राजस्थान में वसुंधरा को अगर कोई उबार सकता है तो वो केवल मोदी ही हैं
राजस्थान चुनाव में गुजरात चुनाव की याद बरबस ताजा हो जाती है. गुजरात में भी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं, बल्कि राज्य बीजेपी के नेताओं से नाराज थे. मोदी के अंतिम दौर में उतरने पर भी लोगों ने उनकी बात भी मानी, चुनाव नतीजे सबूत हैं.
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राजस्थान में बीजेपी की लड़ाई गुजरात चुनाव की तरह ही फंसी हुई लगती है - और ऐसी हालत में पार्टी के पास ले देकर एक ही मसीहा है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. राजस्थान और गुजरात की डेमोग्राफी में बड़ा फर्क है, लेकिन चुनावी राजनीति के हिसाब से देखें तो चीजें करीब नजर आती हैं. गुजरात चुनाव में भी लोग बीजेपी की राज्य इकाई के नेताओं से नाराज थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बिलकुल भी नहीं. राजस्थान में भी तकरीबन वही स्थिति देखी जा सकती है.
गुजरात चुनावों की तरह ही राजस्थान में भी सोशल मीडिया पर एक स्लोगन खूब चल रहा है. ये स्लोगन गुजरात चुनाव से पूरी तरह अलग है. गुजरात में स्लोगन कांग्रेस की चुनावी मुहिम का हिस्सा था, राजस्थान में ऐसा नहीं है. न ही ये स्लोगन बीजेपी का है. स्लोगन से मालूम होता है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे से कुछ लोगों की काफी नाराजगी है. बीजेपी का कहना है कि ये स्लोगन भी कांग्रेस प्रमोट कर रही है, लेकिन ऐसा नहीं लगता. लगता तो यही है कि वसुंधरा से नाराज धड़ा ही इस स्लोगन को आगे बढ़ा रहा है.
ये स्लोगन है - 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं'.
राजस्थान में भी बीजेपी की गुजरात चुनाव जैसी हालत
पंचायत आजतक 2018 में एक सेशन का टॉपिक था - 'किसका होगा राजस्थान'. बहस के दौरान राजस्थान के चर्चित स्लोगन पर सवाल लाजमी था इसलिए सवाल उठा भी.
सवाल था - 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं', ये नारा कौन लगा रहा है?
वसुंधरा के खिलाफ नारे पर घिरी बीजेपी...
इस बहस में कांग्रेस की ओर से रागिनी नायक और बीजेपी की ओर से हिस्सा ले रही थीं सवाई माधोपुर की विधायक दीया कुमारी.
बीजेपी एमएलए दीया कुमारी के पास रेडीमेड जवाब था - 'कांग्रेस वाले.'
सेशन के होस्ट रोहित सरदाना ने तुरंत पूछ डाला - 'आखिर कांग्रेस वाले मोदी तुझसे बैर नहीं का नारा क्यों लगाएंगे?
दीया कुमारी के लिए एक आसान सवाल इतना मुश्किल बना कि जवाब देते नहीं बना. दीया अपनी बात पर आगे भी कायम रहीं कि विपक्ष ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की छवि खराब करने की कोशिश की है.
कांग्रेस प्रवक्ता रागिनी नायक ने काउंटर करते हुए कहा - 'पहले जिन लोगों ने बीजेपी को सपोर्ट किया था, वही लोग अब यह नारा लगा रहे हैं, कांग्रेस वाले क्यों लगाएंगे?'
याद कीजिए गुजरात में भी लोग ऐसे ही खफा थे. फर्क सिर्फ ये है कि राजस्थान में नारा लगाने वाले नाराज भाजपाई हैं और गुजरात में बीजेपी शासन से खफा दूसरे लोग भी खिलाफ हो गये थे. शुरुआती दौर में मीडिया से बातचीत में लोग कहते रहे कि 2019 के लोक सभा चुनाव में वो मोदी को ही वोट देंगे लेकिन विधानसभा चुनाव में कतई ऐसा नहीं करेंगे.
