राष्ट्रीय-महत्वाकांक्षा पूरी करने के चक्कर में ममता का बंग-भंग न हो जाए
ममता बनर्जी के शासन में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की नई मूर्ति बनवाना, पुण्यतिथि पर सरकारी कार्यक्रम का आयोजन कोई मामूली बात नहीं है. साफ है ममता बीजेपी पांव जमाने से परेशान हैं. बेहतर होगा वो मोर्चा बनाने की जगह सीटों पर फोकस करतीं.
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ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे को लेकर बहुत ज्यादा एक्टिव हैं. काफी दिनों से कोलकाता दिल्ली एक किये हुए हैं. ममता की महत्वाकांक्षा को हवा उन नेताओं ने दी है जो देश में गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी मोर्चा खड़ा चाहते हैं. ममता का बीजेपी से छत्तीस का रिश्ता तो है ही, कांग्रेस से भी अब तकरार तेज हो चली है. कांग्रेस के साथ टकराव के दो कारण हैं. एक तो अरविंद केजरीवाल के लिए कांग्रेसी किले में नो-एंट्री का बोर्ड लगा होना. दूसरा, राहुल को दरकिनार कर प्रधानमंत्री पद पर ममता की दावेदारी के संकेत.
बीजेपी को लेकर ममता बनर्जी के तीखे हमले कम तो नहीं हुए हैं, लेकिन उनके स्टैंड में एक बड़ा बदलाव दर्ज हुआ है. ममता सरकार में पहली बार 23 जून, 2018 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि मनायी गयी. ममता सरकार ने उनकी नयी मूर्ति भी लगवाई है.
ममता को श्यामा प्रसाद मुखर्जी अचानक अच्छे क्यों लगने लगे?
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर हुए कार्यक्रम में ममता बनर्जी खुद तो नहीं गयी थीं, लेकिन आयोजन सरकारी रहा. ममता ने इस मौके पर अपने दो मंत्रियों को भेजा था. वैसे राहुल गांधी के इफ्तार में ममता के प्रतिनिधियों का पहुंचना और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रोग्राम में मौजूदगी - दोनों के अलग अलग अर्थ समझा जाना चाहिये.
ममता सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का महत्व...
अगर राहुल गांधी के न्योते पर ममता के नुमाइंदे पहुंचते हैं तो इसका मतलब हुआ कि वो उस मौके को इस लायक नहीं समझतीं कि खुद मौजूद रहें. प्रतिनिधियों को भेज कर वो ये मैसेज देती हैं कि वो बुलावे को रिजेक्ट नहीं कर रही हैं. पॉलिटिकल लाइन के हिसाब से तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कार्यक्रम में ममता के मंत्री का शायद कोई सरकारी मुलाजिम भी नहीं पहुंचता. मगर, ये सब हुआ और इसके पीछे ममता की सोची समझी रणनीति रही.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी का बढ़ता दखल ममता बनर्जी को परेशान करने लगा है. पंचायत चुनावों को छोड़ दें तो उसके पहले के कई उपचुनावों में बीजेपी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे. कई जगह तो बीजेपी ने वोट शेयर में इजाफा भी दर्ज कराया. जाहिर है ममता इसके दूरगामी परिणामों का ठीक से आकलन कर रही होंगी.
पश्चिम बंगाल में सरकारी खर्च से श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति बनवाना भी ताज्जुब की ही बात रही. मगर, ममता सरकार ने इसे खुशी खुशी अंजाम दिया. दरअसल, त्रिपुरा में बीजेपी के चुनाव जीतने के बाद कुछ उतावले समर्थकों ने लेनिन की मूर्ति तोड़ दी थी. उसी घटना के रिएक्शन में बीजेपी विरोधी कार्यकर्ताओं ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति तोड़ दी थी. ममता सरकार ने उसी की अपनी ओर से भरपाई की है, हालांकि, नजर खास वोट बैंक पर है. वो बंगाली वोट बैंक जिसके बीजेपी के प्रभाव से ममता को छिटक जाने का डर सता रहा होगा. बीजेपी बंगाल में ममता को हिंदू विरोधी के रूप में पेश करती रही है. उपचुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी पांव पसार ही नहीं रही, पांव जमाने भी लगी है.
बंगाली भद्रलोक में बीजेपी की घुसपैठ की कोशिश
बीजेपी द्वारा गढ़ी जा रही हिंदू विरोधी छवि की काट में ममता भी राहुल गांधी की तरह सॉफ्ट हिंदुत्व वाले प्रयोग करने लगी हैं. पिछले साल ममता बनर्जी गंगासागर गयी थीं. कपिल मुनि के आश्रम में मुख्य पुजारी ज्ञानदास महाराज के साथ ममता ने करीब एक घंटा बिताया. इसी साल जनवरी में बीरभूम में टीएमसी के एक ताकतवर स्थानीय नेता ने ब्राह्मण और पुरोहित सम्मेलन कराया था जिसमें करीब 15 हजार लोग जुटे थे. टीएमसी की ओर से मेहमानों को रामनामी चादर, गीता के अलावा स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की किताबें और तस्वीरें भेंट की गयीं थी.
