महाराष्ट्र में अभी सेकुलरिज्म का खेल चल रहा है, फेमिनिज्म पर चर्चा बाद में!
Maharashtra में तीन दलों ने मिलकर सरकार बनाई है और 23 महिलाओं को हम MLA के रूप में देख रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि अब तक हमने किसी भी महिला का नाम नहीं सुना जिसके कैबिनेट में शामिल होने की खबर हो. क्या महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली Shivsena यूं करेगी महिलाओं को मजबूत.
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एक महीने से चल रही महाराष्ट्र की सियासी पिक्चर (Government Formation In Maharashtra), बीते दिन शिवाजी पार्क (Shivaji Park) में उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री (Uddhav Thackeray CM Of Maharashtra ) बनने के साथ ही ख़त्म हो गई. सब कुछ अच्छा रहा. चाहे भाई राज ठाकरे का आना रहा या फिर हंसते मुस्कुराते राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उद्यमी मुकेश अंबानी का सपरिवार तस्वीरें खिंचाना रहा हो, इवेंट के कई दिलचस्प नज़ारे मीडिया और सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं. महाराष्ट्र चुनाव (Maharashtra Elections ) कई मामलों में खास रहा है. यहां महिलाएं, चाहे वो राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे (Rashmi Thackeray) रही हों या फिर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले (Supriya Sule) दोनों ही निर्णायक भूमिका में रही हैं. इसके अलावा बात अगर महाराष्ट्र की राजनीति की हो तो यहां हमेशा से महिलाओं ने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई है. ये सब थ्योरी वाली बातें हैं. आनंद की अनुभूति तब है जब बात प्रैक्टिकल हो. प्रैक्टिकल बात यही है कि 23 महिलाओं के सदन पहुंचने के बावजूद किसी को भी नई कैबिनेट में जगह नहीं मिली है. एक तरफ महाराष्ट्र की राजनीति में महिलाओं को निर्णायक का टैग दिया जा रहा है. दूसरी तरफ किसी भी महिला का नई कैबिनेट में जगह न पाना. सवाल है कि ऐसे कैसे होगा सशक्तिकरण?
महाराष्ट्र की राजनीति में महिलाओं की निर्णायक भूमिका के बावजूद किसी भी महिला का नई कैबिनेट में जगह न पाना विचलित करने वाला है
ये नजारा या ये कहें कि ये चुनाव अगर उस वक़्त होता जब 1975 में रमेश सिप्पी शोले बना रहे थे तो शायद फिल्म का विलेन और मशहूर अदाकार अमजद खान एक डायलॉग ज़रूर दोहराते. डायलॉग होता कि 'बड़ी नाइंसाफी है.' वाकई बड़ी नाइंसाफी है. एक ऐसे राज्य में जहां महिलाएं राजनीति की पुरोधा रही हों वहीं जब महिलाओं को सिरे से खारिज कर दिया जाए तो दिल दुखेगा. अवसाद होगा. भावना आहत होगी.
आपको बताते चलें कि महाराष्ट्र की 288 सीटों वाली विधानसभा में इस बार 23 महिला उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया है. कई महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. बात अगर शिवसेना कांग्रेस एनसीपी गठबंधन की हो तो 9 महिलाएं ऐसी हैं जो इन दलों से आती हैं. ऐसे में जिस तरह उन्हें दूध में से मक्खी की तरह अलग किया गया वो सच में हैरत में डालने वाला है. उद्धव ठाकरे पुरुष थे. दूसरा ये भी कि उनके पास 70 मसले अपने थे भूल गए होंगे, मगर सुप्रिया सुले? सुप्रिया सुले तो खुद एक महिला थीं. क्या इन 9 महिलाओं में से कोई भी एक ऐसी महिला उन्हें समझ में नहीं आई जिसका नाम वो नई कैबिनेट के लिए सामने कर दें?
राज्य की कमान शिवसेना और उद्धव ठाकरे के कंधे पर है. तो बताना जरूरी है कि शिवसेना का शुमार देश के उन दलों में है जिसने हमेशा ही अपने मंचों से महिला सशक्तिकरण का मुद्दा उठाया है. माना जाता है कि इसके पीछे की एक बड़ी वजह रश्मि ठाकरे हैं जो हमेशा ही महिलाओं के सशक्त होने की पक्षधर रही हैं और लगातार शिव सैनिकों के अलावा आम लोगों तक को निर्देशित करती रहती हैं कि वो आगे आए और उन महिलाओं को मौका दें जो आगे बढ़ना और कुछ बड़ा करना चाहती हैं.
अपनी कही इस बात को हम ट्विटर सेलेब्रिटियों में शामिल सोनम महाजन के ट्वीट से भी समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने शिवसेना में महिलाओं के महत्त्व और उनके योगदान पर बात की है.
Congratulations to Shri Uddhav Thackeray as he is set to become the CM of Maharashtra. Alliances come and ago, the agenda of Hindutva should never be betrayed.
Approachability, respect for karyakartas and women are what make Shiv Sena distinguished. May those values remain.
— Sonam Mahajan (@AsYouNotWish) November 27, 2019
बात सीधी और एकदम साफ़ है. विचारधारा के लिहाज से शिवसेना और कांग्रेस एनसीपी जमीन और आसमान की तरफ हैं. शिवसेना जहां हिंदुत्व और मराठा हितों की पैरोकारी करने वाली पार्टी है तो वहीं एनसीपी और कांग्रेस का शुमार उन दलों में जिनकी राजनीति का आधार ही सेकुलरिज्म और सबको साथ लेना है. जब स्थिति ऐसी हो तो ये कहना कहीं से भी गलत नहीं होगा कि चूंकि उद्धव एनसीपी और कांग्रेस एक एहसानों तले दबे हैं तो हाल फिलहाल में उनके लिए सबसे बड़ा टास्क खुद को एक 'सेक्युलर' नेता साबित करना है.
सेकुलरिज्म उनकी राह का रोड़ा है? अगर हमें इस बात को समझना हो तो हम उनकी उस पहली प्रेस कांफ्रेंस का भी रुख कर सकते हैं जो उन्होंने महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के बाद की. इस पत्रकारवार्ता में भी सेकुलरिज्म एक बड़ा मुद्दा रहा. सवाल हुए जिन्होंने उद्धव को बेचैन और आहात दोनों किया और एक मौका वो भी आया जब सेकुलरिज्म पर उद्धव का पक्ष रखने के लिए एनसीपी के छगन भुजबल को बीच में कूदना पड़ा.
बहरहाल बात हमने महाराष्ट्र की नई कैबिनेट में महिलाओं के प्रवेश पर लेकर शुरू की थी जो कि नहीं हुआ. इसलिए हम अपनी बात को विराम देकर बस इतना ही कहेंगे कि अभी वहां सेकुलरिज्म बड़ा मुद्दा है. पहले उस पर काम हो जाए और उद्धव ठाकरे ढंग से सेक्युलर सिद्ध हो जाएं. महिला और महिला विधायकों वाला फेमिनिज्म ये बाद का मुद्दा है आगे भी कुछ करना और सुर्खियां बटोरनी हैं इसलिए इस पर सारा काम बाद में होगा.
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