हिमाचल में मोदी तो आक्रामक हैं पर बीजेपी डिफेंसिव क्यों ?
हिमाचल में सत्ता विरोधी फैक्टर और वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे होने के बावजूद बीजेपी को आखिरी वक्त में रणनीति क्यों बदलनी पड़ी? सवाल का जवाब तो नतीजे ही बताएंगे.
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हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से ही आक्रामक नजर आ रहे हैं. पहले, कांग्रेस को टारगेट करते हुए उन्होंने सारे बड़े नेताओं को जमानत पर छूटे हुए लोग बताया था. अब वो हिमाचल को पांच राक्षसों से मुक्ति दिलाने की बात कर रहे हैं, जो मोदी के मुताबिक कांग्रेस सरकार की देन हैं. सवाल ये है कि मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर बीजेपी को रणनीतिक बदलाव क्यों करने पड़े? लड़ाई तो वीरभद्र बनाम मोदी का रूप पहले ही ले चुकी है, फिर प्रेम कुमार धूमल का नाम घोषित कर देने से आखिर कितना फायदा मिल पाएगा?
आक्रामक मोदी
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी का घोषणा पत्र पहले ही आ गया था. कांग्रेस अपना मैनिफेस्टो बाद में लायी. दोनों ही मैनिफेस्टो में भ्रष्टाचार के मुद्दे को खास तवज्जो दी गयी है. बीजेपी ने भ्रष्टाचार के साथ साथ माफिया राज के खात्मे और 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी वादा किया है.
रणनीतिक बदलवाल की मजबूरी क्यों?
भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस एक नयी व्यवस्था बनाने के वादे के साथ आयी. कांग्रेस का कहना है कि सत्ता में आने पर ‘भ्रष्टाचार-निरोधी शिकायत आयुक्त’ की नियुक्ति की जाएगी. कांग्रेस का कहना है कि उसी की मदद से भ्रष्टाचार के मामलों को देखा जाएगा.
कांग्रेस की इस घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मोदी और आक्रामक हो गये. एक रैली में प्रधानमंत्री ने सवाल किया, 'कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में कह रही है कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो करप्शन पर जीरो टॉलरेंस होगा. आपके वर्तमान मुख्यमंत्री खुद भ्रष्टाचार के आरोप पर जमानत पर हैं.' फिर मोदी ने कांग्रेस पार्टी को लॉफिंग क्लब जैसा बताया.
इससे पहले मोदी कांग्रेस नेतृत्व को जमानत पर छूटे हुए लोग कह कर ललकार रहे थे. मोदी ने ये कह कर एक ही साथ सोनिया गांधी, राहुल गांधी और वीरभद्र सिंह तीनों को लपेट लिया था. सोनिया और राहुल के लिए मोदी नेशनल हेरल्ड केस की बात कर रहे थे तो वीरभद्र के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की.
कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करने का मोदी वैसे भी कोई मौका नहीं छोड़ते. वैसे भी राहुल गांधी के भाषणों में सारा कुछ मोदी पर ही फोकस रहता है. एक रैली में मोदी ने प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी के चीनी राजदूत से मिलने पर भी तंज कसा. मोदी ने कहा वो जवानों पर भरोसा करने की बजाये चीनी दूत से मिले जो जवानों का अपमान है. याद कीजिए पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर ये कह कर हमला बोला था - 'आप जवानों के खून की दलाली कर रहे हैं.'
मोदी ने कांग्रेस पर एक और बड़ा इल्जाम लगाया है. मोदी का आरोप है कि कांग्रेस ने देवभूमि में पांच राक्षसों को पनपने का मौका दिया है. मोदी के मुताबिक ये राक्षस हैं - खनन माफिया, वन माफिया, ड्रग माफिया, टेंडर माफिया और ट्रांसफर माफिया. मोदी बीजेपी के लिए वोट मांग रहे हैं ताकि इन सबसे देवभूमि के निवासियों को निजात दिलायी जा सके.
रक्षात्मक बीजेपी
अव्वल तो लग रहा था कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही हिमाचल प्रदेश चुनाव बगैर मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किये लड़ेंगे, लेकिन दोनों को ही फैसले बदलने पड़े. कोई आगे, कोई पीछे.
बदलाव की शुरुआत कांग्रेस कैंप से हुई. मालूम हुआ कि वीरभद्र सिंह ने आलाकमान पर दबाव डाल कर खुद को सीएम कैंडिडेट घोषित करावाया. एक पब्लिक मीटिंग में राहुल गांधी को कहना पड़ा - 'वीरभद्र सिंह सातवीं बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे.'
वीरभद्र के सामने धूमल पांचवीं बार...
वीरभद्र सिंह तो पहले भी जोर देकर अपनी बात कह रहे थे, लेकिन राहुल गांधी के ऐलान बाद उनके तेवर ज्यादा तीखे हो गये. राहुल गांधी के निशाने पर तो मोदी होते ही, वीरभद्र भी सीधे मोदी को ही टारगेट करने लगे. अपनी रैलियों में वीरभद्र कहने लगे कि उनके खिलाफ खुद मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी तो कभी नहीं चाहती कि लड़ाई मोदी बनाम वीरभद्र जैसी लगने लगे. स्थानीय बीजेपी नेताओं को भी लगने लगा कि मोदी का भाषणों के अलावा बाकी नेताओं के चुनाव प्रचार कोई धार नहीं नजर आ रही.
पहले संकेत मिले थे कि बीजेपी असम की तरह ही हिमाचल में भी चुनाव लड़ेगी. इसको लेकर जेपी नड्डा का नाम भी उछला. फिर लगा जैसे वो यूपी और दूसरे राज्यों में हुए चुनावों की तरह लड़ेगी, लेकिन वोटिंग से महज नौ दिन पहले उसने नयी चाल चल दी. अचानक से अमित शाह ने प्रेम कुमार धूमल को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया.
बीजेपी पर ऐसे हमले तो पहले भी होते रहे हैं. ये सवाल तो बिहार में भी उठा था और यूपी चुनाव में भी. बीजेपी नेता उसे तरह तरह से काउंटर करते रहे लेकिन बीजेपी ने न तो बिहार में ऐसा किया और न ही यूपी में. उसके पहले भी महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भी बीजेपी की वही पॉलिसी रही. प्रेम कुमार धूमल मार्च 1998 से मार्च 2003 तक और फिर जनवरी 2008 से दिसंबर 2012 तक, दो बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. मुकाबले की बात करें तो धूमल और वीरभद्र में चार मुकाबले हो चुके हैं और दोनों ही दो-दो बार विजयी रहे हैं. ये पांचवां मुकाबला है - और परंपरा के हिसाब से ये धूमल की बारी है. हालांकि, नये मिजाज की चुनावी जंग में परंपरा पीछे छूट जा रही है.
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