MLC टिकट बंटवारे से साफ है कि देवेंद्र फडणवीस को चुनौती देने वाला अभी कोई नहीं
विशेष परिस्थितियों में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के लिए हो रहे महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने भी राजनीति चमका ली है. पंकजा मुंडे (Pankaja Munde) का टिकट कटने से साफ हो गया है कि फडणवीस को फिलहाल चुनौती देने वाला कोई नहीं है.
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महाराष्ट्र में विधान परिषद की नौ सीटों के लिए चुनाव 21 मई को चुनाव होना है. नौ सीटों पर चुनाव के लिए 11 मई तक नामांकन दाखिला किया जा सकेगा. चुनाव में महाराष्ट्र विधानसभा के 288 सदस्य मतदान करेंगे.
ये चुनाव तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की कुर्सी बचाने के मकसद से कराया जा रहा है, लेकिन ऐन उसी वक्त महाराष्ट्र बीजेपी में भी राजनीतिक रस्साकशी खूब चली है. MLC के लिए बीजेपी उम्मीदवारों की सूची तो यही बता रही है कि देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) का दबदबा कायम है. भले ही विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के लिए उनको जिम्मेदार माना जाता हो और तीन दिन के लिए मुख्यमंत्री बनने के बाद कुर्सी गंवानी पड़ी हो. पंकजा मुंडे (Pankaja Munde) का टिकट कट जाना ही सबसे बड़ा सबूत है.
फडणवीस के विरोधी किनारे लगे
महाराष्ट्र में 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अभी इस सदमे से उबर भी नहीं पाये थे कि पंकजा मुंडे ने उनके खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया - और दो हफ्ते बाद ही पिता गोपीनाथ मुंडे की जयंती पर पंकजा मुंडे ने रैली कर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की. रैली से पहले पंकजा मुंडे को मनाने के लिए आलाकमान की तरफ से प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और विनोद तावड़े को मनाने का टास्क दिया गया था. पंकजा मान भी गयीं और बीजेपी में ही बनी रही हैं.
पंकजा मुंडे को उम्मीद तो थी ही, विधान परिषद में टिकट के लिए जोर भी खूब लगाया, लेकिन लगता है पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आगे उनकी एक न चली. पंकजा मुंडे शुरू से ही देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं. जब खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानने वाली पंकजा को टिकट नहीं मिला तो एकनाथ खड़से जैसे उनके समर्थकों की कौन कहे.
देवेंद्र फडणवीस के आगे एक न चली पंकजा मुंडे की
महाराष्ट्र बीजेपी के दिग्गजों को दरकिनार कर जिन चार नेताओं को टिकट दिया गया है उनमें से दो दूसरे दलों से आये हुए हैं. 9 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में बीजेपी की तरफ से मैदान में उतारे गये उम्मीदवार हैं - अजित गपछड़े, प्रवीण डटके, गोपीचंद पडलकर और रणजीत सिंह मोहिते पाटिल.
एनसीपी के सांसद रहे रणजीत सिंह मोहिते पाटिल विधानसभा चुनाव के वक्त पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए थे और उसी वक्त गीपीचंद पडलकर वंचित बहुजन अगाड़ी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए थे. रणजीत सिंह मोहिते पाटिल के पिता विजयसिंह मोहिते पाटिल महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री रहे हैं और पश्चिम महाराष्ट्र के कई इलाकों में उनके परिवार का राजनीतिक असर है. पाटिल को टिकट दिये जाने की वजह एनसीपी के वर्चस्व वाले इलाके में प्रभाव बढ़ाना ही लगता है.
गोपीचंद पडलकर बारामती से विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार रहे लेकिन एनसीपी नेता अजित पवार से हार गये. राज्य सभा चुनाव के उम्मीदवारों में भी उनका नाम चला था लेकिन चूक गये. पडलकर धनगर समुदाय से आते हैं - और लगता है बीजेपी ने धनगर वोट बैंक को देखते हुए पडलकर को विधान परिषद भेजने का फैसला किया है.
प्रवीण डटके नागपुर में बीजेपी के शहर अध्यक्ष हैं और महापौर रह चुके हैं. देखा जाये तो बीजेपी ने पाटिल और पडलकर को उम्मीदवार बनाकर एनसीपी नेता शरद पवार के दबदबे वाले क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है. लगे हाथ देवेंद्र फडणवीस ने एक तरीके से अपने विरोधियों को एक बार फिर हाशिये पर पहुंचा दिया है.
ऐसे किनारे लगे देवेंद्र फडणवीस के विरोधी
बीजेपी सूत्रों क हवाले से आई एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि विधान परिषद उम्मीदवारों के सेलेक्शन के लिए एक विशेष नियम बनाया गया था और उसी के आधार पर टिकटों का बंटवारा किया गया. हालांकि, ये नियम सब पर लागू हो ऐसा नहीं हुआ है. नियम के मुताबिक - विधानसभा चुनाव में जिन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया गया और उस चुनाव में जो पराजित हुए उनको टिकट नहीं मिलेगा.
ये नियम भी वैसे ही लगता है जैसे 75 साल के बीजेपी नेताओं को मंत्री पद से दूर कर दिया जाता है. कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्ला जैसे नेता तो इसके दायरे में आ जाते हैं लेकिन बीएस येदियुरप्पा डंके की चोट पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने रहते हैं. विधानपरिषद टिकट बंटवारे में पंकजा मुंडे इस नियम की शिकार जरूर हुई हैं.
चंद्रशेखर बावनकुले को तो विधानसभा चुनाव में भी टिकट नहीं मिला था और अब भी नहीं मिला. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रह चुके बावनकुले को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का करीबी माना जाता है.
एकनाथ खड़से को भी विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला था, लेकिन उनकी लड़की को बीजेपी ने उम्मीदवार जरूर बनाया था. खड़से का आरोप है कि पंकजा मुंडे की तरह उनकी बेटी को भी बीजेपी नेताओं की ही हराने में भूमिका रही.
पंकजा मुंडे अपने पिता के बीड इलाके की परली विधानसभा सीट से उम्मीदवार थीं और उनके खिलाफ उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे - पंकजा मुंडे को भाई से ही चुनाव हार जाने का काफी धक्का लगा और इसके लिए वो देवेंद्र फडणवीस को ही जिम्मेदार बताती रही हैं. जाहिर है फडणवीस बनाम मुंडे की लड़ाई आगे नया रूप लेने वाली है.
महाराष्ट्र की 288 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी के 115 विधायक हैं, जबकि महाविकास आघाड़ी सरकार को 170 विधायकों का समर्थन हासिल है. विधान परिषद की एक सीट के लिए प्रथम वरीयता के आधार पर 32 वोटों की जरूरत होगी - और बीजेपी को उम्मीद है कि चार सीटें उसके हिस्से में आ जाएंगी.
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