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Updated: 17 अगस्त, 2016 03:18 PM
राकेश चंद्र
राकेश चंद्र
  @rakesh.dandriyal.3
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  • दरअसल असली लड़ाई है विचारधारा की, जहां अखिलेश साफ सुथरा प्रशासन चाहते हैं वहीं चाचा अब भी पुराना अलाप नहीं छोड़ना चाहते, अखिलेश अपराध मुक्त राजनीति चाहते हैं, चाचा अब भी अपराध लुप्त राजनीति का सहारा लेना चाहते हैं.
  • अखिलेश यादव की छवि एक स्वच्छ छवि वाले मुख्यमंत्री की है. अखिलेश नहीं चाहते कि समाजवादी पार्टी का बाहुबलियों के साथ गठजोड़ हो.

शिवपाल भतीजे अखिलेश से नाराज हैं इसीलिए कैबिनेट की बैठक में नहीं पहुंचे. बाद में स्पष्टीकरण दिया कि पहले से ही उनका प्रोग्राम तय था. खैर जो भी हो बीते दिनों शिवपाल ने दुख जताया था कि पार्टी के नेता और अफसर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और उनकी बात नहीं सुनी जाती. शिवपाल ने पार्टी से इस्तीफे तक की धमकी दे दी थी. उनका कहना था कि जब हमारी सुनी ही नहीं जाती तो पार्टी में रहकर क्या फायदा. शिवपाल के इस बयान के बाद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के नेता, अफसरों और कार्यकर्ताओं को जमकर फटकारा था. मुलायम सिंह ने कहा था कि अगर शिवपाल चले गए तो सरकार असहज हो जाएगी. इसी बीच शिवपाल यादव ने अखिलेश से किसी भी नाराजगी से इंकार किया और उनकी तारीफ की और कहा कि अखिलेश अच्छा काम कर रहे हैं. उन्होंने परिवार में किसी भी तरह के विवाद से इंकार किया था.

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दरअसल, चाचा-भतीजे के बीच चल रही अन्तर्कलह की आग काफी समय पहले से सुलग रही थी जो अब भीषण रूप धारण कर चुकी है, अगर मझधार में कोई है तो वो हैं मुलायम सिंह जिन्हें तराजू पर बेटे और भाई को तोलना है. देखना यह है कि समाजवादी मुलायम इस अंतर्कलह से कैसे निपटते हैं? विधान सभा के चुनाव सिर पर हैं ऐसे समय में पारिवारिक अंतर्कलह पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

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हम साथ साथ हैं, मगर...

चार साल पहले जब अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में चुनावी चेहरा बनाया गया था तो उस वक्त अखिलेश ने पब्लिक से वादा किया था के राज्य में साफ सुथरी सरकार देंगे, जिसमें अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं होगी, तो क्या अब वे कैसे मुख्तार अंसारी जैसे हिस्ट्रीशीटर्स को पार्टी में शामिल करेंगे, लेकिन चाचा हैं कि मानते नहीं.

एक नहीं कई हैं कारण

जून 2016 में आजतक के कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने स्पष्ट कर दिया था कि 'हम मुख्तार जैसों को पार्टी में नहीं चाहते.' हालांकि, सपा में कौमी एकता दल के विलय पर मतभेद के सवाल पर अखिलेश ने कहा कि ये चाचा-भतीजे के बीच की बात है, आपस में सुलझा लेंगे. शिवपाल यादव ने मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल करने का फैसला लिया था, जिसके बाद अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच भारी मतभेद खबरें सामने आई थीं. कौमी एकता दल का गठन मुख्तार अंसारी ने किया था, जो हत्या, अपहरण समेत कई संगीन आपराधिक मामलों में जेल में बंद हैं.

अमर सिंह को भी पार्टी में शामिल करने को लेकर अखिलेश यादव चाचा शिवपाल यादव से नाराज थे, लेकिन शिवपाल यादव ने भाई मुलायम सिंह को मना लिया, जिसके बाद अमर सिंह राज्य सभा में पहुंच गए. कहीं न कहीं इस कारण भी दोनों के बीच अंतर्विरोध बना हुआ था. जून 2016 में जब अखिलेश मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तो उस, कार्यक्रम में भी चाचा शिवपाल यादव शामिल नहीं हुए.

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दिसंबर 2015 में पंचायत चुनाव प्रभारी शिवपाल यादव ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण सुनील सिंह साजन, आनंद भदौरिया और डॉ. सुबोध यादव को निष्कासित कर दिया था. सुनील सिंह साजन और आनंद भदौरिया सीएम की कोर टीम के मेंबर थे. इस कारण कारण अखि‍लेश यादव सैफई महोत्सव में भी नहीं पहुंचे. उनको मनाने का दौर भी शुरू हुआ. आखिरकार निष्कासित सदस्यों की फिर पार्टी में वापसी हुई, तब अखिलेश माने.

सीनियर आईएएस अधिकारी दीपक सिंघल को लेकर भी शिवपाल और अखिलेश यादव में तनातनी थी. दीपक सिंघल शिवपाल यादव के चहेते हैं. मुलायम की सहमति के बाद उन्हेंद सरकार ने मुख्य सचिव बनाया.

लेखक

राकेश चंद्र राकेश चंद्र @rakesh.dandriyal.3

लेखक आजतक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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