आखिरी दौर में दिल्ली से लगभग पूरी कैबिनेट गुजरात की सड़कों पर उतरी, अमित शाह ने डेरा डाला और मोर्चा संभाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने - नतीजा तो पता ही है. हां, ध्यान उस बात पर जरूर जाना चाहिये कि लोगों ने बीजेपी के हिस्से का सैकड़ा नहीं पार होने दिया.
अब तो सब मोदी भरोसे ही है
गुजरात के मुकाबले कांग्रेस राजस्थान में पहले से ही बेहतर स्थिति में है. सत्ता विरोधी लहर के हिसाब से बीजेपी के लिए दोनों बराबर हैं. गुजरात में कांग्रेस को राज्य के युवा नेताओं की मदद लेनी पड़ी थी, राजस्थान में न तो वैसी परिस्थिति रही और न ही कांग्रेस को ऐसी कोई जरूरत पड़ी. राजस्थान में भी कांग्रेस गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही है. विधानसभा की 200 में से पांच सीटें कांग्रेस ने सहयोगी दलों को दिया है और खुद 195 इलाकों में मैदान में डटी हुई है. राजस्थान में कांग्रेस ने आरएलडी और शरद यादव की पार्टी को दो-दो और एनसीपी को एक सीट दी है.
राजस्थान में भी राजे नहीं... सब मोदी भरोसे
गुजरात कांग्रेस से तुलना करें तो राजस्थान में पार्टी बेहतर स्थिति में है. राजस्थान उपचुनावों में जीत कांग्रेस का प्लस प्वाइंट है तो गुजरात की तरह वो बगैर किसी चेहरे के भी नहीं है - ये बात अलग है कि एक की जगह मुख्यमंत्री पद के दो-दो दावेदारों के चेहरे बने हुए हैं. कांग्रेस ने भले ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है और उनकी आपसी लड़ाई भी जग जाहिर है, लेकिन ये तो साफ है कि दोनों दावेदारों में से कोई एक होगा ही - ये भी कांग्रेस की स्थिति को काफी मजबूत बनाता है. एक खास बात ये भी है कि गुजरात चुनाव में भी कांग्रेस के बड़े रणनीतिकार अशोक गहलोत ही थे - और भरोसेमंद साथी-सिपाही सचिन पायलट.
बागियों से तो कांग्रेस भी जूझ रही है, लेकिन बीजेपी की हालत ज्यादा खराब है. ऐसी भी कई सीटें हैं जहां एक दूसरे ने विरोधियों के बागियों गले लगाकर टिकट दिया है. वसुंधरा राजे के खिलाफ मानवेंद्र सिंह और नागौर से कांग्रेस के टिकट पर हबीबुर्रहमान इसकी मिसाल हैं.
जिस तरह कांग्रेस ने गुजरात में 'विकास पागल है' मुहिम चलायी थी, राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक राहुल गांधी खुद नारे लगवा रहे हैं - राहुल गांधी 'चौकीदार...' बोल कर पॉज लेते हैं और सामने से आवाज आती है - '...चोर है.'
प्रधानमंत्री मोदी तो हर बात की काट निकाल लेते हैं. गुजरात से पहले यूपी चुनाव में जब अखिलेश यादव ने नारा चुना 'काम बोलता है' तो पहुंचते ही मोदी ने समझा दिया - 'आपका काम नहीं कारनामा बोलता है.' राजस्थान में भी मोदी ने ताबड़तोड़ रैलियां कर लोगों को समझाने की कोशिश की कि ये लड़ाई नामदार और कामदार के बीच की है. कामदार से मोदी का आशय तो केंद्र की अपनी सरकार से ही होता है, लेकिन वोट के लिए वो फिलहाल इसमें वसुंधरा सरकार को भी जोड़ ले रहे हैं - साथ ही, अपनी स्टाइल में मूंग और मसूर का राजनीतिक फर्क भी समझाते जा रहे हैं.
