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Updated: 27 फरवरी, 2021 10:17 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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2021 के चुनाव (Assembly Election 2021) की भी तारीखें आ ही गयीं. और सबसे लंबी तारीखें पश्चिम बंगाल के हिस्से में आयी हैं - 27 मार्च से लेकर 29 अप्रैल तक. एक महीने से भी ज्यादा ही. बिहार चुनाव के बाद ये दूसरा मौका है जब कोरोना गाइडलाइंस के साथ विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं - और मतदान के दौरान वोटर को भी पहचान के मौके को छोड़ कर मास्क लगाये रखना होगा.

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा (CEC Sunil Arora) के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 8 चरणों में चुनाव होंगे और उसके बाद असम की बारी है जहां तीन फेज में चुनाव होंगे. बाकी तीन राज्यों केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में एक ही दिन में सारे वोट डाले जाएंगे.

27 मार्च को पहले चरण के वोट पश्चिम बंगाल और असम में डाले जाएंगे, जबकि 6 अप्रैल को पश्चिम बंगाल और असम के साथ साथ केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में वोटिंग होगी. तीन चरणों के बाद सिर्फ पश्चिम बंगाल में बाकी पांच चरणों में वोट डाले जाएंगे - और सारे वोटों की गिनती एक साथ 2 मई को होगी और नतीजे भी उसी दिन आने की अपेक्षा है.

चुनाव की घोषणा से पहले ही केंद्रीय बलों को भेजे जाने को लेकर तृणमूल कांग्रेस ने तो आपत्ति जतायी ही थी - पश्चिम बंगाल में महीने भर के चुनाव कार्यक्रम पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने भी सवाल उठाया है.

शांतिपूर्ण चुनाव कराने के मकसद से केंद्रीय बलों की एक हजार कंपनियां भेजे जाने का पहले ही संकेत दे चुके चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में लंबे चुनाव कार्यक्रम की वजह भी सुरक्षा बंदोबस्त ही बताया है.

पश्चिम बंगाल में महीने भर का चुनावोत्सव

सुप्रीम कोर्ट ने भी एक केस की सुनवाई के दौरान एक बार महसूस किया था कि पश्चिम बंगाल में बगैर हिंसा के चुनाव नहीं हो पाते - और हिंसा को लेकर भी इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि सूबे में किसका शासन है.

चुनाव आयोग ने चुनावी हिंसा की आशंका से ही व्यापक सुरक्षा बंदोबस्त के साथ साथ 294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए कुल 8 चरणों में चुनाव कराये जाने का फैसला किया है - ममता बनर्जी को इसी बात पर आपत्ति है क्योंकि असम में तीन फेज में ही चुनाव हो रहे हैं जहां बीजेपी सत्ता में है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सीधा सवाल किया है - आठ चरणों में चुनाव कराने से किसको लाभ होगा?

चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए ममता बनर्जी पूछ रही हैं, वो इस फैसले से किसको फायदा पहुंचाना चाहते हैं? फिर कहती हैं, बीजेपी ने जो भी डिमांड की उसे पूरा किया जा रहा है - और पूछती हैं, आधे जिले में हर दिन चुनाव क्यों करवाये जा रहे हैं? एक जिले में एक ही दिन चुनाव क्यों नहीं करवाया जा रहा है?

और फिर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साध देती हैं. ममता बनर्जी का इल्जाम भरा अलग सवाल होता है, 'क्या ये सब इसलिए किया गया है ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल आने से पहले असम और तमिलनाडु में अपना चुनाव प्रचार पूरा कर लें?

mamata banerjee, sunil aroraये तो ममता बनर्जी को भी मालूम होना चाहिये कि पश्चिम बंगाल में चुनाव कराने जितना ही जरूरी है हिंसा को रोकना

चुनाव आयोग का कहना है कि ये सब चुनावी हिंसा रोकने के एहतियाती उपाय हैं. 2016 में विधानसभा के चुनाव 6 चरणों में कराये गये थे और 2019 के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल में वोटिंग 7 चरणों में करायी गयी थी.

