देने की उन्होंने जो वजह बतायी वो और भी गौर करने वाली है, "अगर हम इनको वोट कर भी दे तो भी न तो बीजेपी वाले न मोदी जी विश्वास करेंगे कि हमने इनको वोट दिया." मदनपुरा में 90 के दशक में दो बार भयानक दंगे हुए थे इसलिए ये इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है.
भीड़ तो अच्छी रही, लेकिन...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनारस पहुंचने से पांच साल पहले बीजेपी को बीएसपी से अच्छी टक्कर मिली थी. बीजेपी उम्मीदवार मुरली मनोहर जोशी और बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े मुख्तार अंसारी के बीच वोटों का फासला महज तीन फीसदी का था लेकिन हार का अंतर एक लाख के करीब रहा. जोशी को 2,03,122 जबकि मुख्तार को 1,85,911 वोट मिले थे.
क्या आखिरी ओवर की लड़ाई में धर्म इतना आगे बढ़ चुका है कि जातीय समीकरण पीछे छूट चुके हैं? वैसे मुख्तार को मिले वोटों में इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि उसमें मायावती के समर्पित दलित वोट भी शामिल रहे. इस बार भी मायावती, मुख्तार को मिला कर बीजेपी और समाजवादी गठबंधन की नींद हराम किये हुए हैं.
मोदी को नाराज विधायक श्यामदेव रॉय चौधरी का हाथ पकड़ कर दर्शन के लिए मंदिर साथ ले जाना संघ के लिए राहत की बात होगी, लेकिन वोट प्रतिशत तो छठे चरण भी पांचवें के बराबर ही रहा - ये चिंता तो खत्म नहीं हो पायी. अब तक आखिरी ओवर से ही बची खुची आस है.
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