Lockdown 4.0 guidelines यानी कोरोना के साथ जीने की ट्रेनिंग
लॉकडाउन 4.0 (lockdown 4.0 guidelines) के साथ ही धीरे धीरे कोरोना वायरस के साथ जीने (How To Live With Coronavirus) की प्रैक्टिस शुरू हो रही है, लेकिन इसमें चुनौतियां बेशुमार (Many Challenges) हैं - हालत सावधानी हटी दुर्घटना घटी टाइप हो जाएगी.
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भारत में कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों में एक ही चीज अच्छी है - कोरोना संक्रमण को शिकस्त देने वालों की संख्या लगातार एक तिहाई बनी हुई दिखी है. भले ही किसी 24 घंटे या 7 दिन की अवधि में कोरोना संक्रमण के शिकार लोगों की तादाद में कितना भी इजाफा क्यों न हुआ हो. लॉकडाउन 4.0 (Lockdown 4.0 guidelines) तक पहुंचते पहुंचते कोरोना वायरस को लेकर अब ये धारणा भी जोर पकड़ने लगी है कि इसके साथ ही जीने की आदत (How To Live With Coronavirus) डाल लेनी चाहिये. मतलब, ये कतई नहीं कि अब कोरोना वायरस की परवाह करने की जरूरत नहीं है, बल्कि ये कि बीमारी से बचाव के सारे एहतियाती उपायों के साथ आगे बढ़ने की कोशिश शुरू होनी चाहिये.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्र के नाम अपने ताजा संदेश में यही समझाने की कोशिश की कि मुसीबत को मौके में तब्दील करने का वक्त आ चुका है - ऐसे में कोरोना वायरस का अब डट कर मुकाबला करने की जरूरत है. कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जंग लड़ रही है, जाहिर है जंग दुश्मन के खिलाफ ही लड़ी जाती है - फिर तो कोरोना वायरस से लड़ाई के लिए हर तरह से तैयार रहना होगा. मैदान में उतरने से पहले मुकाबले में काम आने वाले हथियार मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग भी हमेशा साथ और उसका बराबर इस्तेमाल भी हर वक्त याद रखना होगा.
अब तो WHO भी कहने लगा है कि हो सकता है कोरोना वायरस भी HIV की तरह कभी खत्म ही न हो. यानी जैसे HIV वायरस की मौजूदगी के बावजूद जिंदगी लाइव चलती रही, कोरोना वायरस के रहने से भी फर्क नहीं पड़ना चाहिये. ध्यान रहे कोरोना वायरस एचआईवी से कहीं ज्यादा खतरनाक है. एचआईवी के संक्रमण की विशेष परिस्थितियां हैं, लेकिन कोरोना वायरस तो उससे भी आसानी से फैल सकता है.
अब सवाल ये है कि अगर कोरोना वायरस के साथ जीने की तैयारी की जाये तो कैसा अनुभव हो सकता है - बहुत मुश्किल (Many Challenges) हो सकता है, आसानी से जिंदगी आगे बढ़ सकती है या सब कुछ सामान्य हो सकता है?
क्या कोरोना वायरस खत्म नहीं होने वाला?
सच तो ये है कि किसी को भी ठीक ठीक कुछ भी नहीं पता. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में पराकाष्ठा पर पहुंचने का भले ही दावा किया जाता रहा होस लेकिन सच यही है कि कोरोना वायरस को लेकर ज्यादातर विशेषज्ञों के कयास और यहां तक कि भविष्यवाणी भी बिलकुल वैसी ही लगती है जैसी बाकी मामलों में ज्योतिषियों की हुआ करती है.
बीच बीच में WHO की दखल भी कभी कभी किसी और काल खंड के राज ज्योतिषी के भविष्य गान जैसी प्रतीत होती है - मजबूरी ये है कि ले देकर वही एक मानद संस्था भी है. हालांकि, WHO को भी चीन और अमेरिका की लड़ाई में पिसना पड़ रहा है और साख पर आ रही आंच से बचने की कोशिश करनी पड़ रही है.
कोरोना वायरस जिंदगी का हिस्सा बन सकता है
विश्व स्वास्थ्य संगठन में हेल्थ इमरजेंसी डायरेक्टर डॉक्टर माइकल रेयान तो यहां तक कह चुके हैं कि हो सकता है कोरोना वायरस कभी खत्म ही न हो. मिसाल के साथ दलील भी हाजिर है - एचआईवी भी तो खत्म नहीं ही हुआ है.
