मायावती समझ गयी हैं कि प्रियंका के निशाने पर बीएसपी है, बीजेपी नहीं!
यूपी कांग्रेस में अक्सर जो उठापटक नजर आ रही है उसके कई कारण होंगे, लेकिन एक वजह प्रियंका वाड्रा और राहुल गांधी का अलग एजेंडा भी लगता है. अगर मायावती को लगने लगा है कि प्रियंका गांधी उनकी जड़ें खोद रही हैं तो वो बहुत हद तक गलत नहीं हैं.
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ये तो पहले ही साफ हो चुका था कि प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस नेतृत्व ने मिशन-2022 के लिए मैदान में उतारा है. मगर, इतनी जल्दी वो अपने टास्क को पूरा करने में जुट जाएंगी ऐसा बिलकुल नहीं लगा था.
मायावती को तो शुरू से ही प्रियंका वाड्रा की औपचारिक एंट्री कांग्रेस को नहीं सुहा रही थी. प्रियंका वाड्रा के खुल कर राजनीति में आने पर सभी नेताओं की प्रतिक्रिया आयी, लेकिन मायावती ने कुछ नहीं कहा. अब तो कांग्रेस का नाम लेकर मायावती जो कुछ भी कहती और करती हैं उसमें निशाने पर प्रियंका वाड्रा ही होती हैं.
मायावती की तरह बाकियों को भी कोई कन्फ्यूजन नहीं रहना चाहिये कि यूपी में राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा दोनों अलग अलग एजेंडे पर काम कर रहे हैं - और उनमें से एक एजेंडा मायावती के ही खिलाफ है.
मायावती भांप चुकी हैं प्रियंका के इरादे
प्रयागराज से गंगा की लहरों के साथ वाराणसी जाते वक्त प्रियंका गांधी ने मायावती को एक मैसेज देने की कोशिश की थी - 'कांग्रेस की लड़ाई बीजेपी के खिलाफ है और किसी को कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिये'.
मतलब साफ है प्रियंका गांधी और मायावती दोनों इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं कि कौन एक दूसरे के खिलाफ किस रणनीति पर काम कर रहा है. सपा-बसपा गठबंधन के ऐलान के साथ ही मायावती और अखिलेश यादव ने कांग्रेस के नाम पर अमेठी और रायबरेली की दो सीटें छोड़ दी थी. बदले में कांग्रेस ने भी गठबंधन के नाम पर सात सीटें छोड़ने की घोषणा की. कांग्रेस का आशय उन सात सीटों से रहा जहां से अखिलेश यादव, मायावती, मुलायम सिंह यादव, डिंपल यादव, चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी चुनाव मैदान में होंगे. हालांकि, मायावती ने अब साफ कर दिया है कि वो लोक सभा का चुनाव नहीं लड़ने जा रही हैं.
कांग्रेस की इस पेशकश का स्वागत करने की जगह मायावती ने कड़ा विरोध किया. मायावती ने कह दिया कि कांग्रेस के साथ गठबंधन का किसी प्रकार का तालमेल नहीं है. बाद में अखिलेश यादव ने भी कह दिया कि यूपी में सपा-बसपा और आरएलडी का गठबंधन बीजेपी को हराने में पूरी तरह सक्षम है और कांग्रेस को भ्रम की स्थति पैदा करने से बाज आना चाहिये.
बीएसपी एक बार फिर साफ तौर पर स्पष्ट कर देना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पार्टी से हमारा कोई भी किसी भी प्रकार का तालमेल व गठबंधन आदि बिल्कुल भी नहीं है। हमारे लोग कांग्रेस पार्टी द्वारा आयेदिन फैलाये जा रहे किस्म-किस्म के भ्रम में कतई ना आयें।
— Mayawati (@Mayawati) March 18, 2019
पूर्वांचल दौरे से ठीक पहले प्रियंका गांधी भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर रावण से मिलने अस्पताल गयी थीं - और ये बात मायावती को बेहद नागवार गुजरी. मायावती ने भी कांग्रेस के खिलाफ अपने इरादे जाहिर करने में देर नहीं लगायी. मायावती और अखिलेश यादव उसी वक्त मिले और गठबंधन की ओर से अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवार खड़े करने को लेकर चर्चा हुई. बताते हैं कि मायावती को ऐसा सख्त कदम न करने के लिए अखिलेश यादव ने मना लिया है.
मायावती के वोट बैंक पर प्रियंका वाड्रा की सीधी नजर...
गंगा के बहाने बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करने की बात प्रियंका गांधी ने समझाने की कोशिश तो की, लेकिन मायावती को साफ समझ आने लगा कि किसके वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद चल रही है. गंगा किनारे बसे मल्लाहों और निषाद समाज से कनेक्ट होने की प्रियंका गांधी की कोशिश को मायावती बखूबी समझ रही हैं - और उन्हें कोई गलतफहमी नहीं है कि कांग्रेस प्रियंका को आगे करके के उन्हें डैमेज करने की कोशिश कर रही है.
कांग्रेस की ओर से पार्टी के अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष नितिन राउत ने भी सफाई देने की कोशिश की, 'हम उन वोटरों को अपने साथ लाने की कोशिश करेंगे जो पिछले चुनावों में किसी वजह से भाजपा की तरफ चले गए थे. हम दलित समाज को ये बताएंगे कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है और संविधान बदलना चाहती है.
