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Updated: 02 मई, 2020 04:54 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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लॉकडाउन 3.0 (Lockdown 3.0) की खबर आने के पहले से ही विरोध के कुछ स्वर सुनाई देने लगे थे. लॉकडाउन का प्रत्यक्ष विरोध तो राजनीति में ही दिखा है, लेकिन परोक्ष विरोध के कुछ स्वर भी सुनने को मिले जरूर हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ बातचीत में RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने तो आगाह किया ही था, इन्फोसिस के संस्थापक एन. नारायणमूर्ति (Narayana Murthy and Raghuram Rajan) भी पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि देश के लिए और लॉकडाउन सही नहीं होगा.

मुश्किल ये है कि लॉकडाउन का विरोध करने वाले कोरोना वायरस की टेस्टिंग अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के तरीके तो बता रहे हैं, लेकिन ये नहीं समझा पा रहे हैं कि लॉकडाउन का विकल्प क्या है - और अगर लॉकडाउन का विकल्प नहीं है तो फिर विरोध की जरूरत क्यों?

कोरोना वो दुश्मन नहीं कि कोई मौत को गले लगा ले!

कोरोना से होने वाली मौतों के चलते अमेरिका दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है. अमेरिका के बाद स्पेन दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश है. स्पेन में 14 मार्च से लॉकडाउन लागू है जिसे 9 मई तक बढ़ाया गया है - कुल 57. भारत में भी दो हफ्ते का तीसरा लाकडाउन मिलाकर 57 दिन हो जाएगा. वैसे स्पेन के एक छोटे शहर हारो को 7 मार्च को ही लॉकडाउन कर दिया गया था - हारो के लोगों के लिए तो लॉकडाउन 64 दिन का हो जाएगा.

अमेरिका से पहले कोरोना वायरस से मौतों के मामले में इटली नंबर 1 बना हुआ था - इटली में 57 दिन बाद लॉकडाउन रियायतों के साथ खत्म किया जा रहा है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि रियायतों के ऐलान होते ही लोग डिक्शनरी में उसके अर्थ खोजने लगे हैं.

इटली के प्रधानमंत्री ग्यूसेप कोंते ने लोगों से कहा कि देश कुछ हिस्सों में सरकार लॉकडाउन से रियायत देगी और लोगों को 'कॉनज्यूनिटी' के साथ अपने इलाके में घूमने की अनुमति मिलेगी. इस शब्द का मतलब रिश्तेदार होता है - संबंधी या प्रियजन भी कह सकते हैं. ऐलान होने के बाद से लोग शिद्दत से यही समझना चाह रहे हैं कि रिश्तेदार से सरकारी आशय क्या है - हो भी क्यों न, कोरोना वायरस ने तो रिश्तों को भी उलझा कर रख ही दिया है.

विरोध की बात करें तो एक तरफ अमेरिका कोरोना वायरस के प्रकोप से सबसे ज्यादा जूझ रहा है और दूसरी तरफ लॉकडाउन का विरोध हो रहा है, जबकि ये देशव्यापी नहीं है. बस कुछ राज्यों के गवर्नर लोगों को घरों में रहने और सार्वजनिक स्थानों को बंद रखने का आदेश दिया है. मिशिगन में तो लोग विरोध प्रदर्शन करते हुए गवर्नर के दफ्तर पहुंच गये जिनमें कुछ के पास तो हथियार भी थे.

देश में लॉकडाउन 3.0 की खबर आते ही सुहेल सेठ ने ट्वीट किया और इसे अजीब फैसला बताते हुए कहा कि जब कई विशेषज्ञ और उद्योगों से जुड़े लोग विरोध कर रहे थे तो इसकी क्या जरूरत थी?

निश्चित तौर पर सुहेल सेठ एन. नारायणमूर्ति और रघुराम राजन जैसे लोगों की तरफ इशारा कर रहे होंगे. ये दोनों ही बड़े नाम हैं और लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा से पहले ही अपना विरोध जता चुके हैं.

नारायणमूर्ति ने एक कार्यक्रम में चेतावनी दी थी कि लॉकडाउन बढ़ाया गया तो सबसे ज्यादा मौतें भूख से होंगी. नारायणमूर्ति की नजर में भारत लंबे समय तक लॉकडाउन झेलने में सक्षम नहीं है. नारायणमूर्ति ने कहा, 'अगर लॉकडाउन को आगे बढ़ाया जाता है, तो एक वक्त ऐसा आएगा जब कोरोना से ज्यादा मौतें भूख की वजह से होंगी.'

क्या इसे ऐसे समझा जाना चाहिये कि मौत तो निश्चित है कोरोना नहीं तो भूख से होगी ही, इसलिए कोरोना से लोगों को मरने दिया जाये क्योंकि वो संख्या भूख से होने वाली मौतों के मुकाबले कम होगी?

narayana murthy, raghuram rajanलॉकडाउन 3.0 में तार्किक विरोध की गुंजाइश बिलकुल नहीं है

कितनी अजीब बात है? क्या मौत महज एक नंबर है? क्या इंसान भी महज एक नंबर है? ये दलील तो उस सोच को भी पीछे छोड़ देती जिसमें लोगों को महज वोट बैंक और इंसान को एक वोटर या नंबर के रूप में गिना जाता है.

