दुनिया के दूसरे भारत, पाकिस्तान और कश्मीर के बारे में जान लीजिए
भारत और पाकिस्तान के बीच जैसे कश्मीर के हालात हैं वैसे ही हालात दो अन्य देशों के बीच हैं जहां जमीन के एक टुकड़े को लेकर दो देश सालों से एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बने हुए हैं.
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पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है. तनाव के हालात ये हैं कि सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान दो दिन के पाकिस्तान दौरे के बाद सीधे भारत नहीं आए बल्कि पहले रियाद गए और उसके बाद भारत आए ताकि ऐसा न लगे कि वो पाकिस्तान और भारत की बॉर्डर पार कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान से सीधे भारत आना यहां मंजूर नहीं था और इसलिए मोहम्मद बिन सलमान जिन्हें MBS भी कहा जाता है वो पहले एक दिन के लिए वापस सऊदी गए और फिर भारत दौरा किया.
ये सुनने में भले ही अजीब लग रहा हो और कई लोग इसकी निंदा कर रहे हों, लेकिन ये पहली बार नहीं है कि दो देशों के बीच राजनयिक संबंध इतने खराब हो गए हों कि एक देश से दूसरे देश की ओर सीधे जाना भी मुमकिन न हो. हिंदुस्तान, पाकिस्तान और कश्मीर की ही तरह एशिया के दूसरे हिस्से में दो देशों और एक स्वतंत्र (स्वघोषित) स्टेट की लड़ाई बसरों से चली आ रही है. अब तो इन दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध हैं ही नहीं. यहां भी आलम ये है कि अगर कोई टूरिस्ट भी इनमें से एक देश हो आता है तो वो उससे सीधे दूसरे देश नहीं जा सकता है. यहां बात हो रही है आर्मीनिया (Armenia) और अजरबैजान (Azerbaijan) की. इन दोनों देशों का कश्मीर बना हुआ है नगोर्नो-कार्बाख (Nagorno-Karabakh) जिसे अब Republic of Artsakh के नाम से भी जाना जाता है. पर ये अंतरराष्ट्रीय नजर में आजाद हिस्सा नहीं है और अजरबैजान का हिस्सा है.
नगोर्नो कार्बाख का विवादित हिस्सा दोनों देशों की प्रतिष्ठा बना हुआ है.
कितने खराब हैं इन देशों के रिश्ते?
फर्ज कीजिए आप टूरिस्ट हैं और एशिया के उस हिस्से में घूम रहे हैं जहां जॉर्जिया, आर्मीनिया और अजरबैजान है. आप पहले आर्मीनिया या अजरबैजान में से कोई एक देश घूम आए हैं और बॉर्डर के अगल बगल के शहर घूमना चाहते हैं. ऐसे में आपको जॉर्जिया के रास्ते दूसरे देश जाना होगा क्योंकि सीधे तौर पर न ही सड़क न ही प्लेन आपको एक देश से दूसरे देश पहुंचाएगा. यहां तक कि अगर आर्मीनिया का स्टैंप आपके पासपोर्ट पर लगा है तो अजरबैजान के कस्टम डिपार्टमेंट वाले आपके उस देश से जुड़े सवाल भी पूछेंगे.
आलम ये है कि अजरबैजान में किसी भी एथिनिक आर्मेनियन (जिनके पुरखे भी आर्मीनिया से थे, आर्मीनिया के लोग और नागोर्नो कारबाख के लोग) दाखिल हो ही नहीं सकते. ये कोई लिखित नियम नहीं है, लेकिन कई टूरिस्ट वेबसाइट और Quora जैसे प्लेटफॉर्म पर आपको कई लोगों के बयान मिल जाएंगे कि आर्मेनियन लोगों को अजरबैजान में दाखिल होने नहीं मिलेगा. इतना ही नहीं, कई रशियन जिनके सरनेम आर्मेनियन लगते हैं उन्हें भी अजरबैजान में दाखिल नहीं होने दिया जाता.
एक ट्रैवल वेबसाइट का स्क्रीनशॉट
यहां तक कि अगर कोई टूरिस्ट पहले कभी Nagorno-Karabakh हिस्से में गया है और उसके पासपोर्ट में इसका स्टैम्प लगा हुआ है तो भी अजरबैजान में दाखिल नहीं हुआ जा सकता. सोशल मीडिया पर न जाने कितने ही ऐसे किस्से सामने आ जाएंगे जहां लोग आर्मीनिया और अजरबैजान दोनों देशों में जाने की कोशिश में रहे, लेकिन उन्हें आर्मीनियन सरनेम होने के कारण अजरबैजान में एंट्री नहीं मिली. ये दोनों ही देश Nagorno-Karabakh के मामले में भारत-पाकिस्तान से काफी पहले से लड़ रहे हैं और यहां के लोग अजरबैजान की सरहद का हिस्सा होते हुए भी आर्मीनिया के साथ जाना चाहते हैं क्योंकि अधिकतर आर्मीनियन ही हैं. जैसा कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के मामले में कश्मीरियों के साथ है जो भारत का हिस्सा होते हुए भी पाकिस्तान जाना चाहते हैं क्योंकि अधिकतर मुस्लिम हैं.
