वोटकटवा बने सपाक्स-मायावती ने मप्र चुनाव का खेल बदला
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मायावती और सपाक्स - दोनों की भूमिका 'वोटकटवा' से ज्यादा नहीं लगती. हो सकता है एक दूसरे के विरोधी होने के चलते ये कुछ वोट न्यूट्रलाइज कर दें. देखना है ज्यादा असर किस पर होगा - बीजेपी या कांग्रेस पर?
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मध्य प्रदेश में चुनावी लड़ाई सत्ता बचाने और हथियाने को लेकर चल रही है. मोर्चे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डटे हुए हैं तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ चैलेंज कर रहे हैं.
शिवराज बनाम कमलनाथ की इस जंग में बीएसपी का झंडा लेकर मायावती भी कूद चुकी हैं, हालांकि, ज्यादा चर्चा कांग्रेस के साथ गठबंधन न हो पाने को लेकर है. एक छोर से सवर्णों का संगठन सपाक्स भी ललकार रहा है - और ताल ठोक कर चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर चुका है.
देखा जाये तो मध्य प्रदेश में मायावती और सपाक्स दोनों का रोल वोटकटवा से ज्यादा नहीं लगता. अब ये समझना काफी महत्वपूर्ण है कि दोनों के मैदान में होने से ज्यादा फर्क किसे पड़ेगा - सत्ताधारी बीजेपी या कुर्सी पर कब्जे को आतुर कांग्रेस को?
मायावती को हारने वाली सीटें क्यों चाहिये थीं?
मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का दावा है कि गठबंधन के लिए मायावती ने उन सीटों की मांग नहीं की जहां वो जीत सकती हैं.
अगर कमलनाथ की बात मानें तो मायावती को उन सीटों से परहेज रहा जहां बीएसपी की जीत की प्रबल संभावना है. मगर, ऐसा क्यों?
तो क्या मायावती कांग्रेस से सिर्फ वही सीटें मांग रही थीं जहां बीएसपी की हार तय थी?
आखिर बीएसपी की हार से मायावती को क्या फायदा मिलेगा?
कमलनाथ के दावे में कितना दम है?
एकबारगी तो कमलनाथ का ये दावा किसी के गले नहीं उतर सकता. मायावती ऐसी कोई नौसिखिया नेता तो हैं नहीं कि कुल्हाड़ी पर ही पैर मार दें. सबको पता है कि अपनी पार्टी का जनाधार और वोट शेयर बढ़ाने के लिए वो कर्नाटक से हरियाणा तक एक्टिव हैं. कर्नाटक में मायावती को कामयाबी भी मिल चुकी है. हां, हरियाणा में बात रक्षाबंधन से आगे नहीं बढ़ सकी है.
सवाल ये है कि मध्य प्रदेश में बीएसपी की हार से किसे फायदा और किसे नुकसान हो सकता है?
फर्ज कीजिए कांग्रेस के साथ होकर अगर बीएसपी की हार होती तो सीधा फायदा बीजेपी को होता. कमलनाथ के संदेश को समझें तो कांग्रेस के साथ गठबंधन की स्थिति में मायावती अगर बीएसपी की जनाधार वाली सीटें जीत जातीं तो बीजेपी को नुकसान पहुंचता.
तो क्या कमलनाथ ये मैसेज देना चाह रहे हैं कि मायावती मध्य प्रदेश में बीजेपी के फायदे के लिए वोटकटवा की भूमिका में हैं?
फिर तो कमलनाथ भी दिग्विजय सिंह के दावे को भी दूसरे रास्ते से सपोर्ट कर रहे हैं. वैसे सपोर्ट में बयान तो कमलनाथ ने दे ही दिया है.
मायावती के बराबर सपाक्स भी मैदान में
मायावती की ही तरह मध्य प्रदेश की राजनीति में सपाक्स पार्टी की धमाकेदार एंट्री हुई है. सपाक्स पार्टी ने भी मायावती की ही तरह मध्य प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.
जिस तरह दलितों के वोट पर मायावती दावा पेश कर रही हैं, उसी तरह सवर्णों के वोट को स्पाक्स के बैनर तले लाने का काम पूर्व आईएएस अफसर हीरालाल त्रिवेदी कर रहे हैं.