माइकल रेयान समझाते हैं कि कोरोना वायरस को लेकर अब कहीं ज्यादा स्पष्ट और तैयार रहने की जरूरत आ पड़ी है. संभव है ये हमारे बीच क्षेत्र विशेष का एक और वायरस बन कर रह जाये और इसका कभी अंत ही न हो. ये लंबे वक्त तक यूं ही बना रहे. कहते हैं - ये कब खत्म होगा न तो कोई दावा या वादा किया जा सकता है और न ही कोई तारीख बतायी जा सकती है.
जब ये हाल हो तो बगैर वाद-विवाद, तर्क-कुतर्क के मान लेना चाहिये कि जो जैसे चल रहा है चलता रहेगा और साथ ही साथ कामकाज भी चलता रहेगा.
माइकल रेयान की नजर से देखें तो वैक्सीन के बिना आम लोगों को कोरोना वायरस को लेकर इम्यूनिटी के स्टैंडर्ड लेवल तक पहुंचने में बरसों लग सकते हैं.
मोटे तौर पर समझने की कोशिश करें तो माइकल रेयान भी उसी धारणा को सपोर्ट कर रहे हैं कि कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भारत में भी ज्यादातर विशेषज्ञ यही मान कर चल रहे हैं.
चुनौतियां सबके लिए बराबर हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा भी था, 'सभी एक्सपर्ट बताते हैं कि कोरोना लंबे समय तक हमारे जीवन का हिस्सा बना रहेगा - लेकिन इसका मतलब यह नहीं हम सिमट कर रह जाए. इसलिए लॉकडाउन का चौथा चरण पूरी तरह से नए रूपरंग वाला होगा.'
प्रधानमंत्री मोदी भी माइकल रेयान और उनके जैसे विशेषज्ञों की राय से चलने की सलाह दे रहे थे जिनका मानना है कि जैसे शुरू शुरू में घर में रह कर सुरक्षित रहने की आदत डाल लिये ठीक वैसे ही अब बाहर निकल कर सुरक्षित रहने की आदत डाल लेनी होगी.
लेकिन ये सब इतना आसान भी तो नहीं है. कदम कदम पर चुनौतियों से जूझना है. कोरोना वायरस ने पटरी पर चल रही जिंदगी को उतार कर बहुत दूर कर दिया है. हर चीज बदल गयी है. हर चीज के इस्तेमाल का तरीका बदल गया है. हर काम के लिए अब नये और एक्स्ट्रा हुनर की भी जरूरत होगी.
कामकाजी जिंदगी में ठीक ये तो नहीं होता कि हर कोई अपना अपना काम करता है. एक दूसरे से काम पड़ते हैं. एक दूसरे से समझने और समझाने की जरूरत होती है - मास्क लगाकर और सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखते हुए पहले की तरह काम कर पाना अब शायद ही संभव हो. हर काम में कुछ ज्यादा मेहनत करनी होगी. हर काम के लिए पहले के मुकाबले बड़ा लक्ष्य तय भी करना होगा और पूरा भी करना होगा.
प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक पैकेज में देश की अर्थव्यवस्था को ट्रैक पर लाने के जो उपाय हैं उसकी कड़ियां आम लोगों से ही जुड़ी हुई हैं. अगर एक भी कड़ी ढीली पड़ती है तो उस जगह तो काम रुक ही जाएगा और रुकने का मतलब पूरी श्रृंखला प्रभावित होगी. इस हिसाब से देखें तो चुनौतियां हर स्तर पर हैं और सभी के लिए बराबर ही लगती हैं - चाहे वो आम आदमी हो या सरकारी तंत्र.
कोरोना के साथ जीने की राह भी कुछ कुछ वैसी ही लगती है जैसे सड़क का सफर ट्रैफिक नियमों के दायरे में सुरक्षित चलता रहा है. हादसों के लिए वैसे तो संयोग भी होते हैं और कई बार हालात बेकाबू हो सकते हैं लेकिन सदाबहार फॉर्मूला तो एक ही है - सावधानी हटी, दुर्घटना घटी.
कोरोना वायरस के साथ भी जिंदगी का यही फलसफा अपनाना होगा. एचआईवी के खिलाफ भी यही गाइडलाइन काम आई है. आजमाया हुआ नुस्खा है. कारगर रहा है, आगे भी कामयाब होगा.
सब कुछ ठीक रहेगा, बस एक बात गांठ बांध लेनी होगी - जिंदगी की गाड़ी वैसे ही संभाल कर चलायें कि तूफान आने पर भी संभानना असंभव न हो और जिंदगी को बचाने के लिए कोरोना वायरस के खिलाफ जो भी हेल्मेट या सीट बेल्ट मास्क या सोशल डिस्टेंसिंग के रूप में हों कभी भूलें नहीं.
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