पश्चिम बंगाल से ‘बांग्ला’: ममता दीदी ने दिया 'परिबोर्तन' का बड़ा संकेत
ममता बनर्जी का राज्य अब से पश्चिम बंगाल नहीं बल्कि 'बांग्ला' के रूप में जाना जाएगा. इसे ममता बनर्जी का बड़ा कदम माना जा रहा है और इतिहास के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि.
-
Total Shares
पश्चिम बंगाल विधानसभा ने अपना फैसल सुना दिया है. ममता बनर्जी का राज्य अब से 'बांग्ला' के रूप में जाना जाएगा. पश्चिम बंगाल से 'पश्चिम' शब्द को हटाना ममता दीदी का ये बड़ा कदम माना जा रहा है और इतिहास के दृष्टिकोण से भी देखें तो ये एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
पश्चिम बंगाल के नाम से 'पश्चिम' छोड़ने का कारण राज्य के निवासियों के लिए एक आम बात रहा है. तर्क बहुत ही सरल था: अब 'पश्चिम' बंगाल क्यों होना चाहिए जब अब 'पूर्वी' बंगाल नहीं है? 1947 से पहले बांग्लादेश को पूर्वी बंगाल कहा जाता था.
आखिरकार, लंबे समय से पुराने भौगोलिक नामांकरण को दरकिनार कर पूर्वी बंगाल का नाम बांग्लादेश में बदल दिया. और जो लोग तर्क देते हैं कि यह राज्य के ऐतिहासिक अतीत को दर्शाता है, उन्हें समय के साथ बदलना चाहिए. क्या वे नहीं जानते? मुख्यमंत्री ममता दीदी के तहत यह केवल परिबोर्तन, परिबोर्तन, परिबोर्तन है.
पश्चिम बंगाल का नाम बदलना ममता बनर्जी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
ममता बनर्जी ने कहा है कि 'बांग्ला' नाम इसलिए चुना गया है क्योंकि "यह बंगाल की पहचान है".
अब यह राज्य विधायिका के कदम को केंद्र को मंजूरी देनी होगी. केंद्र सरकार ने इस राज्य सरकार के अभ्यास पर दो साल से बैठी रही है. पिछली बार 2016 में, राज्य ने तीन नाम भेजे थे- अंग्रेजी में बंगाल, बंगाली भाषा में बांग्ला और हिंदी में बंगाल, लेकिन केंद्र सिर्फ एक ही नाम की सिफारिश चाहता था.
2011 में भी केंद्र सरकार ने ममता बनर्जी सरकार का पश्चिम बंगाल का नाम 'पश्चिम बंगो' के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.
किसी भी राज्य का नामांकरण की प्रक्रिया के तहत, जब गृह मंत्रालय के पास प्रस्ताव आता है, तो यह संविधान की अनुसूची 1 में संशोधन के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए एक नोट तैयार करेगा. उसके बाद, राष्ट्रपति को इसकी सहमति देने से पहले संविधान संशोधन विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा जहां सरल बहुमत के साथ स्वीकृति की जाएगी.
तो राज्य विधानसभा ने आखिरकार 'बांग्ला' पर मोहर लगा ही दी. ये भी कहा जा रहा है कि ये आश्चर्यजनक नहीं है कि पूरे अभ्यास में ममता दीदी का उद्देश्य आगे बढ़ना है- कम से कम राज्यों के वर्णानुक्रम में. राज्य के अधिकारियों के मुताबिक इस कदम का उद्देश्य राज्य के नामों के वर्णमाला अनुक्रम में ऊपर चढ़ना है, जिसमें पश्चिम बंगाल अब सूची में आखिरी में दिखाई देता है.
हालांकि, राज्य में प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने राज्य को 'बांग्ला' के नाम पर बदलने के लिए टीएमसी सरकार के कदम का स्वागत जोर शोर से किया है.
फिल्म निर्देशक गौतम घोष ने इस प्रस्ताव को पारित होने पर खुशी जाहिर की और कहा कि पश्चिम बांगो नाम विभाजन के संदर्भ में देखा जाता है. "यह प्रवासन की दर्दनाक याददाश्त को फिर से उत्तेजित करता है".
गौतम घोष का कहना हि कि ये नया नाम उस अतीत को पीछे छोड़ने का काम करेगा. ये बता दें कि घोष ने कुछ साल पहले विभाजन पर एक फिल्म निर्देशित की थी. "यह बंगालियों को यह सोचने में सक्षम करेगा कि यह राज्य उनका अपना है, ठीक उसी तरह जिस तरह से बांग्लादेश के लोगों को लगता है कि बंगाली लोगों का वह अपना देश है," उन्होंने कहा.
वहीं, अनुभवी अभिनेता सौमित्र चटर्जी का कहना है कि इसके बावजूद कि स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक 'पश्चिम बंगो' नाम का इस्तेमाल, राज्य का नया आधिकारिक नाम "बांग्ला ठीक है". दादा साहेब फाल्के पुरस्कार विजेता ने कहा, "अगर अब से राज्य को बांग्ला के नाम से जाना जाता है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है.
लोकप्रिय बंगाली लेखक सरशेन्दु मुखोपाध्याय ने कहा, "हम सभी लंबे समय से इसके लिए पूछ रहे थे. मैं बहुत खुश हूं. मैं यही चाहता था. हम सभी इस भूमि को अपने बचपन के दिनों से बांग्ला के रूप में जानते थे. इसलिए, विभाजन के बाद इसे पश्चिम बंगाल का नाम देना पूरी तरह से अनौपचारिक था". उन्होंने ये भी कहा, "इसे बांग्ला के रूप में नामित करके, हम अपने परंपरा और इस क्षेत्र के लंबे इतिहास को बनाए रखने में सफल रहेंगे.
स्पष्ट रूप से, राज्य का नाम ‘पश्चिम बंगाल’ से ‘बांग्ला’ बदलना बंगाली बोलने वाले लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है.
ये भी पढ़ें-
2019 में विपक्ष के पास चुनाव प्रचार का कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नहीं है
बंगाल में बीजेपी की 'पोरिबरतन' की कोशिश पर पानी फिर गया
विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ रही हैं ममता बनर्जी
आपकी राय