मनीष सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ाने में ज्यादा योगदान तो केजरीवाल का ही है
दिल्ली शराब नीति मामले के बाद मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के खिलाफ सीबीआई (CBI) अब जासूसी केस की भी जांच करने जा रही है - ऐसा क्यों लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने ही अपने डिप्टी सीएम को फंसा दिया हो?
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मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) को सीबीआई ने दिल्ली शराब नीति केस में पूछताछ के लिए 22 फरवरी, 2023 को बुलाया था. जब डिप्टी सीएम ने दिल्ली सरकार के बजट की तैयारियों में व्यस्त होने के कारण कोई और तारीख मांगी तो सीबीआई ने अपील मंजूर कर ली - और पेशी की नयी तारीख 26 फरवरी मुकर्रर कर दी है.
तभी ऊपर से एक नयी मुसीबत टपक पड़ी है. अब सीबीआई (CBI) को एक और मामले में मनीष सिसोदिया के खिलाफ जांच की मंजूरी मिल गयी है. ये मामला दिल्ली सरकार की फीडबैक यूनिट से जुड़ा है, जिसे लेकर बीजेपी ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार पर अपने नेताओं की जासूसी कराने का इल्जाम लगाया है.
सीबीआई ने दिल्ली सरकार की फीडबैक यूनिट को लेकर लगाये गये जासूसी के आरोप को लेकर मनीष सिसोदिया और कुछ अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने की अनुमति मांगी थी - और उसके बाद ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केजरीवाल सरकार की फीडबैक यूनिट को लेकर जासूसी कराने के आरोपों पर सीबीआई जांच को हरी झंडी दिखा दी है. असल में दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने ही जासूसी कांड की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश भी केंद्र सरकार को भेजी थी.
बीजेपी का आरोप है कि फीडबैक यूनिट के जरिये दिल्ली की अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) सरकार ने केंद्रीय मंत्रालयों, कई संस्थाओं और विपक्षी दलों के नेताओं की जासूसी करायी. आम आदमी पार्टी ने दोनों ही मामलों को राजनीति से प्रेरित बताया है - और लगे हाथ काउंटर अटैक में कहा है कि अव्वल तो सीबीआई और ईडी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अदानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अदानी के बीच संदिग्ध संबंधों की जांच करनी चाहिये, जहां असल में भ्रष्टाचार हुआ है. आप के राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने ट्विटर पर ये मांग उठायी है.
जासूसी कांड से पहले दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने ही शराब घोटाले की जांच के लिए सीबीआई जांच की भी सिफारिश की थी. एनजी ने अपनी सिफारिश में साफ तौर पर लिखा कि आबकारी मंत्री की भूमिका की जांच की जाये - और ये मंत्रालय भी बहुत सारे विभागों की तरह डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के पास ही है. केस में सीबीआई ने जिन 15 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की है, उसमें मनीष सिसोदिया को मुख्य आरोपी बताया गया है - और उसी सिलसिले में पूछताछ के लिए सीबीआई दफ्तर बुलाया गया है.
शराब नीति की गड़बड़ियों की जांच के सिलसिले में सीबीआई के अधिकारी मनीष सिसोदिया के आवास पर छापेमारी कर जांच पड़ताल पहले ही कर चुके हैं. मनीष सिसोदिया बार बार दोहराते रहे हैं कि जांच एजेंसी ने उनका लॉकर भी चेक किया और वहां भी कुछ नहीं मिला. और उसी को आगे बढ़ाते हुए दावा करते हैं कि आगे भी कुछ नहीं मिलेगा.
मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई जांच को अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने जोरदार विरोध किया है. केजरीवाल और उनके साथी बचाव में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में अपनी तरफ से अभूतपूर्व सुधार की दुहाई देते रहे हैं - और मनीष सिसोदिया भी हमेशा की तरह जांच में सहयोग के वादे के साथ बचाव में दिल्ली के स्कूलों का ही नाम लिया करते हैं.
और जब भी ये मामला जोर पकड़ता है तो एक ही सवाल उभर कर आता है - क्या मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया जा सकता है?
मनीष सिसोदिया खुद भी ऐसी आशंका जता चुके हैं और अरविंद केजरीवाल ने भी ऐसी बातें कही है. अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि केंद्र सरकार की शह पर दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन की ही तरह डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को भी गिरफ्तार किया जा सकता है - बल्कि, मजाकिया लहजे में ही सही गुजरात चुनावों से पहले अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया को सीबीआई के गिरफ्तार कर लेने की सूरत में गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाने की संभावना जता डाली थी.