बंगाल में भी बीजेपी के 'ऑपरेशन राष्ट्रवाद' की तैयारी...
27 जून को बंकिम चंद्र चटर्जी के 180वीं जयंती के मौके पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दो दिन के पश्चिम बंगाल के दौरे पर कोलकाता पहुंच रहे हैं. शाह के दौरे से पहले ही ममता के पुराने भरोसेमंद लेकिन अब बीजेपी नेता मुकुल रॉय ने उन्हें तगड़ा चैलेंज दिया है. 22 जून को ममता बनर्जी चीन के दौरे पर जाने वाली थीं. ऐन वक्त पर ममता बनर्जी को दौरा रद्द करना पड़ा. मुकुल रॉय ने इस मुद्दे पर ममता बनर्जी से सफाई मांगी है. मुकुल रॉय की डिमांड है कि ममता बनर्जी को अपने विदेश दौरों पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिये. मुकुल रॉय का आरोप है कि ममता के विदेश दौरे से एक पैसे का भी निवेश नहीं हुआ है - और ये सब टैक्स देने वाले लोगों की गाढ़ी कमाई की बर्बादी है.
अमित शाह कोलकाता में बंगाली बुद्धिजीवियों से संवाद करेंगे और फिर बीजेपी की सोशल मीडिया टीम से मिलेंगे जिसमें उन्हें ममता की पार्टी टीएमसी को काउंटर करने की रणनीति समझाएंगे.
अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की 42 में 22 सीटें बीजेपी की झोली में डालने का टारगेट रखा है. हालांकि, बंगाल बीजेपी की ओर से शाह को 26 सीटें जीतने का एक्शन प्लान तैयार किया गया है. पश्चिम बंगाल में फिलहाल बीजेपी की सिर्फ दो सीटें हैं. केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो आसनसोल जबकि एसएस आहलूवालिया दार्जीलिंग सीट से बीजेपी के सांसद हैं.
2014 में तृणमूल कांग्रेस ने 34 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि बीजेपी की ही तरह कांग्रेस और सीपीएम के खाते में दो दो सीटें आयी थीं. पश्चिम बंगाल विधानसभा की तरह 2019 का आम चुनाव भी कांग्रेस और वाम दल मिलकर लड़ने वाले हैं. इस हिसाब से ममता को आम चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों से अलग अलग दो दो हाथ करने पड़ेंगे. वैसे पिछले चुनाव में कांग्रेस लेफ्ट गठबंधन को कामयाबी नहीं मिल पायी थी. फिर भी राजनीतिक समीकरण ऐसे हो गये हैं कि कांग्रेस को फिर से सीताराम येचुरी की पार्टी के साथ मैदान में उतरना पड़ रहा है.
टीएमसी के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर कार्यक्रम को सम्मान देने का कल्चर बता रहे हैं. टीएमसी नेता सोवनदेब चट्टोपाध्याय का तो यहां तक कहना है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडे को स्वीकार ही नहीं करते.
टीएमसी नेता की ये दलील अजीब लगती है, वो भी तब जब अमित शाह श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस से 'ऑपरेशन राष्ट्रवाद' शुरू करने का ऐलान कर रहे हैं.
टीएमसी ने बीजेपी नेता प्रताप बनर्जी को भी खिल्ली उड़ाने का मौका दे दिया है, कहते हैं, ''टीएमसी हमसे डर गई है. हर तरफ उसे भाजपा का भूत नजर आ रहा है, इसलिए सरकार अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद करने में लगी है.''
श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर ममता और उनके साथियों की सक्रियता तो यही बता रही है कि टीएमसी पर बीजेपी का खौफ हावी होने लगा है. विधानसभा चुनाव में भी लड़ाई ममता के लिए आसान न थी, लेकिन टीएमसी नेताओं पर लगे आरोपों को झूठा समझाने में वो कामयाब रहीं. चुनावों के ऐन पहले ही नारदा स्टिंग ने डंक मारने की कोशिश की थी, लेकिन ममता के मंत्र ने उसे बेअसर कर दिया था.
जरूरी नहीं कि हर बार एक जैसा जादू चल जाये. देश में तीसरा मोर्चा बनाकर प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा अच्छी तो है लेकिन घातक भी है. खासकर तब जब टीएमसी सांसदों की संख्या बढ़ने की जगह घट जाये. ममता बनर्जी को ये तो बाखूबी मालूम होगा कि 2019 का आम चुनाव न तो विधानसभा जैसा होगा और न ही हाल के पंचायत चुनावों जैसा.
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