नारायणमूर्ति कुछ ऐसे ही समझाते हैं, जैसे - हमें इस वायरस के साथ ही जीना सीखना होगा.

ठीक है. इंसान जीना तो सीख ही लेता है. ये इंसान की ही फितरत होती है कि वो हालात कोई भी हो जब तक सांस चलती है तब तक जूझता रहता है. लेकिन क्या कोरोना के साथ जीने के लिए पूरे होशो-हवास में मौत को गले लगा लेना चाहिये? ये तो बहुत ही अजीब तर्क है.

नारायणमूर्ति की दलील सुनिये - भारत में हर साल 90 लाख लोगों की मौत अलग-अलग वजहों से होती है. अगर आप 90 लाख लोगों की मौत की तुलना पिछले दो महीने में हुई 1000 मौतों से करेंगे, तो पाएंगे ये बहुत घबराने वाली स्थिति नहीं है.'

कोरोना वायरस भारत ही नहीं पूरी मानवता का दुश्मन है - लेकिन अगर भारत की बात है तो कोरोना वायरस कोई सरहद पार वाला दुश्मन नहीं है कि उससे जंग में जान तक न्योछावर कर देना बहादुरी समझी जाएगी.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ वीडियो संवाद में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रहे अर्थशास्त्री रघुराम राजन भी नारायणमूर्ति के नजरिये से ही इत्तफाक रखे हुए नजर आये थे. रघुराम राजन की नजर में लंबा लॉकडाउन अर्थव्यवस्था के लिए भयानक हो सकता.

ये विकेंद्रीकरण नहीं तो और क्या है

रघुराम राजन से बातचीत में ही राहुल गांधी ने एक और बात समझने और समझाने की कोशिश की कि व्यवस्था सेंट्रलाइज्ड होती जा रही है. कुछ और लोगों ने भी कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के दौरान नौकरशाही के बढ़ते प्रभाव और लाइसेंस राज की वापसी जैसी बातें भी करने लगे हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना वायरस से जंग में मंत्रियों से ज्यादा नौकरशाहों पर ज्यादा भरोसा करते लगते हैं - क्योंकि तीन दर्जन से ज्यादा एक्टिव नौकरशाह सीधे प्रधानमंत्री मोदी के संपर्क में रहते हैं.

राहुल गांधी का जोर व्यवस्था के विकेंद्रीकरण पर रहा और वो कांग्रेस शासन में पंचायती राज को बढ़ावा देने की बात समझाने की कोशिश में थे - और दिक्कत इस बात से रही कि जो काम पंचायतों के जरिये होना चाहिये वो स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी कर रहे हैं. जिलाधिकारी मतलब नौकरशाह.

वैसे हाल फिलहाल तो देखने को ये मिला है कि प्रधानमंत्री मोदी तमाम चीजों को खुद ही विकेंद्रीकृत करने की कोशिश कर रहे हैं - क्या राहुल गांधी इस बात के लिए क्रेडिट ले सकते हैं. हालांकि ट्विटर पर अभी तक धन्यवाद नहीं कहा है.

1. लॉकडाउन के लागू होने और 19 दिन के लिए बढ़ाये जाने की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने जरूर की थी, लेकिन लॉकडाउन के तीसरे चरण की जानकारी गृह मंत्रालय के सर्कुलर के जरिये आयी - क्या अब भी राहुल गांधी कहेंगे कि सब कुछ प्रधानमंत्री मोदी खुद ही कर रहे हैं.

2. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत ने कोरोना वॉरियर्स के लिए फ्लाइपास्ट की जानकारी देने के लिए तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ प्रेस कांफ्रेंस की. पहले तो ताली और थाली बजाने जैसी बातें या दीया जलाने की सलाह देने खुद प्रधानमंत्री ही सामने आते रहे हैं - लेकिन अब तो ऐसा नहीं हुआ है.

3. अपने घरों से दूर फंसे हुए लोगों को रेलवे की तरफ से सलाह आयी है कि वे अपने राज्यों के नोडल अफसरों से सही जानकारी सुनिश्चित करने के बाद ही स्टेशन पहुंचें - क्या ये विकेंद्रीकरण का उदाहरण नहीं है?

लॉकडाउन 3.0 को तो संपूर्ण लॉकडाउन कह भी नहीं सकते - क्योंकि ग्रीन जोन में तकरीबन सारी गतिविधियों की अनुमति रहने वाली है ही. वैसे भी इस वैश्विक महाआपदा के बाद तो मामूली सुविधाएं भी डूबते को तिनके के सहारे जैसी महसूस की जानी चाहिये. संपूर्ण लॉकडाउन की स्थिति रेड जोन में जरूर रहने वाली है और वो जरूरी भी है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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