क्या है इतनी दुश्मनी का कारण?
ये दुश्मनी कश्मीर जैसी ही है. बस यहां के कश्मीर का नाम है नगोर्नो कारबाख. आर्मीनिया और अजरबैजान 1918 से 1921 के बीच में आज़ाद थे. आजादी के वक्त भी इन दोनों देशों में कोई खास दोस्ती नहीं थी, लेकिन इतनी दुश्मनी भी नहीं थी. पहला विश्व युद्ध खत्म होने के बाद Transcaucasian Federation नाम का एक हिस्सा तीन देशों में विभाजित हो गया था जिसे आर्मीनिया, जॉर्जिया और अजरबैजान के नाम से जाना जाता है. इसके बाद 1922 से 1991 तक ये सोवियत यूनियन का हिस्सा बन गए. जब ये सोवियत यूनियन का हिस्सा थे तब जोसफ स्टालिन ने अजरबैजान के बीच में एक छोटा आर्मीनिया बना दिया. ये हिस्सा था नागोर्नो कारबाख. कारण ये बताया गया कि क्योंकि इस हिस्से में सबसे ज्यादा आर्मेनियन रहते हैं इसलिए इसे बनाया जाए. ये थी आर्मीनिया और अजरबैजान के झगड़े की शुरुआत. ठीक जैसे हिंदुस्तान पाकिस्तान के टुकड़े ब्रिटेन ने किए थे वैसे ही रशिया ने इन दोनों देशों को तोड़ दिया.
नगोर्नो कार्बाख में हमेशा जंग का खतरा बना रहता है और यहां दोनों देश सीजफायर का उलंघन करते रहते हैं.
जोसफ स्टालिन की सोच से परे आम लोग ये मानते हैं कि अजरबैजान में छोटा आर्मीनिया इसलिए बनाया गया था ताकि डिवाइड एंड रूल वाली पॉलिसी अपनाई जा सके ताकि आर्मेनियन सोवियत यूनियन के साथ रहें. कुछ इतिहासकारों को लगता है कि इसे इसलिए बनाया गया था ताकि तुर्की को खुश किया जा सके और एक दिन आगे चलकर ये देश कम्युनिस्ट बन सकें.
कश्मीर के जैसा नगोर्नो कारबाख के लोगों का बर्ताव-
जैसे कश्मीरी अपनी आजादी की बात करते हैं और कहते हैं कि वो पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं वैसे ही नगोर्नो कारबाख के लोग अजरबैजान की सरहद का हिस्सा होते हुए भी आर्मीनिया से मिलना चाहते हैं. 1990 के दशक की शुरुआत में सोवियत यूनियन के खात्मे के समय नगोर्नो कारबाख के लोगों ने खुद को रिपब्लिक घोषित कर दिया. पर ये सिर्फ उनके द्वारा माना गया था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें अजरबैजान का हिस्सा माना जाता है.
नगोर्नो कारबाख की इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से नकार दिया और दोनों देशों (आर्मीनिया, अजरबैजान और नगोर्नो) के बीच जंग छिड़ गई. ये पार्टीशन के समय के कत्लेआम जैसा ही है जब हजारों आर्मेनियन अजरबैजान छोड़कर आर्मीनिया चले गए और हजारों अजरबैजानी आर्मीनिया छोड़ आए. 1995 में आर्मेनियन फौज ने उसी प्रकार नगोर्नो कारबाख को कब्जे में लिया जिस तरह से पाकिस्तान ने कश्मीर के एक हिस्से को छीना था. इसके बाद दोनों देशों में सीजफायर अग्रीमेंट हुआ और नगोर्नो कारबाख ने खुद को रिपब्लिक ऑफ आर्टसाख बना लिया. अभी नगोर्नो कारबाख या आर्टसाख आनैतिक तौर पर अर्मेनिया के कब्जे में है.
दोनों देशों की तरफ से सीजफायर का उलंघन कई बार किया जा चुका है. 2016 में तो यहां पूरी तरह से युद्ध के हालात बन गए थे. कई बार अजरबैजानी फौजों ने ये कहा है कि नगोर्नो कारबाख को फौज के बल पर हासिल कर लेंगे. जिस प्रकार कश्मीर में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है उसी तरह नगोर्नो कारबाख में आर्मीनिया की संख्या है. जैसे पाकिस्तान ने आजाद कश्मीर को एक अलग देश नहीं बनाया है वैसे ही स्वघोषित रिपब्लिक होने के बाद भी नगोर्नो कारबाख को किसी भी देश ने एक अलग देश नहीं माना है, यहां तक कि आर्मीनिया ने भी नहीं.
जिस तरह भारत का साथ अमेरिका और पाकिस्तान का साथ चीन देता है वैसे ही आर्मीनिया का साथ रशिया देता है और अजरबैजान का तुर्की. जहां इस समस्या का भी हल नहीं निकल रहा वहीं अन्य देशों का कहना है कि जब तक ये दोनों देश कोई हल नहीं निकालते तब तक ये विवादित इलाका ही रहेगा.
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि एशिया में एक नहीं दो-दो कश्मीर हैं.
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