ब्रिटेन से सीखें संसद पर गर्व करना
हमारे लोकतंत्र के प्रतीक इस संसद भवन को अब बदलने की बात हो रही है. कारण ये कि 1927 में बनी भारतीय संसद की भव्य इमारत अब शायद जरूरत के हिसाब से छोटी पड़ने लगी है. लेकिन संसद भवन को बदलने का कदम क्या सही है?
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लोकतंत्र का नाम आते ही हर भारतीय के जेहन में संसद भवन की छवि घूम जाती है. कुछ ने जाकर तो कुछ ने अखबारों, पत्रिकाओं, टीवी आदि के जरिए इस ऐतिहासिक इमारत की खूबसूरती को देखा और सराहा है. लेकिन हमारे लोकतंत्र के प्रतीक इस संसद भवन को अब बदलने की बात हो रही है. कारण ये कि 1927 में बनी भारतीय संसद की भव्य इमारत अब शायद जरूरत के हिसाब से छोटी पड़ने लगी है. लोकसभा स्पिकर सुमित्रा महाजन ने शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू को पत्र लिख नए संसद भवन के निर्माण के कार्य को शुरू करने पर विचार करने को कहा है. हालांकि यह बहस भी चल पड़ी है कि संसद भवन को बदलने का कदम क्या सही है? जब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश जहां के संसद भवन यहां के मुकाबले बेहद पुराने हैं और फिर भी तमाम मुश्किलों के बावजूद वे अपनी उस पहचान को कायम रखना चाहते हैं. फिर हम क्या जल्दबाजी नहीं कर रहे...
आईए नजर डालते हैं उन चुनौतियों पर जो ब्रिटेन और भारत के संसद भवन के लिए समान हैं. लेकिन फिर भी ब्रिटेन मजबूती से अपने भवन को बचाए रखने की कोशिश कर रहा है. हालांकि वहां भी नई इमारत बनाने को लेकर बहस जारी है.
1. जगह की कमी: भारत में 2026 के बाद लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ सकती है. संविधान के मुताबिक तब 2021 की जनगणना के अनुसार प्रतिनिधित्व की संख्या को फिर से तय किया जा सकता है. फिलहाल लोकसभा में बैठने की क्षमता 550 सीटों की है. ब्रिटिश संसद में भी यह समस्या है. हालांकि वहां सांसदों की संख्या कई बार घटती-बढ़ती रही है. पैलेस ऑफ वेस्टमिंस्टर के नाम से मशहूर और ब्रिटिश संसद 19 शताब्दी में बनकर तैयार हुआ.
2. जर्जर हालत: ब्रिटेन का संसद भारत से ज्यादा पुराना है. लिहाजा उसकी हालत बेहद जर्जर हो चली है. कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बम से 14 बार ब्रिटिश संसद पर हमले हुए. इस के कारण संसद का कॉमन चेंबर पूरी तरह तबाह हो गया. तब सासंदों ने भवन के दूसरे कमरों से अपना काम जारी रखा. भारतीय संसद इस मामले में फिर भी बेहतर स्थिति में है.
ब्रिटिश संसद |
3. अत्याधुनिक इमारत की जरूरत: दोनों ही देशों के संसद भवन आज के समय से बेहद पुराने हैं. निश्चित रूप से इन्हें अत्याधुनिक बनाने की जरूरत है. ब्रिटेन में इसे लेकर खूब चर्चा भी हो रही है. एक अनुमान के मुताबिक अगर आज के दौर के मुताबिक अगर ब्रिटिश संसद के पूर्ण रूप से पुनरुद्धार का काम किया जाए तो 15 से 20 साल का वक्त भी लग सकता है और यह बेहद महंगा सौदा भी है. सबसे सस्ता विकल्प यही है कि किसी और जगह में नए भवन का निर्माण किया जाए.
4. अत्याधुनिक उपकरणों की जरूरत: ब्रिटिश इमारत के बेहद पुराने होने की वजह से अत्याधुनिक उपकरणों को भवन के अंदर मुहैया कराना भी एक बड़ी चुनौती है. यही समस्या यहां भी है. हालांकि भारतीय संसद में आधुनिकता का पुट भी आया. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग स्क्रीन लगे और एयर कंडीशनर भी लगाए गए. लेकिन फिर भी कई काम किए जाने बाकी हैं. सुमित्रा महाजन के अनुसार ऐसी योजना है कि सांसदों को अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया जाए और संसद को कागजी कार्यवाही से मुक्त किया जाए.
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