2019 चुनाव में प्रियंका का ट्रेलर तो पूरी फिल्म रिलीज होगी 2022 में
प्रियंका गांधी को मुख्यधारा की राजनीति में लाने के बाद राहुल गांधी की नजर अभी के मुकाबले 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों पर ज्यादा लगती है. खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कह भी रहे हैं कि ये कोई अस्थाई इंतजाम नहीं है.
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक दूरगामी सोच के तहत प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है. कहा भी है - ये सिर्फ दो महीने के लिए नहीं है.
राहुल गांधी की ही बातों से लगता है जैसे वो यूपी में 2019 की तैयारी नहीं कर रहे, बल्कि उनकी नजर 2022 के विधानसभा चुनावों पर है. राहुल गांधी मायावती और अखिलेश यादव के यूपी गठबंधन के प्रति शुरू से ही सम्मानजनक भाव बनाया हुआ है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रियंका गांधी वाड्रा को मौजूदा मोदी सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि तीन साल बाद योगी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए मोर्चे पर तैनात किया गया है?
चार दिन की चांदनी नहीं
हंसी मजाक में भी कभी कभी भविष्य की हकीकत की तस्वीर देखी जा सकती है. तीन साल पहले ओडिशा के सीनियर नेता भर्तृहरि महताब ने राहुल गांधी की तैयारियों को लेकर एक टिप्पणी की थी. तब राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष हुआ करते थे. अप्रैल, 2016 में भर्तृहरि महताब PTI से बातचीत में कहा था, 'कांग्रेस उपाध्यक्ष विश्वविद्यालयों में जा रहे हैं और खूब तस्वीरें लेने के मौके बनाये जा रहे हैं. आखिर वो किस तरह के वोट बैंक तैयार कर रहे हैं? क्या वो 2024 के बारे में सोच रहे हैं. उनके लिए मेरी शुभकामनाएं हैं.'
भर्तृहरि महताब ने जो सोच कर कटाक्ष किया हो, अपने बारे में राहुल गांधी की जो भी तैयारी हो लेकिन प्रियंका गांधी को लेकर तो अभी ऐसा ही लगता है.
राहुल गांधी ने खुद ही ये संकेत भी दिया है कि ये सब सिर्फ तात्कालिक मकसद से नहीं हुआ है. राहुल गांधी ने कहा कि प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया को लाकर यूपी की राजनीति को बदलने की कोशिश हो रही है और ये सिर्फ दो महीने के इंतजाम नहीं हैं.
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की सलाह तब के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने दी थी. प्रियंका के कांग्रेस में औपचारिक पारी शुरू करने पर जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर बधाई दी है - ‘भारतीय राजनीति में इस एंट्री का इंतजार रहा और आखिरकार ये अब जाकर हुआ है.'
One of the most awaited entries in Indian politics is finally here! While people may debate the timing, exact role and position, to me, the real news is that she finally decided to take the plunge! Congratulations and best wishes to Priyanka Gandhi.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) January 23, 2019
प्रियंका की नयी पारी को लेकर एनडीटीवी के सवाल पर प्रशांत किशोर ने कहा, 'जून 2016 तक प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने की काफी चर्चाएं थीं. ग्राउंड रिपोर्ट्स को देखते हुए हम में से बहुत लोग यह मानते थे कि उनकी एंट्री उत्तर प्रदेश में बड़ा प्रभाव डाल सकती है. यहां तक कि राहुल गांधी को भी इसका आइडिया था, लेकिन वजह जो भी रही हो, ऐसा हो नहीं पाया.'
अब भी साथ साथ हैं, आगे भी रहेंगे
12 जनवरी को जब मायावती और अखिलेश यादव ने यूपी गठबंधन की घोषणा की तो राहुल गांधी देश से बाहर थे. गठबंधन को लेकर राहुल गांधी ने जो पहली टिप्पणी की थी, उसी पर कायम हैं, 'मायावती जी और अखिलेश ने हमें गठबंधन में शामिल नहीं किया, ये उनका फैसला है लेकिन हमारे दिल में उनके लिए प्यार है, कोई नफरत नहीं है. हम तीनों ही बीजेपी को हराने के लिए लड़ रहे हैं.'