ये बिलकुल झूठा केस है। ये लोग @msisodia जी के पीछे पड़ गए हैं। ये अडानी की जाँच नहीं कराते जिसने लाखों करोड़ का घोटाला किया।अपने प्रतिद्वंदियों पर झूठे केस करना एक हारे और कायर इंसान की निशानी है।AAP और @ArvindKejriwal से इतना क्यों डरते हो मोदी जी?AAP बढ़ेगी तो FIR बढ़ेगी। pic.twitter.com/4Rl5EQOwUB
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) February 22, 2023
मामला राजनीति से प्रेरित हो या फिर वास्तव में गड़बड़ी हुई हो, लेकिन देख कर तो ऐसा ही लग रहा है कि मनीष सिसोदिया को अरविंद केजरीवाल से दोस्ती का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है - जैसे मंत्रियों के आदेशों पर तामील करने करने की कीमत अफसरों को चुकानी पड़ती है, मनीष सिसोदिया को भी बिलकुल वैसा ही करना पड़ रहा है.
जासूसी तो केजरीवाल ही कराना चाहते थे
जांच पड़ताल अपनी जगह है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि अभी सीबीआई को भी नहीं मालूम कि दिल्ली सरकार की फीडबैक यूनिट एक्टिव भी है या नहीं?
सीबीआई जांस से मुश्किलें मनीष सिसोदिया की बढ़े्ंगी - और फायदा अरविंद केजरीवाल को मिलेगा.
बताते हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ही 2015 की एक कैबिनेट मीटिंग में फीडबैक यूनिट का प्रस्ताव रखा था, लेकिन एजेंडा नोट जारी नहीं किया गया. सीबीआई की शुरुआती जांच के मुताबिक, इस सिलसिले में दिल्ली के उप राज्यपाल की मंजूरी भी नहीं ली गयी.
फिर 2016 में विजिलेंस विभाग में काम कर रहे एक अफसर की शिकायत पर सीबीआई ने जांच शुरू की थी और 12 जनवरी, 2023 को रिपोर्ट दाखिल कर उप राज्यपाल से मनीष सिसोदिया के खिलाफ केस दर्ज करने का आवेदन दिया. सीबीआई ने 2016 में विजिलेंस डायरेक्टर रहे सुकेश कुमार जैन सहित कुछ और लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने की इजाजत मांगी थी - और मंजूरी मिल जाने के बाद अब अपनी जांच पड़ताल औपचारिक तरीके से करेगी.
शुरुआती तौर पर फीडबैक विभाग का काम दिल्ली सरकार के तमाम विभागों, संस्थानों और स्वतंत्र संस्थानों की निगरानी करना था. साथ ही कामकाज को लेकर फीडबैक देना था. तब मकसद ये रहा कि जरूरत के मुताबिक, सुधारवादी कदम उठाये जा सकें.
कई बार मंजिल बदल जाती है और मकसद पीछे छूट जाता है, फीडबैक यूनिट के साथ भी वैसा ही हुआ लगता है. क्योंकि इल्जाम लगा है कि कामकाज पर फीडबैक देते देते यूनिट को खुफिया राजनीतिक जानकारियां जुटाने के काम पर लगा दिया गया. जल्द ही फीडबैक यूनिट आम आदमी पार्टी को फायदा पहुंचाने वाली जानकारियां जुटाने लगी, भले ही वो किसी नेता के खिलाफ हो या उससे जुड़े संस्थानों को लेकर.
सीबीआई के हवाले से खबर आयी है कि एजेंसी ने 700 मामलों की जांच की थी - और उनमें 60 फीसदी मामले राजनीतिक हैं जिनका सुधार के लिए कार्यक्रमों की निगरानी से कोई लेना देना नहीं है.
सवाल ये है कि जिस फीडबैक यूनिट का प्रस्ताव कैबिनेट में अरविंद केजरीवाल ने रखा, उसके लिए सिर्फ मनीष सिसोदिया के खिलाफ केस क्यों दर्ज हो रहा है?
और इसीलिए सवाल ये भी है कि मुख्यमंत्री होने के नाते जांच अरविंद केजरीवाल के खिलाफ क्यों नहीं हो रही है या फिर वो जांच के दायरे से बाहर क्यों हैं? बात में अरविंद केजरीवाल भी जांच के दायरे में लाये जाते हैं या नहीं अलग बात है.
फीडबैक यूनिट ने जो जो भी जानकारियां जुटाईं उससे फायदा अरविंद केजरीवाल को मिला या मनीष सिसोदिया को, लेकिन शराब नीति की तरह जिम्मेदारी सिर्फ मनीष सिसोदिया की ही क्यों बनती है?
केजरीवाल क्यों बच कर निकल जा रहे हैं?
दिल्ली का मुख्यमंत्री बन कर खुद छुट्टा घूम रहे अरविंद केजरीवाल ने सिसोदिया पर जिम्मेदारियों का ऐसा बोझ डाल दिया है कि वो बुरी तरह उसके तले दबे नजर आ रहे हैं - अगर अरविंद केजरीवाल को 'चीफ मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो कहें तो गलत नहीं होगा.