ममता बनर्जी की आपत्ति अपनी जगह वाजिब हो सकती है, लेकिन 2019 के लोक सभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में भी कुछ ऐसे ही चुनाव कराये गये थे. वैसे भी 2018 में दो ऐसे चुनाव हुए जिनमें बहुत से वाकये कॉमन देखने को मिले थे - पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव और जम्मू कश्मीर में निकाय चुनाव. पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव मई, 2018 में हुए थे और जम्मू-कश्मीर में निकाय चुनाव अक्टूबर, 2018 में. दोनों ही चुनाव में हिंसा और राजनीतिक दबंगई की काफी शिकायतें सुनने को मिली थीं.

ये तो ममता बनर्जी को भी याद होगा ही कि जम्मू-कश्मीर की दो लोक सभा सीटों पर पांच चरणों में चुनाव कराये गये थे और उसमें भी सिर्फ अनंतनाग सीट पर तीन चरणों में चुनाव हुए थे - पहला 23 अप्रैल, 2019, दूसरा 29 अप्रैल, 2019 और तीसरा 6 मई, 2019

तारीखों की घोषणा से पहले ही जब चुनाव आयोग की तरफ से केंद्रीय बलों की कंपनियां पश्चिम बंगाल पहुंची तो भी सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की तरफ से कड़ी आपत्ति दर्ज करायी गयी - और देखते ही देखते टीएमसी और बीजेपी उसे लेकर आमने सामने भिड़ गये.

बीजेपी नेताओं ने तर्क दिया कि पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था के हालात को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने पहले ही सुरक्षा बलों को भेजने का फैसला किया, ताकि आम लोगों में फैली दहशत को खत्म कर उनका मनोबल बढ़ाया जा सके.

ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की दलील अलग रही. टीएमसी नेताओं का कहना रहा कि चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले ही बड़े पैमाने पर केंद्रीय बलों को भेज कर बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार आम लोगों और तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आतंकित करने की कोशिश कर रही है.

पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष तो पहले से ही सुरक्षा इंतजाम बढ़ाने की केंद्र सरकार से मांग कर रहे थे. राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी बार बार यही कह रहे थे कि उनकी ड्यूटी है कि राज्य में ऐसा माहौल सुनिश्चित करायें कि लोग हिंसामुक्त माहौल में भयमुक्त होकर अपने वोट डाल सकें.

2019 के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल में केंद्रीय बलों की 75 कंपनियां तैनात की गयी थीं. चुनाव आयोग के संकेत समझें तो इस बार एक हजार कंपनियां तैनात करने की तैयारी है. सौ से ज्यादा कंपनियां तो फरवरी के आखिर तक ही पहुंच कर मोर्चा संभाल लेंगी.

बंगाल में चुनावी हिंसा का लंबा इतिहास रहा है

साल की शुरुआत में ही बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले को लेकर खासा बवाल हुआ - और उसी दौरान बीजेपी महासचिव और पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय को भी चोटें आयी थीं - और ये तो पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद होने वाली हिंसा का नमूना भर रहा.

1. बीजेपी का आरोप है कि अब तक उनके 130 कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है. 2014 से अभी तक की बात करें तो बीजेपी का दावा है कि उसके 300 कार्यकर्ता हिंसा के शिकार हो चुके हैं.

2. एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 के चुनाव में पूरे देश में जहां 16 राजनीतिक कार्यकर्ता चुनाव से जुड़ी हिंसा में मारे गये और उनमें सात तो पश्चिम बंगाल से ही थे.

3. NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 1999 से 2016 के बीच 18 साल के दौरान पश्चिम बंगाल में औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं दर्ज की गयीं.

खुफिया रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से पश्चिम बंगाल में 50 लोगों की सुरक्षा बढ़ाई गयी है - और इनमें से आधे से ज्यादा को तो पिछले 10 दिनों में ही वीआईपी सुरक्षा प्रदान की गयी है जिनमें X और Y कैटेगरी की सिक्योरिटी शामिल है. बीजेपी के बड़े नेताओं के अलावा इनमें वे नेता भी शुमार हैं जो टीएमसी छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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