नितिन राउत का बयान सिर्फ इतना ही होता तो बात और थी, लेकिन उन्होंने जो विशेष जानकारी दी वो तो मायावती की बेचैनी बढ़ाने वाली ही रही, 'हम दलित समुदाय तक पहुंचने के लिए बड़े पैमाने पर जनसंपर्क, सभाएं और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करेंगे. पूरी रूपरेखा बना ली गयी है.' नितिन राउत ने ये तो पहले ही कह दिया था कि प्रियंका वाड्रा और और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कार्यक्रमों में कांग्रेस दलित समुदाय की समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करेगी.
नितिन राउत ने बताया कि कांग्रेस की ओर से ऐसी 40 सीटों की सूची बनायी गयी है जहां दलित वोटर 20 फीसदी से ज्यादा हैं. राउत ने बताया कि इनमें 17 रिजर्व सीटें भी शामिल हैं.
क्या अलग अलग एजेंडे पर काम कर रहे हैं राहुल और प्रियंका
ये संयोग ही रहा कि मायावती और प्रियंका गांधी दोनों ने ट्विटर पर आस पास ही दस्तक दी - और दोनों की सक्रियता की रफ्तार में भी बहुत फर्क नहीं दिखता.
फर्क एक जरूर दिखता है, लेकिन कांग्रेस के अंदर ही. ट्विटर फीड को देख कर ऐसा लगता है जैसे प्रियंका वाड्रा से परहेज किया जा रहा हो. प्रियंका वाड्रा के ट्वीट को कांग्रेस का मुख्य ट्विटर हैंडल वैसे तो बिलकुल रीट्वीट नहीं करता जैसे राहुल गांधी के साथ होता है. वहां राहुल गांधी की हर पोस्ट के रीट्वीट और दौरे के अपडेट मिलते हैं लेकिन प्रियंका वाड्रा की मौजूदगी नहीं के बराबर नजर आती है. राहुल गांधी भी प्रियंका को मेंशन करते हैं लेकिन जिस तरह बीजेपी नेता एक दूसरे के ट्वीट को रीट्वीट करते हैं वैसा नहीं दिखता. प्रियंका वाड्रा की पूर्वांचल यात्रा की तस्वीरें और जानकारी भी यूपी कांग्रेस के ट्विटर फीड में देखने को मिलती है.
क्या यूपी के मामलों में प्रियंका गांधी की गतिविधियों से राहुल गांधी सार्वजनिक तौर पर दूरी बनाकर चल रहे हैं?
प्रियंका को कांग्रेस महासचिव तब बनाया गया जब वो देश से बाहर थीं. उनके आने से पहले राहुल गांधी ने चर्चा को आगे बढ़ाया कि पहले ही आना था और उनका काम क्या होगा. राहुल गांधी खुद प्रियंका को लेकर लखनऊ भी गये. रोड शो भी कराया, लेकिन प्रियंका चुप रहीं. बोले सिर्फ राहुल गांधी.
जब प्रियंका पूर्वांचल दौरे पर निकलीं तो राहुल ने उससे दूरी बना ली. ऐसा लगा जैसे प्रियंका का दौरा कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए कोई खास अहमियत नहीं रखता - और ट्विटर एक्टिविटी इस बात का सबूत भी दे रही है.
बेशक राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा मिल कर कांग्रेस के लिए यूपी में जमीन मजबूत कर रहे हैं - लेकिन ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी के एजेंडे में लोक सभा का मौजूदा चुनाव और प्रियंका वाड्रा के एजेंडे में 2022 का विधानसभा चुनाव है. वैसे भी राहुल गांधी मायावती के प्रति सम्मान ही प्रकट करते हैं और टारगेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करते हैं. प्रियंका वाड्रा एक्टिव मौजूदा चुनाव के लिए नजर आती हैं - लेकिन नजर अगले यूपी विधानसभा चुनाव पर टिकी लगती है - और मायावती ये बात समझ चुकी हैं. मायावती के कांग्रेस के प्रति आक्रामक होने की भी बड़ी वजह यही है.
अखिलेश यादव के आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़ने की खबर के बाद अब वे अटकलें खत्म हो जाएंगी जो मायावती की तरह उनके भी चुनाव मैदान से दूर रहने की चर्चाओं को आगे बढ़ा रही थीं. वैसे मायावती के चुनाव नहीं लड़ने के फैसले को जीत के प्रति आश्वस्त नहीं होना माना जा रहा है.
मायावती मैनपुरी पहुंच कर मुलायम सिंह के लिए वोट मांगने तो जाना ही था, अब अखिलेश यादव के समर्थन में आजमगढ़ में भी रैली करेंगी ही. लगता है मायावती पहले सपा को बीएसपी का दलित वोट ट्रांसफर कराना चाह रही हैं - ताकि बाद में हक के साथ प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी के लिए समर्थन मांग सकें. समाजवादी पार्टी की ओर से एक जानकारी और है कि मुलायम सिंह यादव स्टार प्रचारकों की लिस्ट से बाहर हैं. मायावती ने भतीजे आकाश आनंद की वही ड्यूटी लगायी है जो नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को दी है - पार्टी से युवाओं को जोड़ना. आकाश आनंद बीएसपी के स्टार प्रचारकों में भी शुमार किये गये हैं.
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