गांधी जयंती के मौके पर सपाक्स पार्टी ने 2 अक्टूबर अपनी राजनीतिक पारी की औपचारिक घोषणा की. वैसे गठन के 48 घंटे के भीतर ही सपाक्स पार्टी को लेकर एक विवाद भी हुआ. दरअसल सपाक्स समाज के संस्थापकों में से एक ललित शास्त्री ने पार्टी के गठन पर ही सवाल खड़ा कर दिया. ललित शास्त्री ने दलील दी कि आचार संहिता लागू होने से पहले अगर चुनाव आयोग की मान्यता नहीं मिलती तो सपाक्स पार्टी चुनाव नहीं लड़ पाएगी. ललित शास्त्री के मुताबिक सपाक्स समाज से अलग होकर वो पहले ही 'अनारक्षित समाज पार्टी' में शामिल हो चुके हैं. ललित शास्त्री ने कहा कि 'अनारक्षित समाज पार्टी' को मान्यता के साथ साथ चुनाव निशान भी मिला हुआ है. सपाक्स पार्टी के हीरालाल त्रिवेदी का कहना है कि ललित शास्त्री की बातों की कोई अहमियत नहीं है क्योंकि चुनाव आयोग में पार्टी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और आयोग की ओर से आपत्तियां मांगी जा रही हैं.
अब सवाल ये उठता है कि सपाक्स और मायावती के चुनाव मैदान में कूदने से सूबे की राजनीति पर कितना असर होता है. अगर इन दोनों की भूमिक वोटकटवा तक ही सीमित रहती है तो भी उन सीटों पर तो खेल हो ही जाएगा जहां जीत का मार्जिन बेहद कम होगा.
मध्य प्रदेश में सियासी क्षत्रपों की खास जमात तो होती ही है, यूपी और बिहार की तरह वहां भी लोग सजातीय उम्मीदवारों को ही वोट देना पसंद करते हैं. जीत उसकी पक्की हो जाती है जो लहर और जातीय समीकरण दोनों में फिट हो जाता है.
मध्य प्रदेश में सवर्ण वोट 15 फीसदी है - और अनुसूचित जाति के 16 फीसदी. SC/ST एक्ट को लेकर जो माहौल बना है उसमें अगर अनसूचित जनजाति के 23 फीसदी वोट जोड़ दिये जायें तो कुल 39 फीसदी हो जाता है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वस्तुस्थिति का अंदाजा पहले ही लगा लिया है - और सवर्णों के गुस्से गुस्से को देखते हुए ऐसे मामलों में बगैर जांच गिरफ्तारी न होने देने का भरोसा दिलाया है.
मायावती को ताना मारते हुए कमलनाथ 2013 में उनको मिले महज 6 फीसदी वोटों की याद दिलाते हैं. जिस तरीके से मायावती को कमलनाथ खारिज करने रहे हैं, क्या वास्तव में स्थिति वैसी ही है?
क्या बदले हालात में भी मायावती के वोट शेयर बढ़ने के जरा भी आसार नहीं हैं? तब भी जबकि SC/ST एक्ट को लेकर लड़ाई सवर्ण बनाम दलित का रूप ले चुकी है!
मायावती को कम करके आंकना कमलनाथ के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है - और शिवराज सिंह चौहान के लिए भी SC/ST एक्ट के तहत मामलों में चुनावी वादा भी.
शिवराज को बताना होगा वो कितने गंभीर हैं
भारत बंद के दौरान सवर्णों के गुस्से को देखते हुए शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा तो कर दी - 'बगैर जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी'.
बयानबाजी से काम नहीं चलेगा!
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ये चुनावी वादा तब तक हवा हवाई है जब तक कि कोई शासनादेश जारी नहीं किया जाता. यही सवाल उठा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच में एक सुनवाई के दौरान.
कोर्ट के पूछने पर शिवपुरी के एसपी राजेश हिंगणकर ने बताया कि उन्हें शासन की ओर से कोई लिखित निर्देश नहीं मिला है. ऐसी स्थिति में पुलिस मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद बगैर जांच किये गिरफ्तारी के लिए बाध्य नहीं है.
हाई कोर्ट ने एसपी के जवाब को अस्पष्ट माना और पूछा - क्या आप जानते हैं कि इस जवाब के क्या परिणाम निकलेंगे?
कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए सरकारी वकील विस्तार से जवाब पेश करने के लिए थोड़ी मोहलत मांग ली - और सुनवाई की अगली तारीख 11 अक्टूबर को मुकर्रर हो गयी. शिवराज के बयान पर बीजेपी में ही विवाद शुरू हो गया था. दिल्ली से बीजेपी सांसद उदित राज ने तो शिवराज से बयान ही वापस लेने की मांग की है.
ऐसे में जबकि मायावती और सपाक्स दोनों चुनावी मैदान में कूद कर चौतरफा चुनौती दे रहे हैं, शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. एक स्थिति ये भी हो सकती है कि दोनों वोटकटवा एक दूसरे को न्यूट्रलाइज कर दें - और फिर असली जंग बीजेपी बनाम कांग्रेस में बदल जाये.
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