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Updated: 25 मई, 2019 06:57 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और भाजपा ने प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज कर ली है. इस जीत से भाजपा खुश तो है, लेकिन केरल में जो हुआ, उसे देखते हुए अंदर ही अंदर परेशान भी है. वहीं दूसरी ओर, राहुल गांधी को पीएम बनने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन केरल में कांग्रेस का प्रदर्शन वाकई काबिले तारीफ है. खैर, कांग्रेस को ये जीत दिलाने का पूरा श्रेय आरएसएस को जाता है. ये आरएसएस ही है, जिसके अथक प्रयासों के चलते केरल में कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है. जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने.

एक ओर पूरे देश में राम मंदिर चुनावी मुद्दा बनकर छाया हुआ था, वहीं दूसरी ओर केरल में सबरीमाला का विवाद बढ़ गया. देखते ही देखते सबरीमाला भी एक चुनावी मुद्दा बन गया, जिसे हर राजनीतिक पार्टी भुनाने में जुट गई. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया कि हर उम्र की महिला सबरीमाला मंदिर में जा सकती है. बस फिर क्या था, पूरे केरल में हिंदू धर्म को मानने वाले बहुत से लोग प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर आए. सबसे अधिक विरोध को आरएसएस के बैनर तले कई हिंदू संगठनों ने किया था. ये तो सभी जानते थे कि आरएसएस की इस कोशिश का असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा, लेकिन ये किसी ने नहीं सोचा था कि नतीजे कांग्रेस के हक में चले जाएंगे.

केरल, कांग्रेस, आरएसएस, भाजपासबरीमाला मंदिर को लेकर आरएसएस की कोशिशें भाजपा के खिलाफ चली गईं और कांग्रेस को फायदा पहुंचा गईं.

जिसे कोसते रहे, उसी की वजह से जीते

कांग्रेस ने केरल की 20 में से 19 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है. ये सीटें भले ही अभी कांग्रेस के खाते में हैं, लेकिन इन्हें अपनी ओर खींचने के लिए भाजपा और आरएसएस ने खूब कोशिश की थी. सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में आरएसएस के साथ-साथ भाजपा भी थी. भाजपा ने इस प्रदर्शन को करीब 3 महीने तक खींचा. हिंदू धर्म को मानने वालों को भाजपा की कोशिश दिखी भी, लेकिन भाजपा और आरएसएस की कोशिशें वोटों में तब्दील नहीं हो सकीं.

2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 15.01 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 15.06 फीसदी वोट मिले. यानी वोट बढ़े तो, लेकिन सिर्फ 0.05 फीसदी. सबसे बुरा तो ये हुआ कि तीन सीटों पर भाजपा ने अपने सबसे मजबूत उम्मीदवार खड़े किए थे, जिन सीटों पर सबरीमाला का मामला सबसे अधिक गरमाया हुआ था. बावजूद इसके यहां भी भाजपा हार गई. तो आखिर ऐसा क्यों हो गया? क्या भाजपा या आरएसएस ने कोई गलती की या फिर कांग्रेस के किसी काम से जनता खुश हो गई.

क्या गया भाजपा के खिलाफ?

कांग्रेस की जीत की सबसे बड़ी वजह है क्रॉस वोटिंग, जो भाजपा से सहानुभूति रखने वालों की वजह से हुई. इन लोगों ने भाजपा को वोट दिए और एलडीएफ कमजोर हुई. अगर भाजपा को वोट देने वालों के मन में मौजूदा मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन को सबक सिखाने की इच्छा थी तो भाजपा को वोट देकर अपना कीमती वोट बेकार क्यों किया? जबकि ये सभी जानते हैं कि केरल में मुकाबला वामपंथी गठबंधन LDF और कांग्रेस नीत गठबंधन UDF के बीच है. आपको बता दें कि अय्यप्पा भक्त इस बात से नाराज हैं कि पिनराई विजयन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन भी नहीं डाली, जिसे वो हिंदुओं के साथ अन्याय मानते हैं.

भाजपा की छवि के साथ एक और गलत बात जुड़ी हुई है. एक ओर बहुत सारे हिंदू सबरीमाला मुद्दे पर पार्टी के डिफेंस से खुश तो थे, लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में पार्टी पर लगने वाले मॉब लिंचिंग के आरोपों को वह पचा नहीं पाए.

इतना ही नहीं, राहुल गांधी ने जब वायनाड से चुनाव लड़ने की सोची, तो इससे भी कांग्रेस के हक में माहौल बना. सबरीमाला कर्म समिति के संरक्षक स्वामी चिदनंदापुरी ने तो अपने भाषणों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जो बातें कहीं उससे सीधे-सीधे हिंदुओं में ये संदेश गया कि एलडीएफ की हार सुनिश्चित की जाए. आखिरकार एलडीएफ की हार हो भी गई.

नायर सर्विस सोसाएटी ने भाजपा को नहीं दिया वोट

तिरुवनंतपुरम, पतनमथिट्टा और तृश्शूर में भाजपा को सबसे बड़ा झटका लगा. उच्च जाति के नायर लोगों की संस्था नायर सर्विस सोसाएटी ने भाजपा को वोट नहीं दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ नायर समाज सबसे आगे रहा और भाजपा-आरएसएस का समर्थन भी किया, लेकिन जब बारी वोट देने की आई तो वोट कांग्रेस को दिया. यहां आपको बता दें कि नायर समाज हमेशा से ही कांग्रेस को वोट देता आया है. इस बार भी कांग्रेस को ही दिया.

केरल की कुल आबादी में 52 फीसदी हिंदू, 26 फीसदी मुस्लिम और 18 फीसदी ईसाई हैं. हिंदुओं में से 16 फीसदी उच्च जाति के नायर हैं. नायर समाज के लोगों का मानना है कि सबरीमला की समस्या को आसानी से सुलझाया जा सकता था अगर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले खिलाफ अध्यादेश ले आती, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. नायर सर्विस सोसाएटी के हिसाब से इस समुदाय के लोगों में भाजपा की मंशा को लेकर संदेह है. वह समझ नहीं पा रहे हैं कि भाजपा परंपरा को बचाने के लिए लड़ रही है या फिर हिंदुओं की भावनाओं को भड़काने का काम कर रहे हैं.

नायर सर्विस सोसाएटी के जनरल सेक्रेटरी जी सुकुमारन नायर 8 अप्रैल को ही इस बात की शिकायत कर चुके हैं कि भाजपा ने सबरीमला के भक्तों के लिए कुछ नहीं किया. संसद में उनके पास बहुमत है, लेकिन भगवान अय्यप्पा के भक्तों के लिए उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया. वह सवाल पूछते हैं कि अब वह श्रद्धालुओं के हितों की रक्षा करने का वादा क्यों कर रहे हैं?

55 साल की सौम्या नायर ने सबरीमला के लिए हर विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया. वह कहती हैं कि राज्य में कांग्रेस की स्थिति भाजपा के मुकाबले काफी मजबूत है. ऐसे में भाजपा को वोट देने से लेफ्ट को हराना आसान नहीं होगा. यानी लोग कांग्रेस को जिताना नहीं चाह रहे हैं, बल्कि लेफ्ट को हराना चाह रहे हैं और इसी वजह से भाजपा अलग-थलग सी हो गई है.

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