तकनीकी रूप से देखें या फिर नियमों के हिसाब से दिल्ली सरकार के हर अच्छे बुरे फैसले के लिए जिम्मेदार तो अरविंद केजरीवाल ही माने जाएंगे, लेकिन मनीष सिसोदिया का हाल तो बाकी अधिकारियों जैसा है ही जो मुख्यमंत्री या मंत्रियों के मौखिक आदेशों पर ऑर्डर पास कर देते हैं और तामील भी कराते हैं, लेकिन जांच होने की सूरत में फंस जाते हैं.
क्या विजिलेंस या एक्साइज डिपार्टमेंट अरविंद केजरीवाल ने अपने पास रखा होता तो क्या मनीष सिसोदिया जांच के दायरे से बाहर नहीं होते?
अब तो लगता है जैसे मनीष सिसोदिया के मन में भी ख्याल आ रहे होंगे कि अरविंद केजरीवाल ने ही उनको फंसाने का पहले से ही इंतजाम कर रखा है. सीबीआई जांच का मामला राजनीति से प्रेरित होने का आरोप लगाने से पहले मनीष सिसोदिया सहित आम आदमी पार्टी के नेताओं को एक बार अपने भीतर भी झांक कर देख लेना चाहिये - जो व्यवस्था बना रखी है क्या वो राजनीति से प्रेरित नहीं है?
दलील दी जा रही है कि मनीष सिसोदिया ने दिल्ली में शिक्षा में सुधार के लिए जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर का काम किया है, उसमें रोड़ा अटकाने के लिए ये सब किया जा रहा है - लेकिन मनीष सिसोदिया तो डिप्टी सीएम हैं, सारी चीजें तो अरविंद केजरीवाल की मर्जी और मंजूरी से ही होती होंगी. बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला भी पहले अरविंद केजरीवाल ही बोलते हैं, मनीष सिसोदिया और बाकी नेता तो पीछे से आते हैं.
अपने नेता का साथ तो देना ही पड़ेगा. सहमति हो या असहमति. जब राहुल गांधी को ईडी ने पूछताछ के लिए दफ्तर बुलाया था, तो सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने वाले कुछ ऐसे भी नेता रहे जो राहुल गांधी की ही तरह ईडी के निशाने पर रहे. और जांच फेस कर रहे थे. मन से या बेमन से पार्टी नेतृत्व की मर्जी के मुताबिक सड़क पर तो उतरना ही था.
बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन हकीकत तो यही है कि खुद मुख्यमंत्री बन कर अरविंद केजरीवाल ने डिप्टी सीएम बनाकर और अपनी सारी जिम्मेदारियों सौंप कर मनीष सिसोदिया के फंस जाने का पूरा इंतजाम पहले से ही कर रखा है.
दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर जो जानकारी दी गयी है, पता चलता है कि मनीष सिसोदिया के पास घोषित तौर पर 18 विभागों की जिम्मेदारी है - शिक्षा, वित्त, योजना, लैंड ऐंड बिल्डिंग, विजिलेंस, सेवायें, पर्यटन, कला-संस्कृति-भाषा, श्रम, रोजगार, लोक निर्माण विभाग, स्वास्थ्य, उद्योग, बिजली, गृह, शहरी विकास, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण और जल.
स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी पहले सत्येंद्र जैन के पास हुआ करती थी. जैन की गिरफ्तारी के बाद वो विभाग भी मनीष सिसोदिया के हिस्से में ही आ गया - सत्येंद्र जैन फिलहाल जेल में हैं लेकिन दिल्ली सरकार में मंत्री बने हुए हैं.
जासूसी कांड में सीबीआई को मनीष सिसोदिया के खिलाफ केस दर्ज करने की मंजूरी मिल जाने के बाद ये तो साफ साफ लग रहा है कि मनीष सिसोदिया बुरी तरह फंस चुके हैं. निश्चित तौर पर मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई के हर एक्शन का फायदा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को मिलेगा, लेकिन अगर गिरफ्तार किया जाता है, जेल मनीष सिसोदिया ही जाएंगे.
और अगर ऐसा होता है तो ये भी जरूरी नहीं कि मनीष सिसोदिया को भी जेल में सत्येंद्र जैन जैसी ही सुविधायें हासिल हो पायें, क्योंकि पहले ही बहुत बवाल मच चुका है - और जिस तरह से यूपी की जेल में एक माफिया के बेटे विधायक की पत्नी को जेल के भीतर से गिरफ्तार किया गया है, जेल के अधिकारियों को नियमों के खिलाफ आगे कुछ भी करने से पहले जोखिम उठाने के लिए भी बहुत हिम्मत जुटानी होगी.
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