एक चुनावी रैली में मोदी कहते हैं - राजस्थान में एक कामदार, एक नामदार के खिलाफ लड़ाई के मैदान में है. मोदी का तीर तो एक ही है लेकिन राहुल गांधी के साथ साथ वो लोगों को सचिन पायलट की तरफ भी दिलाना चाहते हैं. सचिन पायलट कांग्रेस नेता राजेश पायलट के बेटे हैं. राजेश पायलट तो नहीं लेकिन सचिन पायलट जरूर निशाने पर आ जाते हैं. वैसे तो जिस बैकग्राउंड से मोदी आते हैं, उससे तो वसुंधरा भी नहीं आतीं.
बहरहाल, मोदी के पास लोगों से कनेक्ट होने के तत्व हमेशा होते हैं और वो कोई मौका नहीं चूकते. कहते हैं - 'जिस जिंदगी को आप जी रहे हैं वही जिंदगी मैंने जी है. न आप सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं और न ही मैं सोने का चम्मच लेकर पैदा हुआ हूं. न आपके परिवार में कोई राज किया है न ही मेरे परिवार में कोई. आज एक कामदार आपसे काम मांगने आया है.'
ताली बजती है तो कहते हैं - 'जो सोने का चम्मच लेकर जन्म लिए, उन्हें क्या पता कि पैर में कांटा लगने का दर्द क्या होता है...' ताली तेज हो जाती है और उसी बीच कहते हैं, '...मैं जानता हूं.'
फिर नामदार और कामदार में फर्क समझाने की कोशिश होती है. नागौर की एक रैली में मोदी कहते हैं, 'जिन लोगों को ये नहीं पता कि चने का पौधा होता है या पेड़ - और जिन्हें ये भी नहीं मालूम कि मूंग और मसूर में क्या फर्क होता है, वे आज देश को किसानी सिखाने चले हैं.'
मोदी समझ जाते हैं कि माहौल तैयार हो चुका है. चोट गर्म लोहे पर ही अच्छी होती है. कहते हैं - 'हम यहां आपसे अपने पोते-पोती की भलाई के लिए नहीं... बल्कि, आपके विकास के लिए वोट मांगने आए हैं.'
मोदी-मोदी करने वालों को भला और क्या चाहिये. वोट पक्का करने के लिए मोदी वसुंधरा सरकार की तारीफ शुरू करते हैं. सबको मालूम है कि ये कतई 'मन की बात' नहीं है, मगर, राजनीति कौन दिल से करने की चीज है.
वसुंधरा राजे का कामदार रोल मोदी अपने तरीके से समझाते हैं, 'राजस्थान में अगर पानी का इंतजाम हो जाता तो यहां के लोग सोना उठाने की ताकत रखते हैं. राजस्थान का एक बंजारा अगर एक बावरी बनवा देता है तो राजस्थान के लोग उसे भूलते नहीं हैं... वसुंधरा राजे ने तो डेढ़ लाख हेक्टेयर में सिंचाई का इंतजाम कर दिया उसे कैसे भूल सकते हैं.'
जगह जगह प्रधानमंत्री मोदी लोगों को ये भी समझाते हैं कि अगर बीजेपी की वसुंधरा की जगह राजस्थान में कांग्रेस की सरकार आयी तो विकास के काम रुक जाएंगे. कांग्रेस के पास मोदी के दावों को काउंटर करने के अपने तर्क हैं. कांग्रेस उसी बात की ओर लोगों का ध्यान खींच रही है जो बातें जगजाहिर हैं - मसलन, वसुंधरा की केंद्रीय नेतृत्व से तो पटती नहीं - चाहे वो नरेंद्र मोदी हों या फिर अमित शाह. ऐसे में मोदी कैसे गारंटी दे सकते हैं कि बीजेपी की सरकार आने पर भी केंद्रीय योजनाएं मनमाफिक ही होंगी?
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