ये सिर्फ चार दिन की चांदनी नहीं...
मायावती और अखिलेश यादव की ओर से अब भी कांग्रेस और बीजेपी को नागनाथ और सांपनाथ के तौर पर पेश किया जा रहा है, लेकिन राहुल गांधी ने उम्मीद नहीं छोड़ी है, ऐसा लगता है. राहुल गांधी की बातों से लग रहा है कि वो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा के साथ की उम्मीद लगाये हुए हैं.
गठबंधन बनने के बाद कांग्रेस की ओर से यूपी के लिए बड़े पत्ते खोलने और चमत्कार जैसी बातें की गयी थीं और प्रियंका गांधी के रूप में वो सब सामने है.
2009 में कांग्रेस को यूपी में 21 सीटें मिली थीं. इन 21 में से 13 सीटें पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही आती हैं - रायबरेली, अमेठी, महाराजगंज, कुशीनगर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फैजाबाद, श्रावस्ती, उन्नाव, बाराबंकी, बहराइच, धौरहरा और डुमरियागंज.
2014 में कांग्रेस को जीत तो सिर्फ दो ही सीटों पर मिली लेकिन 11 सीटें ऐसी रहीं जहां पार्टी को एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे. प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाने के पीछे ऐसी सीटों पर कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास है. आम चुनाव के नतीजे जैसे भी हों - ये तो तय है कि अभी शुरू हुई तैयारियों का फायदा 2022 में तो मिल ही सकता है. तब अगर सीटों को लेकर किसी तालमेल की नौबत आयी तो आम चुनाव के नतीजे भी आधार तो बनेंगे ही.
2014 में यूपी की 11 सीटों पर कांग्रेस को एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे. खास बात ये है कि इन 11 में से 9 सीटें पूर्वी उत्तर प्रदेश में हैं. अमेठी और रायबरेली में तो कांग्रेस की जीत ही हुई थी, वाराणसी के पास मिर्जापुर सीट पर ललितेशपति त्रिपाठी को 1.5 लाख वोट मिले थे. वो भी तब जब बीजेपी के साथ गठबंधन कर अनुप्रिया पटेली चुनाव जीती थीं और कांग्रेस उम्मीदवार को तीसरी पोजीशन हासिल हुई थी. ललितेशपति त्रिपाठी बनारस के कमलापति त्रिपाठी के परिवार से आते हैं जो इंदिरा गांधी के जमाने में यूपी में कांग्रेस का बड़ा चेहरा हुआ करते थे और यूपी चुनावों से पहले जब सोनिया गांधी बनारस में रोड शो करने पहुंची थीं तो कमलापति त्रिपाठी को लेकर भी प्रोग्राम बना था.
यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे निर्मल खत्री को भी फैजाबाद में एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर रीता बहुगुणा जोशी को भी 2.8 लाख वोट मिले थे. लखनऊ से गृह मंत्री राजनाथ सिंह से चुनाव हारने के बाद रीता बहुगुणा ने बीजेपी ज्वाइन कर लिया और फिलहाल योगी सरकार में मंत्री हैं. इलाहाबाद में नंदगोपाल नंदी ने कांग्रेस टिकट पर एक लाख से ज्यादा वोट पाये थे, हालांकि, बाद वो बीजेपी के हो गये.
बाराबंकी में पीएल पूनिया बीजेपी से चुनाव जरूर हार गये लेकिन उन्हें 2.4 लाख वोट मिले थे. यही हाल कुशीनगर में आरपीएन सिंह का रहा जिन्हें 2.8 लाख वोट मिले थे.
अमेठी में राहुल गांधी और रायबरेली में सोनिया गांधी की सीट के अलावा जो वीआईपी सीटें प्रियंका गांधी को मिले कार्यक्षेत्र में आती हैं उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की लखनऊ सीट, मुलायम सिंह यादव की आजमगढ़ सीट के साथ साथ यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर और डिप्टी सीएम केशव मौर्या की फूलपुर सीट भी शामिल है. इनके अलावा अमेठी और रायबरेली के पास ही सुल्तानपुर है. सुल्तानपुर से फिलहाल प्रियंका और राहुल के चचेरे भाई वरुण गांधी बीजेपी के सांसद हैं.
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